शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020

कडनी के परेशानी के कारण बढ़ रहा है पारा -- बीपी 120-200 से अधिक तो हो जाएं एलर्ट


                      


कडनी के परेशानी के कारण बढ़ रहा है पारा
बीपी 120-200 से अधिक तो हो जाएं एलर्ट

तीस साल से कम उम्र है और पारा बढा चढ़ा हुआ है तो इसका कारण किडनी की परेशानी हो सकती है। इसे डाक्टरी भाषा में सेकेंड्री हाइपर टेंशन कहते है । इसके कारण बच्चे भी बीपी के शिकार हो रहे है । इस हाइपर टेंशन(बीपी) को दवा और इंटरवेंशन रेडियोलाजिकल तकनीक से काफी हद तक मैनेज किया जा सकता है। संजय गांधी पीजीआइ में इंडियन सोसाइटी आफ नेफ्रोलाजी ( नार्थ जोन) के वार्षिक अधिवेशन में सेकेंड्री हाइपर टेंशन को मुख्य विषय बना कर विशेषज्ञों ने चर्चा किया। संस्थान के नेफ्रोलाजिस्ट प्रो. धर्मेंद्र भदौरिया के मुताबिक हाइपर टेंशन के कुल मामलों में से 7 से 10 फीसदी लोगों में कारण सेकेंड्री हाइपर टेंशन होता है जिसमें 50 फीसदी लोगों में कारण किडनी की परेशानी होती है। कारण किडनी के अंदर की परेशानी और किडनी को खून सप्लाई करने वाली वाहिका में रूकावट( रीनो वेस्कुलर डिजीज) होती है। रेडियोलाजिकल इंटरवेंशन तकनीक से संस्थान के रेडियोलाजिस्ट रूकावट को दूर करते हैं। किडनी के अंदर परेशानी के मामले में दवा से बीपी कंट्रोल किया जाता है। लंबे समय तक बीपी कंट्रोल न होने पर दिमाग के साथ दिल औक किडनी पर बुरा असर पड़ता है। प्रो. भदौरिया के मुताबिक तीस से कम उम्र है साथ ही सिस्टोलिक 200 और डिस्टोलिक 120 से अधिक है तो सचेत होने की जरूरत है। सेकेंड्री हाइपर टेंशन का कारण पता करने के लिए किडनी फंक्शन टेस्टयूरीन में प्रोटीनसिरम क्रिएटनिन और किडनी का अंल्ट्रासाउंड और डाप्लर टेस्ट कर किडनी कारण का पता करते हैं। बाकी 50 फीसदी लोगों में एड्रीनल ग्लैड में ट्यूमर सहित अन्य परेशानी होती है।
कम होगी किडनी खराबी की गति
अमेरिका के प्रो.राजीव अग्रवाल ने बताया कि मिनिरलो कार्टीकोक्वायड एंटागोनिस्ट दवाएं जो किडनी के डिजिटल नेफ्रान पर स्थित रिपेस्पटर को ब्लाक करती है। इससे शरीर में सोडियम की मात्रा नहीं बढ़ने पाती है। इससे बीपी कंट्रोल रहता है। यह रसायन बीपी के कारण किडनी की खराबी कम हो जाती है। सोयिडम शरीर से बाहर निकल जाता है।  

पोटैशियम की कमी हाई बीपी का कारण
प्रो. रवि शंकर कुशवाहा ने बताया कि इलेक्ट्रोलाइड  असंतुलन भी उच्च रक्त चाप का बड़ा कारण है देखा गया है कि सोडियम की कमी के कारण भी बीपी बढ़ता है। ऐसे लोगों को खाने में सब्जी  और फल की मात्रा बढ़ाने की जरूरत होती है। इससे कंट्रोल न होने पर दवाएं भी देते है।
50 फीसदी लोगों में दवा की लापरवाही
विशेषज्ञों ने कहा कि बीपी नियंत्रित न होने के पीछे 50 फीसदी लोगों में दवा का सही मात्रा में सही समय पर न लेना है। ऐसा केवल हमारे यहां नहीं है पूरे विश्व की परेशानी है। कई बार लोग दवा खाना बंद कर देते है कि हमारा बीपी कंट्रोल हो गया कंट्रोल दवा से रहता है दवा बंद करने के बाद फिर बढ़ना शुरू हो जाता है कई बार एकदम से बढ़ जाता है ऐसे में ब्रेन स्ट्रोक तक की आशंका रहती है। 

