पीजीआइ में इंडियन सोसाइटी आफ गैस्ट्रोइंट्रोलाजी का सेमीनार
टीबी की दवा से प्रभावित लिवर बचाना होगा संभव
एटीटी लिवर ट्राक्सीसिटी से निपटने के लिए बनी गाइड लाइन
टीबी दवा खा रहे तो भूख न लगने उल्टी या मिचली की परेशानी पर हो जाएं सतर्क
टीबी से निपटने के लिए दी जाने वाली एटीटी( एंटी ट्यूबर कुलर) दवाओं से दस से 15 फीसदी लोगों का लिवर एंजाइम बढ़ जाता है। समय पर सही इलाज न मिलने पर कई बार लिवर फोल्योर की स्थित आ सकती है। लिवर फेल्योर से बचाने के साथ ही टीबी से निपटने के लिए गाइड लाइन पर संजय गांधी पीजीआइ में इंडियन सोसाइटी आफ गैस्ट्रोइंट्रोलाजी के वार्षिक अधिवेशन में चर्चा हुई। आयोजक प्रो.समीर महेंद्रा और प्रो. अभय वर्मा के मुताबिक लिवर एंजाइम एसजीओटी, एसजीपीटी यदि पांच गुना तक बढ़ जाए तो तुरंत एटीटी दवाएं बंद कर देना चाहिए। जब एंजाइम नार्मल हो जाए तो चारों दवाओं( रिफाम्पसिन, आइसोजनाज्ड, इथेमब्यूटाल, पायराजिनामाइड) में पहले एक दवा एक सप्ताह देने के बाद लिवर एंजाइम देखना चाहिए। एंजाइम नाम्रल है तो दूसरे दवा , तीसरी, और चौथी दवा एक सप्ताह के बाद एंजाइम पर नजर रखने के साथ शुरू करना चाहिए। जिस के कारण एंजाइम बढ़ रहा है उसे नहीं देना चाहिए उसकी जगह लिवोफ्लाक्सिन शुरू करना चाहिए। विशेषज्ञों ने कहा कि टीबी की दवा ले रहे मरीज को यदि भूख में कमी, मिचली, उल्टी की परेशानी हो रही है तो तुरंत लिवर फंक्शन टेस्ट कराना चाहिए।
क्रोंस के 90 फीसदी मरीजों मे चल जाती है एटीटी
प्रो. अभय वर्मा के मुताबिक आंत की टीबी और आटोइम्यून डिजीजी क्रोंस होने पर परेशानी एक सी होती है जिसके कारण क्रोंस के 90 फीसदी मरीज बिना जरूरत एटीटी खा कर आते है। टीबी की दवा शुरू करने से पहले पूरी तरह टीबी की पुष्टि बायोप्सी, सीटी स्कैन सहित अन्य जांच से होनी चाहिए। दोनों का इलाज पूरी तरह अलग है।
लिवर टाक्सीसिटी होने पर बढ़ जाता कोर्स
विशेषज्ञों ने बताया कि लिवर टाक्सीसिटी होने पर दवा का कोर्स बढ़ जाता है। आंत में टीबी होने पर नौ से 12 महीने और बोन में टीबी होने पर 1.5 साल, लंग में होने पर नौ महीने से अदिक दवा चलानी पड़ती है।
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