शुक्रवार, 31 मई 2019

डॉक्टर के अच्छे व्यवहार से मरीज की आधी बीमारी ठीक हो जाती है--राज्यपाल-पीजीआई मे सीटीओ तकनीक




डॉक्टर के अच्छे व्यवहार से मरीज की आधी बीमारी ठीक हो जाती है--राज्यपाल
7 वीं इण्डो जापान क्रॉनिक टोटल क्लूजन क्लब कांफ्रेंस में विशेषज्ञों ने तकनीकि साझा की 

डाक्टरों के प्रेम और स्नेहपूर्वक बात करने से मरीज की बीमारी जल्दी ठीक होती है। बेशक दवायें काम करती हैं लेकिन इलाज करने वाले डॉक्टर का मरीज के प्रति अच्छा व्यवहार उस पर सकारात्क प्रभाव डालता है। ये बातें शुक्रवार को राज्यपाल राम नाईक ने पीजीआई में आयोजित तीन दिवसीय 7 वीं इण्डो जापान क्रॉनिक टोटल क्लूजन क्लब (सीटीओ) कांफ्रेंस के उदघाटन पर कहीं। उन्होंने कहा कि चिकित्सा जगत में विज्ञान की प्रगित से इलाज बहुत आसान हुआ है। 
श्री नाईक ने कहा कि पुराने जवाने में वैद्य तो इलाज करते थे लेकिन वो इलाज की विद्या किसी को नही बताते थे। पर आज के दौर में डॉक्टर इलाज की नवीन विद्यायें डॉक्टरों को सिखा रहे हैं।  राज्यपाल ने कहा कि भागदौड़ भरी जिंदगी और खानपान की वजह से लोगों में दिल की बीमारी बढ़ रही है। डॉक्टरों को चाहिये कि वह मरीजों के इसके प्रति जागरूक करें। कांफ्रेंस में पीजीआई निदेशक प्रो राकेश कपूर, पीजीआई के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रो सुदीप कुमार, प्रो अंकित साहूत्रिवेंद्रम के कार्डियोलॉजिस्ट एन प्राथप कुमार, हैदराबाद के डॉ. वी सूर्य प्रकाश राव, मुम्बई के एवी गनेश कुमार के अलावा कांफ्रेंस की सचिव पीजीआई के डॉ. रूपाली खन्ना ने अनुभव साझा किये। 

तकनीक उन्हें घबराने की जरूरत नही है। ब्लॉकेज होने पर रेट्रोग्रेट तकनीक कारगर 

 विभाग प्रो सुदीप कुमार बताते हैं कि तीन माह से अधिक समय से पूरी नस ब्लॉकेज होने पर (क्रॉनिक टोटल क्लूजन) दिल के मरीजों में एंजियोग्राफी संभव नही है। ऐसे मरीजों में बाइपास सर्जरी की जाती है। जबकि जापानी रेट्रोग्रेट तकनीकि से सीने में बिना चीरा लगाये नस के ब्लॉकेज को खोला जाता है। इस तकनीकि में जोखिम कम होता है। 
कांफ्रेंस की सचिव व पीजीआई की कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. रूपाली खन्ना बताती हैं कि पूरी नस के ब्लॉकेज को खोलने के लिये नसों में बॉल्स डालकर खोला जाता है। ऐसे में हल्की सी चूक मरीज के लिए जोखिम का कारण बन सकती है। रेट्रोग्रेट तकनीक में मरीज की स्वस्थ नसों में बारीक वायर डालते हैं और ऐसे में ब्लाकेज आसानी से खोल देते हैं। 


देश का पहला संस्थान होगा जहां हर तरह के कैंसर का इलाज एक छत के नीचे

देश का पहला संस्थान होगा जहां हर तरह के कैंसर का इलाज एक छत के नीचे
सितंबर में 60 बेड
के साथ शुरू होगा इलाज


