गुरुवार, 30 जुलाई 2020

पीजीआइ के प्रो.सुनील प्रधान ने खोजा माइग्रेन का नया कारण और लक्षण स्टेप माइग्रेन

पीजीआई के प्रो. सुनील प्रधान की  खोजा से बना विश्व का पहला संस्थान



पीजीआइ ने खोजा नए तरह का माइग्रेन
स्टेप माइग्रेन कदम दर कदम दिमाग में देता है चोट
एक बार फिर प्रो.सुनील प्रधान ने विश्व के सामने रखी नयी न्यूरोलाजिकल परेशानी   
कुमार संजय़। लखनऊ

संजय गांधी पीजीआइ के न्यूरोलाजिस्ट प्रो.सुनील प्रधान खोज से विश्व का पहला संस्थान बन गया है।  इससे पहले मस्कुलर डिस्ट्राफी की पहचान के प्रधान साइन की खोज की थी जिससे विश्व स्तर पर पढाया जाता है। अब प्रो. प्रधान नए तरह के माइग्रेन का पता लगाया है जिसके बारे में अभी तक विश्व के किसी भी न्यूरोलाजिस्ट को जानकारी नहीं थी। नए तरह के माइग्रेन को प्रो प्रधान स्टेप हेडेक नाम दिया है। इस हेडेक के बारे में कोई भी शोध पत्र अभी तक नहीं है। माइग्रेन के तमाम कारण और लक्षण पहले से पता है जिसके आधार पर मरीज को सलाह दी जाती है ।  नए कारण स्टेप हेडेक नाम से ही साबित होता है कि स्टेप ( कदम) रखने के साथ सिर में दर्द की परेशानी होती है। नए लक्षण और कारण का पता लगाने के लिए शोध किया जिसमें 150 माइग्रेन और 244 टेंशन टाइप हेडेक( मानसिक परेशानी के कारण सिर दर्द) के मरीजों को शामिल किया गया। माइग्रेन की डायग्नोसिस इटरनेशमल हेडेक सोसाइटी -3 बीटा के मानक के अनुरूप की गयी। देखा गया कि माइग्रेन के कारणों में 66.7 फीसदी में सूर्य की रोशनी और 41.3 फीसदी में 6 से आठ घंटे खाली पेट रहना मिला। देखा गया कि 64.67 फीसदी में स्टेप हेडेक की परेशानी थी। प्रो.सुनील प्रधान ने शोध पत्र में बताया है कि हर कदम पर सिर में हर धम्म( हथौड़ा) जैसे दर्द होता है जितने देर यह माइग्रेन रहता है व्यक्ति चलने फिरने में भी मजबूर हो जाता है। शोध जर्नल आफ न्यूरोसाइंस इन रूरल प्रैक्टिस ने स्टेप हेडेक- ए डिसटिनिक्ट आफ माइग्रेन विषय से स्वीकार किया है।




क्या है स्टेप हेडेक
स्टेप हेडेक ( माइग्रेन)  पैदल चलनेदौड़नेया सीढ़ियों पर चढ़ने के दौरान जमीन पर पैर के प्रत्येक प्रभाव के बाद पैर से सिर तक फैल जाती है।  माइग्रेन सिर के दोनों हिस्से में  होता है।  पूरे सिर में महसूस होती है। बैठने या लेटने की अवस्था के दौरान महसूस नहीं होता है। इस नए टाइप के माइग्रेन का पता लगने के बाद नए तरीके से सलाह दी जाएगी।

माइग्रेन है बडी परेशानी
माइग्रेन सिर दर्द का एक बडा कारण है देखा गया है कि 5.61 से 26.1 फीसदी लोगों में माइग्रेन की परेशानी होती है।  माइग्रेन डिसएबिलिटी के दस बडे कारणों में शामिल है।  

मरीज़ों की परेशानी के सामने अपनी परेशानी जाता हूं भूल

पीजीआइ के सफाई निरीक्षक ओम प्रकाश सिंह ---कोरोना संक्रमित  के लिए रात दिन दे रहे है सफाई  
  

