रविवार, 22 नवंबर 2020

अब कृत्रिम त्वचा से भरेगा घाव दिखेगा स्पाट लेस- पीजीआई में कृत्रिम त्वचा का रोपण

 


अब कृत्रिम त्वचा से भरेगा घाव दिखेगा स्पाट लेस

पीजीआई में कृत्रिम त्वचा का रोपण


बस्ती जिले रहने वाले  राम स्वरूप के चहरे का  कैंसर निकला , जल्दी भरा घाव और नहीं रहेगा चहरे पर निशान । यह संभव हुआ है  कृत्रिम त्वचा के रोपण तकनीक से जिसे संजय गांधी पीजीआई के प्लास्टिक सर्जरी विभाग ने स्थापित कर लिया है।  राम स्वरूप  वर्ष से मुंह कि त्वचा  कैंसर से ग्रस्त थे। यह कैंसर उनक के गाल और नाक के बीच के भाग मे में स्थित था। सामान्यतः ऐसे रोगी का आपरेशन दो चरणों मे किया जाता है जिसमें कि पहले चरण मे कैंसर को निकाला जाता है  दुसरे चरण मे कैसर निकालने  के बाद उत्पन्न घाव  में त्वचा प्रत्यारोपित कि जाती है इस पूरी प्रक्रिया में 2 से चार घंट का समय लग जाता है।  इस मरीज कैंसर निकालने के बाद कृत्रिम त्वचा (इंटिगरा) का सफल उपयोग किया गया और इसको लगाने से रोगी का घाव शीघ्र हीं भर गया। पहले त्वचा निकल जाने पर उसे ठीक करने के लिए फ्लैप तकनीक से त्वचा का रोपण करता था जिसमें तमाम तरह की परेशानी की आशंका रहती थी । विभाग के प्रमुख प्रो. राजीव अग्रवाल के मुताबिक फ्लैप तकनीक में त्वचा शरीर के किसी बाहरी अंग से निकाली जाती थी जहां से त्वचा लेते है वहां निशान पडता था साथ ही कई जहां रोपित की जाती थी वहां पर यह चिपकता नहीं था । इस तकनीक में चार से पांच घंटे लगने के बाद भी त्वचा रोपण की सफलता की आशंका रहती है। कृत्रिम त्वचा आ गयी है जिसे इंटिग्रा कहते है यह डर्मिस  का काम करती है । इसका रोपण करने के कुछ दिन बाद स्किन ग्राफटिंग की जाती है जिससे घाव जल्दी भरने के साथ किसी तरह का निशान नहीं रहता है। इंटिगरा एक बहुत ही  उपयोगी संसाधन है। सबी तरह के छोटे आकार के घाव कि प्लास्टिक सर्जरी में अत्यंत कारगर है।

 

 

3 से 4 सेंमी के घाव खुद जाते है भर   

 घाव का के भरने कि कुदरती क्षमता होती है और ऐसे सारे घाव जो अमुमन तीन से चार सेंटीमीटर तक चोडे होते है  वह व्यक्ति कि शारीरिक क्षमता से अपने आप ही  कुछ समय के  बाद भर जाते  है इन मानकों से अधिक बड़े होते है वे स्वतः नही भर पाते हैं उनमें त्वचा प्रत्यारोपण कि आवश्यकता हाती  है। अधिकांश घावों कि प्लास्टिक सर्जरी में त्वचा कि पतली परत हीं इस्तेमाल कि जाती हे और फ्लैप प्रोसिजर कम मात्रा में किया जाता हैं।

पुरूष महिलाओं के मुकाबले अधिक होते है विकलांगता के शिकार - दो फीसदी लोग विकलांगता के शिकार

 


