शुक्रवार, 27 अप्रैल 2018

एम्स में रिटायरमेंट अायु 65 तो पीजीआई में 70 क्यों- फैकल्टी फोरम



एम्स  में रिटायरमेंट अायु 65 तो पीजीआई में 70 क्यों- फैकल्टी फोरम

रिटारमेंट अायु बढाने के मामले पर एक मंच पर अाए पीजीआई और मेडिकल विवि के डाक्टर
एक प्रोफेसर की सेलरी में अाएंगे तीन असिस्टेंट प्रोफेसर होगा तीन गुना काम


संजय गांधी पीजीआई और मेडिकल विवि के डाक्टर रिटारमेंट की उम्र बढाए जाने के मामले पर एक मंच पर अा गए है। शुक्रवार को संस्थान के फैकल्टी फोरम की अाम सभा में मेडिकल विवि के टीचर एसोसिएशन का सचिव डा. संतोष कुमार. डा.हरिराम भी पहुंचे। अाम सभा संस्थान के 150 से अधिक डाक्टरों ने रिटारमेंट की उम्र बढाए पर विरोध जताया। सभा के प्रेस वार्ता में फैकल्टी फोरम के अधयक्ष प्रो. अशोक कुमार एवं सचिव प्रो.एसएस अंसारी, सदस्य डा.अमिताभ अार्या और मेडिकल विवि के पदाधिकारियो ने कहा कि संस्थान में एम्स दिल्ली के रूल लागू होते है। एम्स दिल्ली में फैकल्टी की रिटायरमेंट 65 साल ही है जब वहां पर 70 साल नहीं है तो यहां कैसे कर सकते हैं। एम्स के नियम पीजीआई में लागू होगा एेसा संस्थान के 1989 के एक्ट में लिखा है। रिटारमेंट अायु बढाए जाने से पांच साल के लिए नए डाक्टर की तैनाती रूक जाएगी। नए डाक्टर ही इमरजेंसी में काम करते हैं। प्रदेश की सबसे बडी समस्या इमरजेंसी में इलाज मिलना है। कहा कि एक प्रोफेसर की सेलरी लगभग तीन लाख है इतने सेलनी में तीन असिस्टेंट प्रोफेसर संस्थान को मिलेंगे जिससे तीन गुना अधिक काम होगा। प्रो. अशोक ने कहा कि नए डाक्टर शोध में रूचि रखते है उनके पास नए अाइडिया होता है। किसी भी संस्थान में शोध का एक खास बजट होता है । रिटारमेंट अायु बढाए जाने से बजट कम होता है। लाभ लेने के लिए संस्थान के चार संकाय सदस्य यह तथ्य दे रहे है कि डाक्टर अधिक संख्या में जा रहे है और कम अा रहे है यह लगत है। संस्थान से इस साल तीन डाक्टर रिटार होने वाले है तो  70 नए डाक्टर अा रहे हैं।

मुख्य सचिव से मिला फैकल्टी फोरम

संजय गांधी पीजीआई के फैकल्टी फोरम के पदाधिकारियों ने मुख्य सचिव राजीव कुमार से मुलाकाता कर रिटारमेंट अायु बढाए जाने के प्रस्ताव के वस्तु स्थित के बारे में जानकारी दे कर इसका विरोध  किया। कहा कि कुछ मंत्री और विधायकों को जरिए लाभ लेने वाले लोग गलत तथ्य देकर पत्र लिखवा रहे हैं। कहा कि हम लोग अब मुख्यमंत्री . चिकित्सा शिक्षा मंत्री और राज्यपाल से मिल कर रिटारमेंट की अायु बढाने का विरोध करेंगे। 

बुधवार, 18 अप्रैल 2018

पीजीआई संकाय सदस्यों का रिटायरमेंट 65 से बढ़ाकर 70 साल करने की तैयारी-फैकल्टी फोरम ने जताया एतराज