होशो –हवास और बिना सिर खोले पीजीआइ में निकाला ब्रेन ट्यूमर

होशो –हवास और बिना सिर खोले पीजीआइ में निकाला ब्रेन ट्यूमर
आवाज और पहचान की शक्ति कम कर सकता है ब्रेन ट्यूमर


संजय गांधी पीजीआई में एक 35 साल और एक 55 साल की मरीज में दिमाग के ट्यूमर की लाइव सर्जरी हुई ।  एक मरीज में बिना मरीज बेहोश किए और दूसरे मरीज में बिना सिर खोले नाक के जरिए दिमाग में पहुंच कर सर्जरी को आंजाम दिया गया।   संस्थान के न्यूरो सर्जरी विभाग द्वारा कंट्रोवर्सी इन न्यूरो सर्जरी विषय पर आयोजित कार्य शाला में शुक्रवार को इन दोनों जटिल सर्जरी की बारीकियां दो सौ अधिक न्यूरो सर्जन को सिखायी गयी। विभाग के प्रमुख प्रो. संजय बिहारी, आयोजक प्रो. कमेश सिंह बैसवार, प्रो. कुतंल कांति दास के मुताबिक 35 साल युवक के ब्रेन के बायें साइड में आवाज, पहचान को नियंत्रित करने वाले स्थान पर ट्यूमर ( इंसुलर ग्लायोमा) था। मरीज को झटके आ रहे थे। ट्यूमर का साइज पांच सेमी का था आगे चल कर परेशानी बढ़ सकती थी। इसमें बिना बेहोश किए ही ट्यूमर का निकाला क्योंकि सर्जरी की सफलता सर्जरी के दौरान ही तय होनी थी । ट्यूमर निकालने के बाद तुरंत देखा जाना था कि भाषा और पहचान तो नहीं जा रही है। सर्जरी के दौरान मरीज को होश में रख कर उससे बात करते हुए चीजों को दिखा कर पहचान को सुनिश्चित किया गया। इस सर्जरी को कोच्ची के न्यूरो सर्जन प्रो. दिलीप पाणीकर , प्रो. आलोक कुमार और संस्थान के एनेस्थेसिया विशेषज्ञ प्रो. देवेंद्र गुप्ता और प्रो. शशि ने अंजाम दिया। प्रो. अरूण श्रीवात्व के मुताबिक कुल ब्रेन ट्यूमर के मामलों में से 25 फीसदी ट्यूमर इंसुलर ग्लायोमा देखा गया है यह दिमाग के दाए या बाएं हिस्से में हो सकता है। सर्जरी के बाद लकवा की आशंका रहती है क्यो कि सर्जरी के दौरान मिडिल सेरीब्रेल आर्टरी के डैमेज होने की आशंका रहती है । प्रो. बिहारी ने बताया कि न्यूरो सर्जरी को स्थापित करने वाले प्रो. डीके छाबडा और प्रो.वीके जैन के सम्मान में विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया जिसे जापान के  डा. सोतो, पुर्तगाल के डा. मैनुअल और अमेरिका के डा. अनिल नंदा देंगे।          
केस –टू – 50 वर्षीय पुरूष के ब्रेन स्टेम ( दिमाग के निचले सतह) में प्लेनम मैनिनजियोमा ट्यूमर चार सेमी का था।  जिसकी वजह से उसके आंख की रोशनी कम होने के साथ सिर में दर्द की परेशानी थी। इस मरीज में ट्यूमर को निकालने के लिए बिना सिर खोले नाक के जरिए नजल इंडोस्कोप दिमाग के निचले स्तर पर पहुंच कर सर्जरी की गयी। इस तकनीक से सर्जरी में पूरा ट्यूमर निकल जाता है और सिर पर कोई चीरा नहीं लगता है। 

रविवार, 23 फ़रवरी 2020

पीजीआइ में आईएसआरटी की सीएमई - डीबीटीएस तकनीक से सटीक मिलेगी स्तन कैंसर की जानकारी





