मंगलवार, 23 अप्रैल 2019

खानपान में परहेज करें लेकिन पूरी तरह से कोई भी चीज बंद न करें गुर्दा के मरीज

मरीजों के लिये इलाज के साथ ही खानपान अहम है
दो दिवसीय द सोसायटी आफ रीनल न्यूट्रीशन एण्ड मेटाबोल्जिम पाठ्यक्रम में जुटे 130 नेफ्रोलॉजिस्ट 

गुर्दा रोग के मरीजों के लिये इलाज के साथ ही खानपान की अहम भमिका होती है। मरीज बिना डॉक्टर और न्यूट्रीशयंस की परामर्श के खाने में बहुत सी चीजों का परहेज करने लगते हैं। जो सेहत के लिये हानिकारक है। खासकर दूध, दही और अण्डा आदि के न खाने से मरीजों में कुपोषण बढ़ने लगता है। यह बातें शनिवार को पीजीआई के नेफ्रोलॉजी विभाग द्वारा गोमतीनगर के एक होटल में आयोजित कांफ्रेंस में द सोसायटी आफ रीनल न्यूट्रीशन एण्ड मेटाबोल्जिम (एसआरएनएम) की सचिव डॉ. अनीता सक्सेना ने दी। 
डॉ. सक्सेना बताती हैं कि खानपान में परहेज करें लेकिन पूरी तरह से कोई भी चीज बंद नही करनी चाहिये। गुर्दा शरीर में अनावश्यक पदार्थों और गंदगी को बाहर करता है। गुर्दा मरीजों को प्रोटीन, सोडियम और पोटेशियम की मात्रा बिल्कुल नही बंद करनी चाहिये। शरीर के लिये यह तत्व जरूरी हैं। खानपान के लिये न्यूट्रीशियन की मदद लें। डायलिसिस न कराने वाले मरीजों को 0.6 ग्राम प्रति किलो वजन के हिसाब से प्रोटीन लेनी चाहिये। जबकि डायलिसिस कराने वाले मरीजों को 1.2 ग्राम प्रति किलो वजन के हिसाब से प्रोटीन लेनी चाहिये। दो दिवसीय एडवांस पाठ्यक्रम में भारत और नेपाल के करीब 130 नेफ्रोलॉजिस्ट शामिल हुये। डॉक्टरों ने गुर्दे की बीमारी के इलाज और खानपान पर अपने-अपने अनुभव साझा किये।
हर साल में दो लाख नये गुर्दा मरीज बढ़ रहे 
 पद्मश्री अवार्डी और एसआरएनएम के अध्यक्ष व दिल्ली के नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. एके भल्ला कहते हैं साल भर में दो लाख नये भारतीय गुर्दा की बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। जबकि 10 लोगों में से एक व्यक्ति गुर्दे की बीमारी की चपेट में है। इसके बावजूद देश में सिर्फ 1500 नेफ्रोलॉजिस्ट और 50 न्यूट्रीशंस हैं। इतने डॉक्टरों में पुराने मरीजों को देखना मुश्किल हो रहा है तो नये मरीजों को कैसे इलाज मिलेगा। सरकार को कड़े कदम उठाने की जरूरत है। गुर्दे की बीमारी के बचाव व इलाज के लि-मरीजों के लिये इलाज के साथ ही खानपान अहम है

मामूली जांचों से बचाव संभव
पीजीआई के नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. अमित गुप्ता बताते हैं कि भूख कम लगना, थकान, पेशाब में प्रोटीन व झाग और पैर में सूझन को नजर अंदाज न करें। यह गुर्दे की बीमारी के लक्षण हैं। इससे बचने के लिये लोगों को पेशाब और खून की मामूली जांच से बचाव संभव है।

नवजातों में होती है ये दिक्कतें
 पीजीआई के नेफ्रोलॉजी विभाग के डॉ. नारायण प्रसाद बताते हैं कि जन्म के समय नवजात में यदि पेशाब रूक-रूक कर हो रहा है। पेशाब लाल रंग है, पेशाब के वक्त नवजात रोता है। तो तुरन्त नेफ्रोलॉजिस्ट की सलाह लें। क्योंकि यह गुर्दे के बीमारी के लक्षण हो सकते हैं। डॉ. नारायण बताते हैं कि अगर यह लक्षण हैं तो नवजात में गुर्दा सम्बंधी दिक्कत हो सकती है। जन्म के समय नवजात के सभी अंगों को देखना चाहिये। उन्होंने बताया कि बेवजह दर्द की दवा और एंटीबायटिक दवाओं के सेवन से बचाना चाहिये। वह बताते हैं कि बहुत से मरीज ऐसे आते हैं जिन्हें इन दवाओं के सेवन से गर्दे की दिक्कत हो गई है।


