गुरुवार, 14 मार्च 2024

पेशाब रोकने से मूत्राशय होता है कमजोर, किडनी पर कुप्रभाव






मोटापा कम करें कम हो जाएगी किडनी परेशानी की आशंका


 


पेशाब रोकने से मूत्राशय होता है कमजोर, किडनी पर कुप्रभाव


 


पीजीआई में विश्व किडनी जागरूकता दिवस पर वाकथान एवं जागरूकता कार्यक्रम


 


मोटापा कम करने के साथ 60 से 70 फीसदी तक किडनी के परेशानी की आशंका कम हो जाती है। मोटापा उच्च रक्तचाप, डायबिटीज की आशंका को बढाता है यही किडनी की परेशानी की आशंका को बढ़ाता है। यह बात संजय गांधी पीजीआई के किडनी रोग विशेषज्ञ प्रो. धर्मेंद्र भदौरिया ने विश्व किडनी दिवस के मौके पर जागरूकता एवं वाकथान मे दिया। यूरोलॉजी एवं किडनी ट्रांसप्लांट विभाग के प्रमुख प्रो. एमएस अंसारी ने कहा कि पेशाब को नहीं रोकना चाहिए। महिलाएं और स्कूल जाने वाले बच्चे साफ वाशरूम न होने के कारण चार से पांच घंटे कई बार पेशाब रोके रखती है। मूत्राशय कमजोर होता है और किडनी पर दुष्प्रभाव पड़ता है। नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. नारायण प्रसाद ने बताया कि किडनी खराब होने पर डायलिसिस और प्रत्यारोपण ही उपाय है । इस इलाज के दौरान संक्रमण और बार –बार भर्ती होना पड़ता है। इलाज काफी महंगा है इसलिए बचाव ही उपाय है। ब्लड प्रेशर 130-80 से अधिक और एचबीए1सी सात फीसदी से अधिक नहीं रहना चाहिए। गुर्दा रोग विशेषज्ञ प्रो. अनुपमा कौल ने कहा कि गर्भावस्था को दौरान किडनी  साथ रक्त दाब पर खास ध्यान रखना चाहिए। यूरोलॉजिस्ट एवं किडनी ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ प्रो. संजय सुरेखा ने कहा कि ट्रांसप्लांट के बाद फालोअप पर रहना चाहिए। नेफ्रोलाजिस्ट के सलाह से दवाएं नियमित लेने से प्रत्यारोपित किडनी लंबे समय तक काम करती है। इस मौके पर डाय मानस रंजन पटेल,डा. रवि शंकर कुशवाहा ने बचाव के तरीके बताएं। इस मौके पर पांच सौ से अधिक किडनी की खराबी प्रभावित मरीजों को इलाज के तमाम पहलुओं पर जानकारी दी गयी। मेडिकल सोशल वर्कर राघवेंद्र सिंह, वैयक्तिक सहायक संतोष कुमार वर्मा, सफाई निरीक्षक रघुनाथ सिंह सहित अन्य लोगों ने मरीजों को हर स्तर पर सहयोग का संकल्प लिए।





 *विश्व किडनी दिवस* 

विश्व किडनी दिवस 14 मार्च को संपूर्ण विश्व में पर्व की तरह मनाया जाता है। इस वर्ष की थीम है "सभी के लिए किडनी स्वास्थ्य: देखभाल और इष्टतम दवा अभ्यास तक समान पहुंच को आगे बढ़ाना"। 

भारत में मधुमेह व उच्च रक्तचाप की बढ़ती घटनाओं के कारण  क्रोनिक किडनी रोग की घटनाओं में 35% की वृद्धि हुई है। एक नए अनुमान से पता चलता है कि क्रानिक किडनी रोग से संबंधित मृत्यु दर 2040 तक मृत्यु का 5वां प्रमुख कारण होगी। सीकेडी की जटिलताओं को रोकने का सबसे अच्छा तरीका सीकेडी की प्रगति को रोकना है। उन्नत अनुसंधान ने हमें उन दवाओं की पहचान करने में मदद की है जो सीकेडी की प्रगति को रोकने में प्रभावी हैं, लेकिन ये दवाएं सीकेडी के शुरुआती चरणों में प्रभावी हैं।

नेफ्रोलॉजी विभाग ने दक्षिण एशिया क्षेत्र में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर जागरूकता अभियान को बढ़ावा देने के लिए इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजी और इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ किडनी फाउंडेशन के साथ संयुक्त रूप से इस पहल का आह्वान किया है। हम सभी सीकेडी के उच्च जोखिम वाले लोगों, 50 वर्ष से अधिक उम्र के बुजुर्ग, मधुमेह रोगी, उच्च रक्तचाप, मोटापे से ग्रस्त रोगी, सीकेडी के पारिवारिक इतिहास वाले लोग, लंबे समय से धूम्रपान करने वाले और पथरी रोग से पीड़ित लोगो