पीजीआइ में आईएसआरटी की सीएमई  
डीबीटीएस तकनीक से सटीक मिलेगी स्तन कैंसर की जानकारी
ब्रेस्ट कैंसर स्क्रीनिंग प्रोग्राम में होने वाली मैमोग्राफी की बढेगी सफलता
जागरण संवाददाता। लखनऊ  
अब डीबीटीएस( डिजिटल ब्रेस्ट टोमो सिंथेसिस) तकनीक के जरिए संजय गांधी पीजीआई स्तन कैंसर का आशंका का पता लगाएगा खास तौर पर कम उम्र के महिलाओं में यह काफी सटीक साबित होगी। कम उम्र की महिलाओं में गांठ का पता नहीं लगता क्योंकि कोशिकाए बहुत घनी होती है ऐसे में साधारण मैमोग्राफी से गांठ का पता नहीं लगता । डीबीटीएस तकनीक से छोटी से छोटी स्तन की गांठ का पता लगाकर आशंका जान कर आघे बायोप्सी कर कैंसर की पुष्टि संभव होगी। संस्थान के रेडियोलाजी विभाग द्वारा इंडियन सोसाइटी आफ रेडियोग्राफर एंड टेक्नोलाजिस्ट(आईएसआरटी) के सीएमई में संस्थान री रेडियोलाजिस्ट प्रो. नमिता मोहिंद्रा के मुताबिक इस तकनीक में रेडिएशन बीम को 15 डिग्री कोण पर धीर-धीरे घुमाया जाता है जिससे स्तन की कई इमेज विभिन्न कोशिकाओं के मोटाई में मिलती है। इससे छिपे गांठ का पता लग जाता है। इस तकनीक को हम लोगों ने स्थापित कर लिया है। इससे स्तन कैंसर स्क्रीनिंग प्रोग्राम के तहत होने वाले मैमोग्राफी जांच की सटीक जानकारी दी दर 50 फीसदी तक बढ़ गयी है।

एमआरआई से पहले शरीर से हटा सभी धातु  
सीनियर रेडियोग्राफी टेक्नोलाजिस्ट धर्मेद्र कुमार और सरोज कुमार वर्मा ने बताया कि एमआरआई जांच के लिए किसी भी मरीज के शरीर पर कोई धातु की वस्तु नहीं होनी चाहिए इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। किंग जार्ज मेडिकल विवि के आर एंड डी रीजनल कोआर्डीनेटर डा.विवेक कुमार, लोहिया के डा. धनंजय, विवेकानंद अस्पताल के टेक्नोलाजिस्ट रजनीश श्रीवास्तव ने रेडिएशन सेफ्टी पर विशेष जोर देते हुए कहा कि जरूरत हो तभी एक्स-रे कराना चाहिए। एक्स-रे के समय परिजनों को कक्ष में जाने से बचना चाहिए।

 सीटी स्कैन रिपोर्टिंग  के लिए बन रहा है आरटीफीशियल इंटेलीजेंस से साफ्टवेयर
पीजीआइ सहित अन्य संस्थान से लिया जा रहा है डाटा
कुमार संजय। लखनऊ
सिर और पेट के सीटी स्कैन की रिपोर्टिंग के लिए आरटीफिशियल इंटेलीजेंस तकनीक से साफ्यवेयर तैयार किया जा रहा है। इससे सटीक रिपोर्टिग की संभवना बढ़ेगी । रेडियोलाजिस्ट पर काम का भार कम होगा केवल उन्ही मरीजों के सीटी स्कैन को रिपोर्ट करना होगा जिनमें साफ्टवेयर किसी तरह की बीमारी की आशंका जाहिर करेगा। इसके लिए संजय गांधी पीजीआइ टीम लीडर के रूप में काम कर रहा है। संस्थान के रेडियोलाजी विभाग की प्रो. अर्चना गुप्ता इंडियन सोसाइटी आफ रेडियोग्राफर एंड टेक्नोलाजिस्ट से साथ मिल कर डाटा बैंक बना रही है। इस काम के लिए लोहिया संस्थान, किंग जार्ज मेडिकल विवि, विवेकानंद अस्पताल, देश के एम्स और निजि संस्थानों से सिर और पेट के सीटी स्कैन की फिल्म लेकर का डिजिटल बैंक बन रहा है। इसमें बीमारी वाले मरीजों के फिल्म के साथ ही सामान्य मरीजों की फिल्म को लोड किया जाएगा । साफ्टवेयर बनने के बाद किसी मरीज का सीटी फिल्म इसमें लोड करते ही बता देगा मरीज को क्या परेशानी या नार्मल है। सीनियर टेक्नोलाजिस्ट सरोज वर्मा ने बताया कि किसी मरीज में बीमारी की जानकारी होने पर उस फिल्म को रेडियोलाजिस्ट दोबारा रिपोर्ट देकर रिपोर्टिंग करेंगे इससे सीटी स्कैन की रिपोर्टिंग दक्षतना बढेगी।     