मामूली जांचों से बचाव संभव
पीजीआई के नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. अमित गुप्ता बताते हैं कि भूख कम लगना, थकान, पेशाब में प्रोटीन व झाग और पैर में सूझन को नजर अंदाज न करें। यह गुर्दे की बीमारी के लक्षण हैं। इससे बचने के लिये लोगों को पेशाब और खून की मामूली जांच से बचाव संभव है।

गुरुवार, 18 अप्रैल 2019

13 फीसदी युवाअों के मौत और विकलांगता का कारण साबित हो रहा है शराब

तेरह फीसद युवाओं में विकलांगता का कारण शराब


खतरे में सेहत

कुमार संजय ’ लखनऊ
भारत में हर छह मिनट में एक व्यक्ति की मौत का कारण शराब बन रही है। इनमें 75 फीसद पुरुष और 25 फीसद महिलाएं हैं। इनमें से 20 वर्ष से 39 वर्ष आयु वर्ग के 13 फीसद युवा शराब के कारण मौत और विकलांगता का शिकार हो रहे हैं। पिछले महीने जारी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट ऑन अल्कोहल एंड हेल्थ-2018 में तमाम आंकड़ों को सामने रखते हुए अल्कोहल के इस्तेमाल पर लगाम लगाने के लिए कहा है।

प्रति व्यक्ति शराब का सेवन बढ़ा : रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकतर बीमारियों और दुर्घटनाओं का कारण अधिक अल्कोहल का सेवन है। भारत में पर कैपिटा अल्कोहल का इस्तेमाल बढ़ा है। पिछले दस साल में पर कैपिटा अल्कोहल का इस्तेमाल 2.4 लीटर था, जो बढ़कर पुरुषों में 4.2 लीटर और महिलाओं में 1.5 लीटर हो गया है। रिपोर्ट के मुताबिक कुल होने वाली मौतों का 5.3 फीसद कारण शराब साबित हो रही है।

लिवर को बना रही बीमार : संजय गांधी पीजीआइ के पेट रोग विशेषज्ञ प्रो. यूसी घोषाल कहते हैं कि लिवर सिरोसिस और पैंक्रिएटाइटिस का सबसे बड़ा कारण शराब साबित हो रही है।
प्रो. अभय वर्मा कहते है कि 50 फीसदी लोगों में लिवर सिरोसिस का बडा कारण शराब है। इसके अलावा पैक्रिएटाइिटस , तंत्रिका तंत्र और दिल की बीमारी का बडा कराण है। 

परिवारवालों पर भी पड़ता है असर : शराब की वजह से होने वाली मौतों में 75 फीसदी के करीब शिकार पुरुष होते हैं। रिपोर्ट के अनुसार शराब के हानिकारक परिणामों का प्रभाव न केवल इसका सेवन करने वालों पर पड़ता है, बल्कि उनके परिजनों और समाज के लोगों पर भी विभिन्न बीमारियों के तौर पर पड़ता है।
ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट ऑन अल्कोहल एंड हेल्थ-2018 में सामने आए चिंताजनक आंकड़े
शराब के साइड इफेक्ट
फीसद>>परेशानी या बीमारी
18>>सुसाइड
18>>आपस में झगड़ा
27>>रोड एक्सीडेंट
13>>दौरा (मिर्गी)
48>>लिवर सिरोसिस
26>>मुंह का कैंसर
26>>पैंक्रिएटाइटिस
20>>टीबी
11>>कोलोरेक्टल कैंसर
05>>ब्रेस्ट कैंसर
07>>उच्च रक्तचाप सहित >>>>दिल की अन्य बीमारी
(स्रोत: ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट ऑन अल्कोहल एंड हेल्थ-2018)
लिवर सिरोसिस के 50 फीसदी मामलों की वजह शराब होती है। इसके अलावा पेनक्रिएटाइटिस के भी 20 से 30 फीसदी मामलों में शराब बड़ा कारण देखा गया है। तंत्रिका तंत्र और दिल की बीमारियां भी इससे बढ़ती हैं।
-प्रो अभय वर्मा, गैस्ट्रोइंट्रोलॉजिस्ट पीजीआई, लखनऊ

