सेवा का कोई मोल नहीं लेकिन
इतना मिले कि घर चल जाए
कोरोना वार्ड में काम करना का
मतलब है आठ घंटे के लिए अंगार भरे रास्ते पर चलना। इस रास्ते पर चलने के दौरान
होने वाली जलन को भूल कर वार्ड में भर्ती कोरना संक्रमित मरीज की सेवा करना लक्ष्य
होता है। ऐसा व्यवहार करना जिससे सामने वाले मरीज कोई हमारे दर्द का एहसास भी न
हो। संजय गांधी पीजीआई के कोरोना वार्ड में ड्यूटी कर रही आउट सोर्स नर्स रूपा
सिंह कहती है ड्यूटी टाइम से दो घंटे पहले तैयार होना होता है। इतना शारीरिक
बैलेंस बनाना होता है कि आठ घंटे न प्यास लगे, और नहीं वास रूम के लिए जाना पडे।
ड्यूटी के दौरान पीपीई किट पहने होने के कारण न पानी पी सकते है और वाश रूम जा
सकते है। इस लिए उतना ही पानी पीना है कि जिससे यह सब जरूरत न पडे। पीपीई किट पहने
से इतना पसीना होता है कि आठ घंटे काटना कठिन होता है। इन तमाम दर्द और परेशानी के साथ सेवा जो सुख है
उसको शब्दों में कहना संभव नहीं है। रूपा सिंह कहती है कि हमलोग आउट सोर्स नर्स है यानि संस्थान में दोयम दर्जे
की नर्स। साथ हमारे बराबर काम करने वाली परमानेंट नर्स 70 से 80हजार वेतन के अलावा
तमाम सुख सुविधा लेकिन हम लोगों को 16 हजार में गुजारा करना होता है। तमाम सेवा के
बाद भी नौकरी की कोई गारंटी नहीं है। हमारे और संस्थान के बीच में ठेकेदार होता है
जब चाहे नौकरी से बाहर कर दे। संस्थान को भी जब जरूरत नहीं होगी तो हम लोगों को
बाहर कर देगा। सेवा का कोई मोल नहीं होता है लेकिन इतनी हाथ जोड़ कर प्रार्थना है
कि रेलवे, एम्स के समान वेतन देने के साथ ही 60 साल तक सेवा की गांरटी दी जाए।
इससे हम लोगों का मनोबल बढेगा । मन में हमेशा नौकरी जाने का भय रहता है।कम पैसे
गुजारा कैसे होता है यह हम लोग ही जानते है। संस्थान प्रशासन ने हम लोगों के रूकने
और खाने की अच्छी व्यवस्था की है ।
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