सीबीएमआर ने ब्लैडर कैंसर की गुत्थी सुलझाने के लिए खोजा बायोमार्कर

सीबीएमआर ने ब्लैडर कैंसर की गुत्थी सुलझाने के लिए खोजा बायोमार्कर
दो बूंद खून खोल देगा ब्लैडर कैंसर के तमाम राज
ब्लैडर कैंसर और बताएगा कितनी सफल रही सर्जरी    
कुमार संजय। लखनऊ
ब्लैडर कैंसर की पुष्टि बिना बायोप्सी के भी संभव होगी  साथ ही सर्जरी के बाद कितना फायदा हुआ।  दोबारा ब्लैंडर कैंसर की कितनी आशंका है जानने के लिए सेंटर फार बायोमिडक रिसर्च (सीबीएमआर) के मुख्य वैज्ञानिक डा. आशीष गुप्ता ने कुछ खास  बायोमार्कर का पता लगाया है। देखा कि यह बायोमार्कर कैंसर की स्थित में बढ़ जाते है लेकिन सर्जरी के बाद इनका स्तर कम हो जाता है। देखा कि सर्जरी पूरी तरह सफल होने पर मार्कर का स्तर सामान्य स्वस्थ्य लोगों के बराबर हो जाता है। डा. गुप्ता के मुताबिक उन्होंने 160 लोगों के सीरम ले कर न्यूक्लियर मैगनेटिक रीसोनेंस( एनएमआर) तकनीक से डाइमिथाइलएमीन, मैलोनेट, लैक्टेट, ग्लूटामिन, हिस्टाडीन और वालीन मेटाबोलाइट के स्तर का अध्यन किया। 160 लोग जिनके रक्त से सीरम के मेटाबोलाइट के अध्यन किया उनमें से 52 सामान्य स्वस्थ्य लोग, 55 ब्लैडर कैंसर के मरीज सर्जरी से पहले लिया गया सीरम, 53 ब्लैंडर कैंसर के मरीज जिनका सर्जरी के बाद लिए गए सीरम में मेटाबोलाइट का स्तर  तीन महीने तक समयान्तराल पर देखा तो पाया कि सर्जरी के बाद इन मेटाबोलाइट( बायो मार्कर) का स्तर कम हो जाता है। इस शोध से साबित हुआ कि दो मिली लीटर खून लेकर उससे सीरम निकाल कर इन बायोमार्कर के आधार पर  काफी हद तक ब्लैडर कैंसर का पता लगाया जा सकता है। सर्जरी कितनी सफल रही इसका भी पता लग जाता है। सर्जरी के बाद यदि इन बायोमार्कर का स्तर बढ़ रहा है तो दोबारा कैंसर की आंशका का काफी पहले लगा सकते हैं।

ऐसे हुआ शोध
हमने एनएमआर डिराइव्ड टारगेट सीरम मेटाबोलिक बायोमार्कर एप्रीसल आफ ब्लैडर कैंसर – ए प्री एंड पोस्ट आपरेटिव इवैलुएशन विषय को लेकर लंबे समय तक शोध किया। इस शोध को जर्नल आफ फार्मास्युटिकल एंड बायोमिडकल एनालसिस ने स्वीकार किया है।सीबीएमआर के डा. दीपक कुमार,  संजय गांधी पीजीआइ डा. निलय, प्रो.यूपी सिंह और मेदांता दिल्ली के डा. अनिल मंधानी और किंग जार्ज मेडिकल विवि के डा. नवनीत कुमार, डा. मनोज कुमार और प्रो.एसएन संखवार ने मरीज के रक्त देने के साथ ही अन्य तकनीकि सहयोग दिया।
क्या है ब्लैडर कैंसर

ब्‍लैडर में असामान्य कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि को ब्‍लैडर कैंसर कहते है। ब्लैडर की बाहरी दीवार की मांसपेशियों की परत को सेरोसा कहते हैं जो कि फैटी टिश्‍यूएडिपोज़ टिश्यूज़ या लिम्फ नोड्स के बहुत पास होता है। ब्‍लैडर वो गुब्बारेनुमा अंग है जहां पर यूरीन का संग्रह और निष्कासन होता है।
यह परेशानी तो लें सलाह