मरीज़ों की परेशानी के सामने अपनी परेशानी जाता हूं भूल

कोरोना संक्रमित मरीज के लिए बने राजधानी कोविड हॉस्पिटल के वार्ड में सफाई जार सी चूक मरीज़ों के साथ ही कर्मचारियों के लिए इंफेक्शन का खतरा बढा सकता है। वार्ड के साफई के साथ ही वेस्ट का सही तरीके से निस्तारण एक बडी चुनौती है। इस व्यवस्था के लिए 120 से अधिक सफाई कर्मी लगे है। सफाई कर्मचारी जो वार्ड में ड्यूटी करते है उन्हे 14 दिन क्वरटाइन किया जाता है। इस दौरान वह संस्थान प्रशासन द्वारा उपलब्ध रहने की व्यवस्था में रहना होता है। कई बार ड्यूटी कर रहे है कर्मचारी की तबियत खराब हो जाती है ऐसे में तुरंत उनकी जगह दूसरे कर्मचारी की व्यवस्था करने के साथ ही ड्यूटी पर लगे कर्मचारियों के मनोबल बढाना एक बडी ज़िम्मेदारी होती है। संजय गांधी पीजीआई के कोविद अस्पताल के सफाई निरीक्षक ओम प्रकाश सिंह कहते है कि बेटे का रोड एक्सीडेंट हो गया था । जीवन उसका बच गया लेकिन अभी वह बेटा हम लोगों पर आश्रित है। घर की इतनी बडी परेशानी के बाद भी मरीजों की परेशानी के आगे अपनी परेशानी कम लगती है। सफाई व्यवस्था देखने के साथ ही ड्यूटी का मैनेजमेंट , कर्मचारियों की अपनी परेशानी को दूर करने के लिए हर स्तर पर कोशिश करते –करते कब रात होती है कब सुबह होती है पता ही नहीं चलता है। कई बार तो रात में तीन बजे भी फोन बचता है तो तुरंत उठ कर भागना होता है। वार्ड में सफाई में जरा सी कमी होने पर तुरंत मरीज भी हल्ला मचाने लगते है जो मचाना भी चाहिए हम लोगों हर स्तर पर मरीज़ों के संतुष्टि के लिए कोशिश करते है। 

सोमवार, 27 जुलाई 2020

75 वर्षीय गंभीर कोरोना संक्रमित को मौत के मुंह से खीच लाया पीजीआई

75 वर्षीय गंभीर कोरोना संक्रमित को मौत के मुंह से खीच लाया पीजीआई
कोरोना संक्रमण के कारण काम नहीं कर रहा था श्वसन तंत्र
11 दिन वेंटीलेटर पर चला जीवन से संघर्ष
रेमडेसिविर के साथ जनरल मैनेजमेंट साबित हुआ संजीवनी
जागरण संवाददाता। लखनऊ
संजय गांधी पीजीआइ के पल्मोनरी मेडिसिन  विभाग के चिकित्सक एवं  कोरोना  आईसीयू वन के इंचार्ज प्रो. जिया हाशिम के क्लिनिकल प्लानिंग और मैनेजमेंट के जरिए 75 वर्षीय प्रेम प्रकाश को मौत के मुंह से खीच लाए। कोरोना के कारण गंभीर निमोनिया हो गया जिसके कारण श्वसन तंत्र प्रणाली काम करना बंद कर किया था । इस परेशानी को डाक्टरी भाषा में एक्यूट रिसपाइरेटरी ड्रिसट्रेस सिंड्रोम कहते है। कोरोना अस्पताल के आईसीयू में भर्ती करने के साथ इन्हे वेंटीलेटर पर रखा गया। पूरी आईसीयू टीम ने मैनेजमेंट संभाला। सामान्य दवाओं के साथ संक्रमण को रोकने के साथ शुगर पर नजर रखने के साथ उसे नियंत्रित किया गया। विशेषज्ञों का दवा है कि इतनी उम्र को यह दूसरा मरीज है जिसे वेंटीलेटर से सकुशल वापस लाया गया। प्रो. हाशिम कहते है कि इस मरीज की स्थिति को देखते हुए हमने एंटी वाय़रल रेमडेसिविर दवा के साथ विशेष क्लिनिकल मैनेजमेंट किया जिसका फायदा मरीज में हुआ।  स्थित सामान्य हो गयी। एक्स-रे भी सामान्य हो गया साथ कोरोना का रिपोर्ट भी निगेटिव आ गया। मरीज को इस हिदायत के साथ छुट्टी दी गयी कि वह इन्हें महीने भर आइसोलेसन में अलग कमरे में रखेंगे। प्रो. जिया का कहना है कि इतनी अधिक उम्र के मरीज जिसमें कोरोना के साथ एआरडीएस रहा हो वेंटीलेटर से वापस लाना बडी सफलता है। प्रेम प्रकाश 11 दिन वेंटीलेटर पर रहे। इस दौरान संक्रमण की काफी आशंका होती है जिससे बचाने के लिए ड्यूटी पर नर्सेज की अहम भूमिका रही।