सब कुछ योजना के अनुसार चलता रहा तो प्रदेश उन 60 फीसदी कैंसर के मरीजों को इलाज के लिए प्रदेश के बाहर का रास्ता नहीं देखना पड़ेगा। लखनऊ में देश का पहला ऐसा कैंसर संस्थान स्थापित होने जा रहा है जहां एक छत के नीचे सभी अंगों को कैंसर के इलाज संभव होगा। कैंसर के इलाज के लिए लखनऊ में फिलहाल जितने सेंटर है कहीं पर कंपलीट इलाज की सुविधा नहीं है। कही रेडियोथिरेपी है तो कहीं कमीथिरेपी की सुविधा  है जहां यह दोनों है वहां उस अंग के सर्जन नहीं है। चक गजरिया में मूर्त रूप ले रहा है सुपर स्पेशिएलटी  कैंसर संस्थान का लक्ष्य तो 1250  बेड का है लेकिन पहले चरण में 750  को क्रियाशील करने का लक्ष्य लेकर संस्थान के निदेशक प्रो.शालीन कुमार और मुख्य चिकित्सा अधीक्षक प्रो. राजेश हर्ष वर्धन लेकर चल रहे हैं। दो साल पहले ओपीडी के साथ संस्थान शुरू करने की कवायद हुई लेकिन यह फेल साबित हुई क्योंकि केवल ओपीडी चलाने से इलाज संभव नहीं है। मरीज को भर्ती कर कंपलीट इलाज के बिन कोई फायदा नहीं है। संस्थान प्रशासन का कहना है कि 30 सितंबर तक 60 बेड के साथ संस्थान शुरू करने के लक्ष्य पर तेजी से काम हो रहा है। संकाय सदस्यों के साथ पैरामेडिकल स्टाफ की व्यवस्था की जा रही है। दिसंबर 2020 तक 750 बेड पूरी तरह शुरू हो जाएगा। 

प्रदेश के कैंसर के केवल 40 फीसदी को मिल पा रहा है इलाज

प्रो. राजेश के मुताबिक हर चार मौत में से एक में मौत का कारण कैंसर होता है । पुरूषों में लंग और मुंह महिलाओं में स्तन, सर्विक्स कैंसर का बडा कारण है। इसके अलावा पेट, ब्रेन, हड्डी, रक्त कैंसर भी बडे कारण है। कैंसर के इलाज जितने मरीज प्रदेश में है उनमें से केवल 40 फीसदी मरीजो को प्रदेश में इलाज मिल पाता है 60 फीसदी लोग बाहर जाते है जिसमें उन्हें कई परेशानी होती है। हम हर अंग के कैंसर के इलाज के लिए तैयारी कर रहे हैं। 

प्रिवेंटिव आंकोलाजी पर होगा फोकस

कीमोथिरेपी, रेडियोथिरेपी, आंको सर्जरी, पैलेटिव केयर इलाज के मुख्य भाग है लेकिन प्रिवेंटिव आंकोलाजी भी बडा काम है जिसमें हम संस्थान में शुरू करेंगे इस तरह सभी तरीकों से इलाज की सुविधा देश के किसी भी अस्पताल में नहीं है। 

पीजीआइ तय करेगा किडनी की खराबी में हारमोन थिरेपी की भूमिका

पीजीआइ तय करेगा किडनी की खराबी में हारमोन थिरेपी की भूमिका
सीकेडी के 20 से 30 फीसदी मरीजों में बढ़ा रहता है टीएसएच हारमोन
आईसीएमआर ने प्रो. नरायन प्रसाद के शोध योजना को दी सहमति