-मूत्र में रक्त (हेमेटुरिया) की उपस्तिथि
-मूत्र में रक्त आना व दर्द-रहित
-पेशाब के दौरान दर्दलगातार पेशाब आना या ऐसा करने में सक्षम होने के बिना पेशाब की आवश्यकता महसूस होती है
- श्रोणि या हड्डी का दर्दनिचला हिस्से में दर्द या सूजन की शिकायत होती हैं।

नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम के आंकड़ो के अनुसार ब्लैडर कैंसर की दर 2.25 फीसद है। हर साल 100,000  लोग शिकार होते है जिसमें से 3.67 फीसद पुरूष और 0.83 महिलाएं होती है। 

रविवार, 16 फ़रवरी 2020

गन्ना कटाई के बाद नहीं कम होगा वजन न कम होगी मिठास

जागरण स्पेशल....


गन्ना कटाई के बाद नहीं कम होगा वजन न कम होगी मिठास

किसान और चीनी मिल का नुकसान कम करने में कारगर साबित हुआ नुस्खा

भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान  ने खोजा नुस्खा   

कुमार संजय़। लखनऊ

गन्ने  की कटाई के बाद चीनी मिल तक पहुंचाने के लिए साधन न मिलने।  मिल पर तौलने के लिए लंबी लाइन । तौल के लिए पर्ची न मिलने सहित अन्य  कारण कई बार कटाई के बाद गन्ने का बिकने और पेराइ में लंबा समय लग जाता है जिसकी वजह से गन्ने का भार कम होता है । गन्ने का भार कम होने से किसान को नुकसान होता है क्योंकि भार के अनुसार किसान को पैसा मिलता है। इसके साथ ही गन्ने में सुक्रोज की मात्रा कम हो जाती है जिससे चीनी का परता नहीं मिलता है। चीनी कम बनती है इससे चीनी मिल को नुकसान होता है। गन्ने का भार कम होने और सुक्रोज की कमी को रोकने के लिए भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने क नुस्खा तैयार किया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस नुस्खे के छिड़काव को गन्ने का भार में कमी और सुक्रोज लास को कम किया जा सकता है। इस नुस्खे को गन्ना काटने के तुरंत बाद छिड़काव किया जाता है। गन्ना काटने के बाद उससे पत्ती और गेड़ा कट जाता है जिसके बाद बोझा( बंडल) बनाया जाता है। संभव होतो बंडल बनाने के पहले छिड़काव किया जाए नहीं तो बाद में अच्छी तरह से छिड़काव किया जाए। इससे किसान को आर्थिक नुकसान नहीं होगा साथ ही चीनी मिल को पूरा परता मिलेगा। संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डा. अजय कुमार शाह ने बताया कि शोध को प्रचारित करने के लिए गन्ना विभाग और चीनी मिलों को नुस्खा दिया गया है।

क्या नुस्खा और कैसे हुआ शोध
बेंजालकोनियम क्लोराइज(बीकेएस) और सोडियम मेटासिलीकेट(एसएमएस) मिश्रण के 0.5 फीसदी घोल बनाया जाता है। इस घोल का परीक्षण गन्ना कटने के बाद छिड़काव किया और कुछ गन्ने पर छिड़काव नहीं किया गया। गन्ना कटने पर भार देखा गया छिड़काव वाले गन्ने के भार में 240 घंटे बाद कमी 11.04 फीसदी आयी जबकि बिना छिड़काव वाले में 11.96 फीसदी की कमी आयी। इसी तरह सुक्रोज में कमी छिड़काव वाले में 20.5 फीसदी आयी जबकि बिना छिड़काव वाले गन्ने में 240 घंटे बाद 20.88 फीसदी की कमी आयी।   


 भारत और सउदी अरबिया के वैज्ञानिकों  ने मिल कर किया शोध

 सीएसए यूनिवर्सटी आफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलाजी कानपुर के   डा. एस सोलोमन के निर्देशन में मिनिमाइजेशन आफ पोस्ट हारवेस्ट सुक्रोज लासेस इन ड्राउट एफेक्टेड शुगर केन यूजिंग केमिकल फारमुलेशन विषय़ पर शोध हुआ जिसमें  भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान पर डा. वरूचा मिश्रा, किंग सउद यूनिवर्सटी सउदी अरबिया के डा. अबीर हशीम, डा.ईएफ अब्दुल्ला, किंग सउद यूनिवर्सटी सउदी अरबिया  अलबंडारी एफ अलअर्जानी, भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान  डा.एके मल्ल और डा.सीपी प्रजापति, लखनऊ विवि के बाटनी विभाग के मुं इसराली अंसारी ने किया। शोध को सउदी जर्नल आफ बायोलाजिकल साइंस ने स्वीकार किया है।