को सुझाव देते हैं कि वे हर साल मूत्र की जांच और सीरम क्रिएटिनिन और ग्लोमेरुलर निस्पंदन दर का आकलन करके सीकेडी के लिए खुद को जांचते रहें ।


नेफ्रोलॉजी, यूरोलॉजी और रीनल प्रत्यारोपण विभाग की गतिविधियाँ:


 *किडनी के स्वास्थ्य के लिए वॉकथॉन* 

नेफ्रोलॉजी विभाग ने किडनी के स्वास्थ्य के लिए सुबह 6.30 बजे हॉबी सेंटर से एसजीपीजीआई गेट तक और उसके बाद ईएमआरटीसी के नेफ्रोलॉजी और यूरोलॉजी विभाग तक वॉकथॉन आयोजित की । नेफ्रोलॉजी और यूरोलॉजी संकाय ने हॉबी सेंटर, मुख्य द्वार और ईएमआरटीसी सेंटर में सभा को संबोधित किया। डॉ. अंसारी, एचओडी यूरोलॉजी ने पानी के सेवन के महत्व से अवगत कराया, डॉ. संजय सुरेखा ने कम नमक का सेवन, बहुत सारा पानी, खट्टे फल और हर दिन थोड़ा दूध के साथ गुर्दे की पथरी को रोकने के सुझाव दिए।

 डॉ. अनुपमा कौल ने किडनी के स्वास्थ्य के लिए  वजन कम करने के महत्व के बारे में सुझाव दिए। 

डॉ. भदौरिया ने उपस्थित लोगों को सुरक्षित दवाओं के बारे में बताया। नेफ्रोलॉजी के प्रमुख और इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजी के परिषद सदस्य प्रोफेसर नारायण प्रसाद ने बेहतर स्वास्थ्य के लिए आम लोगों को कुछ लक्ष्य दिए हैं

 1. मधुमेह रोगियों  के लिए 7% से कम HBA1c, 

2.हर एक व्यक्ति के लिए 130/80 से कम रक्तचाप,

3.25 से कम बीएमआई, 

4.धूम्रपान व  तंबाकू निषेध  और कम नमक। 

संस्थान के निदेशक प्रोफेसर धीमन ने अपने संदेश में कहा कि संस्थान में किडनी की देखभाल के लिए किसी को भी मना नहीं किया जाएगा।


मरीज के रिश्तेदारों और देखभाल करने वालों का संदेश:

सीकेडी एक दीर्घकालिक समस्या है और रोगी आजीवन इस बीमारी के साथ रहते हैं। कई रोगियों और परिचारकों ने भी अपनी भावनाओं को साझा किया और 50 वर्ष से अधिक आयु वाले उच्च जोखिम वाले लोगों, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मोटापा, पथरी रोग और गुर्दे की बीमारियों के पारिवारिक इतिहास वाले व्यक्तियों के लिए गुर्दे की बीमारियों की समय पर जांच के लिए अपना सीधा संदेश दिया।


स्वयं मरीज़ों का संबोधन:

किडनी की बीमारियों के साथ कैसे जीना है, इस विषय पर रोगियों ने संदेश दिया और सभी का एक समान विचार था कि बीमारी के इलाज से रोकथाम बेहतर है। किडनी की बीमारियों से 3 से 4 दशकों से अधिक समय तक जीवित रहने वाले मरीजों ने वकालत की कि दीर्घकालिक सफलता के लिए दवा का पालन सबसे महत्वपूर्ण है।


डॉ. प्रसाद ने WKD के इस जागरूकता कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए के प्राथमिक देखभाल चिकित्सकों, वैज्ञानिकों, नर्सों, कॉर्पोरेट स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं, रोगियों, प्रशासकों, स्वास्थ्य-नीति विशेषज्ञों, सरकारी अधिकारियों, नेफ्रोलॉजी से संबंधित संगठनों से हाथ मिलाने और इसमें महत्वपूर्ण योगदान देने की वकालत की।  किडनी स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने के लिए सरकारी नीतियों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है जिससे रोगियों और स्वास्थ्य देखभाल बजट दोनों को बड़ा लाभ हो सकता है।