संजय गांधी पीजीआइ के नेफ्रोलाजी विभाग के प्रो. नरायन प्रसाद देश के अन्य संस्थानों के साथ मिल कर तय करने जा रहे है कि क्रानिक किडनी डिजीज से ग्रस्त लोगों में सब क्लीनिकल हाइपोथारडिज्म की दशा में हारमोनल थिरेपी की कितनी भूमिका है। प्रो. नरायन का मानना है कि टीएसएच हारमोन का स्तर सामान्य रहने पर किडनी से फिल्टरेशन अच्छा होता है । इसी आधार पर पूरी योजना तैयार कर प्रोजेक्ट इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च को भेजा जिसे स्वीकार कर लिया गया है। इस प्रोजेक्ट के तहत कुल पांच सौ किडनी खराबी के ऐसे मरीज जिनमें सब क्लीनिकल हाइपोथायरडिज्म की परेशआनी है उनमें शोध होगा। इस शोध में बनारस हिंदु विवि वाराणसी, पीजीआई कालेज कोलकत्ता, पीजीआई चंडीगढ़ के विशेषज्ञों का सहयोग लिया जाएगा। शोध में कुल शामिल मरीजों में आधे को हारमोनल थिरेपी देकर देकर उनमें जीएफआर( ग्लूमर फिल्टरेशन रेट) देखा जाएगा। आधे मरीजों को प्लेसबो पर रखा जाएगा। प्रो. नरायन प्रसाद के मुताबिक यह शोध के मिले तथ्यों के आधार पर सब क्लीनिकल हाइपोथायरडिज्म से ग्रस्त क्रानिक किडनी डिजीज के मरीजों में इलाज की नई दिशा तय होगी। सीकेडी के 20 से 30 फीसदी मरीजों में सब क्लीनिकल हाइपोथायरडिज्म की परेशानी देखी गयी है।  

क्या है सब क्लीनिकल हाइपोथायरडिज्म
टीएसएच हारमोन का स्तर कई सीकेडी के मरीजों में पांच से दस के बीच होता है ऐसी स्थित को सब क्लीनिकल हाइपोथायरडिज्म कहते है। इस स्थित में सीकेडी के मरीजों हारमोन थिरेपी( एलाक्ट्राक्सिन) में कई बार नहीं दिया जाता है। इस शोध से तय होगा कि इस स्थित में हारमोन थिरेपी देने से फायदा होता या नहीं। इससे इलाज की नई दिशा तय होगी। 

रविवार, 19 मई 2019

पीजीआइ में पड़ेंगे घुलनशील इंप्लांट

पीजीआइ में पड़ेंगे घुलनशील इंप्लांट


जागरण संवाददाता, लखनऊ: संजय गांधी पीजीआइ (एसजीपीजीआइ) में शरीर में स्वत: घुलने वाले इंप्लांट के इस्तेमाल से प्लास्टिक सर्जरी शुरू हो गई है। इससे मरीजों को इंप्लांट को दोबारा सर्जरी कर निकालने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
पीजीआइ के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के हेड प्रो. राजीव अग्रवाल ने बताया कि इंप्लांट को हड्डी जोड़ने, गैप भरने, शरीर के किसी भाग को ऊंचा करने आदि के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह इंप्लांट स्टील, टाइटेनियम और सिलिकॉन के बने होते हैं। स्टील के इंप्लांट वैसे तो सबसे किफायती होती हैं, लेकिन यह मोटे और भारी होते हैं।
हड्डी जोड़ने के लिए महज चार छेद: डॉ. अग्रवाल ने बताया कि 20 वर्षीय एक युवक के हाथ की हड्डी टूट गई थी। हाल में संस्थान में हुए इस तरह के पहले ऑपरेशन में युवक की हड्डी को जोड़ने के लिए महज चार छेद कर शरीर में स्वत: घुल जाने वाले इंप्लांट का इस्तेमाल कर सर्जरी की गई। ये इंप्लांट लगाने के लिए विशेष प्रकार के उपकरण आते हैं। इसमें प्लेट को गर्म कर मोल्ड कर लिया जाता है। इसके बाद उसमें डिल के जरिये होल किया जाता है, फिर इसमें चूड़ी बनाई जाती है। स्वत: अवशोषित होने वाले स्क्रू के जरिये इसे लगा दिया जाता है। सामान्य इंप्लांट में संक्रमण का डर, दर्द होना व उसके टूटने का खतरा रहता है। ये इंप्लांट शरीर में एक-दो वर्ष में पूरी तरह घुलकर होकर गायब हो जाते हैं। सर्जरी करने वाली टीम में डॉ. राजीव अग्रवाल, मुख्य सर्जन, डॉ. आरती अग्रवाल (एनेस्थेटिस्ट) शामिल थे।
ये हैं फायदे
’फै्रक्चर को जोड़ने में टाइटेनियम जितने ही मजबूत होते हैं हाथ की बोन के लिए होता है इस्तेमाल ’चेहरे के फ्रैक्चर के लिए सबसे अधिक मुफीद। एड़ी में भी कारगर ’इसे निकालने की जरूरत नहीं पड़ती है। इससे दूसरे ऑपरेशन का खर्च बच जाता है
ये हैं बाधाएं
’बड़ी हड्डियों जैसे जांघ और पैर के लिए उपयुक्त नहीं ’स्टील और टाइटेनियम के मुकाबले कीमत अधिक है। चार छेद वाली प्लेट व स्क्रू की कीमत 20 से 25 हजार रुपये आती है ’इंप्लांट प्रशिक्षित सर्जन द्वारा ही लगाया जा सकता है
अभी विदेश में ही इस्तेमाल होती थी ये तकनीक
मरीजों को मिलेगी राहत, इससे ऑपरेशन के बाद इंप्लांट को दोबारा सर्जरी कर निकालने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

