बुधवार, 28 नवंबर 2018

मीठी गोली बच्चों में दांत निकलने के दौरान परेशानी करेगा छूमंतर




मीठी गोली बच्चों में दांत निकलने के दौरान परेशानी करेगा छूमंतर
11 हजार से अधिक बच्चो पर शोध के बाद स्थापित हुआ तथ्य
उत्तर प्रदेश सहित देश के कई सेंटर पर हुआ शोध   
कुमार संजय। लखनऊ

बच्चों में दांत निकलने के समय से 80 से 90 फीसदी बच्चों में बुखार, डायरिया, जुखाम की परेशानी होती है। कई बार यह परेशानी बच्चों को कमजोर कर देती है। इस परेशानी को कम करने में होम्योपैथी की मीठी गोली काफी कारगर सबित हुई है। यह  होम्योपैथी से जुडे एक दर्जन से अधिक विशेषज्ञों ने उत्तर  प्रदेश सहित देश के कई शहरों में 11 हजार से अधिक बच्चों पर शोध के बाद साबित किया है। इस शोध होम्योपैथः जर्नल आफ द फैकल्टी आफ होम्योपैथ ने स्वीकार किया है। शोध रिपोर्ट के मुताबिक आशा हेल्थ वर्कर को ट्रेंड करने के बाद होम्योपैथ की 6 दवाओं का किट दिया। यह शोध में शामिल 6 माह से एक साल के बच्चों को  जुखाम, बुखार , डायरिया होने पर दवाएं दी तो देखा कि दांत निकलते समय इनमें परेशानी काफी कम हुई। रिपोर्ट मे बताया गया है कि कैलकेरिया फास्पोरीकम 6एक्स 6 माह से एक साल लागातार दिया गया बाकी 5 दवाएं फेरम फास्फोरीकम3एक्स, मैग्नीशियम फास्फोरीकम 6एक्स, वेलोडोना30सी, कामोमिला30सी और पोडोफाइलम30सी परेशानी के समय दिया गया। बच्चों को लगातार एक साल फालो किया गया।
यह हुए शोध में शामिल
सेंट्रल काउंसिल फार रिसर्च इन होम्योपैथी दिल्ली से डा. दिव्या तनेता, डा. अऩिल खुराना, डा. अनिल, डा. राज के मनचंदा, डा. रेनू मित्तल, डा. श्वेता सिंह, डा. मीरा शर्मा, रीजनल रिसर्च इंस्टीट्यूट आसामा से डा.सरवजीत सरकार, होम्योपैथी ड्रग रिसर्च सेंटर लखनऊ से डा. अरूण कुमार गुप्ता, रीजनल रिसर्च इंस्टीट्यूट महाराष्ट्रा से डा. रिचा पंत , डा. रमेश बावास्कर, ड्रग प्रूविंग रिसर्च इंस्चीच्यूट भुवनेशवर से डा. अमूल्य रतन साहू, रीजनल रिसर्च इंस्टीट्यूट पुरी से डा. उमाकांत, डा. सत्य श्री पटनायक, डा.तपन, डीपी रस्तोगी सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट नोयडा से डा. श्रुति सहगल, डा. उदय और क्लीनिकल ट्रायल यूनिट फाऱ होम्योपैथी गोरखपुर से डा. आलोक कुमार उपाध्याय ने यह तथ्य स्थापित किया।   

मंगलवार, 27 नवंबर 2018

पीजीआई में अब कम होगी सर्जरी टलने की आशंका- बढेगा पोस्ट अपरेटिव यूनिट में 10 बेड




पीजीआई में अब कम होगी सर्जरी टलने की आशंका
जनवरी तक बढ़ जाएगा पोस्ट अपरेटिव यूनिट में 10 बेड