सीकेडी के लिए एक निरंतर ज्ञान का अभाव है, जो प्राथमिक देखभाल चिकित्सकों, नर्सों, तकनीशियनों और सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति निर्माताओं के बीच स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों के सभी स्तरों पर प्रदर्शित होता है। फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के बेलगाम प्रसार से यह और बढ़ गया है। इन प्लेटफार्मों पर अक्सर गैर-वैज्ञानिक सामग्री का व्यापक प्रसार हुआ, विशेष रूप से कई हानिकारक जड़ी-बूटियों, शरीर निर्माण के लिए कई एलर्जेन प्रोटीन जो वास्तव में वैज्ञानिक नहीं है अपितु महंगे व हानिकारक है। अल्पज्ञ जनता और मरीज़ों को वैज्ञानिक रूप से प्रामाणिक और मान्य जानकारी नहीं मिल पाती। यह भारत जैसे निम्न-मध्यम आय वाले देशों के लिए विशेष रूप से सच है जहां संसाधनों की मांग की तुलना में संसाधन सीमित हैं और लोगों ने गैर-प्रमाणित उपचारों को चुना जो उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं, कभी-कभी मृत्यु का कारण बनते हैं।

इस अवसर पर दो महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता है:

सीकेडी का शीघ्र निदान

इष्टतम दवा अभ्यास यह सुनिश्चित करेगा कि ये दवाएं जो प्रगति को धीमा कर देती हैं, व्यापक आबादी तक पहुंचें।


सभी के लिए किडनी स्वास्थ्य: 

अपनी किडनी को हानिकारक दवाओं, दर्द निवारक दवाओं और एंटीबायोटिक दवाओं के अनावश्यक उपयोग से बचाएं, और प्रगति को धीमा करने के लिए उपयोगी दवाओं का उपयोग करें।


 



सोमवार, 11 मार्च 2024

इसनोफिल की जांच से चलेगा एलर्जी की आशंका का पता

 


पीजीआई में इम्यूनो एलर्जी कॉन्क्लेव

 

इसनोफिल की जांच से चलेगा एलर्जी की आशंका का पता

 

बदलता मौसम और प्रदूषण एलर्जी का बड़ा कारण

 

 

बीस रुपए में होने वाली जांच इसनोफिल से एलर्जी के आशंका का पता लगता है लेकिन दूसरे कारणों से भी यह बढ़ा हो सकता है। 50 फीसदी मामलों में इसनोफिल बढ़े होने का मतलब है कि एलर्जी है जिसका मैनेजमेंट संभव है। एलर्जी के लक्षण नहीं है तो दूसरे कारणों से परजीवी का संक्रमण , रक्त विकार के कारण पर भी ध्यान देने की जरूरत है। इसनोफिल के साथ सीरम आईजीई का बढ़ा स्तर भी एलर्जी की पुष्टि करता है। यह जानकारी संजय गांधी पीजीआई में आयोजित इम्यूनो एलर्जी कॉन्क्लेव में संस्थान के  प्रो. विकास अग्रवाल और अपोलो मेडिक्स के डा. अनुपम वाखूल ने दी विशेषज्ञों ने दी। बताया कि दवा, धूल, बदलते मौसम, किसी को छूने सहित अन्य कारणों से फेफड़े, त्वचा, नाक सहित अन्य अंगों में एलर्जी हो सकती है। देखा गया है कि बदलता मौसम और प्रदूषण ( वायु कण, गैस) से लोग अधिक एलर्जी के शिकार होते हैं।  किसी वस्तु से भी एलर्जी हो सकती है। ऑस्ट्रेलिया से आए डा. प्रवीण हिसारिया ने बताया  एलर्जी इम्यूनोथेरेपी आज कल प्रचलित हो रहा है । इसमें जिस वस्तु से एलर्जी होती है इस वस्तु को थोड़ी मात्रा समय अंतराल पर नाक, मुंह या इंजेक्शन के दावारा थोडी मात्रा में दिया जाता है जिससे व्यक्ति में वस्तु के प्रति टॉलरेंस पैदा हो जाता है। आयोजन सचिव डा. कुनाल ने बताया कि दवा के कारण होने वाली एल्रजी कई बार घातक होती है जिसके इलाज में इम्यूनोसप्रेसिव भी देने की जरूरत पड़ती है ।   

 

 

कारण

हजारों एलर्जेन हैं जो एलर्जी का कारण बन सकते हैंलेकिन सबसे आम में शामिल हैं:

 

-वायुजनित एलर्जी: धूल और पराग।

-पशु रोष: पशुओं की त्वचा से त्वचा कोशिकाओं जैसी सामग्री निकलती है। मानव रूसी के समान।