आईसीयू में शुरू हुआ इलाज


9 जुलाई को यह पीजीआइ रिफर हो कर आए तो देखा कि स्थित अच्छी नहीं है। आक्सीजन लेवल कम है तुरंत इनकों को आईसीयू में लिया गया दो दिन बाद 11 जुलाई को वेंटीलेटर पर लेना पडा क्योंकि श्वसन तंत्र काम नहीं कर रहा था  21 जुलाई वेंटीलेटर से बाहर आ गए । रही बात इच्छा शक्ति की तो यह यहां जब आए तो सीधे आईसीयू में ही ले जाना पडा लेकिन वेंटीलेटर से बाहर आने के बाद उन्होंने आभार जताया । कोरोना पाजिटिव सुन कर घर वाले परेशान हो गए थे लेकिन सब कुछ ठीक रहा। 

कोर्टिसोल बताएगा कितनी गंभीर करेगा कोरोनाकोरोना

कोर्टिसोल बताएगा कितनी गंभीर करेगा कोरोनाकोरोना

मरीज़ों में गंभीर की भविष्यवाणी होगी संभव
संभव होगी पहले से प्लानिंग
कुमारसंजय़। लखनऊ
कोरोनाका नाम सुनते तमाम लोग तनाव में खुद-ब-खुद आ जाते है। इस तनाव के कारण शरीर में कोर्टिसोल रसायन का स्तर बढ़ जाता है जो शरीर की मेटाबोलिज्म को प्रभावित करनेके साथ ही शरीर के इम्यून सिस्टम को प्रभावित करता है। किंग जार्ज मेडिकल विवि केमानसिक रोग विशेषज्ञ डा.एसके कार जो इस समय कोरोना वार्ड में मरीजों की देख रेख कररहे है बताते है कि हमने देखा है कि  कोर्टिसोल कार्टीसोलसी रिएक्टिव प्रोटीन और  लैक्टेट डीहाइड्रोजिनेज(एलडीएच)का बढा स्तर मरीज़ों में गंभीरता बढा रहा है। इन मरीजों को विशेष देख-रेख की जरूरतहोती है। हमारे इस बात की पुष्टि  द लासेंटभी करता है।  अपने रिपोर्ट एसोसिएशन बिटविन हाई सीरम कोर्टिसोल कंसनट्रेशन एंडमोर्टलिटी फ्राम कोविद-19 में बताया है कि कोर्टिसोल काबढा स्तर बीमारी की गंभीरता बढाता है। डा.कार कहते है कि कोरोना से संक्रमित 67फीसदी मरीजों जिनमें कोर्टिसोल कास्तर 744 नेनोमोल प्रति लीटर से कम था उनमें गंभीरता के साथ सर्वाइवल रेट अधिक थालेकिन 33 फीसदी मरीज जिनमें स्तर इससे अधिक था उनमें सर्ववाइवल रेट कम मिला। हमनेजो देखा इसकी पुष्टि द लासेंट भी करता है। 
कई सेंटर के साथ मिल कर कर रहे है शोध