पीजीआई संकाय सदस्यों का रिटायरमेंट 65 से बढ़ाकर 70 साल करने की तैयारी



फैकल्टी फोरम ने  जताया एतराज
पुर्ननियुक्त के डॉक्टरों को नए मेडिकल कॉलेजों में तैनाती की मांग


संजय गांधी पीजीआई में संकाय सदस्यों की रिटारमेंट की  उम्र 65 से बढ़ाकर 70 साल किए जाने की सुगबुगाहट से बखेड़ा खड़ा हो गया है। संस्थान के संकाय सदस्यों के एक गुट ( जूनियर संकाय सदस्य)
 ने इसका विरोध शुरू कर दिया है।  डॉक्टरों का कहना पुर्ननियुक्ति की नई नीति बनाई जानी चाहिए। पुर्ननियुक्ति के बाद डॉक्टरों की तैनाती दूसरे मेडिकल कॉलेज में की जानी चाहिए। इससे दूसरे मेडिकल कॉलेज में विशेषज्ञों की कमी का संकट भी दूर होगा। इनकी विशेषज्ञता का लाभ दूर -दराज  इलाकों में लोगों को मिलेगा। संस्थान में वैसे भी संकाय सदस्यों की कमी नहीं है । 
पीजीआई में करीब 1000 बेड हैं। ज्यादातर बेड भरे रहते हैं। 225 से ज्यादा डॉक्टरों की फौज है। 500 से ज्यादा सीनियर रेजीडेंट हैं। ओपीडी में ढाई हजार से ज्यादा मरीज रोज आ रहे हैं। संस्थान में डॉक्टरों की फौज है। इसके बावजूद डॉक्टरों की रिटारमेंट की उम्र बढ़ाने की तैयारी है। इसको लेकर डॉक्टरों में जबरदस्त गुस्सा है। डॉक्टरों का कहना है कि रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाना गलत है। इससे नए डॉक्टरों को नौकरी मिलने की उम्मीद कम हो जाएगी। वहीं उम्र अधिक होने की वजह से वह मरीजों की भरपूर सेवा भी नहीं कर पाते हैं। जबकि नई उम्र के डॉक्टर की भर्ती से मरीजों को फायदे हैं। नई उर्जा से डॉक्टर मरीजों की सेवा करते हैं।

पुर्ननियुक्ति डॉक्टरों की तैनाती हो दूसरे संस्थान में
पीजीआई डॉक्टरों का कहना है कि तमाम चिकित्सक रिटायरमेंट के बाद जोर-जुगाड़ के बूते पुर्ननियुक्ति हासिल कर रहे हैं। ऐसे डॉक्टरों का मकसद सिर्फ पीजीआई में बने रहने का है। सरकारी आवास समेत दूसरी सुविधाओं का लाभ भी पा जाते हैं। मोटी रकम भी मिलती है। आरोप हैं कि पुर्ननियुक्त डॉक्टर के साथ विभाग के जूनियरों को काम करने की खासी अड़चन झेलनी पड़ रही है। काम कम अडंगेबाजी अधिक हो रही है। पीजीआई फैकल्टी फोरम के सचिव व यूरोलॉजी विभाग के प्रो. एमएस अंसारी बताते हैं कि एक उम्र के बाद इंसान की सोचने और कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है। साथ ही जनरेशन गैप बढ़ता है। ऐसे में सुपर स्पेशयलिटी संस्थान के सीनियर डॉक्टरों को सेवा विस्तार देने के बजाए उन्हें रिटायर करना बेहतर होगा।