संजय गांधी पीजीआई में होने 10 से 15 फीसदी सर्जरी पोस्ट आपरेटिव यूनिट में बेड न होने के कारण टल जाती है। इस दर को कम करने के लिए संस्थान पोस्ट आपरेटिव यूनिट में दस बढाया जा रहा है। एनेस्थेसिया विशेषज्ञ  एवं पोस्ट आफ यूनिट के प्रभारी  प्रो.एस पी अंबेश के मुताबिक सर्जरी के बाद ओटी से मरीज को जीवन रक्षक उपकरणों से लैस पोस्ट आफ में मरीज को शिफ्ट किया जाता है। पोस्ट आफ में बेड न होने पर कई बार मरीज ओटी में ही दो से तीन घंटे रहते है जिसके कारण आगली प्लान सर्जरी टल जाती है। इस परेशानी को कम करने के लिए दस बेड बढा रहे हैं। यह पुराने पोस्ट आफ से लगे हुए एरिया में बढाया जा रहा है। जनवरी 2019 के लास्ट तक यह बेड क्रियाशील हो जाएंगे। अभी हमारे पास 18 बेड है जिसमें से आठ आईसीयू के बेड है। 10 बेड बढने के पोस्ट आफ के 4 बेड और आईसीयू के 6 बेड बढ़ जाएंगे। पोस्ट आफ आईसीयू में सर्जरी के बाद गंभीर मरीज को रखा जाता है।

शुरू हो गया पीएमएसवाई ब्लाक का पोस्ट आफ
प्रो.अंबेश ने बताया कि रेजीडेंट डाक्टर की कमी के कारण दो महीने से पीएमएसवाई ब्लाक का पोस्ट आफ बंद था जिसे शुरू कर दिया गया है। यहां पर पांच बेड जहां पर पिडियाट्रिक सर्जरी, प्लास्टिक सर्जरी सहित अन्य विभाग के मरीज सर्जरी के बाद देख-रेख के लिए रखें जाते हैं।

पीजीआई फैकल्टी फोरम का चुनाव न होने से रोष

संजय गांधी पीजीआई फैकल्टी फोरम का चुनाव न होने से संस्थान के संकाय सदस्यों में रोष है। सीएमएस प्रो.अमित अग्रवाल, प्रो.एसके अग्रवाल, प्रो.एसपी अंबेश, प्रो. आदित्य कपूर, प्रो. गौरंग मजूमदार सहित कई संकाय सदस्यों ने कहा कि चुनाव के दो साल हो गए है । इस फोरम के पदाधिकारियों का कार्यकाल खत्म हो चुका है एसे मे तुरंत चुनाव करा कर नई कार्यकारणी का गठ होना चाहिए। संकाय सदस्यों ने कहा कि हम लोग इसके लिए फैकल्टी फोरम के पदाधिकारियों को मेल भी कर चुके हैं।  

रविवार, 25 नवंबर 2018

पीजीआई में नर्सेज के व्यवहार की होगी परख-85 फीसदी लोग करते है नर्सेज के व्यवहार की शिकायत



पीजीआई में नर्सेज के व्यवहार की होगी परख



व्यवहार में सुधार के लिए चार स्टेप में चलेगी कार्यशाला
85 फीसदी लोग करते है नर्सेज के व्यवहार की शिकायत

साफ्ट स्किल डेवलेपमेंट प्रोगाम


 शोधों में देखा गया है कि 85 से 90 फीसदी मरीज की शिकायत नर्सेज के व्यवहार को लेकर रहती है। इसे दूर करने के लिए साफ्ट स्किल डेवलेपमेंट प्रोग्राम संस्थान ने शुरू किया है । चार चरणों में तमाम टिप्स देने के बाद गोपनीय तरीके से इनके व्यवहार को परखा जाएगा । जरूरत पडने पर पर्सनल काउंसलिंग भी की जाएगी। अस्पताल प्रशासन विभाग के प्रमुख प्रो. राजेश हर्ष वर्धन , एलबीएस मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट की निदेशक डा. तृप्ति बर्थवाल, डा.रेड्डीज फाउंडेशन फार हेल्थ एजूकेशन के साइकोलाजिस्ट डा. राजेश पटेल और डा. विनय कुमार ने टिप्स देते हुए कहा कि 90 फीसदी बीमारी पर ध्यान दिया है जबकि इलाज मरीज का होता है। हर मरीज की मनोदशा अलग होती है। इनकी मनोदशा पर ध्यान दिया जाए तो इलाज का असर अधिक होगा। हर मरीज के यदि नर्सेज अपना शब्द जोड़ ले तो नर्से के व्यवहार में बदलाव स्वतः आ जाएगा। विशेषज्ञों ने कहा कि खुद के स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए व्यायाम, योगा शामिल करें। सुनने की क्षमता, सहानभूति रखें। मरीज और तीमारदार के लिए अस्पताल पहला या दूसरा अनुभव रहता यह ध्यान  रखें तभी उनसे अाप सहानभूति रख सकेंगे। 
  