 कई सेंटर के साथ मिल कर कोरोना मरीजों गंभीरता भापनेके लिए शोध कर रहे है जिसके जरिए काफी पहले प्लानिंग कर मरीज़ों को बचाना संभवहोगा। तनाव कम करने के लिए एंटी स्ट्रेस दवाएँ भी देने की संभावना पर काम कर रहेहैं। 

क्या है कोर्टिसोल कोर्टिसोल

तनाव नियंत्रित करने वाला   हारमोन है। यह  मस्तिष्क के कुछ हिस्सों के साथ आपके मूडप्रेरणा और भय को नियंत्रित करने के लिए काम करता है। किडनी के ऊपर स्थित एड्रीनल ग्लैंड इस हारमोन को बनाता है। संकट में आपके शरीर को "लड़ाई-या-उड़ान" के लिए  ईंधन की तरह हमें तैयार करता है। कोर्टिसोल  शरीर की कई चीजों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

अब कोरोना के गंभीर मरीज़ों की जिंदगी बचाएगी मोनो क्लोनल एंटीबाडी


अब कोरोना के गंभीर मरीज़ों की जिंदगी बचाएगी मोनो क्लोनल एंटीबाडी


इस दवा से कोरोना के कारण गंभीर निमोनिया में कम होती है मौत

लखनऊ में कोरोना के चार मरीज़ों के के लिए साबित हुई संजीवनी

कुमार संजय। लखनऊ

अब कोरोना के गंभीर मरीज़ों की जिंदगी बचाने में कारगर साबित होगी मोनो क्लोनल एंटी बाडी(टोसिलिज़ुमैब) । कोरोना के गंभीर मरीज़ों की जिंदगी बचाने के लिए कई दवाओं का इस्तेमाल विशेषज्ञ अपने स्तर पर कर रहे है । इसी क्रम में खास मोनोक्लोनल एंटी बाडी उन मरीज़ों में कारगर साबित हुई है जिनमें कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण गंभीर निमोनिया की परेशानी थी। विशेषज्ञों ने देखा कि कोविद निमोनिया से ग्रस्त मरीजों में देखा गया कि   प्रचलित इलाज पाने वाले मरीज़ों के तुलना में एंटीबाडी पाने वाले मरीज़ों में मृत्यु दर में 13 फीसदी का अंतर था। देखा गया कि प्रचलित इलाज पाने वाले मरीज़ों में मृत्यु दर 20  फीसदी जबकि मोनो क्लोनल एंटीबाडी दिए जाने वाले मरीज़ों में मृत्यु दर सात फीसदी देखा गया। विशेषज्ञों का कहना है कि इस खास एंटीबाडी पाने वाले मरीज में इनवेसिव वेंटीलेटर की जरूरत भी कम हुई। इस लिए इस दवा का इस्तेमाल कोविद निमोनिया से ग्रस्त गंभीर मरीज़ों में किया जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस खास मोनोक्लोनल एंटीबाडी के इस्तेमाल के लिए देश में अनुमति मिल गयी है।







भारत सरकार ने दे रखी है अनुमति



13 जून को भारत सरकार ने कोविद -19 के मरीजों के इलाज के  प्रोटोकॉल में शामिल करने की अनुमति दी है।  कहा गया है कि डॉक्टर कोविद -19 के साथ कुछ लोगों के लिए इस दवा को लिख सकते हैं। द लासेंट रूमैटोलाजी के शोध रिपोर्ट टोसिलिज़ुमैब इन पेशेंट विथ सीवियर कोविद -19 – ए रेट्रोस्पेक्टिव स्टडी के शोध का हवाले संजय गांधी पीजीआइ को पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के प्रो.जिया हाशिम कहते है कि विशेषज्ञों ने कोविद निमोनिया के गंभीर 544 मरीजों पर शोध किया जिसमें 365 मरीज़ों को प्रचलित इलाज दिया गया और 179 मरीजों को मोनो क्लोनल एंटीबाडी दिया गया । बताया कि इस शोध के आधार पर हमने में कोरोना के कारण गंभीर निमोनिया के चार मरीज़ों में इस तकनीक से इलाज किया जिसमें सफलता मिली है।   