पीजीआई में महिला के अण्डाशय से 11:50 किलो ट्यूमर निकालकर नया जीवन दिया

महिला के अण्डाशय से 11:50 किलो ट्यूमर निकालकर नया जीवन दिया
पेट में सूजन और भारी पन से जूझ रही थी महिला


जागरण संवाददाता। लखनऊ
संजय गांधी पीजीआई के डॉक्टरों ने सर्जरी कर बिहार की 50 वर्षीय महिला के अण्डाशय में 11:50 किलो के ट्यूमर को बाहर निकालकर उसे नया जीवन दिया। महिला पीजीआई के जनरल हास्पिटल की डॉ. अंजू रानी के पास पेट में सूजन और भारी पन लेकर पहुंची थी। 
जनरल हास्पिटल की डॉ. अंजू रानी बताती हैं कि महिला ने बिहार में काफी इलाज किया। फायदा न होने पर वह पीजीआई पहुंची।जांच में देखा कि महिला के अण्डाशय में काफी बड़ा ट्यूमर है। ट्यूमर इतना बड़ा था कि महिला के फेफड़े में दबाव पड़ रहा था। जिसकी वजह से महिला को तकलीफ थी। बुधवार को छह डॉक्टरों की टीम ने आपरेशन कर महिला का ट्यूमर बाहर निकाला। अब महिला स्वस्थ्य है। वह पोस्ट ऑप आईसीयू में भर्ती है।
जांच में पता चला कि महिला के 11:50 किलो का ट्यूमर है। महिला के दो बच्चे ऑपरेशन से हो चुके हैं। पुराने ऑपरेशन वाले हिस्से को खोला गया। उससे ट्यूमर को बाहर निकाला गया। उसके बाद बच्चेदानी और अण्डाशय को बाहर निकाल दिया गया। ट्यूमर में कैंसर की कोशिकाएं नहीं मिली हैं। 
ये थे टीम में डॉक्टर


पीजीआई के जनरल हॉस्पिटल की डॉ. अंजू रानी के नेतृत्व में महिला का ऑपरेशन किया गया। टीम में डॉ. दीपा कपूर, डॉ. शालिनी अग्रवाल व डॉ. प्रियंका सिंह के अलावा एनस्थीसिया विशेषज्ञ डॉ. आरती अग्रवाल और डॉ. आकांक्षा थी।

बुधवार, 8 मई 2019

पीजीआइ में आटो एंटीबाडी वर्कशाप-लंबे समय तक बुखार, जोड़ो में दर्द और शऱीर पर चकत्ते तो लें सलाह

पीजीआइ में आटो एंटीबाडी वर्कशाप

लंबे समय तक बुखार, जोड़ो में दर्द और शऱीर पर चकत्ते तो लें सलाह 
आटो इम्यून डिजीज पकड़ने के लिए पीजीआइ ने सिखायी तकनीक