पुरूष महिलाओं के मुकाबले अधिक होते है विकलांगता के शिकार 





दो फीसदी लोग विकलांगता के शिकार 

कुशीनगर विकलांगता के मामले में सबसे ऊपर और ज्योतिफुलेनगर सबसे कम 

पुरूष महिलाओं के मुकाबले अधिक होते है विकलांगता के शिकार 


कुमार संजय। लखनऊ 


 विकलांगता के दुख को समझने के लिए थोड़ी देर के लिए ही अपने एक पांव को 
बाँधकर कुछ देर चल कर देखें या एक हाथ से दिन भर काम करें, शायद ऐसा करने से 
भी आपको उनके कष्टों का मात्र एक प्रतिशत ही अनुभव होगा।  विकलांगता को मुख्य: 
दो भागों में बाँटा गया है. पहला शारीरिक और दूसरा मानसिक लेकिन विकलांगता 
चाहे जो भी हो वह जीवन को अत्यंत दुश्वार बना देती है। आंकडे गवाही दे रहे है 
कि  प्रदेश के हर एक लाख में से 2081 लोग विकलांगता के शिकार है। दो फीसदी लोग 
किसी न किसी विकलांगता के शिकार है। पूर्वाचल का कुशीनगर विकलांगता में पहले 
स्थान पर है । पुरूष महिलाओं की मुकाबले अधिक विकलांगता के शिकार है।  हाल में 
ही जर्नल आफ पब्लिक हेल्थ एंड रिसर्च के शोध प्रिवलेंस आफ डिसएबिलिटी इन उत्तर 
प्रदेश के शोध में बताया गया है कि सबसे अधिक सुनने की परेशानी 514 प्रति लाख 
है। देखने की परेशानी 382 प्रति लाख और चलने फिरने में परेशानी में 339 प्रति 
लाख लोगों में है। कारण के बारे में विशेषज्ञों का कहना है कम उम्र में चोट और 
अधिक उम्र में शारीरिक है जबकि मानसिक और बौद्धिक विकलांगता का कारण भी कई बार 
जंम जात है तो कुछ लोगों में उम्र है। शोध रिपोर्ट के मुताबिक सबसे अधिक 
विकलांगता के शिकार 60 से अधिक उम्र के लोग देखे गए है जिसमें सभी प्रकार की 
विकलांगता शामिल है। विकलांगों के प्रति समाज का दृष्टि कोण बदलने के लिए हम 
एक को अपने को बदलना होगा। 



टाप 10 जिले प्रति लाख विकलांगता 

कुशीनगर- 3922 

गाज़ियाबाद- 3102 

प्रयागराज-2992 

बलिया-2802 

आगरा-2748 

कौशांबी-2666 

लखनऊ-2616 

वाराणसी-2615 

जौनपुर-2600 

कानपुर नगर-2449 



सबसे कम विकलांगता वाले 10 जिले प्रति लाख 



ज्योतिफुलेनगर-1447 

बलरामपुर-1447 

ललितपुर-1500 

बांदा-1524 

चित्र कूट-1566 

संतकबीरनगर-1589 

मुज़फ़्फरनगर-1602 

हमीरपुर-1603 

चंदौली-1636 

आजमगढ़-1638 

किस आयु वर्ग में कितनी है विकलांगता प्रति लाख 

0 से 9- 1644 

20 से 39- 2070 

40 से 59-2314 

60 से अधिक-4276 



किस लिंग और परिवेश में कितना 

पुरूष-2263 

महिला-1881 



ग्रामीण-2039 

शहरी -2227 



किस उम्र में कितनी कौन सी परेशानी 

परेशानी   0-19        20-39          40 – 59       60 से अधिक 



देखने-   283            311            451         1112 

सुनने-   439            493            558         947 

बोलने –  115            144           152         163 

चलने-   202              403           375        878 

मानसिक – 81            110            96         70 

बौद्धिक-  25              51           54         44 

कई परेशानी- 85          84             85         396 



विकलांगों की साक्षरता दर 

एनएसओ यानि नेशनल स्टेटिस्टिकल ऑफिस के अनुसार विकलांगों की साक्षरता दर को 
मापने के लिए उन्हें अलग- अलग उम्र समूह में बांटा गया है। 7 या उससे अधिक 
उम्र के विकलांगों की साक्षरता दर 52.2 थी। 15 या उससे अधिक उम्र के विकलांगों 
में 19.3 प्रतिशत हाई सेकेंड्री या उसे अधिक स्तर तक पढ़ाई कर चुके हैं और 3 
से 35 की उम्र के विकलांगों में सिर्फ 10.1 प्रतिशत ऐसे लोग थे जो प्री- स्कूल 
कार्यक्रम में शामिल हुए हैं। 