सुबह उठना सबसे बडी चुनोती

कार्यशाला के दौरान हुए सर्वे में 80 फीसदी नर्सेज ने कहा कि सुबह उठना सबसे बडी चुनौती और टाइम पर ड्यूटी पर पहुंचना है। विशेषज्ञों ने बताया कि टाइम मैनेजमेंट यानि 10 बजे खुद और बच्चे को सुला दें तो सुबह अपने अाप 6 बजे उठ जाएगी तो घर के काम के साथ मार्निंग ड्यूटी पर टाइम से होगी। 

गुस्सा हम अपने से कमजोर पर निकालते है
विशेषज्ञों ने कहा कि काम का प्रेशर है इस लिए गुस्सा है दो मिनत आंख बंद करके सोचें कि बिना इस काम हम क्या खुश रहेंगे जबाब मिल जाएगा। गुस्सा हम अपने से कमजोर को दिखाते है हर मरीज और तीमारदार को अपने से मजबूत मानें और उन्हें एक ग्राहक मान कर व्यवहार करें ।  

शुक्रवार, 23 नवंबर 2018

पीजीआई विश्व का पहला संस्थान जिसने स्थापित किया बायो मार्कर जो करेगा बैक्टीरियल इंफेक्शन का खुलासा

पीजीआई विश्व का पहला संस्थान जिसने स्थापित किया बायो मार्कर जो करेगा बैक्टीरियल इंफेक्शन का खुलासा


इंफेक्शन के 6 से 7 घंटे बाद हो जाएगा बैक्टीरियल इंफेक्शन का खुलासा
प्रो-कैल्शीटोनिन ही था एक मात्र जांच जिसमें 30 से 40 फीसदी में नहीं लगता है इंफेक्शन का सही पता

कुमार संजय। लखनऊ

संजय गांधी पीजीआई विश्व का पहला संस्थान है जिसने एेसा बायो मार्कर स्थापित किया है जो इंफेक्शन के कारण का खुलासा दो घंटे में कर देगा। मुख्य शोध कर्ता क्लीनिकल इण्यूनोलाजी विभाग के प्रो. विकास अग्रवाल के इस खोझ को विश्व स्तर पर स्वीकार किया गया है। प्रो. विकास ने बताया कि बुखार होने के कई कारण होते है जिसमें बैक्टीरिया, वायरस और आटो इम्यून डिजीजी मुख्य कारण है। इंफेक्शन का कारण पता कर जल्दी इलाज शुरू करने से जल्दी आराम मिलता है। बैक्टीरियल इंफेक्शन पता करने के लिए सीडी 64 मार्कर स्थापित किया है। इस मार्कर का सौ से अधिक मरीजों पर परीक्षण के बाद आम मरीजों के लिए जल्दी उपलब्ध होगा। संस्थान की इंवेसटीगेशन कमेटी  ने इसे पास कर दिया है। जांच का शुल्क लगभग 6 सौ तय किया है। प्रो.विकास अग्रवाल के मुताबिक यह जांच फ्लो साइटोमेटरी तकनीक से की जाती है जिसमें केवल दो घंटे का समय लगता है। बुखार होने का बैक्टीरियल कारण होने पर तुरंत एंटीबायोटिक शुरू कर गंभीरता को बढने से रोक सकते हैं। पहले केवल प्रो-कैल्सीटोनिन ही जांच विकल्प था जिससे 30 से 40 फीसदी में सटीक जानकारी नहीं मिल पाती थी। सीडी 64 बैक्टीरियल इंफेक्शन होने पर 90 से 100 फीसदी न्यूट्रोफिल में एक्सप्रेशन होता है।

वेस्कुलाइिटस और एसएलई में भी जांच है कारगर
प्रो.विकास के मुताबिक वेस्कुलाइिटस और एसएलई होने पर बुखार मुख्य लक्षण है । यह आटो इम्यून डिजीज है जिसमें इलाज के लिए इम्यूनो सप्रेसिव दवाएं दी जाती है। कई बार इलाज के बाद भी दोबारा बुखार होता है। तब बुखार का कारण बीमारी है या इंफेक्शन पता करना कठिन होता है। एेसे में सीडी 64 जांच से पुष्टि की जाती है।  इसी अाधार लाइन आफ ट्रीटमेंट तय किया जाता है। इस बीमारी में इस मार्कर की  उपयोगिता के लिए शोध किया जिसे जर्नल आफ क्लीनिकल इम्यूनोलाजी में स्वीकार किया है। शोध में डा. सजल अजमानी, हर्षित  सिंह, सौऱभ चतुर्वेदी, डा. मोहित कुमार राय, डा. अविनाश  जैन, डा. डीपी मिश्रा, प्रो, विकास अग्रवाल और प्रो.अारएन मिश्रा शामिल रहे।  

