गुरुवार, 28 जून 2018

पीजीआई ईएनटी में 6 महीने की वेटिंग-स्वतंत्र विभाग स्थापित करने की मांग

पीजीआई ईएनटी में 6 महीने की वेटिंग

संसाधन के अाभाव में नहीं मिल रहा है मरीजों को फायदा

स्वतंत्र विभाग स्थापित करने की मांग


संजय गाधी पीजीआई में ईएनटी विभाग की स्थापना की मांग उठने लगी है। विभाग अभी सब स्पेशिएलटी के तहत काम कर रहा है जिसके कारण ईएनटी में संसाधनों का अाभाव है। संसाधनों की कमी के कारण मरीजों को सर्जरी के लिए 6  महीने लंबा इंतजार करना पड़  रहा है। ईएनटी ( न्यूरो अोटो लाजी) के लिए 30 बेड , एक अोटी और चार रेजीडेंट की मांग अाठ सदस्यों की समिति ने किया है। विशेषज्ञों ने कहा है कि अभी ईएनटी के पास कुल 6 बेड है जिसमें से चार बेड इण्यूनोलाजी विभाग के पास से लिया गया है और दो बेड न्यूरो सर्जरी विभाग में दिया गया है। इन्यूनोलाजी विभाग के पास मरीजों की संख्या बढने के कारण विभाग ने संस्थान प्रशासन से चार बेड वापस मांग रहा है लेकिन विभाग को बेड नहीं मिल पाया है। विशेषज्ञों का कहना है कि चार बेड वापस लेने के बाद ईएनटी का काम और रूक जाएगा। अोटी अभी मेन अोटी कंपालेक्स में ढाई दिन के लिए मिलती है जिसमें चार से पांच अापरेशन ही हर सप्ताह संभव हो पाता है। विभाग की स्वतंत्र स्थापना के लिए राज्यपाल को पत्र कई मरीजों ने लिखा जिस पर राज्यपाल ने संस्थान प्रशासन को कदम उठाने को कहा है। 
ईएनटी विशेषज्ञों का कहना है कि हम लोग महीने में ईएनटी की बडी सर्जरी 30 से अधिक नहीं कर सकते है इस तरह साल में अधिकतम 360 से 370 सर्जरी कर सकते है जबकि जरूरत रोज चार से पांच सर्जरी की है। इसके लिए रोज अोटी की जरूरत के साथ अन्य संसाधन की जरूरत है।   

ईनएटी में सर्जरी और अोपीडी  का विवरण प्रति वर्ष

अोपीडी में मरीजों की संख्या- लगभग 14 हजार 
ईएनटी जांच एवं माइनर प्रोसीजर- लगभग पांच हजार
मेजर सर्जरी- लगभग चार सौ प्रति वर्ष
  