इस वर्ग को सरकारी मदद 





3.7% विकलांग आत्मनिर्भर हैं अकेले रहते हैं। 62.1% विकलांगों की देखभाल करने 
के लिए केयर टेकर हैं। 21.8% लोगों को सरकार से सहायता मिलती थी, वहीं 1.8% 
विकलांगों की निजी संस्थान सहायता कर रही थी। 



नौकरी में स्थिति 



15 साल या उससे अधिक उम्र समूह की बात करें तो, श्रम बल भागीदारी दर विकलांगों 
में 22.8 प्रतिशत थी। वहीं बेरोजगारी दर 15 और उसे अधिक व्यक्तियों में 4.2 
प्रतिशत है। 




ट्रॉमा विश्‍व भर में मृत्‍यु और विकलांगता का सबसे बड़ा और प्रमुख कारण है। 
इससे निपटने के लिए जरूरी प्रशिक्षण दिया जाए तो काफी हद तक इन मौतों और 
विकलांगता को रोका जा सकता है। इस तरह की मौतों पर अंकुश न लग पाने का सबसे 
बड़ा कारण लोगों को इसके बारे में जरूरी प्रशिक्षण न  होना और मदद के लिए आगे 
न आना  भी है....प्रो. रूचिका टंडन न्यूरोलाजिस्ट एसजीपीजीआई 

गुरुवार, 19 नवंबर 2020

टैप तकनीक और खास रसायन किडनी डोनर में दर्द करेगा छू - पीजीआई ने स्थापित की सर्जरी के बाद दर्द को ना करने की नई तकनीक

 



टैप तकनीक और खास रसायन किडनी डोनर में दर्द करेगा छू

 

पीजीआई ने स्थापित की सर्जरी के बाद दर्द को ना करने की नई तकनीक

विश्व स्तर पर मिली मान्यता

 

संजय गांधी पीजीआई ने किडनी देने वाले लोगों को दर्द से राहत दिलाने के लिए नई तकनीक स्थापित की है जिसे इंटरनेशनल स्तर पर स्वीकार किया गया है। इस तकनीक का नाम है ट्रांसवर्स एब्डामिनल प्लेन ब्लाक( टैप ) जिसमें किडनी निकालने के लिए जहां चीरा लगा होता है वहां अल्ट्रासाउंड से देखते हुए मांस पेशियों में खास दर्द से राहत दिलाने वाली दावाएं इजेक्ट की जाती है। इस तकनीक स्थापित करने वाले संस्थान के एनेस्थेसिया एवं पेन मैनेजमेंट एक्सपर्ट प्रो.संदीप साहू ने इस तकनीक में दी जाने वाले खास रसायन का पर शोध किया तो देखा कि लिवोवीकेन रसायन अभी तक दे जाने वाले रसायन के मुकाबले काफी असरदार और सुरक्षित है। इस रसायन की टाक्सीसिटी( विषाक्तता) अन्य के मुकाबले काफी कम है। एक बार इंजेक्ट करने पर किडनी दाता को 12 से 24 घंटे तक दर्द तक एहसास नहीं होता है। प्रो. साहू के मुताबिक किडनी देने वाले को किडनी देने के बाद दर्द न के बराबर हो इसके लिए हमने शोध किया । इसके लिए दो खास रसायन का रोपीवीकेन और लीवोवीकेन के प्रभाव का अध्ययन किया जिसके लिए किडनी देने वाले कुल 120 लोगों पर शोध किया । किडनी निकलाने के लिए होने वाली सर्जरी के बाद इनमें इन रसायन को इंजेक्ट करने के बाद दर्द का स्कोर देखा । साथ दर्द कितने घंटे बाद महसूस हुआ इसका अध्ययन किया तो पाया कि लीवोवीकेन और रोपी वीकेन से 12 से 24 घंटे तक दर्द का एहसास नहीं हुआ। कई बार रसायन रक्त संचार में भी जा सकता है क्यों कि मांसपेशियों में रक्त का प्रवाह होता है ऐसे में लीवोवीकेन काफी सुरक्षित है।

 

किडनी दाता में बढेगा आत्मविश्वास

 

किडनी देने के लिए सर्जरी होती है जिसमें दर्द के एहसास से कई दाता परेशान होते है इस शोध के बाद तमाम किडनी दाता को दर्द का एहसास नहीं होगा तो वह दूसरे को बताएंगे कि दर्द तो होता ही नहीं इससे परिजन किडनी देने के लिए आगे आएंगे।   