पूरे भारत से 30 लोगों से सीखी तकनीक
जागरण संवाददाता। लखनऊ

संजय गांधी पीजीआइ के क्लीनिकल इम्यूनोलाजी विभाग ने चार दिवसीय आयो एंटी बाडी वर्कशाप के समापन के मौके पर विभाग के प्रमुख प्रो. आरएन मिश्रा एवं प्रो. अमिता अग्रवाल ने कहा कि आटो इम्यून डिजीज का सही समय पर सही उपचार कर नियंत्रित किया जा सकता है। इस वर्ग में सौ से अधिक बीमारियां आती है जिसमें एसएलई, पाली मायोसाइिटस, वेस्कुलाइिटस, रूमटायड अर्थराइिटस प्रमुख बीमारियां है। इन बीमारियों का पता सामान्य जांच से नहीं लगता है। इसके लिए विशेष जांच होती है जो संस्थान में स्थापित है । इस जांच तकनीक के विस्तार के लिए वर्कशाप का आयोजन किया गया जिसमें जिपमर पांडीचेरी, सीएमसी वेल्लौर, अमृता इंस्टीट्यूट कोच्ची, पीजीआइ चंडीगढ़ जैसे बजे संस्थान के डीएम , एमडी छात्र सीखने के लिए आए। बताया कि देश का पहला संस्थान पीजीआइ जहां पर क्लीनिकल इम्यूनोलाजी विभाग स्तापित हुआ इसलिए भारत का पहला संस्थान जहां जांच तककीनक स्थापित हुई । इस तकनीक का हम लगातार विस्तार कर रहे जिससे पूरे देश में इन बीमारियों को सही समय पर पकड़ कर इलाज संभव हो सके। विशेषज्ञों का कहना है कि एक हजार में से 10 से 15 आटोइम्यून डिजीजी के गिरफ्त में है। कार्यशाला में तकनीकि अधिकारी ललित मोगा, अम्बरीश कुमार, अभिषेक पाण्डेय, मु. रिजवान, अजीत कुमार, वैज्ञानिक डा. मोहित, डा. अंकिता, डा.शशिकांत ने इम्यूनो फ्लोरसेंस, वेस्टर्न बाल्ट, एलाइजा , पीसीआऱ जैसी विशेष तकनीक को प्रदर्शन किया। प्रतिभागियों को आन हैंड प्रैक्टिस भी कराया गया।  विशेषज्ञों ने बताया कि लंबे समय तक बुखार, शरीर के जोड़ो में दर्द और शऱीर पर चकत्ते हों तो विभाग में तुरंत सलाह लेने की जरूरत  है

केवल हाथ की सफाई से कम हो सकता है तीस फीसदी एंटी बायोटिक का खर्च

केवल हाथ की सफाई से कम हो सकता है तीस फीसदी एंटी बायोटिक का खर्च

सात से आठ हजार का बढ़ जाता है खर्च
घर में भी खाने से पहले हाथ को करें साफ
पीजीआइ में हैंड हाइजिन पर कार्यशाल और जागरूकता अभियान

जागरण संवाददाता। लखनऊ

अस्पताल में मरीजों के सीधे संपर्क में रहने वाले स्टाफ यदि मरीज को छूने से पहले हाथ साफ कर लें तो आस्पताल में भर्ती होने के बात होने वाली संक्रमण में तीस फीसदी की कमी लायी जा सकती है।
इससे मरीज में रोज होने वाले सात से आठ हजार के  एंटीबायोटिक के खर्च को कम किया जा सकता है। इसके आलावा इंफेक्शन के कारण अस्पताल में रूकने का भी खर्च कम किया जा सकता है।  यह जानकारी बुधवार को संजय गांधी पीजीआइ में हास्पिटल इंफेक्शन कंट्रोल सेल द्वारा आयोजित हैंड हाइिजन जागरूकता अभियान में अस्पताल प्रशासन विभाग के प्रमुख प्रो. राजेश हर्ष वर्धन ने देते हुए कहा  कि आज 50 फीसदी से कम पैरा मेडिकल स्टाफ हैंड हाइजिन प्रैक्टिस करते हैं। हम लोगों ने किडनी ट्रांसप्लांट यूनिट सहित अन्य विभाग में  सर्विलांस और जागरूकता अभियान चलाया तो देखा प्रैक्टिस 70 से 80 फीसदी तक हुई। मुख्य चिकित्सा अधीक्षख प्रो. अमित अग्रवाल के मुताबिक अस्पताल प्रबंधन विभाग को जागरूक करने के साथ ही हैंड हाइिजन के लिए सेनीटाइजर और सोप की उपलब्धता सुनिश्चित करना चाहिए। माइक्रोबायलोजी विभाग की डा. रिचा मिश्रा के मुताबिक काल्सट्रेडियम डिफसिल, मेथलसीन रसिस्टेंट स्ट्रेफलोकोकस आरियस , इंट्रो कोकस, न्यूमो कोकस , सुडोमोनाज का सबसे अधिक संक्रमण मरीज से मरीज में फैलता है। चिकित्सा अधीक्षक डा. एके भट्ट ने कहा कि काम के लोड के कारण कई बार हैंड हाइजिन प्रैक्टिस स्टाफ नहीं कर पाता है लेकिन इसे फालो करना चाहिए नहीं तो मरीज को नुकसान होगा। विशेषज्ञों ने कहा कि घर में भी बीमारी से बचने के लिए खाने से पहले हाथ को अच्छी तरह से साफ करना चाहिए।     