बुधवार, 10 अप्रैल 2019

हर क्षेत्र पर फोकस तभी देश में हासिल हुई देश में चोथी रैंक-प्रो. अमित आग्रवाल

हर क्षेत्र पर फोकस तभी देश में हासिल हुई रैंक


संजय गांधी पीजीआइ ने उत्तरभारत का तीसरा अस्पताल है जो इलाज के साथ मेडिकल एजूकेशन में शामिल है। देश में इसका चौथी रैंक है। मुख्य चिकित्सा अधीक्षक प्रो.अमित अग्रवाल के मुताबिक यह मुकाम हासिल करने के लिए संस्थान के विभागों के संकाय सदस्य, मेडिकल टेक्नोलाजिस्ट, नर्सेज के आलावा अन्य पैरामेडिकल स्टाफ की अहम भूमिका रही है। पहली बार हम रैंकिग में शामिल हुए। इससे पहले स्वतः हमारे संस्थान को नोटिस किया जिसमें देश में कई मामलों पर नंबर वन रहे।    


रिसर्च की गुणवत्ता में देश में नंबर वन 
शोध को  देश विदेश शोध वैज्ञानिक संस्थान के शोध को नजीर( साइटेशऩ) के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।  संस्थान के एक शोध पत्र को औसतन 12.2 साइटेशन मिला है जबकि एम्स दिल्ली के एक  शोध पत्र को औसतन 10.4 साइटेशन मिला है। इस तथ्य का जर्नल अफ एसोसिएशन अफ फिजिशियन आफ इंडिया( जापी) ने देश के दस बडे संस्थान में बीते साले में राष्ट्रीय , अंर्तराष्ट्रीय शोध पत्रों के साइटेशन का विश्लेषण करने के बाद किया है। शोध पत्रों के संख्या मामले मेंपीजीआई लखनऊ चौथे स्थान पर है। पहले स्थान पर एम्स दिल्ली है। दूसरे स्थान पर  पीजीआई चंडीगढ़ है। तीसरे स्थान पर क्रिश्चियन मेडिकल कालेज वेल्लूर है। यह संस्थान पीजीआई लखनऊ के स्थापना से काफी पहले है स्थापित है जिसके कारण शोध पत्रों की संख्या अधिक है। पीजीआई लखनऊ से 6 हजार आठ सौ 74 शोध हुए है जिसे 83627 लोगों को बतौर रिफरेंस( साइटेशन ) इस्तेमाल किया। संस्थान में लगभग 12 सौ बेड पर 350 संकाय सदस्य दिन -रात काम कर रहे हैं। डीएम, एमसीएच , पीडीसीसी, एमडी कोर्स हर विभाग में संचालित हो रहे हैं।  

संस्थान के विभाग बीमारियों के इलाज के साथ देश के लिए विशेषज्ञ तैयार कर रहा है
- इंटरवेंशन रेडियोलाजी, सीटी एवं अल्ट्रासाउंड गाइडेड सारी प्रोसीजर करना और विषेषज्ञ तैयार करना
- क्लीनिकल इम्यूनोलाजी देश का पहला संस्थान जो आटोइम्यून डिजीज मैनेज करता है विशेषज्ञ देश के लिए तैयार करता है
- किडनी ट्रांसप्लांट साल में 125 से 130 करता है विशेषज्ञ तैयार करता है
- इंडो सर्जरी और इंडो मेडिसिन  विभाग थायरायड, ब्रेस्ट कैंसर के जटिल मामले मैनेज करता 
- पेन मैनेजमेंट, प्री आपरेशन चेकअप , पोस्ट आपरेशन मैनेजमेंट
- इंटरवेंशन कार्डियोलाजी के मामले में अग्रणी
- सीवीटीएस बाई पास सर्जरी के आलावा दिल की जटिल सर्जरी
- नेफ्रोलाजी विभाग किडनी ट्रांसप्लांट के मरीजों को मैनेज करता है। हीमो डायलसिस और पेरीटोनियल डायलसिस करता है। 
-   न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग बीमारी का पता शुरूआती दौर में लगाने के बीमारी की स्टेज बताता है
- ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग रक्त अवयव के अलग करने के साथ सेफ ट्रांसफ्यूनजन 
- पैथोलाजी और माइक्रोबायलोजी विभाग बीमारी की डायगन्नोसिस मे अहम भूमिका
-न्यूरोलाजी और न्यूरोसर्जरी देश में पहले से ही नंबर विभाग के रूप में स्थापित जहां तंत्रिका तंत्र की बीमारियों का इलाज और सर्जरी 
-गैस्ट्रो मेडिसिन और गैस्ट्रो सर्जरी पेट की जुडी बीमारियों का इलाज और हर तरह की सर्जरी 
- एमआरएच विभाग जटिल प्रसव 
-- प्लास्टिक सर्जरी, पल्मोनरी मेडिसिन नई विधाओं पर काम कर रहे हैं  
  

