रविवार, 19 मई 2019

पीजीआइ में पड़ेंगे घुलनशील इंप्लांट

पीजीआइ में पड़ेंगे घुलनशील इंप्लांट


जागरण संवाददाता, लखनऊ: संजय गांधी पीजीआइ (एसजीपीजीआइ) में शरीर में स्वत: घुलने वाले इंप्लांट के इस्तेमाल से प्लास्टिक सर्जरी शुरू हो गई है। इससे मरीजों को इंप्लांट को दोबारा सर्जरी कर निकालने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
पीजीआइ के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के हेड प्रो. राजीव अग्रवाल ने बताया कि इंप्लांट को हड्डी जोड़ने, गैप भरने, शरीर के किसी भाग को ऊंचा करने आदि के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह इंप्लांट स्टील, टाइटेनियम और सिलिकॉन के बने होते हैं। स्टील के इंप्लांट वैसे तो सबसे किफायती होती हैं, लेकिन यह मोटे और भारी होते हैं।
हड्डी जोड़ने के लिए महज चार छेद: डॉ. अग्रवाल ने बताया कि 20 वर्षीय एक युवक के हाथ की हड्डी टूट गई थी। हाल में संस्थान में हुए इस तरह के पहले ऑपरेशन में युवक की हड्डी को जोड़ने के लिए महज चार छेद कर शरीर में स्वत: घुल जाने वाले इंप्लांट का इस्तेमाल कर सर्जरी की गई। ये इंप्लांट लगाने के लिए विशेष प्रकार के उपकरण आते हैं। इसमें प्लेट को गर्म कर मोल्ड कर लिया जाता है। इसके बाद उसमें डिल के जरिये होल किया जाता है, फिर इसमें चूड़ी बनाई जाती है। स्वत: अवशोषित होने वाले स्क्रू के जरिये इसे लगा दिया जाता है। सामान्य इंप्लांट में संक्रमण का डर, दर्द होना व उसके टूटने का खतरा रहता है। ये इंप्लांट शरीर में एक-दो वर्ष में पूरी तरह घुलकर होकर गायब हो जाते हैं। सर्जरी करने वाली टीम में डॉ. राजीव अग्रवाल, मुख्य सर्जन, डॉ. आरती अग्रवाल (एनेस्थेटिस्ट) शामिल थे।
ये हैं फायदे
’फै्रक्चर को जोड़ने में टाइटेनियम जितने ही मजबूत होते हैं हाथ की बोन के लिए होता है इस्तेमाल ’चेहरे के फ्रैक्चर के लिए सबसे अधिक मुफीद। एड़ी में भी कारगर ’इसे निकालने की जरूरत नहीं पड़ती है। इससे दूसरे ऑपरेशन का खर्च बच जाता है
ये हैं बाधाएं
’बड़ी हड्डियों जैसे जांघ और पैर के लिए उपयुक्त नहीं ’स्टील और टाइटेनियम के मुकाबले कीमत अधिक है। चार छेद वाली प्लेट व स्क्रू की कीमत 20 से 25 हजार रुपये आती है ’इंप्लांट प्रशिक्षित सर्जन द्वारा ही लगाया जा सकता है
अभी विदेश में ही इस्तेमाल होती थी ये तकनीक
मरीजों को मिलेगी राहत, इससे ऑपरेशन के बाद इंप्लांट को दोबारा सर्जरी कर निकालने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

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