-खाद्य एलर्जन: शैल-मछलीडेयरी उत्पादनट और/या --बीज अंडे और मछली।

-एस्पिरिन और पेनिसिलिन।

-कीड़े के डंक: बरैया और मधुमक्खियों।

पौधे: घास और चुभने वाले बिच्छू।

पदार्थ: लेटेक्स।

 

यह है लक्षण

-त्वचा के चकत्ते

-लाल खुजली वाली आंखें

-खांसी

- सांस लेने में घरघराहट

-छींक आना

-दमे का अटैक

-पेट में दर्द और उल्टी

एक इंजेक्शन ने डेढ़ महीने रहेगी एलर्जी से मुक्ति

 


एक इंजेक्शन ने डेढ़ महीने रहेगी एलर्जी से मुक्ति

 

पीजीआई में इम्यूनो एलर्जी कॉन्क्लेव 2024  आज

 

एलर्जी से ग्रस्त लोगों को रोज दवा खानी होती है। इन दवाओं से नींद आने के साथ ही सुस्ती की परेशानी होती है लेकिन अब रोज गोली खाने के झंझट से छुटकारा मिल सकता है। मोनोक्लोनल एंटीबॉडी( बायोलॉजिक्स) दवाएं आ गयी है जो इंजेक्शन के रूप में है इनका एक डोज देने से एक से 1.5 महीने तक एलर्जी की परेशानी से मुक्ति मिल सकती है। संजय गांधी पीजीआई के क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी विभाग की के मुताबिक 15 फीसदी से अधिक लोग एलर्जी से ग्रस्त रहते हैं। यह फेफड़े, त्वचा, नाक सहित अन्य हो सकती है। इसका इलाज भी अलग –अलग विशेषज्ञ करते हैं। एलर्जी की विशेषज्ञता की शाखा विकसित नहीं है। इसमें इम्यूनोलॉजिस्ट की अहम भूमिका हो सकती है। इसी को लेकर विभाग दो दिवसीय इम्यूनो एलर्जी कॉन्क्लेव 2024 का आयोजन इंडियन कॉलेज आफ एलर्जी, अस्थमा एंड एप्लाइड इम्यूनोलॉजी के सहयोग से   कर रहा है। इसमें देश से हर विधा के विशेषज्ञ शामिल हो रहे है । क्लीनिकल इम्यूनोलॉजिस्ट  प्रो. विकास अग्रवाल और  प्रो. अनुपम वाखलू के मुताबिक कोशिश की जा रही है कि एक विशेषज्ञता के अंदर सभी प्रकार की एलर्जी का मैनेजमेंट संभव हो सके। एलर्जी मैनेजमेंट के लिए एलर्जिक इम्यूनो थेरेपी और मोनोक्लोनल एंटीबॉडी काफी कारगर साबित हो रही है। आयोजन सचिव डा. कुनाल चंदवार ने बताया कि  कॉन्क्लेव में ऑस्ट्रेलिया से डा. प्रवीण हिसारिया, अहमदाबाद से डा. पूजा श्रीवास्तव, पल्मोनरी विशेषज्ञ प्रो. राजेंद्र प्रसाद, ओपी चौधरी से डा. सुनील दवड़घाव,  सहित अन्य विशेषज्ञ एलर्जी के कई पहलू पर जानकारी देंगे।

मंगलवार, 5 मार्च 2024

बरसात और ओला को लेकर दुखी नरेंद्र जी ने माता से की प्रार्थना

 





नरेंद्र सिंह यादव माता काली के ग्रहस्त भक्त हैं।उनका कहना है कि माँ काली की उन पर विशेष कृपा है,श्री नीमकरोरी जी महाराज,स्वामी रामकृष्ण परमहंस उनके आदर्श हैं।वे किसी चमत्कार का दावा तो नहीं करते हैं लेकिन वे जिन लोगों के लिये प्रार्थना करते हैं ,माँ काली उन्हें स्वीकार करती है,इसी कड़ी में बीते कल दिनांक 3/03/2024 समय सायं 4.30 बजे अपने रायबरेली रोड लखनऊ स्थित आवास पर उन्होने माँ काली से ओलबृश्टि और बेमौसम  बरसात रोकने के लिये प्रार्थना का अनुष्ठान किया,जिसको फेसबुक लाइव करके लोगों से प्रार्थना की अपील भी की, जिससे किसानों की फसल और जन और अन्य जीवजन्तुओं की हानि को रोका जा सके। इसको चमत्कार समझें या संयोग कल से ओलाब्रश्टि और बारिश थमचुकी है,और मौसम ठीक है।

शुक्रवार, 1 मार्च 2024

मुंबई से काठमांडू तक लोगों को अंगदान के लिए जागरूक कर रहे विनोद का पीजीआई में स्वागत

 