क्या करता है यह एंटीबाडी



कोविद-19 वायरस के संक्रमण होने के बाद शरीर में साइटोकाइन का स्तर तेजी से बढ जाता है जिसे साइटोकाइन तूफान उठता है। साइटोकाइन का यह तूफान शरीर के सामान्य कोशिकाओं की कार्य प्रणाली बिल्कुल गड़बडा जाती है। इसके कारण मरीज़ों को सांस लेने में गंभीर परेशानी होती है। कई बार ऑक्सीजन थेरेपी के बाद शरीर में संतृप्त ऑक्सीजन की मात्रा 94 फीसदी से कम रहती है।    शोध वैज्ञानिकों का कहना है कि टोसिलिज़ुमैब मोनोक्लोनल एंटीबाडी शऱीर में साइटोकाइन का तूफान रोकने में मदद गार साबित हो सकता है।



मंगलवार, 14 जुलाई 2020

पीजीआई के कोरोना वार्ड में सेवा कर रही नर्स की व्यथा....सेवा का कोई मोल नहीं लेकिन इतना मिले कि घर चल जाए

सेवा का कोई मोल नहीं लेकिन इतना मिले कि घर चल जाए



कोरोना वार्ड में काम करना का मतलब है आठ घंटे के लिए अंगार भरे रास्ते पर चलना। इस रास्ते पर चलने के दौरान होने वाली जलन को भूल कर वार्ड में भर्ती कोरना संक्रमित मरीज की सेवा करना लक्ष्य होता है। ऐसा व्यवहार करना जिससे सामने वाले मरीज कोई हमारे दर्द का एहसास भी न हो। संजय गांधी पीजीआई के कोरोना वार्ड में ड्यूटी कर रही आउट सोर्स नर्स रूपा सिंह कहती है ड्यूटी टाइम से दो घंटे पहले तैयार होना होता है। इतना शारीरिक बैलेंस बनाना होता है कि आठ घंटे न प्यास लगे, और नहीं वास रूम के लिए जाना पडे। ड्यूटी के दौरान पीपीई किट पहने होने के कारण न पानी पी सकते है और वाश रूम जा सकते है। इस लिए उतना ही पानी पीना है कि जिससे यह सब जरूरत न पडे। पीपीई किट पहने से इतना पसीना होता है कि आठ घंटे काटना कठिन होता है।  इन तमाम दर्द और परेशानी के साथ सेवा जो सुख है उसको शब्दों में कहना संभव नहीं है। रूपा सिंह कहती है कि हमलोग  आउट सोर्स नर्स है यानि संस्थान में दोयम दर्जे की नर्स। साथ हमारे बराबर काम करने वाली परमानेंट नर्स 70 से 80हजार वेतन के अलावा तमाम सुख सुविधा लेकिन हम लोगों को 16 हजार में गुजारा करना होता है। तमाम सेवा के बाद भी नौकरी की कोई गारंटी नहीं है। हमारे और संस्थान के बीच में ठेकेदार होता है जब चाहे नौकरी से बाहर कर दे। संस्थान को भी जब जरूरत नहीं होगी तो हम लोगों को बाहर कर देगा। सेवा का कोई मोल नहीं होता है लेकिन इतनी हाथ जोड़ कर प्रार्थना है कि रेलवे, एम्स के समान वेतन देने के साथ ही 60 साल तक सेवा की गांरटी दी जाए। इससे हम लोगों का मनोबल बढेगा । मन में हमेशा नौकरी जाने का भय रहता है।कम पैसे गुजारा कैसे होता है यह हम लोग ही जानते है। संस्थान प्रशासन ने हम लोगों के रूकने और खाने की अच्छी व्यवस्था की है । 

