शुक्रवार, 1 मार्च 2019

पीजीआइ में दिमागी टीबी पर मंथन


रोशनी भी छीन सकता है दिमागी टीबी
एटीटी से काफी हद तक बचाना संभव



दिमागी टीबी को डाक्टरी भाषा में ट्यूबरकुलर मैनेनजाइटिस ( टीबीएम) कहते है टीबी का बैक्टीरिया दिमाग के खास हिस्से में जगह बना लेता है । धीरे -धीरे वहां पर चकत्ता बन जाता है। इससे दिमाग सूक्ष्म रक्त वाहिकाओं में रूकावट तक पैदा हो सकती है। विशेषज्ञों के मुताबिक टीबीएम का लक्षण कम लोगों में प्रगट होता है। देखा गया है कि सिर दर्द, उल्टी, आंख की रोशनी में कमी. प्रकाश से चिड़चिड़ा पन, अधिक उम्र में लोगों में एकाग्रता में कमी की परेशानी होतो न्यूरोलाजिस्ट से सलाह लेना चाहिए। बीमारी की पुष्टि के लिए एमआरआई, सीएफएस द्रव की जांच की जाती है। संजय गांधी पीजीआई में टीबीएम पर आयोजित अधिवेशन में न्यूरोलाजी विभाग प्रमुख प्रो. सुनील प्रधान ने बताया कि टीबी का सही समय पर पता लगना बहुत जरूरी है। एक बार दवा शुरू होने पर एक भी दिन दवा का नागा नहीं होना चाहिए। देखा गया है कि आरामा मिलते ही लोग दवा खाने में लापरवाही बरतने लगते हैं।  के पूर्व विभाग प्रमुख प्रो.यूके मिश्रा बताया कि सही समय पर एटीटी( एंटी ट्यूबर कुलर ट्रीटमेंट) देने से ऐसे मरीजों को काफी हद तक बचाया जा सकता है। 

सीएसएफ के परीक्षण से लगता है दिमागी टीबी का पता 

दिमागी टीबी पता करने के लिए रीढ़ की हड्डी( लंबर) से सीब्रोस्पाइनल(सीएसएफ) द्रव लिया जाता है। एक एमएल द्रव लेकर उसका परीक्षण किया जाता है। इसमें हाई प्रोटीन, कम ग्लूकोज और लिम्फोसाइट सेल की मात्रा अदिक होत है। कई एसिड फास्ट बैसिलाइ द्रव के स्मेयर में भी दिखते हैं। द्रव का कल्चर कराया जाता है जिसमें बैक्टीरिया ग्रो करता है।   

टीबी के तीन सौ मे से एक में टीबीएम की आशंका
प्राइमरी स्टेज पर टीबी के इलाज न होने पर तीन सौ लोगों में से एक में टीबीएम की आशंका रहती है। विशेषज्ञों का कहना है कि टीबी का बैक्टीरिया (माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस) का संक्रमण फेफड़े से रक्त प्रवाह के जरिए ही दिमाग में जाता है। संक्रमण होते ही टीबी की दवा चलने पर टीबीएम की आशंका कम हो जाती है।  


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