सोमवार, 25 जून 2018

50 फीसदी गर्भवती महिलाएं हो रही है मानसिक रोग का शिकार

गर्भवती महिलाएं हो रही है मानसिक रोग का शिकार

मानिसक रोग के कारण गर्भस्थ शिशु के विकास पर कुप्रभाव

एंटीनेटल केयर में मेंटल हेल्थ चेकअप शामिल करने की सिफारिश


गर्भावस्था के दौरान शरीर में कई तरह हारमोनल बदलाव के कारण मानसिक परेशानी की अाशंका बढ़ जाती है। विशेषज्ञों ने 160 गर्भवती महिलाअों पर 6 महीने तक शोध के बाद देखा है कि 25 से 60 फीसदी तक महिलाएं किस न किसी प्रकार की मानसिक परेशानी की शिकार होती है जिसके कारण उनक व्यक्तिगत जीवन तो प्रभावित होता ही है साथ में गर्भस्थ शिशु का विकास बाधित होता है। इस लिए विशेषज्ञों ने रीप्रोडेक्टिव चाइल्ड हेल्थ योजना में मेंटल हेल्थ स्क्रीनिक को शामिल करने पर जोर दिया है। विशेषज्ञों ने देखा शोध में शामिल 25.5 फीसदी महिलाएं डिप्रेशन की शिकार थी। 63 फीसदी महिलाएं एनेक्साइटी( डर, भय) की शिकार थी। 25 फीसदी महिलाएं तनाव की शिकार थी अच्छी बात यह रही है यह मानसिक परेशानियां अत्य़धिक गंभीर नहीं थी । 40 से 70 फीसदी तक सामान्य तरह की मानसिक परेशानी थी। विशेषज्ञों का कहना है कि इसी स्थित में सही काउंसलिंग और इलाज न मिलने पर मानसिक परेशानी गंभीर हो सकती है। देखा गया कि लगभग पांच फीसदी में एनेक्साइटी गंभीर स्थित तक पहुंच गयी थी। विशेषज्ञों का कहना है कि मानसिक परेशानी का कारण केवल हारमोनल या फिजियोलाजिकल बदलाव ही नहीं है सामाजिक दबाव, डाक्टर के पास अाना -जान सहित कई तरह की परेशानी का सामना महिलाअों को करना पड़ता है। इस शोध को इंडियन जर्नल अाफ साइकेट्रिक ने स्वीकार किया।  इस तथ्य को हिंद मेडिकल कालेज लखनऊ की डा. अादित्य प्रिया और गुरूतेग बहादुर मेडिकल कालेज दिल्ली से डा. संजय चतुर्वेदी, डा. संजय कुमार भसीन, डा. मनजीत सिंह भाटिया, डा. गीता राधा कृष्णन ने स्थापित किया है।  

विश्व में लाइलाज आईएलडी बीमारी के लिए पीजीआई ने खोजी उम्मीद


विश्व में लाइलाज आईएलडी बीमारी के लिए पीजीआई ने खोजी उम्मीद


पीजीआई के क्लीनिकल इम्यूनोलाजिस्ट के नुस्खे से मिल रही है राहत

शुरूअाती दौर के परिणाम से जगी उम्मीद
 पूरे विश्व को पीजीआई दिखा सकता है राह       







फिलहाल फेफडे की खास तरह की बीमारी आईएलडी का विश्व में कोई खास इलाज नहीं है। इस बीमारी के इलाज के लिए पूरे विश्व में साइक्लोफास्फोमाइड दिया जाता है लेकिन इस दवा से बीमारी बढ़ने की दर में कुछ की कमी देखी गयी है। इस बीमारी से ग्रस्त होने पर व्यक्ति का फेफडा 
 पांच से सात साल में काम करना बंद कर देता है जिससे मौत हो जाती है। संजय गांधी पीजीआई के क्लीनिकल इम्यूनोलाजिस्ट प्रो. विकास अग्रवाल और शोध छात्र ने इन मरीजों को एेसी खास दवा खोजी है जिससे मरीज के बीमारी के कारण होने वाली  परेशानियों में कमी देखी गयी है। इस नए नुस्खे के जरिए अजमाइस उन मरीजों पर की गयी है जिसमें स्किलोरोडर्मा के साथ आईएलडी  की परेशानी थी। विशेषज्ञ ने खास नुस्खे मरीज को चार से पांच फीसदी तक अाराम मिला अभी तक विश्व में एेसा कोई नुस्खा नहीं था जिसमें मरीज को अाराम मिले। एक मरीज ने बताया कि वह दस कदम भी चलने में असमर्थ लेकिन नए नुस्खे से वह अाधा किमी तक चल सकती है। प्रो. विकास का कहना है कि शुरूअाती दौर के परिणाम काफी उत्साह जनक है लेकिन अभी इसका पूरा खुलासा करना संभव नहीं है क्योंकि इसके लिए अधिक शोध की जरूरत है।  खुद के द्वारा तैयार किया नुस्खा केवल इस लिए देना मजबूरी था क्यों कि इसका कोई इलाज नहीं था और हम डाक्टर के नाते किसी मरीज को परेशान देख नहीं सकते । मरीज को बताया कि कोई इलाज मेरे पास कुछ एेसी दवा है जिसे ट्राइ कर सकते है । मरीज और उनके परिजन की अनुमति के बाद नए कंबीनेशन को ट्राइ किय़ा। इस लिए अपने अनुभव को देखते गुए खुद तैयार किया गया कंबीनेशन दिया जिससे मरीज को अाराम मिला। इस नए नुस्खे से कई लोगों को राहत मिल रही है। 

क्या होता है अाईएलडी

अाईएलडी( इंटेरइस्टीसियल लंग डिजीज) फेफडे की बीमारी है जिसे  इसमें स्थित सूक्ष्म रक्त वाहिकाएं कडी हो कर बंद हो जाती है जिससे फेफडा पूरी तरह अाक्सीजन नहीं ले पाता है और मरीज के शरीर में अाक्सीजन की कमी होने लगती है। बीमारी बढने के साथ फेफडा पूरी तरह काम करना बंद कर देता है।   