सेनीटाजर से हाथ को करें साफ

हाथ में ब्लड लगा है तो पहले सोप से हाथ साफ करना चाहिए नहीं तो मरीज को छूने से पहले सेनीटाइजर से हाथ साफ करना चाहिए। सेनीटाइजर हाथ में लगा कर हाथ को सुखा लेने से हाथ में लगे बैक्टीरिया मर जाते है।    

शुक्रवार, 3 मई 2019

पीजीआई आर्गन ट्रांसप्लांट को देगा है रफ्तार

पीजीआई आर्गन ट्रांसप्लांट को देगा है रफ्तार

अभी साल भर में 120 में किडनी ट्रांसप्लांट 240 करने की कोशिश शुरू

कुमार संजय। लखनऊ

संजय गांधी पीजीआई किडनी ट्रांसप्लाट को रफ्तार देने के लिए नए रीनल ट्रांसप्लांट सेंटर के स्थापना की शुरूआत की है। मुख्य चिकित्सा अधीक्षक प्रो. अमित अग्रवाल  ने बताया कि हमारे संस्थान में  किडनी ट्रांसप्लांट के लिए 1.5 साल की वेटिंग है।  नए रीनल ट्रांसप्लांट सेंटर बनने के बाद वेटिंग कम होगी। अभी सप्ताह में तीन से चार किडनी ट्रांसप्लांट हो रहा है नया सेंटर बनने के बाद सप्ताह में 10 से 15 ट्रांसप्लांट होगा। इसके लिए 180 बेड का रीनल ट्रांस प्लांट सेंटर स्थापित किया जा रहा है जिस पर उपकरण के अलावा अन्य संसाधन पर 150 करोड़ का खर्च आने का अनुमान है। इसका शिलान्यास हाल में ही मुख्यमंत्री ने किया था।
लिवर ट्रांसप्लांट के स्थापित हुआ सेंटर
संस्थान के निदेशक प्रो. राकेश कपूर ने बताया कि लिवर ट्रांसप्लांट सेंटर 120 बेड और पांच माडीयुलर ओटी से लैड स्थापित हो गया है। इसमें लगभग 110 करोड़ खर्च हुआ है।  इसमें रोज एक लिवर ट्रांसप्लांट संभव है । कोलिडो स्कोप जैसी तमाम अत्य़ाधुनिक उपकरणों से सेंटर को लैस किया जा रहा है जिससे लिवर के अास-पास नलिकाअों का पता लगाना अासान हो जाएगा। प्रो. कपूर ने बताया कि एक छत के नीचे बच्चों और बडे में लिवर की सभी तरह की बीमारी का इलाज संभव होगा। लिवर ट्रांसप्लांट  के पहले मरीज को इसके लिए तैयार करना पड़ता है यह सारी सुविधा होगी।  
चार साल बाद दोबारा कोशिश लेकिन फेल
ट्रांसप्लांट पूरी तरह बंद होने के चार साल बाद दोबारा नए सेंटर में 25 जनवरी को लिवर ट्रांसप्लांट एक बच्चे में किया गया दावा है कि ट्रांसप्लांट सफल रहा लेकिन इंफेक्शन के कारण बच्चे की मौत 25 फरवरी को हो गयी।