बुधवार, 11 अप्रैल 2018

जापानी इंसेफेलाइिटस से बचा सकती है गाय

गाय जेई से करेगी बचाव


एक्यूट इंसेफेलाइिटस के इलाज से पहले कारण की जांच है जरूरी 


जागरणसंवाददाता। लखनऊ

गौ सेवा से अाप अपने और अपने परिवार को जपानी इंसेफेलाइिटस से बचा सकते हैं। देखा गया है कि जहां पर गाय की संख्या अधिक होती है वहां पर जेई का प्रकोप कम होता है। संजय गांधी पीजीआई में अायोजित एडवांस पिडियाट्रिक केयर पर अायोजत वर्कशाप में न्यूरोलाजी विभाग के प्रमुख प्रो.सुनील प्रधान ने सलाह दिया कि गाय पालन को बढावा देकर काफी हद तक जेई के प्रकोप को कम कर सकता है। मच्छर पहले गाय को काटता है लेकिन गाय में जेई का वायरस नहीं होता है इसलिए मच्छर जब मनुष्य को काटता है तो उसमें जेई वायरस नहीं जाता है। जेई वायरस सूअर में रहता है जिससे मच्छर के जरिए मनुष्य में पहुंचता है।  सूअर पालन अाबादी से दूर होना चाहिए । प्रो. प्रधान ने कहा कि जेई से बचाव के लिए मच्छर दानी के इस्तेमाल को बढावा देने के साथ ही लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। विभाग के प्रो. संजीव झा, प्रो.वीके पालीवाल और प्रो.विनीता ने बताया कि एक्यूट इंसेफेलाइटिस के लक्षण वाले बच्चों का इलाज शुरू करने से पहले कारण का पता करना जरूरी है। जांच की सुविधा हर जिले में होनी चाहिए। इंसेफेलाइिटस वायरस के अलावा बैक्टीरिया से होते है। बैक्टीरिया के कारण होने वाले इंसेफेलाइटिस एंटीबायोटिक से काफी हद तक ठीक हो जाते है। वायरल इंसेफेलाइिटस से बचने के बाद बच्चों में विकलांगता अा जाती है जिसमें मांस पेशियों में कडा पन, कंपन सहित कई परेशानी को दवा और एक्सरसाइज से काफी हद तक अाराम दिलाया जा सकता है।

पेशेंट सेफ्टी के मानको का हो पालन

 प्रो. राजेश हर्ष वर्धन ने कहा कि अस्पताल में सामान्य इलाज या आईसीयू में अाने वाले मरीजों के लिए पेशेंट सेफ्टी के मानको का इस्तेमाल 66  फीसदी अस्पतालों में मानक के अनुरूप नहीं हो रहा है। कहा कि पेशेंट सेफ्टी में संक्रमण की रोक -थाम, अनजाने में गलत इलाज सहित कई मानक हैं।   

50 फीसदी में होता है बैक्टीरिया इंसेफेलाइिटस

विशेषज्ञों ने कहा कि एक्यूट इंसेफेलाइिस कई कारण से होता है। जेई के अलावा वेस्टनाइल वायरस, चांदीपुरा वायरस, नीफा वायरस भी इंसेफेलाइिटस का कारण होता है। इसके अलावा टीबी, स्क्रब टाइफी, लेप्टोस्पाइjरेसिस सहित अन्य बैक्टीरिया भी जिम्मेदार होते है। देखा गया है कि 30 फीसदी लोगों में स्क्रब टाइफी कारण साबित हो रहा है जिसमें केवल डाक्सी साइक्लीन से मरीज ठीक हो जाता है। देखा गया है कि 50 फीसदी लोगों में इंसेफेलाइिटस का कारण बैक्टीरिया होता है। विशेषज्ञों ने कहा कि इलाज की प्रक्रिया में मरीज की तीमारदार को भी शामिल करें । 