 

ऐसे हुआ शोध

संस्थान के विशेषज्ञों ने कपैरिजन आफ एनालजेसिक इफीसिएंसी आफ रोपीवीकेन एंड लीवोवीकेनल  इन अल्ट्रा साउंड गाइडेड ट्रांसवर्स एवडोमिनिस प्लेन ब्लाक एंड पोर्ट साइट इनफिल्टरेशन इन लेप्रोस्कोपिक नेफ्रेक्टमी विषय को लेकर शोध किया जिसमें मुख्य शोध करता प्रो संदीप साहू के आलावा डा. जाकिया सईद, डा. तपस कुमार सिंह, डा. दिव्या श्रीवास्तव , किडनी ट्रांसप्लांट एक्सपर्ट और यूरोलाजी विभाग के प्रमुख  प्रो. अनीश श्रीवास्तव और किडनी रोग विशेषज्ञ प्रो. धर्मेद्र भदौरिया ने शोध किया जिसे जर्नल आफ एनेस्थेसिया ने स्वीकार किया है। 

सोमवार, 16 नवंबर 2020

एक तिहाई लोगों को यह नहीं पता कि वह डायबटिक - हर तीसरे में डायबटीज की आशंका

 








एक तिहाई लोगों को यह नहीं पता  कि वह डायबटिक  

हर तीसरे में डायबटीज की आशंका

 कुमार संजय। लखनऊ

संजय गांधी पीजीआइ के इंडोक्राइनोलाजिस्ट प्रो.सुशील गुप्ता तमाम शोध के बाद कहा कि राजधानी के बुजुर्गों में हर तीसरे को डायबिटीज अपनी चपेट में ले रहा है। वहीं 20 से 70 वर्ष की कुल आबादी को मिला लें तो इस रोग से 9 प्रतिशत लोग जूझ रहे हैं। इनमें से एक तिहाई लोगों को पता ही नहीं होता कि वे डायबेटिक हैंजो डायबिटीज से जुड़ी कॉम्प्लीकेशन को और बढ़ा देती है। प्रो. सुभाष कहते है कि हमने शोध किया तो पाया कि 16 प्रतिशत नागरिकों का शुगर लेवल उन्हें डायबिटिक बताने के लिए काफी था। साथ ही सामने आया कि इनमें से एक तिहाई लोगों को यह नहीं पता था कि वे इस रोग से पीड़ित हैं।


दिल और किडनी की बीमारी का गहरा रिश्ता


संजय गांधी पीजीआइ के हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. सुदीप कुमार के मुताबिक डायबटीज नियंत्रित न होने पर दिल और किडनी की बीमारी की आशंका बढ़ जाती है। देेखा गया है कि डायबटीज के साथ 10 से 12 साल जिंदगी गुजारने वाले 15 से 20 फीसदी लोग अनियंत्रित शुगर के कारण दिल औक कीडनी की बीमारी  के चपेट में आते है। फालो अप पर लगातार रहना चाहिए। 

     

क्या है डायबिटीज

प्रो.सुभाष यादव के मुताबिक  जो भोजन लेते हैं उसे हमारी पाचन ग्रंथियां पचा कर ऊर्जा और हमारी वृद्धि के लिए उपयोग करती हैं। इस प्रक्रिया में भोजन का अधिकतर हिस्सा टूट कर ग्लूकोज बनाता है। ग्लूकोज एक किस्म की शुगर है और यह हमारे शरीर के लिए ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। यह ग्लूकोज हमारी रक्त में घुलकर कोशिकाओं तक पहुंचता है जिसका उपयोग कोशिकाएं करती हैं। लेकिन ग्लूकोज को कोशिकाओं में पहुंचाने के लिए इंसुलिन हार्मोन की जरूरत होती है जो पैंक्रियाज की बीटा सेल्स पैदा करती हैं। जब भी हम कुछ खाते हैं तो पैंक्रियाज यह इंसुलिन अपने आप जरूरी मात्रा में छोड़ती है। यही इंसुलिन शुगर कंट्रोलर की भूमिका अदा करता है। इंसुलिन को लेकर आई समस्या ही डायबिटीज का कारण होती है।