मंगलवार, 9 अप्रैल 2019

पीजीआइ में एनआईसी-2019 - एंजियोप्लास्टी के दौरान ही तय हो जाएगी सफलता

पीजीआइ में एनआईसी-2019
एंजियोप्लास्टी के दौरान ही तय हो जाएगी सफलता

प्रक्रिया के दौरान ही देखते है स्टंट की पोजिसनिंग
जागरण संवाददाता। लखनऊ
अब एंजियोप्लास्टी के दौरान ही सफलता का पता लग जाएगा। स्टंट यदि सही नहीं लगा है तो उसी उसे ठीक कर सफलता की दर को बढाना संभव होगा। संजय गांधी पीजीआइ में इंटरवेंशन कार्डियोलाजिस्ट( एआईसी-2019) के अधिवेशन में सफलता की दर बताने वाले तकनीक पर जानकारी दी गयी है। संस्थान के हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. सुदीप कुमार के मुताबिक आप्टिकल कोहरेंस टोमोग्राफी( असीटी) और इंट्रा वेस्कुलर अल्ट्रासाउंड के जरिए स्टंट लगाने के दौरान देख लेते  है कि स्टंट की सही जगह पर सही फैलाव में लगा कि नहीं यदि नहीं लगा है तो अधिक प्रेशर तक स्टंट की पोजिसनिंग ठीक की जाती है। सही पोजिसनिंग होने पर रक्त प्रवाह सामान्य हो जाता है। यह तकनीक हम लोगों संस्थान में स्थापित कर ली है। प्रो.सुदीप के मुताबिक इंटरवेंशन तकनीक एंजियोप्लास्टी स्थापित होने के बाद हृदय रोग से ग्रस्त मरीजों की जिंदगी बढी है। यह तकनीक काफी सेफ भी है।   

क्रानिक स्टेबिल एंजाइन के 50 फीसदी लोगों में ईसीजी आता है नार्मल
50 फीसदी मरीज क्रानिक सेटेबिल एंजाइना के मरीजों में ईसीजी नार्मल आता है। दर्द के समय ईसीजी करने पर ईसीजी के टी वेव और एसडी सिगमेंट में बदलाव मिलता है। अब सबसे बडी परेशानी यह है कि दर्द के समय तुरंत ईसीजी कैसे संभव हो । यह संभव नहीं है ऐसे  में इस परेशानी से ग्रस्त लोगों में टीएमटी, न्यूक्लियर स्कैन या स्ट्रेस इको जांच कर दिल के बीमारी पुष्टि करनी चाहिए।  प्रो.सुदीप कुमार ने बताया कि इनमें वैसे तो कोई परेशानी नहीं होती लेकिन जब वह दो से तीन किमी चलते है या हैवी काम करते है तो दर्द होता है। कई बार ईसीजी जांच भी कराते है लेकिन इनका ईसीजी भी सामान्य आता है। कई बार डाक्टर भी सब नार्मल मान कर भेज देते है । आगे परेशानी धीरे-धीरे बढ़ती जाती है और स्थित गंभीर हो जाती है।

   कैसे पहचानें की दिल फिट है! 
एनआईसी के आयोजक संस्थान के कार्डियोलाजिस्ट प्रो. सत्येंद्र तिवारी के मुताबिक रोजाना से किमी तेज कदमों से चल सकते हैं और ऐसा करते हुए आपकी सांस नहीं उखड़ती या सीने में दर्द नहीं होता तो मान सकते हैं कि आपका दिल सेहतमंद है। अगर दिल के मरीज हैं और दो मंजिल सीढ़ियां चढ़ने या किमी पैदल चलने के बाद सांस नहीं फूलता तो सामान्य लोगों की तरह एक्सरसाइज कर सकते हैंवरना डॉक्टर से पूछकर एक्सरसाइज करें। 
दिल की बीमारी से बचाव के लिए टेस्ट 
40 
साल की उम्र में ब्लड प्रेशर  और कॉलेस्ट्रॉल के लिए लिपिड प्रोफाइल टेस्ट करा लें। अगर रिस्क फैक्टर (फैमिली हिस्ट्रीस्मोकिंगशराब पीना आदि) हैं तो 25 साल से ही टेस्ट कराएं। अगर सब कुछ ठीक निकलता है तो साल में एक बार टेस्ट करा लें। अगर समस्या लगती है तो डॉक्टर ईसीजी और इको कराने के लिए कहते हैं