बुधवार, 21 नवंबर 2018

हकीकत-35 से 40 फीसदी पीएचसी में नहीं सुरक्षित प्रसव के लिए दवा और समान

35 फीसदी पीएचसी पर उपलब्ध नहीं सुरक्षित प्रसव के लिए दवा और समान


38 जिलों को 284 स्वासथ्य केंद्र पर शोध के बाद हुआ खुलासा
दूर इलाकों में सप्लाई चेन पर विशेष ध्यान की दी सलाह
  कुमार संजय। लखनऊ

प्रदेश के  35 से 40  फीसदी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रसीएचसी( कम्युनिटि  हेल्थ सेंटर) सीएचसी या फर्सट रेफरल यूनिट में बीपी नापने की मशीनडिलेवरीट्रेअईवी फ्लूडआक्टोसिटनमैगशियम सल्फेट और एंटीबायोटिक जैसी जरूरी प्रसव के लिए आवश्यक वस्तुएं और दवाएं उपलब्ध नहीं रहती हैं।  इस बातका खुलासा अमेरिका , दिल्ली और लखनऊ सहित कई संस्थानों के विशेषज्ञों ने प्रदेश के 38 जिलों के 85 पीएचसी, 137 सीएचसी और 62 सीएचसी या एफआरयूसेंटर पर शोध के बाद हाल में मैटर्नल एंड चाइल्ड हेल्थ जर्नल में एवेलबिलिटि आफ सेफ चाइल्ड बर्थ सप्लाई इन 284 फैसीलिटिस इंन उत्तर प्रदेश शीर्षक से जारी  किया है। शोध पत्र में कहा गया है कि प्रदेश दूर स्थित सीएचसी , पीएचसी में सप्लाई चेन प्रभावित होने की आशंका बनी रहती है जिस परविशेष ध्यान देने की जरूरत है। सप्लाई चेन बाधित होने से  मां और शिशु के जीवन खतरे में पड़ सकता है। 

डब्लूएचअो में जारी किया था चेक लिस्ट

 विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सुरक्षित प्रसव के लिए गर्भावस्था के दौरानप्रसव के दौरान और प्रसव के बाद सही देख भाल के  लिए23 वस्तुओं और दवाअों कीचेक लिस्ट बनायी है। इन्ही वस्तुओं की उपलब्धता जानने के लिए विशेषज्ञों ने कुल 284 स्वास्थ्य केंद्रो का सर्वे किया। 23 वस्तुओं, दवाअों   को मैटर्नलन्यूबार्न और इंफेक्शन कंट्रोल  श्रेणी में बांटा गया है। मैटर्नल श्रेणी  में बीपी एपरेटसआक्सीजन सिलेंडरडिलेवरी ट्रेआईवी फ्लूडमैगनेशिय़म सल्फेट,आक्सीटोसिनएंडीबायोटिकपेरेटोग्राफ आठ वस्तु एवं दवाएं शामिल है। न्यू बार्न की श्रेणी में नौ वस्तु एवं दवाएं है जिसमें सक्शन मशीनएंबू बैगलेवल,तौलियाकार्ड कलैंपनाइफवेट स्केलबेबी वार्मिंग , विटामिन के शामिल है। इंफेक्शन कंट्रोल की श्रेणी में 6 आइटम शामिल है।


कहां मिली कैसी उपलब्धता

                    एफआरयू(62)       सीएचसी(137)                     पीएचसी(85)
इंफेक्शन कंट्रोल        88.2                          76.2                            75.8
न्यू बार्न              84.2                          78.2                           76.7
मैटर्नल केयर         70                            62.0                           60.8   

मंगलवार, 20 नवंबर 2018

बच्चों में पेट दर्द का कारण पता करने के साथ ही सर्जरी संभव


बच्चों में पेट का कारण पता करने के साथ ही सर्जरी संभव  
कई बार सामान्य जांच से नहीं चलता है  पेट दर्द के कारण का पता