डायबिटीज टाइप

टाइप 1 : टाइप 1 डायबिटीज में पैंक्रियाज इंसुलिन बनाना पूरी तरह से बंद कर देता है। कुल डायबिटीज में यह करीब 10 प्रतिशत मामलों में है।

टाइप 2 : यहां इंसुलिन तो बनता हैलेकिन वह काफी कम होता है जो ग्लूकोज को कोशिकाओं में पहुंचाने के लिए काफी नहीं होता। 90 फीसदी डायबिटीज के मामले टाइप 2 के मिल रहे हैं।

 

  

 

इंसुलिन को बोझ नहीं मानें


 इंसुलिन लेने को पेशेंट्स बोझ मानने लगते हैं। ऐसा करना खतरे को बढ़ाता है। इसे जीवन भर के लिए अपनाना हैइसलिए गंभीरता से अपनाएं। जब शुगर का स्तर गोली से कंट्रोल नहीं होता तो हम लोग इंसुलिन देते है देखा गया कि तमाम लोग  बाद फिर गोली पर आ जाते है।  



बच्चों में बढ़ता मोटापा बढ़ा रहा रिस्क

प्च्चों में अब तक केवल डायबिटीज टाइप ही मिलता रहा है क्योंकि इसकी प्रमुख वजह अनुवांशिक होती है। लखनऊ में हर 10 हजार बच्चों में से एक में टाइप डायबिटीज पाया जा रहा है। लेकिन जैसे-जैसे बच्चों के खाने-पीने की आदतों में बदलाव आते जा रहे हैंउनमें मोटापा बढ़ रहा है और यही उन्हें डायबिटीज के रिस्क फैक्टर की ओर धकेल रहा है। 12 से 14 वर्ष की उम्र में बढ़ना शुरू हुआ मोटापा 20-22 की उम्र तक डायबिटीज में बदल रहा है।

 

आकंडे दे रहे है गवाही

 

-50  लाख लोग हर वर्ष दुनिया भर में डायबिटीज से मर रहे हैं

-40 करोड़ लोग डायबिटीज के साथ जी रहे हैं दुनिया मेंइनमें 7 करोड़ भारत में और 1.10 करोड़ यूपी में और 2.70 लाख लखनऊ में रह रहे हैं।

-225 खरब रुपये इसके इलाज पर दुनिया भर में लोगों को हर साल खर्च करने पड़ रहे हैं।

-10 हजार में से एक बच्चा डायबिटीज टाइप 1 का पेशेंट।

-12 से 14 वर्ष की उम्र में बढ़ते वजन की वजह से भी डायबिटीज टाइप 1 का रिस्क।

 

लक्षण : हो जाइए सजग अगर

-बार-बार पेशाब जाने की जरूरत महसूस होती है।

-अचानक वजन तेजी से घटने लगा है

-शरीर में एनर्जी की कमी महसूस हो रही है

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प्यास और भूख बहुत लगने लगी है

 

नाश्ते में पौष्टिकता का रखें ध्यान

पीजीआइ की पोषण विशेषज्ञ अर्चना सिन्हा और निरूपमा सिंह के मुताबिक 70 प्रतिशत टाइप-2 डायबिटीज के रोगी इसकी चपेट में आने से बच सकते थे सही खान-पान और नियमित व्यायाम की आदतें विकसित की होती। नाश्ते में फलहरी सब्जियांसाबुत अनाजमेवेमछलीअंडे का उपयोग बढ़ाएं। साथ ही भोजन में स्वाद के बजाय पौष्टिकता को महत्व दें।

क्या नहीं खाएं 

-स्वादिष्ट लगने वाली पेस्ट्रीनाश्ते में परोसे जाने वाले अधिकतर सीरियल्सफ्राइड फूडकोल्ड ड्रिंक्समीठा 

शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

50 फीसदी शुरूआती दौर में पहुंच रहे है अस्पताल लेकिन रेडियोथिरेपी के लिए दो से तीन महीने के इंतजार