दिल के मरीजों के लिए क्रॉनिक टोटल ऑक्लूजन (सीटीओ) तकनीक

सीटीओ तकनीक में तीन रास्ते से एंजियोप्लास्टी संभव



 दिल के मरीजों के लिए क्रॉनिक टोटल ऑक्लूजन (सीटीओ) तकनीक काफी सफल है। सीटीओ तकनीक में तीन रास्ते से एंजियोप्लास्टी हो सकती है। ये जानकारी पीजीआई में आयोजित तीन दिवसीय इंटरवेंशन कार्डियोलॉजिस्ट कॉन्फ्रेंस के समापन पर डॉक्टरों ने दी। पीजीआई के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. सुदीप कुमार बताते हैं कि इस तकनीक से गांव के लोगों को ज्यादा फायदा मिल रहा है। इसकी वजह गांव में लोगों के वॉल्व में दिक्कत आने पर वो सुपर स्पेशियल्टी अस्पताल नही पहुंच पाते हैं। दिल की बीमारियां बढ़ने की वजह जीवनशैली और खानपान है। कॉन्फ्रेंस के आखिरी दिन एंजियोप्लास्टी की विभिन्न तकनीक का प्रदर्शन भी किया गया। 


टहलना और कसरत फायदेमंद है


दिल की बीमारी से बचाव के लिए संयमित भोजन के साथ सुबह-शाम टहलना और कसरत बहुत फायदेमंद  है। इससे ब्लड प्रेशर और डायबिटीज नियंत्रित रहता है। एक तिहाई लोगों को बीपी की समस्या है, हर सातवां व्यक्ति मधुमेह की चपेट में है। सामान्य जनसंख्या में हर चौथा व्यक्ति धूम्रपान करता है। धूम्रपान करने वाले व्यक्ति को जितना नुकसान होता है, उतना ही नुकसान उसके आसपास मौजूद लोगों को भी उठाना पड़ता है। ऐसी स्थिति में धूम्रपान रोकना जरूरी है।


-डॉ. शरद चंद्रा, केजीएमयू


जल्द इलाज से मृत्यु दर कम हो सकती है


हार्ट अटैक होने के घंटेभर के अंदर इलाज मिलने लगे तो मृत्युदर को कम किया जा सकता है। तमाम चिकित्सक दिल के मरीजों का इलाज करने के बजाय रेफर कर देते हैं, लेकिन संबंधित मरीज के लिए दो से तीन घंटे का वक्त काफी महत्वपूर्ण होता है। ऐसी स्थिति में उसे तत्काल इलाज मिल जाए और फिर एंजियोप्लास्टी की जाए तो मौत की आशंका कम हो जाती है। आमतौर पर हायर सेंटर पहुंचने में चार से पांच घंटे लग जाते हैं, जो मरीज की मौत की वजह बनता है।


-डॉ. हिमांशु यादव, आगरा

बाई पास के 10 फीसदी मामले में अब एंजियोप्लास्टी से संभव होगा इलाज

एनआईसी-2019


बाई पास के 10 फीसदी मामले में अब एंजियोप्लास्टी से संभव होगा इलाज
बाई पास एंजियोप्लास्टी के मुकाबले अधिक रिस्क

