सोमवार, 9 अप्रैल 2018

बच्चों का जीवन देने के लिए तैयार हो रहे हैं जीवन दूत



बच्चों का जीवन देने के लिए तैयार हो रहे हैं जीवन दूत





पिडियाट्रिक आईसीयू के लिए पीजीआई तैयार करेगा विशेषज्ञ

सरकार ने सौंपा जिम्मा पहले बैच की ट्रेनिंग शुरू

गोरखपुर मेडिकल कालेज में बच्चों की मौत पर पीजीआई कमेटी के प्रस्ताव पर शुरू हुअा ट्रेनिंग 
जागरणसंवाददाता। लखनऊ
पूर्वाचंल के बच्चों को बचाने के लिए प्रदेश सरकार ने जीवन दूत तैयार करने का सिलसिला शुरू कर दिया है। जिलों में तैनात बाल रोग विशेषज्ञों को इलाज की नई तकनीक , बच्चों को बिगड़ती स्थित को नियंत्रित करने सहित कई जानकारी से लैस करने के लिए एडवांस पिडियाट्रिक केयर कोर्स शुरू किया है। इन्हे ट्रेंड का करने का जिम्मा संजय गांधी पीजीआई को सौंपा गया। इसी सिलसिले में पहला कोर्स शुरू हुअा जिसमें बच्चों में पेट की बीमारी सहित कई जनाकारी दी गयी। कोर्स को अायोजक संस्थान के अस्पताल प्रशासन विभाग के प्रो. राजेश हर्ष वर्धन ने बताया कि गोरखपुर मेडिकल कालेज में बच्चों की मौत होने पर सरकार ने एक कमेटी का गठन किया था जो वहां जाकर स्थित का अकलान कर सरकार को रिपोर्ट दी थी जिसमें प्रशिक्षण शामिल था। सरकार ने इस प्रस्ताव को मान कर हमें ट्रेंड करने का जिम्मा सौंपा जिसमें पूर्वाचल के जिलों में तौनात 48 बाल रोग विशेषज्ञों को चरण बद्ध तरीके से  पिडियाट्रिक आईसीयू ट्रेंड करना है ।  प्रो. हर्ष वर्धन ने बताया कि हमने देखा था कि  33 फीसदी अस्पताल में संसाधन है लेकिन जानकारी के अभाव में  उसका पूरा इस्तेमाल नहीं हो रहा है। इस प्रशिक्षण से संसाधन का पूरा इस्तेमाल संभव होगा। 33 फीसदी अस्पताल में संसाधन नहीं है जिसे पूरा सरकार को करना है। बाकी में मानीटरिंग की जरूरत है। ट्रेंड करने के लिए संस्थान बाल पेट रोग विशेषज्ञ, बाल सर्जन, न्यूरोलाजिस्ट, सीसीएम सहित कई विभाग के 15 विशेषज्ञों की टीम है जो कई पहलुअों पर जानकारी देगी। 


50 फीसदी लिवर फेल्योर से ग्रस्त बच्चे बिना इलाज अाते है पीजीआई
 
संस्थान के पिडियाट्रिक गैस्ट्रो इंट्रोलाजिस्ट प्रो. मोनिक सेन शर्मा ने बताया कि लेविर फेल्योर या पीलिया युक्त बच्चों को हायर सेंटर भेजने से पहले उन्हें ग्लूकोज देकर, सोयिडम की कमी पूरा कर, दौरा पडने से रोकने की दवा देने के साथ ही प्राइमरी ट्रीटमेंट देकर भेजना चाहिए लेकिन जानकारी के अाभाव में 50 फीसदी बच्चे बिना प्राइमरी ट्रीटमेंट के भेज दिए जाते है। 250 किमी दूर से अाने वाले बच्चे के पर्चे में बीमारी ग्रेड वन लिखी होती है लेकिन यहां अाते-अाते ग्रेड फोर की स्थित में अा जाती है। इसी तरह बिना दर्द अधिक मात्रा में खून की उल्टी होने पर बच्चे के पोर्टव वेन में रक्त स्राव की परेशानी की अाशंका रहती है एेसे बच्चों को हायर सेंटर भेजने से पहले अाक्ट्रिटाइड दवा देकर भेजना चाहिए। इसी तरह एक्यूट पैक्रिएटाइिटस होने पर फ्लूड चला कर भेजना चाहिए। बाल रोग विशेषज्ञ डा. पियाली भट्टाचार्य ने बताया कि बच्चे की अावाज और शक्ल से ही काफी हद तक बच्चे की स्थित का अनुमान लग जाता है। कहा कि बच्चे की स्थिति का मूल्याकन करने के साथ ही ट्रीटमेंट प्लान तय करना चाहिए इसे ट्राइएजिंग कहते है। नियोनेटल यूनिट के प्रमुख प्रो. गिऱीश गुप्ता ने कहा कि बच्चे  के परिजनों को बीमारी की स्थित के बार में सहानभूति पूर्वक विस्तार से बताएं।    

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