शुक्रवार, 31 मई 2019

पीजीआइ तय करेगा किडनी की खराबी में हारमोन थिरेपी की भूमिका

पीजीआइ तय करेगा किडनी की खराबी में हारमोन थिरेपी की भूमिका
सीकेडी के 20 से 30 फीसदी मरीजों में बढ़ा रहता है टीएसएच हारमोन
आईसीएमआर ने प्रो. नरायन प्रसाद के शोध योजना को दी सहमति


संजय गांधी पीजीआइ के नेफ्रोलाजी विभाग के प्रो. नरायन प्रसाद देश के अन्य संस्थानों के साथ मिल कर तय करने जा रहे है कि क्रानिक किडनी डिजीज से ग्रस्त लोगों में सब क्लीनिकल हाइपोथारडिज्म की दशा में हारमोनल थिरेपी की कितनी भूमिका है। प्रो. नरायन का मानना है कि टीएसएच हारमोन का स्तर सामान्य रहने पर किडनी से फिल्टरेशन अच्छा होता है । इसी आधार पर पूरी योजना तैयार कर प्रोजेक्ट इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च को भेजा जिसे स्वीकार कर लिया गया है। इस प्रोजेक्ट के तहत कुल पांच सौ किडनी खराबी के ऐसे मरीज जिनमें सब क्लीनिकल हाइपोथायरडिज्म की परेशआनी है उनमें शोध होगा। इस शोध में बनारस हिंदु विवि वाराणसी, पीजीआई कालेज कोलकत्ता, पीजीआई चंडीगढ़ के विशेषज्ञों का सहयोग लिया जाएगा। शोध में कुल शामिल मरीजों में आधे को हारमोनल थिरेपी देकर देकर उनमें जीएफआर( ग्लूमर फिल्टरेशन रेट) देखा जाएगा। आधे मरीजों को प्लेसबो पर रखा जाएगा। प्रो. नरायन प्रसाद के मुताबिक यह शोध के मिले तथ्यों के आधार पर सब क्लीनिकल हाइपोथायरडिज्म से ग्रस्त क्रानिक किडनी डिजीज के मरीजों में इलाज की नई दिशा तय होगी। सीकेडी के 20 से 30 फीसदी मरीजों में सब क्लीनिकल हाइपोथायरडिज्म की परेशानी देखी गयी है।  

क्या है सब क्लीनिकल हाइपोथायरडिज्म
टीएसएच हारमोन का स्तर कई सीकेडी के मरीजों में पांच से दस के बीच होता है ऐसी स्थित को सब क्लीनिकल हाइपोथायरडिज्म कहते है। इस स्थित में सीकेडी के मरीजों हारमोन थिरेपी( एलाक्ट्राक्सिन) में कई बार नहीं दिया जाता है। इस शोध से तय होगा कि इस स्थित में हारमोन थिरेपी देने से फायदा होता या नहीं। इससे इलाज की नई दिशा तय होगी। 

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