अब लेफ्ट मेन आर्टरी( मुख्य रक्त वाहिका) में  रूकावट होने पर भी बाई पास सर्जरी की जरूरत कम हो सकती है। मुख्य रक्त वाहिका में रूकावट के 10 से 15 फीसदी मामलों में एंजियोप्लास्टी संभव हो गयी है। इसी तरह इंटरवेंशन तकनीक विकसित होती रही तो इन मामलों में सर्जरी की जरूरत और कम हो सकती है। संजय गांधी पीजीआइ में आयोजिक नेशनल इंटरवेंशन काउंसिल( एनआईसी-2019) के अधिवेशन में इस तकनीक पर चर्चा हुई। संस्थान के कार्डियोलाजिस्ट प्रो. सुदीप कुमार के मुताबिक नए स्टंट और बाई फरकेशन तकनीक के कारण बाई पास सर्जरी से कुछ  मामलों में बचाना संभव हो गयी है। इंटरवेंशन तकनीक बाई पास सर्जरी के मुकाबले काफी सुरक्षित है। बताया कि मुख्य रक्ता वाहिका के मुहाने पर रूकावट है तो एंजियोप्लास्टी संभव है। इस रक्त वाहिका में रूकावट होने पर एंजियोप्लास्टी नहीं की जाती थी क्योंकि जरा से चूक होने पर मौत तक की आशंका रहती है। बाई पास एंजियोप्लास्टी के मुकाबले अधिक रिस्क रहता है।  
एशियन विवेकानंद हार्ट सेंटर मुरादाबाद के कार्डियोलाजिस्ट एवं पीजीआइ के एल्यूमिनाई डा. राज कपूर के मुताबिक कई बार मेन आर्टरी के साथ उससे निकलने वाली शाखा में रूकावट होती है ऐसे में यदि शाखा वाली नस लंबी है तो उसमें स्टंट लगा कर खोलने की जरूरत होती है।
पिछले साल से 13 फीसदी अधिक एंजियोप्लास्टी
प्रो.सत्येंद्र तिवारी के मुताबिक 2018 में देश में 5.75 लाख लोगों में एंजियोप्लास्टी हुई जो पिछले साल से 13 फीसदी अधिक है। 60  फीसदी लोगों को हार्ट एटैक के बाद हुई । मरीजों की संख्या के मुकाबले यह संख्या कम है इसके पीछे जागरूकता की कमी, समय से अस्पताल न पहुंच पाना और पैसे की कमी कारण हो सकता है। एंडियोप्लास्टी को पहले से बेहतर करने के लिए कई तकनीक आ गयी है। एक से अधिक धमनियों में रूकावट के  मामलों में भी एंजियोप्लास्टी होने लगी है।

गुरुवार, 4 अप्रैल 2019

बिना सीना खोले संभव होगा वाल्व रिप्लेशमेंट

पीजीआइ में इंटरवेंशन कार्डियोलाजी काउंसिल का सेमीनार कल

बिना सीना खोले संभव होगा वाल्व रिप्लेशमेंट
उपराष्ट्रपित करेंगे उद्घाटन


दिल की तमाम परेशानियों का इलाज 20 साल पहले केवल सर्जरी थी लेकिन इंटरवेंशन कार्डियोलाजी के विकास के चलते आज दिल की 80 फीसदी बीमारियों का इलाज बिना सर्जरी के संभव हो गया है। इंटरवेंशन की तमाम नई तकनीक पर चर्चा और विस्तार के लिए संजय गाधी पीजीआइ से तक अप्रैल नेशनल इंटरवेंशन काउंसिल का विशेष अधिवेशन और वर्कशाप का आयोजन करने जा रहा है। विभाग के प्रमुख प्रो.पीके गोयलप्रो.आदित्य कपूरप्रो. सत्येंद्र तिवारीप्रो.नवीन गर्ग और प्रो. सुदीप कुमार के मुताबिक एंजियोप्लास्टी तो हम लोग 25 साल से कर रहे हैै लेकिन वाल्व रिप्लेसमेंट भी इस तकनीक से होने लगा है। इसके लिए पहले केवल ओपन सर्जरी ही विकल्प था। विशेषज्ञों के मुताबिक वाल्व रिप्लेसमेंट अभी मंहगा लेकिन विस्तार के साथ वाल्व की कीमत कम होगी। यह तकनीक उन लोगों में काफी कारगर है जिसमें बेहोशी देना संभव नहीं हो पाता है। इस दौरान विशेष रूप से नए  कार्डियोलाजिस्ट के लिए शैक्षणिक सत्र होगा। अधिवेशन में 1500 कार्डियोलाजिस्ट, 25 इंटरनेशनल कार्डियोलाजिस्ट आ रहे हैं।  

उपराष्ट्रपति 59 मिनट देंगे पीजीआइ में समय

उपराष्ट्रपति वैंकया नायडू अप्रैल की शाम एनआईसी का उद्घाटन करेंगे। वह 35 मिनट अपनी बात रखेंगे। वह कुल 59 मिनट का समय पीजीआइ में देंगे। राजभवन से वह संस्थान आएंगे। उपराष्ट्रपित पहली बार संस्थान परिसर में आ रहे हैं।  