मंगलवार, 10 अप्रैल 2018

केवल नाम के है प्रदेश के 66 फीसदी अाईसीयू



 केवल नाम के है प्रदेश के 66 फीसदी अाईसीयू


मानको का नहीं हो रहा है पालन

मानक का पालन न होने के कारण इंफेक्शन ग्रस्त बना रहे है यह आईसीयू

जागरण संवाददाता। लखनऊ   


प्रदेश के 66 फीसदी अाईसीयू केवल नाम के है। बेड लगा है, वेंटीलेटर लगा है लेकिन न उसे चलाने वाले प्रशिक्षित लोग है और न ही मानको का पालन हो रहा है। यह आईसीयू लोगों को और बीमार बना रहे हैं। संजय गांधी पीजीआई के अस्पताल प्रशासन विभाग के प्रो. राजेश हर्षवर्धन और उनकी टीम ने अाईसीयू के 156 तय मानकों को अाधार पर 36 जिलों के सरकारी अाईसीयू पर शोध करने के बाद इस तथ्य का खुलासा किया है। प्रो. राजेश ने इस हकीकत से प्रदेश सरकार को भी रू-ब-रू करा दिया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अाईसीयू के एक बेड पर चार नर्सेज की तौनाती होनी चाहिए। राउंड द क्लाक डाक्टर होना चाहिए। अाईसीयू में संक्रमण की स्थित को कंट्रोल करने के लिए एयर सैंपलिंग सहित कई मानक है जिसको पूरा करके ही अच्छा अाईसीयू तैयार किया जा सकता है। बताया कि हास्पिटल एक्वायर्ड इंफेक्शन की दर 0.8 से 8 फीसदी के बीच ही होना चाहिए लेकिन देखा कि यह दर 35 फीसदी से ऊपर है यानि अाईसीयू भी लोगों को बीमार बना रहा है। संस्थान में अायोजित एडवांस पिडियाट्रिक केयर वर्कशाप में बताया कि सरकार ने अाईसीयू में सुधार के लिए काम करना शुरू कर दिया जिसमें ट्रेनिंग एक मुख्य मुद्दा था जो शुरू हो चुका है । 

सीपीआऱ से बच सकती है 50 सकती है जान
संस्थान के निश्चेतना विभाग के प्रो. अऩिल अग्रवाल एवं प्रो. संजय धीराज ने बाल रोग विशेषज्ञों को प्रशिक्षण में बताया कि  सही कार्डियो पल्मोनरी रीसक्सऩ(सीपीअाऱ) से हदय के काम न करने पर भी 50 फीसदी लोगों के दिल को दोबारा कार्य लिया जा सकता है। सीपीअाऱ के तीन लोगों की टीम होनी चाहिए जिसमें एक सांस दे, दूसरा चेस्ट को कंप्रेश करें और तीसरा व्यक्ति डी फ्रेबीलेटर से शांक दे । कहा कि दिल के काम न करने पर 80 फीसदी लोगों को सीपीआऱ नहीं मिलता है इनमें से 80 फीसदी लोगों को घर में दिल का दौरा पड़ता है इसलिए घर वालों को भी सीपीआर अाना चाहिए।  