बच्चे में पेट दर्द का कारण यदि अल्ट्रासाउंड से सही पता नहीं चल रहा है तो लेप्रोस्कोप से सही कारण पता कर उसी समय सर्जरी कर इलाज करना संभव हो गया है। कई बार बच्चों में पेट दर्द  के कारण का पता सामान्य जांच से लगता है। जिसमें एपेंडिक्स में संक्रमण , आंत का अपस में उलझना, आंत में थैली बन जाना,  पेट में किसी भी जगह छोटी –छोटी गांठ बनना भी दर्द का बडा कारण है। एेसे में हम लोग लेप्रोस्कोप से पेट के अंदर देख कर कारण पता करते है साथ ही सर्जरी कर इलाज भी कर देते हैं। यह जानकारी संजय गाधी पीजीआई के पिडियाट्रिक सर्जन प्रो. विजय उपाध्याय ने एसोसिएशन अफ मिनिमल एसेस सर्जन अफ इंडिया ( एमासीकांन-2018   ) में दी। प्रो. उपाध्याय रोल अफ लेप्रोस्कोपी इन चिल्ड्रेन विषय़ पर  आयोजित सिम्पोजियम के चेयर पर्सन थे। बताया कि एपेडिक्स में संक्रमण होने पर उसे निकाल दिया जाता है। आंत के आपस में उलझने को इंटू सुसेप्सन कहते है जिसमें पहले प्रेशर देकर खोलने की कोशिश करते है नहीं तो लेप्रोस्कोप से खोलते है। इसी तरह आंत में थेली बनने पर मल में खून और दर्द की परेशानी होती है जिसे सर्जरी कर ठीक किया जाता है। पेट में गांठ होने पर लेप्रोस्कोप से बायोप्सी से लेकर गांठ की कैसा है देखते है।

पेशाब के रास्ते में रूकावट के कारण हो सकती है परेशानी
पीजीआई के यूरोलाजिस्ट प्रो.एमएस अंसारी ने बताया कि  बच्चे को बुखार, पेशाब में जलन, विकास में कमी दिख रही है तो यह किडनी के पास स्थित पेल्विस किडनी और यूरीटर  के बीच में रूकावट के कारण हो सकता है। इसका पता कई बार गर्भ में एटी नेटल केयर में लग जाता है। लेप्रोस्कोप से इसे पायलोप्लास्टी कर ठीक करते हैं।   

नवजात के अंडकोश  पर तुरंत दे ध्यान
प्रो. उपाध्याय ने बताया कि जंम के समय ही बच्चे के अंडकोश पर ध्यान देना चाहिए। कई बार अंडकोश अपनी जगह पर न हो कर इंग्वाइनल कैनाल या पेट में होता है। अंडकोश को सही स्थान पर 6 माह के अंदर करा देना चाहिए न होने पर अंडकोश की सक्रियाता कम हो जाती है। लेप्रोस्कोप से अंडकोश को सही स्थान पर करते हैं।

 लेप्रोस्कोप गोद भरने में साबित हो रहा है मददगार
संजय गांधी पीजाआई के एमआरएच विभाग की प्रो. इंदु लता साहू ने बताया कि 40 से 50 फीसदी महिलाओं में इंनफर्टलिटी का कारण पता करने और इलाज में लेप्रोस्कोप और हिस्टिरोस्कोप मदद गार साबित हो रहा है। इसके जरिए फाइब्रायड, फिलोपिटन ट्यूब में रूकावट, ओवरी में हिमैरेजिक सिस्ट, जंम जात यूट्राइन के बनावट में कमी का पता लगाते है। कारण पता करने के साथ परेशानी दूर करते हैं। इस तकनीक से फाइब्रायड , सिस्ट को निकालते है। फिलोफियन ट्यूब में रूकावट को दूर करते हैं। लेप्रोस्कोप के लिए छोटे छेद बनाए जाते है लेकिन हिस्टिरोस्कोप में सीध गर्भाशय में दूरबीन डालकर देखते है।  

गुरुवार, 15 नवंबर 2018

अब नर्व एंड स्फिंटर स्पेयरिंग तकनीक से नहीं डैमेज होगा मल द्वार का नर्व

अब नर्व एंड स्फिंटर स्पेयरिंग तकनीक से नहीं डैमेज होगा मल द्वार का नर्व



मद द्वार के ऊपर कैंसर को निकलाने में 20 से 25 फीसदी में होता है नर्व डैमेज
खत्म हो जाता है मल पर नियंत्रण