शुक्रवार, 22 जून 2018

प्रदेश के 10.4 फीसदी को कभी भी हो सकता है डायबटीज


प्रदेश के 10.4 फीसदी को कभी भी हो सकता है डायबटीज 




प्री-डायबीटिक स्टेज में ही दे सकते है डायबटीज को मात

डायबीटीज की वजह से हृदय रोगस्ट्रोककिडनी फेल्योरअल्सर और आंखों को क्षति पहुंचने के रोग भी पैदा होते हैं

कुमार संजय । लखनऊ
तेजी से बढ़ रहे हैं डायबीटीज के मरीज
प्रदेश के 10.4 फीसदी लोगों को कभी भी डायबटीज हो सकता है। इस तथ्य का खुलासा हाल में ही  उत्तर प्रदेश के 4244 लोगों पर शोध के बाद किया गया है। देखा गया कि 10.4 फीसदी लोग प्री डायबटिक स्टेज में है। इस बात को इंटरनेशनल जर्नल अाफ रिसर्च इन मेडिकल साइंस ने स्वीकार करते हुए कहा है कि इस स्थित में भी एहतियात बरत कर डायबटीज से बचा जा सकता है। विशेषज्ञों ने देखा कि 8.03फीसदी लोग डायबटीज के गिरफ्त में है। पुरूषों के मुकाबले महिलाएं अधिक डायबटीज के चपटे में है। देखा गया कि डायबटीज ग्रस्त लोगों में से 9.91 फीसदी महिलाएं और 6.79 फीसदी पुरूष चपेट में हैं।   डायबीटीज की वजह से हृदय रोगस्ट्रोककिडनी फेल्योरअल्सर और आंखों को क्षति पहुंचने के रोग भी पैदा होते हैं। संजय गांधी पीजीआई के इंडोक्राइनोलाजिस्ट प्रो.सुभाष यादव कहते है कि डायबीटीज होने से पहले हर मरीज प्री-डायबीटिक'स्टेज से गुजरता है। इस स्टेज पर दिनचर्या-खानपान में बदलाव नहीं करतेजिस वजह से आखिर में पूरी तरह डायबीटीज के शिकार हो जाते हैं। अगर प्री-डायबीटिक स्टेज पर ही लक्षणों को पहचान लिया जाए। 
डायबीटीज क्या है?

क्या है डायबटीज
जब हमारे पैंक्रियाज में इंसुलिन का पहुंचना कम हो जाता हैतो खून में ग्लूकोज का स्तर बढ़ने लगता है। इस स्थिति को डायबीटीज कहा जाता है। इंसुलिन एक हॉर्मोन हैजो पाचक ग्रंथि में बनता है। .यह भोजन को एनर्जी में बदलना होता है।  शुगर की मात्रा कंट्रोल करता है। मधुमेह हो जाने पर शरीर को भोजन से एनर्जी बनाने में कठिनाई होने लगती है। उस स्थिति में ग्लूकोज का बढ़ा हुआ स्तर शरीर के विभिन्न अंगों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर देता है। 5/

ओवर ईटिंग से होती है शुरूआत

 डायबटीज की शुरुआत ओवर ईटिंग यानी जरूरत से ज्यादा खाने से होती है लेकिन ओवर ईटिंग को आमतौर पर कोई गंभीरता से नहीं लेता। ज्यादा सोनेज्यादा देर तक बैठे रहनेडेयरी प्रॉडक्ट का सेवनमांस-मछलीमीठा ज्यादा इस्तेमाल करने और मोटापा बने रहने से शुगर होने की आशंका ज्यादा होती है। शरीर की इंसुलिन निकालने की एक सीमा है। जब हम ज्यादा खाएंगेतो ग्लूकोज बढ़ता जाएगा और इंसुलिन कम होता जाएगा। 