रविवार, 5 जुलाई 2020

जिंदगी देने वाले को याद कर नम हो उठीं आंखें-डॉ. छाबड़ा ने 19 साल पहले हाइड्रोसेफलस की सर्जरी कर आदित्य की बचाई थी

जिंदगी देने वाले को याद कर नम हो उठीं आंखें




डॉ. छाबड़ा ने 19 साल पहले हाइड्रोसेफलस की सर्जरी कर आदित्य की बचाई थी जान तमाम डॉक्टरों ने दे दिया था जवाब

कुमार संजय ’ लखनऊ
लगभग 19 साल पहले बस्ती जिले के हरैया तहसील के ग्राम कसइला के रहने वाले गणोश दत्त शुक्ला के भतीजे आदित्य को सिर पर सूजन और झटके आने की परेशानी हुई तो घर वाले परेशान हो गए। उस समय आदित्य की उम्र चार साल थी। घर वालों ने कई जगह दिखाया पर हर जगह निराशा ही हाथ लगी। लगभग सभी ने जवाब दे दिया था। चाचा गणोश और पिता दिनेश बेटे को लेकर पीजीआइ लखनऊ आए तो उस समय न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रमुख प्रो. डीके छाबड़ा को दिखाया। प्रो. छाबड़ा ने जांच के बाद कहा कि हाइड्रोसेफलस बीमारी है। सर्जरी ही इसका इलाज है, लेकिन सर्जरी में रिस्क भी है। परिवार वालों ने कहा कि आप ही उम्मीद हैं, जो किस्मत में होगा देखा जाएगा। आदित्य की सर्जरी प्रो. छाबड़ा ने की और उसकी हालत ठीक हो गई। गणोश बताते हैं कि एक दिन आदित्य गिर गया, जिससे सिर पर ईंट की नोक लग गई। इस घटना के कुछ दिन बाद ही उसे फिर परेशानी होने लगी। डॉ. छाबड़ा को दिखाया तो उन्होंने बताया कि चोट की वजह से शंट ब्लॉक हो गया है। दोबारा सर्जरी की गई। सब ठीक ही चल रहा था कि फिर तीसरी बार सिर पर बॉल लगने से शंट ब्लॉक हो गया। तीसरी बार सर्जरी करनी पड़ी। इसके बाद से फिर कभी कोई परेशानी नहीं हुई। आज आदित्य 23 साल का है। सब ठीक चल रहा है। प्रो. छाबड़ा का निधन सुनते ही परिवार वाले भावुक हो गए। कहा कि उन्हीं की देन है कि यह मेरा बेटा आज आंख के सामने है। ऐसे महान व्यक्ति का जाना दुखद है।

क्या है हाइड्रोसेफलस
दिमाग के गुहाओं में तरल पदार्थ भर जाता है। अत्यधिक तरल पदार्थ गुहाओं के आकार को बढ़ाता है और मस्तिष्क पर दबाव डालता है। सेरेब्रोस्पाइनल तरल पदार्थ के रूप में जाना जाने वाला द्रव रीढ़ की हड्डी और मस्तिष्क में बहता है। अत्यधिक सेरेब्रोस्पाइनल तरल पदार्थ का दबाव मस्तिष्क के ऊतकों को नष्ट करता है और मस्तिष्क को गंभीर हानि पहुंचाता है। ओल्डर इंफैन्ट्स और इन्फैन्ट्स में हाइड्रोसेफलस सामान्य है। सर्जरी से हाइड्रोसेफलस का इलाज संभव है। यह मस्तिष्क में सेरेब्रोस्पाइनल तरल पदार्थ को बनाए रखने व पुनस्र्थापित करने के लिए किया जाता है।