सोमवार, 9 अप्रैल 2018

बच्चों का जीवन देने के लिए तैयार हो रहे हैं जीवन दूत



बच्चों का जीवन देने के लिए तैयार हो रहे हैं जीवन दूत





पिडियाट्रिक आईसीयू के लिए पीजीआई तैयार करेगा विशेषज्ञ

सरकार ने सौंपा जिम्मा पहले बैच की ट्रेनिंग शुरू

गोरखपुर मेडिकल कालेज में बच्चों की मौत पर पीजीआई कमेटी के प्रस्ताव पर शुरू हुअा ट्रेनिंग 
जागरणसंवाददाता। लखनऊ
पूर्वाचंल के बच्चों को बचाने के लिए प्रदेश सरकार ने जीवन दूत तैयार करने का सिलसिला शुरू कर दिया है। जिलों में तैनात बाल रोग विशेषज्ञों को इलाज की नई तकनीक , बच्चों को बिगड़ती स्थित को नियंत्रित करने सहित कई जानकारी से लैस करने के लिए एडवांस पिडियाट्रिक केयर कोर्स शुरू किया है। इन्हे ट्रेंड का करने का जिम्मा संजय गांधी पीजीआई को सौंपा गया। इसी सिलसिले में पहला कोर्स शुरू हुअा जिसमें बच्चों में पेट की बीमारी सहित कई जनाकारी दी गयी। कोर्स को अायोजक संस्थान के अस्पताल प्रशासन विभाग के प्रो. राजेश हर्ष वर्धन ने बताया कि गोरखपुर मेडिकल कालेज में बच्चों की मौत होने पर सरकार ने एक कमेटी का गठन किया था जो वहां जाकर स्थित का अकलान कर सरकार को रिपोर्ट दी थी जिसमें प्रशिक्षण शामिल था। सरकार ने इस प्रस्ताव को मान कर हमें ट्रेंड करने का जिम्मा सौंपा जिसमें पूर्वाचल के जिलों में तौनात 48 बाल रोग विशेषज्ञों को चरण बद्ध तरीके से  पिडियाट्रिक आईसीयू ट्रेंड करना है ।  प्रो. हर्ष वर्धन ने बताया कि हमने देखा था कि  33 फीसदी अस्पताल में संसाधन है लेकिन जानकारी के अभाव में  उसका पूरा इस्तेमाल नहीं हो रहा है। इस प्रशिक्षण से संसाधन का पूरा इस्तेमाल संभव होगा। 33 फीसदी अस्पताल में संसाधन नहीं है जिसे पूरा सरकार को करना है। बाकी में मानीटरिंग की जरूरत है। ट्रेंड करने के लिए संस्थान बाल पेट रोग विशेषज्ञ, बाल सर्जन, न्यूरोलाजिस्ट, सीसीएम सहित कई विभाग के 15 विशेषज्ञों की टीम है जो कई पहलुअों पर जानकारी देगी। 


50 फीसदी लिवर फेल्योर से ग्रस्त बच्चे बिना इलाज अाते है पीजीआई
 
संस्थान के पिडियाट्रिक गैस्ट्रो इंट्रोलाजिस्ट प्रो. मोनिक सेन शर्मा ने बताया कि लेविर फेल्योर या पीलिया युक्त बच्चों को हायर सेंटर भेजने से पहले उन्हें ग्लूकोज देकर, सोयिडम की कमी पूरा कर, दौरा पडने से रोकने की दवा देने के साथ ही प्राइमरी ट्रीटमेंट देकर भेजना चाहिए लेकिन जानकारी के अाभाव में 50 फीसदी बच्चे बिना प्राइमरी ट्रीटमेंट के भेज दिए जाते है। 250 किमी दूर से अाने वाले बच्चे के पर्चे में बीमारी ग्रेड वन लिखी होती है लेकिन यहां अाते-अाते ग्रेड फोर की स्थित में अा जाती है। इसी तरह बिना दर्द अधिक मात्रा में खून की उल्टी होने पर बच्चे के पोर्टव वेन में रक्त स्राव की परेशानी की अाशंका रहती है एेसे बच्चों को हायर सेंटर भेजने से पहले अाक्ट्रिटाइड दवा देकर भेजना चाहिए। इसी तरह एक्यूट पैक्रिएटाइिटस होने पर फ्लूड चला कर भेजना चाहिए। बाल रोग विशेषज्ञ डा. पियाली भट्टाचार्य ने बताया कि बच्चे की अावाज और शक्ल से ही काफी हद तक बच्चे की स्थित का अनुमान लग जाता है। कहा कि बच्चे की स्थिति का मूल्याकन करने के साथ ही ट्रीटमेंट प्लान तय करना चाहिए इसे ट्राइएजिंग कहते है। नियोनेटल यूनिट के प्रमुख प्रो. गिऱीश गुप्ता ने कहा कि बच्चे  के परिजनों को बीमारी की स्थित के बार में सहानभूति पूर्वक विस्तार से बताएं।    