लक्षण
खास लक्षण प्री डायबटिक स्टेज पर नहीं दिखता है। फेमली हिस्ट्री, मोटापा, उम्र तीस से अधिक है तो हर 6 महीने पर फास्टिंग और खाने के दो घंटे बाद खून में रक्त की जांच कराने से इस स्टेज को पकडा जा सकता है। कुछ लोगों में देखा गया है कि  कंधों में दर्द रहता है और जल्दी थकान होने लगती है तो वह प्री-डायबीटिक स्टेज पर हो सकता है। ऐसी स्थिति में एचबी 1सी टेस्ट कराया जाता है जिसमें ब्लड शुगरफास्टिंग व बीपी शामिल रहता है। 
ऐलोपैथ और आयुर्वेद में अंतर

डाइट

संजय गांधी पीजीआई की पोषण विशेषज्ञ अर्चना श्रीवास्तव और निरूपमा सिंह कहती है कि  आलूचावलआमकेलाअंगूरकिशमिशकाजूखजूर से परहेज करना चाहिए। 50 ग्राम मेथी और 30 ग्राम अलसी लें। उन्हें रोस्ट कर पाउडर बना लें। यह पाउडर खाने से पहले आधा चम्मच लें। इससे शुगर धीरे-धीरे बॉडी में घुल जाएगी।

नाश्ता: एक दिन मूंग और चना ले में साथ बटर मिल्क या ग्रीन-टी 

लंच : से रोटी लें।  शाम को फ्रूट ले यह ऐंटी-ऑक्सिडेंट से भरपूर होते हैं जो पैंक्रियाज को डैमेज होने से रोकते हैं।

डिनर : रात का खाना सामान्य से आधा कर दें।

वाक है जरूरी
सुबहदोपहर या शाम में 30 से 40 मिनट तक ब्रिस्क (तेज कदमों से) वॉक करें। दिन में 10 से 20 बार मंडूक आसन करें। इससे पैंक्रियाज को मसाज मिलेगा।0
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गुरुवार, 14 जून 2018

पीजीआई ने रक्तदाताओं के किया सेल्युट


पीजीआई ने रक्तदाताओं के किया सेल्युट

खून नहीं है विकल्प केवल दान से मिलना संभव  


किसी भी मरीज के शऱीर में खून कमी होने पर उसकी पूर्ति केवल आप ही कर सकते है। दवा सहित तमाम सहूलियत तो पैसे से मिल सकती है लेकिन शुद्ध खून रक्त दान से ही संभव है। एेसे दानवीरों को संजय गांधी पीजीआई के ब्लड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग ने उनके जज्बे को सेल्यूट किया। इस मौके पर निदेशक प्रो.राकेश कपूर ने कहा कि पैसे का दान तो  कोई कर सकता है लेकिन खून का दान कम ही लोग करते है। इस दान के लिए आगे आने की जरूरत है। विभाग के प्रो. अतुल सोनकर ने कहा कि अभी भी युवा और पुरूष ही सबसे अधिक रक्त दान कर रहे है । सभी वर्ग के लोगो को आगे आने जरूरत है। तमाम भ्रांतिया है जिसके कारण लोग हिचकते हैं।        

18 स्वैछिक रक्तदाता और 25 संगठनों को किया गया सम्मानित  

सौ बार से अधिक रक्तदान कर चुके डीके सिंह और उनकी पत्नी विद्या सिंह को इस मौके पर सम्मानित किया गया । यह संजय गांधी पीजाई में  टेक्निकल ऑफिसर डीके सिंह है। कहते है कि केजीएमयू में डिप्लोमा करते समय 1984 में पहली बार रक्तदान किया था। इसके बाद 1988 में पीजीआई में नियुक्ति मिल गईलेकिन रक्तदान का सिलसिला लगातार जारी रहा। वे बताते है कि 1984 से अब तक सौ बार रक्तदान कर चुका हूं। उनकी पत्नी भी इस अभियान में शामिल है वह भी 50 बार से अधिक रक्तदान कर चुकी है। बेटा जयंत भी  रक्तदान कर रहा है । डीके सिंह बताते है कि वे एफरेसिस भी कई बार करा चुके हैं। इसमें ब्लड तो शरीर में वापस आ जाता हैलेकिन मशीन प्लेटलेट्स को अलग कर लेती है। पेशे से नर्सिग अधीक्षिका नीमा पंत भी 50  बार से अधिक रक्तदान कर चुकी है कहती है कि मरीजों को देखा कि कैसे वह खून के बिना परेशान होते है । इसी परेशानी को दूर करने के लिए रक्तदान करना शुरू किया जो आज भी जारी है। सतीश चंद्रा भी 87 वीं बार रक्त  दान कर चुके है । कहा कि बडा सुकून मिलता है। किसी तरह कोई कमजोरी नहीं है लोग आगे आएं। इसके अलावा प्रीतपाल सिंह, इंद्र पाल सिंह, पुलकित वर्मा, कुलदीप सिंह, रोहित रस्तोगी, गगन दीप सिंह, अमर गुरूंग, गौरव कुमार श्रीवास्तव, नवनीत मौर्य, केसी कुलबे, पावमान सिदगिकर, रवींद्र वर्धन सिंह, मानवता बाजपेयी, बलराज. शशांक सिंडे, वीके सिंह सहित अन्य को सम्मानित किया। 