अंगदान व रक्तदान कर जरूरत मंद लोगों का जीवन बचाएं 


-मुंबई से काठमांडू तक लोगों को अंगदान के लिए जागरूक कर रहे विनोद का पीजीआई में स्वागत 


जरूरतमंदों का जीवन बचाने के लिए रक्तदान और अंगदान जैसे समाजिक कार्यों से लोगों को जुड़ना चाहिए। स्वस्थ्य युवाओं एवं बड़ों को देहदान, अंगदान व रक्तदान के लिए प्रेरित एवं प्रोत्साहित करने की जरूरत है। एक व्यक्ति चार से पांच लोगों को जीवन दे सकता है। यह बातें शुक्रवार को पीजीआई के नेफ्रोलोजी विभाग के प्रमुख डॉ. नारायण प्रसाद और यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. एमएस अंसारी ने संस्थान के मुख्य गेट पर आयोजित अंगदान जागरूकता कार्यक्रम में कहीं। मुंबई से काठमांडू तक बाइक से अंगदान को लेकर लोगों को जागरूक करने जा रहे नर्मदा किडनी फाउंडेशन के सदस्य मुंबई निवासी विनोद के पीजीआई पहुंचने पर स्वागत किया गया। शुक्रवार को पीजीआई के मुख्य गेट से डॉ. नारायण प्रसाद ने विनोद को हरी झंडी दिखाकर रावाना किया। हालांकि गुर्दा प्रत्यारोपण करा चुके विनोद लोगों को अंगदान के लिए जागरूक कर रहे हैं। 

 डॉ. नारायण प्रसाद ने कहा कि दिल, गुर्दा, लिवर पैंक्रियाज आंत और फेफड़ों के अलावा त्वचा,  अस्थि, अस्थि मज्जा, कार्निया, कारटिलेज , माँसपेशिया आदि का प्रत्यारोपण सम्भव है। इस मौके पर रेजिडेंट, मरीज, तीमारदार और स्टाफ के लोग मौजूद रहे।

समय से पहले जन्म और कम है वजन तो सुनने की क्षमता प्रभावित होने की आशंका

 



समय से पहले जन्म और कम है वजन तो सुनने की क्षमता प्रभावित होने की आशंका


कम सुनाई देने से दिमाग भी होगा कम विकसित

 

विश्व श्रवण दिवस पर पीजीआई में जागरूकता कार्यक्रम


 


समय से पहले और कम वजन के साथ जन्म लेने शिशुओं में सुनने की परेशानी की आशंका सामान्य शिशुओं के मुकाबले अधिक होती है। इन शिशुओं में तुरंत सुनने की क्षमता का आकलन करने की जरूरत है। आगे के इलाज के लिए विशेषज्ञ से सलाह लेने की जरूरत है। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान में विश्व श्रवण दिवस के मौके पर सुनो-सुनाओ जागरूकता के कार्यक्रम में न्यूरो ओंटोलॉजी विभाग के प्रो.अमित केशरी ने बताया कि हम लोग सुनने की परेशानी को दूर करने के लिए कॉक्लियर इंप्लांट कर रहे है। इससे काफी बच्चों का लाभ मिला है। विशेषज्ञों ने बताया कि सुनने की क्षमता कम है या नहीं है तो शिशु के  दिमाग का विकास  प्रभावित होता है। सुनने की कमी का इलाज जितना जल्दी संभव हो कराने की जरूरत है। सुनने की क्षमता का पता आडियो टेस्ट से होता है । 



 प्रो केशरी ने बताया कि जन्म लेने सभी शिशुओं के सुनने की क्षमता का परीक्षण करता है जिसमें पांच मिनट का समय लगता है।  आवाज जब शोर बन जाता है तो वह सुनने की क्षमता को प्रभावित करता है। रोज पर हार्न , तेज आवाज में संगीत सुनने की क्षमता को धीरे-धीरे कम करता है। हार्न न बजाने की शुरुआत हम सभी को करनी है। नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. नरायन प्रसाद ने कहा कि किडनी से प्रभावित बच्चों में सुनने की क्षमता में कमी  देखने के मिलती है।

प्रो केशरी ने बताया कि जिनकी उम्र 60 साल से अधिक हो गई है यदि उन्हें काम सुनाई  देने की समस्या है तो समय से इसका इलाज करना चाहिए।  इलाज न करने पर उनमें बोलने की समस्या के साथ भूलने की भी समस्या होने की परेशानी हो सकती  है।  इस मौके पर 20 बच्चों को सुनने की मशीन भी दी गई निदेशक प्रोफेसर आरके धीमान ने हर संभव मदद करने की बात कही