कैंसर के प्रति बढ़ रही है जागरूकता
50 फीसदी शुरूआती दौर में पहुंच रहे है

 अस्पताल रेडियोथिरेपी के लिए दो से तीन महीने के इंतजार


 संतकबीर नगर जिले के रहने वाले 45 वर्षीय अनिल के आवाज़ धीरे-धीरे कम होने लगी । डाक्टर ने बताया कि गले के स्वर तंत्र में गांठ जिसके कारण आवाज़ जा रही है। इस परेशानी का इलाज केवल रेडियोथिरेपी है । वह कई सेंटर पर गए लेकिन हर जगह इंतजार ही मिला । ऐसा केवल अनिल के साथ नहीं हुआ कैंसर के तमाम मरीजों को ऐसे इंतजार करना पड़ रहा है। राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस ( सात नवंबर) के मौके पर विशेषज्ञों का कहना है कि जागरूकता तो बढी है । पहले 80 फीसदी लोग कैंसर के अंतिम स्टेज आते थे लेकिन अब 50 से 60 फीसदी लोग कैंसर के पहले या दूसरे चरण में अस्पताल पहुंच रहे हैं। संसाधन के अभाव में जल्दी उनका इलाज संभव नहीं हो पा रहा है। प्रदेश में लगभग 12 केंद्र है जहां पर रेडियोथिरेपी सहित अन्य तरीके से इलाज की व्यवस्था है कोरोना काल से पहले दो से तीन महीने की वेटिंग है। कैंसर के इलाज के मामले में राजधानी ही एक मात्र ऐसा स्थान है जहां कैंसर के उपचार के लिए चार सेंटर है लेकिन यहां भी लगभग दो महीने की वेटिंग है। 

 बढ़ रहा है प्रोस्टेट और पित्ताशय

 कैंसर संजय गांधी पीजीआइ के कैंसर रोग विशेषज्ञ प्रो. नीरज रस्तोगी के मुताबिक हमारे इलाके में प्रोस्टेट कैंसर और पित्ताशय कैंसर तेजी से बढ़ रहा है। औसत उम्र बढने के साथ प्रोस्टेट कैंसर के मामले बढ़ रहे है। हमारे गंगा के किनारे वाले इलाके में पित्ताशय कैंसर के मरीज दूसरे इलाके से अधिक है। हम कारण के साथ इलाज की नयी दिशा पर काम कर रहे है। पित्ताशय कैंसर महिलाओं में पुरूषों के मुकाबले अधिक है। मानक के अनुसार कैंसर का पता लगने के 14 दिन के आंदर इलाज शुरू हो जाना चाहिए लेकिन संसाधन के आभाव में ऐसा नहीं हो पा रहा है। जल्दी मरीजों के आने के कारण हम लोग काफी हद तक कैंसर को नियंत्रित करने में कामयाब हो रहे है .. संजय गांधी पीजीआई के रेडियोथिरेपी विभाग कैंसर रोग विशेषज्ञ प्रो. नीरज रस्तोगी 



 फैक्ट ....

 -कैंसर 100 से अधिक प्रकार के होते हैं, जो शरीर के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकते है। 

 - स्तन कैंसर, बच्चेदानी के मुख का कैंसर, मुंह का कैंसर, फेफड़े का कैंसर और बड़ी आंत का कैंसर है प्रमुख कैंसर। 

 - हृदय रोग के बाद दूसरा सबसे बड़ा कारण कैंसर मृत्यु का कारण है। 

 - महिलाओं में बच्चेदानी के मुख के कैंसर से होने वाली मृत्यु दर देश की तुलना में अधिक है। 
 - महिलाओं में यह समस्त कैंसरों का एक चौथाई हिस्सा स्तन कैंसर है।
 - स्तन कैंसर, बच्चेदानी के मुख का कैंसर और बड़ी आंत का कैंसर का इलाज पूर्ण रूप से संभव है।


 यह है तो हो जाए सावधान



 वजन में कमी, बुखार, भूख में कमी, हड्डियों में दर्द, खांसी या मूंह से खून आना. अगर किसी भी व्यक्ति को ये लक्षण दिखाई देते हैं। किस अंग में कैंसर उसके अलग लक्षण महसूस होते हैं। 


 स्तन कैंसर- स्तन में गांठ होना, निपल से खून मिला हुआ रिसाव और निपल या स्तन की बनावट या प्रकृति में बदलाव शामिल हैं।


 प्रोस्टेट कैंसर-पेशाब करने में परेशानी होना शामिल हैं, लेकिन ज्‍यादातर लोगों में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते.