लखनऊ के आठ सौ लोगों का जीवन बचा चुके है ढिल्लन

रक्त पूरक चैरटेबिल फाउंडेशन के संस्थापक बलराज सिंह ढिल्लन लखनऊ के आठ सौ से अदिक लोगों का जीवन रक्तदान कर बचा चुके है। इनके फाउंडेशन से लखनऊ के एक हजार लोग जुडे है जिन्हे रक्त की जरूरत होती है उसके लिए रक्त दान के लिए फाउंडेशन के सदस्यों से कहते है । सदस्य जा कर रक्तदान करते है। ढिल्लन को इस नेक काम के लिए पीजीआई में सम्मानित किया गया यह खुद रेगुलर डोनर है। बताते है कि लखनऊ से रोज 10 से 15 लोगों की काल रहती है। इनका फाउंडेशन यहां के अलावा दूसरे शहरों में भी काम कर रहा है। सबसे अधिक कैंसर, डायलसिस , एक्सीडेंटल केस के लिए रक्तदान के लिए काल अती है। बताया कि 7607609777 नंबर पर रक्तदान और रक्त की जरूरत के लिए संपर्क किया जा सकता है।


पीजीआई संविदा कर्मचारियों ने किया कार्य बहिष्कार

संविदा कर्मचारियों ने किया कार्य बहिष्कार

अोपीडी दो घंटे लिए हुई ठप्प

एम्स के समान मानदेय़ न मिलने से अाक्रोश

संजय गांधी पीजीआई संविदा कर्मचारियों ने दो घंटे के लिए अोपीडी सहित तमाम कार्य दो घंटे के लिए ठप्प कर दिया जिससे मरीजों को काफी परेशानी हुई। पूरी अोपीडी में सिस्टम गड़बडा गया। संस्थान के संविदा कर्मचारी एम्स के समान मानदेय़ के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे है। संस्थान प्रशासन ने इसके लिए पूरा विवरण तैयार कर लिया था। मामले को बुधवार को गवर्निग बाडी में प्रस्ताव रखा जिससे पास नहीं किया और मामले चिकित्सा शिक्षा भेज दिया। संविदा कर्मचारियों ने बताया कि जानकारी मिली है कि इस मामले को टालने के लिए चिकित्सा शिक्षा विभाग भेज दिया गया है। कर्मचारी निदेशक प्रो.राकेश कपूर से मिलने के बाद अपर निदेशक से भी मिले । अाश्वसन मिला फिर से कमेटी बनायी जा रही है अगली गवर्निग बाडी में इसे दोबारा रखा जाएगा । तब तक चिकित्सा शिक्षा विभाग से भी स्थित स्पष्ट हो जाएगी। कर्मचारियों का कहना है कि समान कार्य समान वेतन का सिद्धांत लागू होना चाहिए। अोपीडी में डाटा इंट्री अापरेटर, मरीज सहायक सहित कई पदों संविदा कर्मचारी कमान संभाल रखें है। 