मंगलवार, 2 अप्रैल 2019

पीजीआई अब करेगा गुड़ बैक्टीरिया का ट्रांसप्लांट

पीजीआई अब करेगा गुड़ बैक्टीरिया का ट्रांसप्लांट 

देश का चौथा संस्थान इसी महीने कर रहा शुरू

अल्सरेटिव कोलाइटिस सहित कई परेशानी का कम खर्च में होगा इलाज संभव 
कुमार संजय। लखनऊ
संजय गांधी पीजीआई का गैस्ट्रोइंट्रोलाजिस्ट अब गुड बैक्टीरिया का ट्रांसप्लांट कर अल्सरेटिव कोलाइटिस, क्रोन्स, एंटीबायोटिक के कारण होने वाले डायरिया का इलाज कम खर्च  में करने जा रहा है। विभाग के प्रो. यूसी घोषाल ने इसकी पूरी तैयारी कर ली है। चार मरीजों ने इसके लिए सहमति भी दे दी है। इसी महीने यह ट्रांसप्लांट शुरू होने की पूरी उम्मीद है। प्रो. घोषाल के मुताबिक स्वस्थ्य व्यक्ति के फीकल( मल) से गुड बैक्टीरिया को अलग कर यह तैयार किया जाता है जिसे यलो सूप भी कहते हैं।  हम लोग इस गुड बैक्टीरिया युक्त घोल को कोलोनोस्कोप या इंडो स्कोप से मरीज के डायजेस्टिव ट्रैक में सीधे डास देंगे। इससे पेट में गुड बैक्टीरिया की संख्या बढ़ जाएगी। इस तकनीक से इलाज में एक बार का खर्च दस हजार के आस-पास आएगा। अभी तक हम लोग बायोसिमिलर दवाएं देते है जिसके एक बार डोज की कीमत 1.5 लाख के आस-पास आती है। हम मरीज इतना खर्च वहन नहीं कर सकता है। पीजीआई देश का चौथा संस्थान है जो गुड़ बैक्टीरिया ट्रांसप्लांट करने जा रहा है। अभी तक एम्स दिल्ली, आईएलबीएस दिल्ली, दयानंद मेजिकल कालेज लुधियाना में इस तकनीक से इलाज हो रहा है। 

पीजीआइ में बनेगा गुड बैक्टीरिया युक्त घोल

प्रो. घोषाल के मुताबिक मरीज के फेमली मेम्बर से फ्रेश मल लेकर उसे लैब में प्रोसेस कर गुड बैक्टीरिया रिच युक्त घोल तैयार तैयार करेंगे। खुद से तैयार यह घोल मरीजों में इंजेक्ट करेंगे। 



बायोसिमिलर के मुूकाबले फास्ट है रिकवरी

देखा गया है कि बाय़ोसिमिलर के मुूकाबले फीकल माइक्रोबायोटा ट्रांसप्लांट दो गुना तेजी से रिकवरी होती है।  गुड बैक्टीरिया ट्रांसप्लांट से इलाज की सफलता दर 70 फीसदी रही जबकि बायोसिमिलर से 20 से 30 फीसदी में रिकवरी हुई।     

यह परेशानी तो लें सलाह
अल्सरेटिव कोलाइटिस के लक्षण सूजन की गंभीरता के आधार पर भिन्न हो सकते हैं.
- रक्त के साथ दस्त
- पेट दर्द और मरोड़
- रेक्टल पेन
- मलाशय से रक्तस्राव
- ब्‍लड की हानि के कारण थकान और एनीमिया
एक अन्य प्रकार की सूजन आंत रोग (आईबीडी) क्रोन की बीमारी है जिसमें मुंह से किडनी तक कहीं भी सूजन दिखाई दे सकती है. यह आमतौर पर आंत की वॉल्‍स को प्रभावित करता है.

सोमवार, 1 अप्रैल 2019

मदद की दरकार- बचा है सकते है इस बच्चे का जीवन

मदद की दरकार- बचा है सकते है इस बच्चे का जीवन

मदद की दरकार 10 वर्षीय आकिब जुवेनाइल अर्थराइटिस से ग्रस्त है इसके इलाज में ₹300000 का खर्च है इनके माता-पिता की स्थिति बहुत ही खराब है ऐसे में इलाज के लिए मदद की दरकार है मदद के लिए बच्चे का इलाज कर रही आकिब का इलाज क्लीनकल immunology विभाग की प्रोफ़ेसर अमिता अग्रवाल की देखरेख में चला है मदद के लिए 2013177283 पंजीकरण नंबर पर पैसा जमा कर सकते है फ़ोन नंबर 9918620411 पर संपर्क कर सकते है

पीजीआई करेगा एसिड ऱिफलेक्स के लिए आर्मस तकनीक

इंडियन एसोसिएशन आफ गैस्ट्रोइंट्रोलाजी का अधिवेशन
 
पीजीआई करेगा एसिड ऱिफलेक्स के लिए आर्मस तकनीक
लंबे समय तक प्रोटान पंप इनहैबिटर लेने से होती है कई परेेशानी