बडी आंत के निचले हिस्से और मल द्वार के ऊपरी हिस्से में कैंसर युक्त गांठ की सर्जरी के दौरान नर्व और स्फिंटर डैमेज होेने की आशंका 20 से 25 फीसदी मामलों में रहती है लेकिन अब  नर्व एंड स्फिंटर स्पेयरिंग तकनीक ने इस आशंका को काफी हद तक कम किया जाता है। यह जानकारी संजय गांधी पीजीआई में एसोसिएशन अाफ मिनिमल एसेस सर्जन अाफ इंडिया के वार्षिक अधिवेशन (एमासीकान -2018) में विशेषज्ञों ने दी। आयोजक प्रो.अशोक कुमार और प्रो. आनंद प्रकाश ने बताया कि नर्व डैमेज होने पर पुरूषों में इरेक्टाइल डिसफंक्शन की परेशानी के साथ स्फिंटर डैमेज होने पर मल पर नियंत्रण खत्म हो जाता है जिससे मरीज की परेशानी बढ़ जाती है। अब हम लोग नर्व में ईसीजी( इंडो काइनिन ग्रीन) डाई इंजेक्ट कर देते है जिससे वह नर्व चमकती रहती है सर्जरी के दौरान नर्व को बचाना संभव हो जाता है। हम लोगों के पास कई मामले स्फिंटर और नर्व इंजरी  वाले आते है जिसमें स्फिंटो प्लास्टी कर रिपेयर करते हैं। विभाग के प्रमुख प्रो. राजन सक्सेना ने बताया कि वर्कशाप में विशेष रूप से नए सर्जन को सर्जरी की तकनीक सिखायी जा रही है। 

टीएमई सर्जरी से नहीं पड़ता कैंसर की सर्जरी की सफलता पर प्रभाव
प्रो. आनंद प्रकाश ने बताया कि कैंसर की सर्जरी में टोटल मीजो रेक्टल एक्सीजन( टीएमई) तकनीक इस्तेमाल करते है जिसमें बडी आंत के निचले हिस्से में सर्जरी करते है इससे कैंसर के पूरे सेल निकल जाते है। देखा गया है कि मल द्वार के पास सर्जन नहीं जाते है क्योंकि नर्व इंजरी का खतरा रहता है अब काफी नीचे जाकर भी सर्जरी की जा सकती है।

आंत को जोड़ने में लीकेज की रहती है आशंका
प्रो. अशोक कुमार ने बताया कि आंत के खऱाब भाग के निकाने के बाद आपस में दोबारा जोड़ने पर कई बार लीकेज होने लगता है जिससे वहां पर मल जमा होने लगता है। एेसे मामलों को रोकने के लिए डाई के इस्तेमाल के साथ सर्जरी वाली जगह पर कम उर्जा डालना चाहिए जिससे वहां के सेल डैमेज न हों। अधिक एनर्जी जालने पर सेल डैमेज हो जाता जिससे आंत को अापस में जोडने पर जोड़ लीक कर जाता है। 


अब नहीं अटेगा बुद्धि का खाना

सर्जरी कर दुरूस्त किया स्फिंटर

64 वर्षीय बुद्धि खाना नहीं खा पाती थी जरा सा खाने पर वह अटक जाता था। कई गिलास पानी पीने के बाद  खाना पेट में जाता था। इसके लिए कई इलाज कराया लेकिन राहत नहीं मिली। कुछ दिन बाद दोबारा परेशानी खडी हो जाती थी। गुरूवार को पीजीआई में आयोजित कार्यशाला में कार्डियोमायोपैथी , फंडोप्लीकेशन सर्जरी कर इस परेशानी के निजात दिलायी गयी। इस परेशानी को  एकैल्शिया कार्डिया कहते है । स्फिंटर जो खाना आमाशाय के द्वार पर आते ही खुल जाता है लेकिन बीमारी होने पर यह नहीं खुलता है जिससे खाना खाने की नली में भरा रहता है। सर्जरी कर स्फिंटर को पूरा खोल दिया गया इसके साथ अामाशय का एसिड खाने की नली में न  आए इसके लिए आमाशाय के ऊपरी हिस्से को खाने की नली के निचले हिस्से में जोड देते है। इसके आलावा हार्निया के 6 , गाल ब्लैडर स्टोन दो सहित अन्य बैसिक सर्जरी का सजीव प्रसारण किया गया। 