मंगलवार, 3 अप्रैल 2018

खुद कैंसर से जंग जीत 86 की उम्र में बढा है कैंसर ग्रस्त का हौसला



खुद कैंसर से जंग जीत 86 की उम्र में बढा है कैंसर ग्रस्त का  हौसला

जज्बे के लिए राज्यपाल ने किया अाज सम्मानित


कुमार संजय। लखनऊ

खुद कैंसर पर विजय हासिल करने के बाद रोज अाठ से दस लोगों को कैंसर से निपटने का हौसला बढा रहे हैं। यह है 86 वर्षीय डा. वाई सी अग्रवाल जो जेके कैंसर इंस्टीट्यूट 1990 से रिटायर हैं। इनके जज्बे को देखते हुए राज्यपाल श्री राम नाइक ने  इन्हें सोमवार को  सम्मानित किया। डा. अग्रवाल के मुताबिक 2005 में उन्हें रेक्टम कैंसर ( मल द्वार ) हुअा जांच करायी तो पता चला कि कैंसर लिवर तक फैल चुका है। दूसरे डाक्टर ने भी बताया कि जिंदगी 6 महीने है लेकिन हिम्मत न हारते हुए संजय गांधी पीजीआई के गैस्ट्रो सर्जरी विभाग में सलाह लिया जहां पर जांच के बाद रेक्टम कैंसर की सर्जरी की गयी । सर्जरी के पाच दिन बाद ही अस्पताल से छुट्टी मिल गयी। कैंसर लिवर में भी इसमें सर्जरी संभव नहीं थी इस लिए विशेषज्ञों ने इसके लिए रेडियोथिरेपी की सलाह दी। डा. अग्रवाल ने तीन रेडियोथिरेपी करायी जिसके बाद वह बिल्कुल फिट है। कैंसर से पहले भी सेवा कर रहे थे कैंसर से  उबरने के बाद भी   लखनऊ में भी एक कैंसर सेंटर पर वह  मरीजों की सेवा में लगे हैं।  यहां पर रोज कैंसर के साथ अाने वाले मरीजों की काउंसलिंग कर उनका मनोबल बढ़ाते है जिससे तमाम मरीज कैंसर से जंग जीत भी रहे हैं। डा. अग्रवाल कहते है कि जिंदगी मे उतार -चढाव अाता रहता है बस हिम्मत के साथ मुकाबला करने की जरूरत है। 

लडकियों की शिक्षित बनाने के पक्षधर रहे है डा. अग्रवाल

डा. अग्रवाल की तीन लड़किया है। इन्होंने तीनो लड़कियों को अच्छी शिक्षा दी जिसकी देन है कि इनकी एक लड़की डाक्टर, एक सीए और एक लड़की अार्टीटेक्ट हैं। डा. अग्रवाल कहते है कि लड़के और लड़की में कोई अंतर नही है यह सोच तभी विकिसत होगी जब लोगों के पास शिक्षा होगी।  

रविवार, 1 अप्रैल 2018

वाफ्ट ने अासान कर दिया फेस्चुला का इलाज --- 30 से 40 फीसदी लोगों में दोबारा फेस्चुला की अाशंका

वाफ्ट ने अासान कर दिया फेस्चुला का इलाज

 30 से 40 फीसदी लोगों में दोबारा फेस्चुला की अाशंका


 जागरणसंवाददाता। लखनऊ
वीडियो अस्टिटेड फेस्चुला सर्जरी टेक्नीक ( वाफ्ट) तकनीक से फेस्चुला ( भंगंदर) का इलाज काफी हद तक अासान हो गया है। इस तकनीक में दूरबीन से मल द्वार के अंदर जाकर जहां छेद होता है इस रास्ते को साफ कर बंद करते हैं। इससे कितने कहां छेद है इसका पता भी पता काफी हद कर लग जाता है। इस तकनीक का सजीव प्रदर्शन शुक्रवार को संजय गांधी पीजीआई में गैस्ट्रो सर्जरी वीक में किया गया। संस्थान के गैस्ट्रो सर्जन प्रो. अशोक कुमारप्रो. अशोक कुमार दितीय और प्रो. सुप्रिया शर्मा ने बताया कि फेस्चुला में एक बार सर्जरी होने के बाद भी 30 से 40 फीसदी लोगों में दोबारा होने की अाशंका रहती है इसलिए इन लोगों को लगातार फालोइप पर रहना चाहिए। विशेषज्ञों ने बताया कि फेस्चुला की सर्जरी से पहले कहां पर किस स्थित में फेस्चुला इनकी एनाटमी जानना बहुत जरूरी है जिसके लिए एमअारअाई,  इंडो रेक्टल अंट्रासाउंड  कराना चाहिए। अंदाजे से सर्जरी करने पर मल पर नियंत्रण रखने वाले स्फिंटर क्षति ग्रस्त हो जाता है जिसके कारण नियंत्रण खत्म हो जाता है । यह स्थित काफी परेशानी वाली होती है। 