सीने में जलन, खट्टी डकार के इलाज के लिए संजय गांधी पीजीआई आर्मस( एंटी रिफलेक्स म्यूकोजल रीसक्सऩ)  तकनीक से इलाज 
करेगा।   संस्थान के गैस्ट्रोइंट्रोलाजी विभाग द्वारा इंडियन एसोसिएशन आफ गैस्ट्रोइंट्रोलाजी के वार्षिक अधिवेशन में प्रो.समीर मोहिंद्रा और प्रो. अभय वर्मा ने बताया कि   खाने की नली के निचले हिस्से में वाल्व होता है जो खाने के समय नीचे की तरफ खुलता है।  कई बार वाल्व में स्थित स्फिंटर में कमी आने पर पेट में दबाव पड़ने पर वह ऊपर की ओर खुल जाता है जिससे पेट का एसिड खाने की नली में आ जाता है। इससे खाने की नली में जलन होती है। कई बार खाने की नली में घाव हो जाता है। इस स्थित में मरीज प्रोटान पंप इनहैबिटर दवाएं दी जाती है। इस दवा का लंबे समय सेवन करने से छोटी आंत में बैक्टीरिया का ग्रोथ होने लगता है। इससे व्यक्ति को डायरिया , पेट में भारी पन और ह्डडी की कमजोरी की परेशानी होती है। इस परेशानी का आर्मस तकनीक से इलाज कर दवा पर निर्भरता कम की जा सकती है। इस तकनीक में स्फिंटर पास स्थित म्यूकोजा के तीन हिस्से को काट कर निकाल दिया जाता है जो फिर अपने आप बढ़ता है।  इससे स्फिंटर टाइट हो जाता है। आराम तलब लाइफ स्टाइल, तलीय भोजन के कारण दस से बीस लोगों में एसिड रिफलेक्स की परेशानी देखने को मिल रही है। 

इंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड से जल्दी पकड़ में अाएगी पेट की बीमारी

संजय गांधी पीजीआई के प्रो.प्रवीर राय ने इंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड शुरू किया । इस तकनीक में इंडोस्कोप के निचले हिस्से में अल्ट्रासाउंड का प्रोब लगाकर पेट में डालते जिससे पेट के अंदर के अंगो की बनावट का सही पता लगता है। हल्की सी भी बनावट में बदलाव का का पता लग जाता है। बताया कि सीने में गिल्टी होने पर पहले मरीज को टीबी की दवा खिलायी जाती रही है लेकिन इस तकनीक से तीन सौ मरीजों में अल्ट्रासाउंड कर बताया कि यह टीबी नहीं बल्कि दूसरी परेशानी है। इस परेशानी का पता लगाने के लिए पहले सीटी स्कैन कराया जाता रहा है जिसमें सही पता नहीं लगता है। इस तकनीक से 40 फीसदी से अधिक लोगों में शुरूआती दौर में पित्ताशय कैंसर, प्रैक्रिय़ाज कैंसर, क्रानिक पैक्रिएटाइिटस , पित्ताशय में छोटी पथरी का पता लगाने में कामयाबी हासिल की है। 

पीलिया खत्म करने बाद ही कैंसर की सर्जरी
 
पेट में कैंसर( पित्ताशय, पित्त की नली, एम्पूला) में कैंसर होने पर पीलिया की परेशानी हो जाती है। पीलिया कथ्म करने के बाद ही सर्जरी संभव है। गैस्ट्रो सर्जन प्रो. आनंद प्रकाश के मुताबिक पीलिया के साथ सर्जरी करने पर इंफेक्शन और रक्त स्राव की आशंका बढ जाती है। पीलिया खत्म करने के लिए पहले गैस्ट्रो इंट्रोलाजिस्ट इंडोस्कोप से रूकावट को दूर करते है जिसे पित्त आंत में चला जाता है पीलिया खत्म हो जाता है। 


कितना होना चाहिए वजन यह फार्मूला

पोट रोग विशेषज्ञ प्रो. जी चौधरी ने बताया कि जितनी आपकी लंबाई सेमी है उसमें से सौ कम करने बाद जो बचता है उतना ही वजन शरीर का होना चाहिए। इससे अधिक है  तो फैटी लिवर डिजीज, डायबटीज, उच्च रक्त चाप सहित कई परेशानी की आशंका बढ़ जाती है। वजन कम करने के लिए व्यायाम जरूरी है इस मामले 150 देश के बीच रैकिंग में भारत 144 स्थान पर है।