सोमवार, 10 फ़रवरी 2020

अब चार घंटे के नवाजत में सुनने की क्षमता का लगेगा पता





अब चार घंटे के नवाजत में सुनने की क्षमता का लगेगा पता
पीजीआइ ने स्थापित किया ओटो एकास्टिक इमीशन
कान में इलेक्ट्रोड डाल बता देंगे कितना सुन रहा है शिशु
कुमार संजय। लखनऊ
अब संजय गांधी पीजीआइ में चार घंटे के नवजात शिशु के सुनने की क्षमता का परीक्षण संभव होगा। संस्थान के न्यूरो सर्जरी विभाग ने ओटो एकास्टिक इमीशन परीक्षण तकनीक स्थापित किया है जिसमें शिशु के कान में इलेक्ट्रोड डाल कर सुनने की क्षमता का पता लगता है। पहले से परीक्षण में शिशु के कान पर स्पीकर लगा कर हाव –भाव देखा जाता था । नवजात कई बार प्रतिक्रिया नहीं देते तो ऐसे में परीक्षण संभव नहीं हो पाता था। विभाग न्यूरो ओटोलाजिस्ट प्रो. अमित केशरी के मुताबिक नवजात में सुनने की क्षमता जानने के लिए विशेष आडियोमेट्री लैब स्थापित की गयी है जिसमें नेशनल हेल्थ मिशन के राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम के तहत अनुदान मिला है। नवजात में सुनने की कमी  का पता तुरंत लगने पर तुरंत हियरिंग ऐड लगा कर काल के कोशिकाओं के संरक्षित रखने के साथ ही शिशु के दिमाग के विकास को बाधित होने से रोका जा सकता है। प्रो.अमित के मुताबिक जंम के दिन या दो चार दिन परीक्षण के बाद जंम के तीन  और 6 महीने बाद दोबारा परीक्षण करते है । सुनने की क्षमता में कमी की पुष्टि होने के बाद हियरिंग ऐड लगा देते है। इससे बच्चे के ब्रेन डिवलेपमेंट होने के साथ काल के सेल नहीं नष्ट होते है। शिशु सुनने लगता है तो वह बोलने भी लगता है।

आईसीयू में भर्ती होने वाले 15 फीसदी में मिली परेशानी
प्रो. अमित केसरी ने  बताया कि विवेकानंद अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डा. निरंजन सिंह के साथ हम लोगों ने आईसीयू में भर्ती होने वाले 400 बच्चों में शोध किया तो पाया कि इनमें 15 फीसदी बच्चों में सुनाई देने की क्षमता में कमी है। इन बच्चों में तुरंत हियरिंग एड लगा कर इनके मानसिक विकास को संरक्षित रखा जा सकता है।  
इन नवजात का होना चाहिए सुनने की क्षमता का परीक्षण
-    समय से पहले जंम लेने वाले
-    जंम के समय दो किलो से कम वजन
-    जंम के बाद नियोनेटल आईसीयू में भर्ती होने वाले
-    अनुवांशिकी सुनने की कमी परिवार में
-    गर्भवती में टीबी, हरपीज या अन्य वायरल संक्रमण
-    गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप
-    गर्भावस्था  के दौरान डायबटीज
-    हाई रिस्क प्रिगनेंसी    

रविवार, 9 फ़रवरी 2020

थ्री डी मैंपिग बताएगा कहां छूट रहा है दिल का करंट-- दिल में करंट की गड़बडी से दिल होता है परेशाना






थ्री डी मैंपिग बताएगा कहां छूट रहा है दिल का करंट
दिल में करंट की गड़बडी से दिल होता है परेशाना
दिल की धड़कन पर भी रखना होगा नजर