हाई ग्रेड फेस्चुला का इलाज कठिन

संस्थान के गैस्ट्रो सर्जन प्रो. अशोक कुमार द्तीय ने बताया कि फेस्चुला दो तरह का होता है। लो फेस्चुला में मल द्वार के अलावा अन्य छेद या रास्ता डेंटट लाइन के नीचे रहता है जिसमें सर्जरी अासान होती है लेकिन हाई फेस्चुला में डेंटड लाइन के ऊपर छेद होने पर सर्जरी में काफी सावधानी बरतनी होती है। सर्जरी के बाद घाव को अाराम नहीं मिलता क्योंकि मल त्याग करना ही होता है। एेसे में इंफेक्शन की अाशंका रहती है ।


लैट्रिन को कभी न रोकें
प्रो. अशोक कुमार द्तीय ने बताया कि जब लैट्रिन लगे तुरंत त्याग करना चाहिए कई बार लोग रोक लेते है जिसके कारण मद द्वार के अास -पास स्थित ग्लैंड में सूजन और इंफेक्शन के कारण छेद हो जाता है। इसके अलावा यह भी कारण साबित होता है 
गुदामार्ग के पास फोड़े होना
गुदामार्ग का अस्वच्छ रहना।
-पुरानी कव्ज।
-बैक्टीरियल इन्फेक्शन के कारण।
-एनोरेक्टल कैंसर से।
-गुदा में खुजली होने या किसी और कारण से गुदा में घाव का हो जाना।
-ज्यादा समय तक किसी सख्त या ठंडी जगह पर बैठना।
-इसके अलावा यह रोग बूढ़े लोगो में गुदा में रक्तप्रवाह के घटने से हो सकता हैं।
  

यह परेशानी तो कराएं जांच 
-बार-बार गुदा के पास फोड़े का निर्माण होता
-मवाद का स्राव होना
-मल त्याग करते समय दर्द होना
-मलद्वार से खून का स्राव होना
-मलद्वार के आसपास जलन होना
-मलद्वार के आसपास सूजन
-मलद्वार के आसपास दर्द
-खूनी या दुर्गंधयुक्त स्राव निकलना
-थकान महसूस होना
-इन्फेक्शन (संक्रमण) के कारण बुखार होना और ठंड लगना

बचने के लिए कब्ज से बचें

बचाव के लिए  मलत्याग करते समय ज़ोर लगाने से बचनाकब्ज़ तथा डायरिया से बचें।  उच्च रेशेदार भोजन तथा पर्याप्त तरल को पीना या रेशेदार पूरकों को लेना तथा पर्याप्त व्यायाम करें। मल त्याग   के प्रयास में कम समय खर्च करना।  शौच के समय कुछ पढ़ने से बचें।  अधिक वज़न वाले लोगों के लिए वजन कम करें। 

पीजीआई तैयार कर रहा है विशेषज्ञ 

प्रो. अशोक कुमार ने बताया कि संस्थान में गैस्ट्रो सर्जरी के जटिल मामलों के काफी लोड पहले से हैं। इसी लिए गोरखपुर,बरेलीप्रतापगढ़ सीतापुर जैसे प्रदेश के जिलों के सर्जन को फेस्चुलापाइल्स की सर्जरी के लिए ट्रेनिंग दे रहे है इससे लोगों को अपने घर के पास सर्जरी की अच्छी सुविधा मिलेगी। हम लोग पाइल्स की सर्जरी अभी कर रहे है लेकिन फेस्चुला की केवल जटिल सर्जरी ही कर रहे हैं।