शुक्रवार, 3 जुलाई 2020

चालिस साल पुरानी दवा करेगी कोरोना का काट



चालिस साल पुरानी दवा करेगी कोरोना का काट

बचा चुकी है पहले लाखों मनुष्यों और जानवरों का जीवन, डॉक्टरों को मिल रहे सकारात्मक परिणाम


कुमार संजय ’ लखनऊ
चालीस पहले(1981) खोजी गई दवा इवरमेक्टिन अब कोरोना संक्रमित मरीजों को बचाने में कारगर साबित हो सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस दवा को इस समय इलाज में इस्तेमाल की जा रही एजिथ्रोमाइसिन या क्लोरोक्वीन या अन्य दवाओं के साथ कॉम्बिनेशन में देने से काफी फायदा मिल सकता है। इवरमेक्टिन कई प्रकार के परजीवी संक्रमणों के इलाज के लिए उपयोग की जाने वाली दवा मानी जाती रही है। देखा गया है कि यह एंटीवायरल, जीवाणुरोधी और एंटीकैंसर गतिविधियों में कारगर साबित हो सकती है। मनुष्यों में ऑन्कोकार्कोसिस के उन्मूलन कार्यक्रमों में एक प्रमुख दवा के रूप में इसका इस्तेमाल हुआ। इंटरनेशनल मेडिकल जर्नल साइंस डायरेक्ट का कहना है कि इवरमेक्टिन कोरोना वायरस का अवरोधक है। कोरोना संक्रमित सेल में इस दवा का एक डोज 48 घंटे में वायरस में 5000-गुना कमी लाने में सक्षम है। यह एक एकल उपचार हो सकता है। इसी बात की पुष्टि एनल आफ क्लीनिकल माइक्रोबायलोजी एंड एंटी माइक्रोबियल ने भी की है। इवरमेक्टिन, ए न्यू कंडीडेट थिरेपियूटिक एगेंसट सार्स - कोविड-2, कोविद-19 विषय पर लिखा है कि इस दवा के इस्तेमाल पर और अधिक काम करने की जरूरत है। इसके नतीजे जरूर सकारात्मक हैं लेकिन इसके कॉम्बिनेशन मरीज की प्रकृति पर निर्भर है।

आरएनए वायरस पर कारगर रही है यह दवा
यह दवा रिबोन्यूक्लिक एसिड (आरएनए) वायरस जैसे कि जीका वायरस, इन्फ्लूएंजा वायरस , वेनेजुएला के एनीसेफेलाइटिस वायरस, वेस्ट नील वायरस के खिलाफ शक्तिशाली एंटीवायरल प्रभाव प्रदर्शित किए हैं। श्वसन सिंड्रोम वायरस, न्यूकैसल रोग वायरस, चिकनगुनिया वायरस , ह्यूमन इम्यूनोडिफीसिअन्सी वायरस (एचआइवी -1) , पीला बुखार वायरस, डेंगू वायरस में यह दवा कारगर साबित हुई। जिसके आधार पर इस दवा का कार्य क्षमता का आकलन कोरोना वायरस पर किया गया।

देश-विदेश के चार संस्थान के विज्ञानियों ने जताई उम्मीद
इंडियन वेटनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट बरेली, कालेज आफ वेटनरी साइंस मथुरा, यूनिवर्सटी आफ आटोनोमा डी लास कोलंबिया, सैमसुन लाइव हास्पिटल टर्की के डॉ. खान सारून, डा.कुलजीप डामा, डॉ. शैलेष कुमार पटेल , डॉ. ममता पाठक, डॉ.रुचि तिवारी, डॉ.भोज राज सिंह, डॉ.रंजीत शाह, डॉ. डी कैटरीन, डॉ.एलफोसोन, डॉ. हाकान को शोध पत्र एनल आफ क्लीनिकल माइक्रोबायलोजी एंड एंटी माइक्रोबियल ने स्वीकार करते हुए कहा है कि कोरोना के लिए नया विकल्प साबित हो सकता है।

गुरुवार, 2 जुलाई 2020

कोरोना के सस्ते इलाज का खुला रास्ता...रेमडेसिविर 10 दिन के बजाए 5 दिन ही होगा कारगर