 कोलोरेक्टल कैंसर-कोलोरेक्‍टल कैंसर के लक्षण कैंसर के आकार व स्‍थान पर निर्भर करते है। मल-त्याग की आदतों में बदलाव, मल का एक जैसा न रहना, मल में खून और पेट में तकलीफ़ शामिल हैं.


 फेफड़ों का कैंसर-झांसी (अक्सर खून के साथ), सीने में दर्द, सांस लेने में घरघराहट की आवाज़ और वज़न घटना शामिल हैं। जब तक कैंसर बढ़ नही जाता, ये लक्षण अक्सर दिखाई नहीं देते हैं। 

 रक्त का कैंसर-धीमी गति से बढ़ने वाले रक्त कैंसर के कई रोगियों में लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। तेजी से बढ़ने वाले रक्त कैंसर के लक्षणों में थकान, वज़न घटना, बार-बार संक्रमण, नील पड़ना और खून बहना शामिल हैं लिम्फोमा-बढ़े हुए लसीका , थकान, और वज़न घटना शामिल है

कोरोना वायरस में स्थित नया हथियार कर रहा है बहुत बीमार

 

कोरोना वायरस में स्थित नया  हथियार कर रहा है बहुत बीमार

वायरस में नए बाइडिंग प्रोटीन का पीजीआई ने  लगाया पता

 

 

कोरोना वायरस के पास शरीर की कोशिकाओं से जुडने के लिए नए सेल बाइडिंग प्रोटीन का इस्तेमाल कर रहा है इस नए प्रोटीन का पता संजय गांधी पीजीआइ के विज्ञानियों ने हासिल की है। इस नए प्रोटीन का नाम है सियालो साइड बाइंडिंग साइट  जो वायरस में मौजूद है। शोध विज्ञानियों का कहना है कि सेल से जुडने वाले बाइंडिंग प्रोटीन का पता लगने के बाद इलाज के लिए नई दवाएं विकसित करने में मदद मिलेगी। विज्ञानियों ने  पहले पता लगाया था कि कोरोना वायरस  कोशिकाओं को संक्रमित करने के लिए अपने स्पाइक-प्रोटीन रिसेप्टर बाइंडिंग डोमेन का उपयोग  मानव कोशिकाओं के सतह पर स्थित  एंजियो टेनसिन कन्वर्जिंग एंजाइम-रिसेप्टर प्रोटीन से जुड़ कर कोशिकाओं को संक्रमित करता है नए शोध में बता चला है कि वायरस के पास  सियोल साइट बाइंडिंग साइट प्रोटीन है इससे वह सेल को संक्रमित करता है। संभव है कि इसी के कारण गंभीरता बढ़ रही है।  मालीक्यूलर मेडिसिन विभाग के  सहायक प्रोफेसर  डॉ संतोष कुमार वर्मा का कहना है कि  कोरोनो वायरस  स्पाइक-प्रोटीन में मौजूद रिसेप्टर बाइंडिंग डोमेन के अलावा एक नई बाइंडिंग साइट की पहचान की है जिसे वायरस इंटरनेशनल जर्नल ने स्वीकार किया है। 

कोरोनो वायरस फेफडे के अलावा , जठरांत्र संबंधी मार्गगुर्देमस्तिष्कहृदय औरप्रतिरक्षा कोशिकाओं को संक्रमित कर सकताहै। कारण की पहचान करने के लिए दुनिया भर के वैज्ञानिक इस पर शोध कर रहे है। हमने जैव सूचना विज्ञान और आणविक सिमुलेशन  का उपयोग करते हुए पता लगया कि  रिसेप्टर बाइंडिंग डोमेन के अलावाएक अतिरिक्त सियालो साइड बाइंडिंग साइट कोरोनोवायरस के स्पाइक-प्रोटीन में मौजूद  है। यह अतिरिक्त सियालो साइड बाइंडिंग पॉकेट कोरोनो वायरस को सियालिक एसिड युक्त कार्बोहाइड्रेट के साथ बाँधने में मदद करता हैजो विभिन्न मानव अंगों की सतह पर मौजूद विभिन्न सियाल ग्लाइको प्रोटीन के साथ जुड़ा होता है जो ऊतकों को संक्रमित करने के लिए कोरोनोवायरस को मजबूती देता है। यह जानकारी  नए संभावित चिकित्सा तकनीक की खोज में मदद करेगा।