पीजीआई नर्सेज ने शुरू किया विरोध प्रदर्शन

पीजीआई नर्सेज ने शुरू किया विरोध प्रदर्शन

30 से जून से कार्य बहिष्कार की चेतावनी



संजय गांधी पीजीआई नर्सिंग स्टाफ एसोसिएशन ने संस्थान प्रशासन के खिलाफ विरोध प्रदशर्न शुरू कर दिया है। एसोसिएशन ने चरण बद्ध तरीके से अादोलन के लिए 29 मई को ही नोटिस दिया था लेकिन उनकी मांगो पर फैसला न होने कारण अांदोलन शुरू हुअा है। एसोसिएशन की अध्यक्ष सीमा शुक्ला, और महामंत्री सुजान सिंह ने 14 से 18 जून तक हम लोग काला फीता बांध कर काम कर विरोध करें गे। 19 जून को 11 से एक बजे तब धरना दिया जाएगा। इसके अलावा कई तरह के विरोध के बाद 30 जून से रोज एक घंटा कार्य बहिष्कार किया जाएगा । चार जुलाई के बाद विधिक रूप से अांदोलन किया जाएगा। पदाधिकारियों ने कहा कि इससे पहले 25 से अधिक पत्र संस्थान प्रशासन को दिया जा चुका है लेकिन संस्थान प्रशासन कोई फैसला नहीं ले रहा है जिसके कारण अांदोलन करना पड रहा है।   सातवें वेतन अायोग के भत्ते लागू करने, कैडर की दोबारा संरचान, स्पेशल एरिया एलाउंस, सातवे वेतन अायोग के इंक्रीमेंट में गड़बडी को ठीक करने , ठेकेदारी प्रथा के तहत काम कर रहे लोगों को समान कार्य समान वेतन भगुतना किया जाए एेसा सुप्रिम कोर्ट का फैसला है। 

शुक्रवार, 1 जून 2018

गले की नाप से लगा सकते है मोटापे का पता

गले की नाप से लगा सकते है मोटापे का पता
पुरूषो के गले की नाप 37  और महिलाअों की नाप 34 सेमी से अधिक तो मोटापा   

एक हजार से अधिक लोगों पर शोध के बाद गले की नाप और बीएमआई के बीच स्थापित हुअा रिश्ता
  

अब अाप अपने मोटापे के खतरे का  पता गले की नाम से लगा सकते है। मोटापे का पता लगाने के लिए किसी फार्मूले या वेट मशीन की जरूरत नहीं है यह खास तौर पर उन इलाकों के लिए मुफीद है जहां पर वेट मशीन की सुविधा नहीं है। सामान्य स्वास्थ्य कार्यकर्ता गले की नाप के अाधार पर मोटापे का पता लगा कर बचाव के उपाय बता सकते हैं। विशेषज्ञों ने बताया है कि गले की नाम जितनी अधिक है अाप उतने ही मोटापे के शिकार है। वैज्ञानिकों ने एक हजार से अधिक लोगों पर शोध के बाद के गले की नाम और मोटापे का पैमाना बीएमाई(बाडी मास इंडेक्स) के बीच रिश्ता स्थापित किया है। बताया है कि गले की नाम पुरूषों में 37 सेमी से अधिक है तो वह अोवर वेट है यदि महिलाअों की गले नाम 34 सेमी से अधिक है तो वह मोटापे के शिकार है। देखा कि 37 सेमी से अधिक गले की नाप वाले 83.2 फीसदी पुरूषों का बीएमअाई 23 किलोग्राम प्रति वर्ग मीटर से अधिक था इसी तरह 34 सेमी से अधिक गले की नाम वाली 84.2 फीसदी महिलाअों का बीएमआई अधिक था।  इस शोध को इंडियन जर्नल अाफ कम्युनिटि मेडिसिन से स्वीकार करते है ग्रामीण क्षेत्र के लिए उपयोगी बताया है।  यह तथ्य पीजीआई चंडीगढ के कम्युनिटि मेडिसिन विभाग के डा. मधुर वर्मा की निर्देशन में डा. नवजोत कौर, पीजीआईएमएस रोहतक से डा. मीना राजपूत , डा. सौम्या स्वरूप ने 540 पुरूष और 540 महिलाअों में किया है। इन सब की उम्र बीस से 60 साल के बीच थी। 

15 फीसदी ओवर वेट और 36.4 फीसदी लोग मोटे
 शोध में देखा गया कि 15 फीसदी लोग अोवर वेट यानि मोटापे के शिकार है जिसमें से 15.4 फीसदी पुरूष 14.6 फीसदी महिलाएं है। 36.4 फीसदी लोग मोटे है जिसमें 36.9 फीसदी पुरूष और 32.4 फीसदी महिलाएं शामिल है। संजय गांधी पीजीआइ के हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो.सुदीप कुमार के मुताबिक मोटापा दिल और दिमाग के लिए घातक है। इसके अलावा इससे डायबटीज के परेशानी की अाशंका रहती है।