एंटीवायरल रेमडेसिविर से कोरोना के इलाज की मंजूरी, खर्च भी होगा आधा 







 दस दिन का होता था कोर्स, चार लाख रुपये की पड़ती थी डोज, अब पांच दिन में चल जाएगा काम



बड़ी राहत

- दुनिया के कई देशों में रेमेडिसवीर से गंभीर संक्रमितों का किया जा रहा है इलाज

 - आइसीएमआर ने दी मंजूरी, पीजीआइ सहित देश के दूसरे अस्पतालों में लागू होगा प्रोटोकॉल



कुमार संजय, लखनऊ
कोरोना संक्रमित गंभीर मरीजों के इलाज का अब आधे खर्च में संभव होगा। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान संस्थान(आईसीएमआर) ने रेमडेसिविर ( एंटीवारयल) दवा से इलाज की मंजूरी दे रखी है। यह दवा गंभीर मरीजों में पांच दिन देने  से ही काफी फायदा संभव है।  पांच दिन के दवा के कोर्स से  रेमडेसिविर से इलाज  40 से 50 फीसद सस्ता होगा।  अभी तक यह कोर्स दस दिन का होता था, जिस पर चार लाख रुपये तक फुंक जाते थे।  चिकित्सा विज्ञानियों ने देखा है कि  पांच दिन दवा का इस्तेमाल करने पर भी मरीज को उतना ही लाभ संभव है, जितना दस दिन में मिलता है।

संजय गांधी पीजीआइ के निश्चेतना (एनेस्थेसिया) विभाग में आइसीयू  एक्पर्ट प्रोफेसर एसपी अंबेश ने रेमडेसिविर  के  पांच दिन के प्रोटोकाल  पर कहते है कि वह  इंडियन सोसाइटी ऑफ एनेस्थेसिया के जरिए  नए प्रोटोकाल को लागू करने पर काम कर रहे है। न्यू इंग्लैंड मेडिकल जर्नल के शोध का हवाला देते हुए प्रोफेसर अंबेश बताते है कि 397 मरीजों पर इस दवा का प्रभाव देखा गया है, जिसमें कई सेंटर शामिल रहे। शुरुआती नतीजे अपेक्षा के अनुरूप आए हैं। कोरोना संक्रमित के साथ अस्पताल में भर्ती उन मरीजों को भी शोध में शामिल किया गया, जिनमें निमोनिया का रेडियोलॉजिक जांच से प्रमाण और सेचुरेटेड ऑक्सीजन की मात्रा 94 फीसदी या उससे कम थी। 397 मरीजों में 200 को महज पांच दिन ही 
रेमडेसिविर  की डोज दी गई। बाकी मरीज़ों को 10 दिनों की अवधि के लिए रेमडेसिविर  दिया गया। देखा गया कि पांच और दस दिन दोनों में दिक्कत का अंतर महज  10 फीसद आया। यानी  पांच दिन रेमडेसिविर लेने वाले मरीजों में परेशानी कई प्वाइंट पर केवल 10 फीसदी अधिक रही, जो खास अंतर नहीं है। प्रो. अंबेश कहते है कि पांच दिन की प्रोटोकॉल को लागू करने से इलाज के खर्च में काफी कमी आएगी ।



इस स्थिति में रेमडेसिविर का इस्तेमाल

कोरोना की चपेट में आने वाले ऐसे मरीज जिनकी पहले से दिल, किडनी, डायबटीज या इम्यूनोसप्रेसिव दवाएं चल रही होती है, उनमें संक्रमण तेजी से असर करता है। ऐसे मरीज़ों में रेमडेसिविर की जरूरत पड़ सकती है। प्रोफेसर अंबेश कहते हैं, इस दवा का इस्तेमाल हम मरीज की स्थिति पर तय करते हैं। उम्मीद है, नया शोध भारत के लिहाज से बेहद कारगर रहेगा।