 दिल को धमनी की रूकावट ही नहीं दिल में करंट की कमी से भी दिल में परेशानी खड़ी हो सकती है। डाक्टरी भाषा में इसे  सिक साइनस सिंड्रोम कहते हैं।  सिक साइनस सिंड्रोम बीमारी होने पर दिल को उचित मात्रा में करंट नहीं मिलता है। कंरट की कमी होने पर दिल को धड़कने के लिए शक्ति नहीं मिलती है। दिल  काम करना बंद कर सकता है।  दिल को अधिक करंट मिलने पर भी दिल तेजी से धड़कने लगता हैजिससे दिल की परेशानी हो सकती है।  दिल काम करना बंद देता है। दिल को कंरट कम मिलने की बमारी को बे्रडी कार्डिया और अधिक मिलने की बीमारी को टैकीकार्डिया कहते हैं। इन दोनो बीमारियों का इलाज संभव है। इन दोनों परेशानी का इलाज रेडियो फ्रिक्वेसी एबीलेशन सहित अन्य तकनीक से संभव है।  संजय गांधी पीजीआइ के हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो.अादित्य कपूर प्रो.नवीन गर्गप्रो. सत्येंद्र तिवारी और प्रो.सुदीप कुमार ने कार्डीकान 2020 में बताया कि पहले जहां पर करंट का सर्किट खराब है जानने के लिए फ्लोरो स्कोपी से किया जाता था।  अब थ्री डी मैपिंग से हार्ट के हर चेम्बर का थ्री डायमेंसन इमेंज देख कर  जगह का पता लगना संभव हो गया है। इससे इलाज की दक्षता में बढोत्तरी होगी।   
  तीस फीसदी लोगों मे दिल को करंट न मिलने के कारण दिल की परेशानी  
 प्रो.सुदीप कुमार ने बताया कि ३० से ४० फीसदी लोगों में दिल की बीमारी का कारण यहां तक कि हार्ट फेल्योर का कारण दिल को करंट न मिलना है। दिल को कंरट कम मिलने पर पेस मेकर लगाया जता है जो दिल को निश्चित मात्रा में करंट की आपूर्ति करता है। दिल को अधिक करंट मिलने पर दिल की धड़कन ७० प्रति मिनट से बढ़ जाती हैजिससे रक्त एवं आक्सीजन की पूर्ति कम हो जाती है। दिल कम करना बंद कर देता है। दिल को जहां से अधिक करंट मिल रहा है उस जगह पर जाकर रेडियोफ्रिक्वेंशी एबीलेशन तकनीक से वहां जमें वसा को जला कर कंरट को कम कर दिया जाता है।  

   40 फीसदी लोगों में दिल की रक्त वाहिका में रूकावट के कारण दिल की परेशानी

   पीजीआइ के ही हृदय रोग विशेषज्ञ डा.अंकित साहू   का कहना है कि  ४० से ५० फीसदी लोगों में हृदय रोग का कारण धमनी में रूकावट होती हैजिसका इलाज एंजियोप्लास्टी एïवं बाईपास सर्जरी से संभव है।
माइल्ड ऐटैक को न करें नजंरदाज
   प्रो.सत्येंद्रतिवारी ने कहा कि  कुछ लोगों कोहार्ट अटैक का हल्का सा झटका महसूस होता है। इसे 'माइल्ड हार्ट अटैककहते हैं। ये तरह से मुख्य हार्ट अटैक कापूर्व संकेत होता है। लेकिन जानकारी के अभाव में लोग इसे हार्ट बर्न या गैस कीसमस्या समझकर नजरअंदाज कर देते हैंजो उनके लिएभारी पड़ जाता है। 

 क्याहै माइल्ड हार्ट अटैक

  माइल्ड हार्ट अटैक को आम भाषा में लोग छोटा हार्ट अटैक कहतेहैं। इस हार्ट अटैक को नॉन एसटी एलिवेशन म्योकार्डियल इंफार्कशन कहते हैं। इसमेंहार्ट की नस सौ फीसदी नहीं बंद होती हैलेकिन प्रक्रिया वही होती हैजो बड़े हार्टअटैक में होती है। इस तरह के हार्ट अटैक में ब्लड क्लॉट नस को पूरी तरह बंद नहींकरता हैमगर इसमें हार्ट को डैमेज करने वालेएंजाइम्स बढ़े हुए रहते हैं। 

ये होते हैं लक्षण माइल्ड

 हार्ट अटैक के संकेत भी वही होतेहैंजो कंप्लीट हार्ट अटैक के होते हैंजैसे-सीने में तेज दर्दचलते समय भारीपनलगनापसीना आनाबेचैनी होनाजबड़ों में दर्दचलते-चलते गिरजाना आदि। लेकिन इन लक्षणों की इंटेंसिटी कम होती हैइसलिए लोग इसे नजरअंदाज कर देते हैं। इसमें ईसीजीईको और कार्डियक एंजाइम्स की जांच की जाती है।

