मंगलवार, 20 नवंबर 2018

बच्चों में पेट दर्द का कारण पता करने के साथ ही सर्जरी संभव


बच्चों में पेट का कारण पता करने के साथ ही सर्जरी संभव  
कई बार सामान्य जांच से नहीं चलता है  पेट दर्द के कारण का पता

बच्चे में पेट दर्द का कारण यदि अल्ट्रासाउंड से सही पता नहीं चल रहा है तो लेप्रोस्कोप से सही कारण पता कर उसी समय सर्जरी कर इलाज करना संभव हो गया है। कई बार बच्चों में पेट दर्द  के कारण का पता सामान्य जांच से लगता है। जिसमें एपेंडिक्स में संक्रमण , आंत का अपस में उलझना, आंत में थैली बन जाना,  पेट में किसी भी जगह छोटी –छोटी गांठ बनना भी दर्द का बडा कारण है। एेसे में हम लोग लेप्रोस्कोप से पेट के अंदर देख कर कारण पता करते है साथ ही सर्जरी कर इलाज भी कर देते हैं। यह जानकारी संजय गाधी पीजीआई के पिडियाट्रिक सर्जन प्रो. विजय उपाध्याय ने एसोसिएशन अफ मिनिमल एसेस सर्जन अफ इंडिया ( एमासीकांन-2018   ) में दी। प्रो. उपाध्याय रोल अफ लेप्रोस्कोपी इन चिल्ड्रेन विषय़ पर  आयोजित सिम्पोजियम के चेयर पर्सन थे। बताया कि एपेडिक्स में संक्रमण होने पर उसे निकाल दिया जाता है। आंत के आपस में उलझने को इंटू सुसेप्सन कहते है जिसमें पहले प्रेशर देकर खोलने की कोशिश करते है नहीं तो लेप्रोस्कोप से खोलते है। इसी तरह आंत में थेली बनने पर मल में खून और दर्द की परेशानी होती है जिसे सर्जरी कर ठीक किया जाता है। पेट में गांठ होने पर लेप्रोस्कोप से बायोप्सी से लेकर गांठ की कैसा है देखते है।

पेशाब के रास्ते में रूकावट के कारण हो सकती है परेशानी
पीजीआई के यूरोलाजिस्ट प्रो.एमएस अंसारी ने बताया कि  बच्चे को बुखार, पेशाब में जलन, विकास में कमी दिख रही है तो यह किडनी के पास स्थित पेल्विस किडनी और यूरीटर  के बीच में रूकावट के कारण हो सकता है। इसका पता कई बार गर्भ में एटी नेटल केयर में लग जाता है। लेप्रोस्कोप से इसे पायलोप्लास्टी कर ठीक करते हैं।   

नवजात के अंडकोश  पर तुरंत दे ध्यान
प्रो. उपाध्याय ने बताया कि जंम के समय ही बच्चे के अंडकोश पर ध्यान देना चाहिए। कई बार अंडकोश अपनी जगह पर न हो कर इंग्वाइनल कैनाल या पेट में होता है। अंडकोश को सही स्थान पर 6 माह के अंदर करा देना चाहिए न होने पर अंडकोश की सक्रियाता कम हो जाती है। लेप्रोस्कोप से अंडकोश को सही स्थान पर करते हैं।

 लेप्रोस्कोप गोद भरने में साबित हो रहा है मददगार
संजय गांधी पीजाआई के एमआरएच विभाग की प्रो. इंदु लता साहू ने बताया कि 40 से 50 फीसदी महिलाओं में इंनफर्टलिटी का कारण पता करने और इलाज में लेप्रोस्कोप और हिस्टिरोस्कोप मदद गार साबित हो रहा है। इसके जरिए फाइब्रायड, फिलोपिटन ट्यूब में रूकावट, ओवरी में हिमैरेजिक सिस्ट, जंम जात यूट्राइन के बनावट में कमी का पता लगाते है। कारण पता करने के साथ परेशानी दूर करते हैं। इस तकनीक से फाइब्रायड , सिस्ट को निकालते है। फिलोफियन ट्यूब में रूकावट को दूर करते हैं। लेप्रोस्कोप के लिए छोटे छेद बनाए जाते है लेकिन हिस्टिरोस्कोप में सीध गर्भाशय में दूरबीन डालकर देखते है।  

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