मंगलवार, 13 नवंबर 2018

बिना सिर खोले चलेगा पता कैसा है ब्रेन ट्यूमर

बिना सिर खोले चलेगा पता कैसा है ब्रेन ट्यूमर


पीजीआई के न्यूरो सर्जरी विभाग ने स्थापित की स्टीरियो टेक्सी तकनीक

उत्तर भारत का तीसरा संस्थान जहां स्थापित हुई तकनीक

कुमार संजय । लखनऊ

आप संजय गांधी पीजीआई में बिना सिर खोल बताएगा ब्रेन ट्यूमर किस तरह का है।
इसके लिए संस्थान के न्यूरो सर्जरी विभाग ने स्टीरियोटैक्सी तक ने का स्थापित किया है इस तकनीक के जरिए दिमाग के अंदर जाकर  ट्यूमर  के अंदर से निडिल बायोप्सी की जाती है। अभी तक ओपन सर्जरी कर दी ट्यूमर को निकालने के बाद जांच के लिए भेजा जाता था जिससे पता चलता था कि ट्यूमर कैंसर युक्त है या नहीं।  विभाग के प्रमुख प्रो. संजय बिहारी, प्रो. अरुण श्रीवास्तव, प्रो कुंतल दास, प्रो. वेद प्रकाश ने बताया कि इस तकनीक में पहले सीटी स्कैन कराया जाता है । सिर पर खास मैटेरियल से  बने फ्रेम को फिट करके सीटी स्कैन कराया जाता है।  फिर दोनो इमेज को विशेष सॉफ्टवेयर के जरिए आपस में फ्यूज किया जाता है। स्टीरियो टेक्सी की खासियत होती है कि वह ट्यूमर का नेवीगेशन करता है।  कैसे और किस रास्ते पहुंचा जाए यह पता लगता है। यह तकनीक स्थापित करने वाले उत्तर भारत का तीसरा संस्थान बन गया है।  


नेवीगेशन से मिलती है ट्यूमर तक पहुंचने की सटीक जानकारी

प्रोफेसर कुंतल दास ने बताया कि कंप्यूटर का सॉफ्टवेयर काफी हद तक टयूमर तक पहुंचने की मदद करता है।  कंप्यूटर पर ही सारी एक्सरसाइज करने के बाद मरीज को लोकल एनएसथीसिया देकर बायोप्सी निडिल से ट्यूमर की बायोप्सी ली जाती है। बायोप्सी दो तरफ से लेते हैं जिससे ट्यूमर का कोई कोना नहीं छूटता है।  बायोप्सी को हिस्टोपैथोलॉजी विभाग में जांच के लिए भेज दिया जाता है।  बायोप्सी लेने के बाद उसमें हवा पुष कर दिया जाता है फिर सीटी स्कैन कराया जाता है । सीटी स्कैन में हवा दिखता है इससे कंफर्म हो जाता है कि बायोप्सी सफल रही।

कई मामलों में बच जाएगी सर्जरी
 विशेषज्ञों ने बताया कि कई बार ट्मर होने पर र सर्जरी की जरूरत नहीं होती है । यही ट्यूमर दिमाग के भीतर हिस्से में है तो सर्जरी संभव नहीं होती।  इसके अलावा टयूमर छोटा है और कोई दिमाग पर प्रेशर नहीं डाला है तो इसकी भी सर्जरी जरूरत नहीं होती इस तरह इस तकनीक से अनावश्यक सर्जरी से मरीजों को बचा जा सकता है

  

ब्रेन ट्यूमर लगता है लेकिन होता ट्यूमर

कई बार सीटी स्कैन और एमआरआई में टयूमर जैसा दिखता है लेकिन ट्यूमर नहीं होता 20 से 40 वर्ष की उम्र के 40 से 50 फ़ीसदी लोगों में जो ट्यूमर दिखता है वह ट्यूमर नहीं होता बल्कि टीवी और न्यूरोसिस्टिसरकोसिस के कारण वह ट्यूमर जैसा दिखता है।  इस जांच से यह पता लग जाता है कि ट्यूमर नहीं है और बिना वजह सर्जरी से बच जाता है इस परेशानी में दवा से इलाज संभव होता है