न बरतें लापरवाही 

प्रो. नवीन गर्ग ने कहा कि  माइल्ड हार्टअटैक या छोटे हार्ट अटैक के बाद जब शरीर में ब्लड फ्लो सामान्य हो जाता हैतो लोग इसे गैस की समस्या या हार्ट बर्न समझकर नजरअंदाज करदेते हैं। मगर माइल्ड हार्ट अटैक को बड़े हार्ट अटैक का पूर्व संकेत कहा जा सकताहैइसलिए इसे गंभीर मानना चाहिए। इस तरह केमामलों में दूसरा हार्ट अटैक आने के चांस लगभग तीस फीसदी होते हैं।

पीजीआइ: हुक्का बार बना रहे दिल के मरीज

पीजीआइ: हुक्का बार बना रहे दिल के मरीज


कुछ समय पहले बुजुर्गो के लिए नशे का साधन था। फिर समय बीतने के साथ यह धीरे-धीरे गायब होने लगा, लेकिन एक बार फिर हुक्का के चलन की जोरदार वापसी हुई है। हुक्के की लत की चपेट में अब बुजुर्ग ही नहीं, बल्कि युवा पीढ़ी भी आ चुकी है। जगह-जगह हुक्का बार खुलने लगे हैं। मार्केट, बार और रेस्टोरेंट में मिल रहे हुक्का को फ्लेवर और हर्बल समझकर युवा पीढ़ी धुएं के बीच डूबती जा रही है। उन्हें पता नहीं कि वो हर कश में जहर अपने शरीर में खींच रहे हैं।
यह जानकारी कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ. राजीव रंजन ने दी। उन्होंने कहा कि लखनऊ में हुक्का पार्लर और हुक्का बार का चलन बहुत तेजी से बढ़ा है। हुक्का पार्लर युवाओं का ‘स्टेटस सिम्बल’ बन गया है। अकेले गोमतीनगर में 50 से ज्यादा हुक्का बार खुल गए हैं। शहर में करीब 200 से अधिक हुक्का पार्लर और बार हैं। डॉ. रंजन के मुताबिक हुक्का में फ्लेवर के नाम पर मेथमफेटामाइन, शीरा, अमोनिया, मेथोनॉल, पाइरीन, कैडमियम, निकोटिन कार्बन डाईमोनोआक्साइड आदि कई रासायनिक तत्व होते हैं। कार्डीकॉन के आयोजक सचिव व पीजीआइ के कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ. नवीन गर्ग बताते हैं कि हुक्का और सिगरेट में तंबाकू का प्रयोग होता है। हुक्के में प्रयोग रसायनिक तत्व सीधे शरीर के भीतर जाते हैं। इससे दिल की बीमारी के साथ ही कैंसर, टीबी आदि कई बीमारियों का खतरा बना रहता है।
50 फीसद लोग चले जाते हैं शॉक में : पीजीआइ के कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ. सुदीप कुमार ने बताया कि दिल के मरीज का ब्लड प्रेशर कम होने लगता है। लिवर, दिल, गुर्दा समेत शरीर के अन्य अंगों को खून की कमी होने लगती है। ऐसे में करीब 50 फीसदी मरीज शॉक में चले जाते हैं। शॉक के कारण हाईपोजेमिया, हृदय गति रुक जाती है। इससे 50 प्रतिशत से अधिक की मृत्यु हो जाती है।
कार्डियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया यूपी चैप्टर की 26वीं वार्षिक कॉन्फ्रेंस कार्डीकॉन-2020 में जुटे देशभर के कार्डियोलॉजिस्ट
डॉ. सिंघल सहित तीन बेस्ट डीएम छात्र सम्मानित
पीजीआइ में आयोजित वार्षिक कॉन्फ्रेंस कार्डीकॉन में शनिवार को कानपुर के प्रसिद्ध कॉडियोलॉजिस्ट डॉ. एसएस सिंघल को लाइफ टाइम एचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया। इसके अलावा पीजीआइ के कॉर्डियोलॉजी विभाग के डीएम छात्र कृष्णा यू चटर्जी, केजीएमयू के धनंजय कुमार व जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज कानपुर के अजय कुमार सिंह को बेस्ट डीएम स्टूडेंट का अवॉर्ड दिया गया। कार्डीकॉन के आयोजक सचिव डॉ. नवीन गर्ग ने बताया कि कॉर्डियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया यूपी चैप्टर ने पहली बार अवॉर्ड दिए हैं।