शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018

अब बिना चीरा -टांका संभव है पीजीाई में गर्भाशय के फाब्रायड से निजात



अब बिना चीरा -टांका संभव है पीजीाई में  गर्भाशय के फाब्रायड से निजात

फायब्रायड ( ट्यूमर) की खून सप्लाई करने वाली नस  इटरवेशन रेडियोलाजिस्कल तकनीक किया जाता है बंद




गर्भाशय में फायब्रायड ( ट्यूमर)  की परेशानी तीस से चालिस वर्ष उम्र की 20 से 30 फीसदी महिलाअों में देखी जाती है। इसकी वजह से महिला गर्भधारण नहीं कर पाती है । कई बार गर्भधारण करने के बाद पाइब्रायड का अाकार बढ़ जाता है जिससे गर्भ में फल रहे शिशु में दबाव पडता है। इससे शिशु का विकास नहीं पाता है। इसके अलावा फायब्रायड की वजह से अनियमित रक्त स्राव की परेशानी होती है। इस परेशानी का इलाज सामान्य तौर पर सर्जरी कर किया जाता है। इसमें कई तरह के रिस्क होते है लेकिन अब इंटरवेशन रेडियोलाजिकल तकनीक से बिना किसी चीरा या टांका के ट्यूमर को खून सप्लाई करने वाली नस को क्वायल , पाली विनायल एल्कोहल से नस को बंद कर दिया जाता है। ट्यूमर को खून न मिलने पर कुछ दिनों में ट्यूमर सूख कर खत्म या छोटा हो जाता है। संजय गांधी पीजीआई में इंटरवेंशन रेडियोलाजिकल तकनीक पर अायोजित अधिवेशन में संस्थान के इंटरवेंशन रेडियोलाजिस्ट प्रो.शिव कुमार और आईएलबीएस दिल्ली के इंरटवेंशन रेडियोलाजिस्ट डा.यशवंत पट्टीदार ने बताया कि पहले गर्भाशय में ट्यूमर की स्थित और अाकार की जानकारी लेने है। इसके बाद देखते है कि किस से नस से इसे खून मिल रहा है।    अल्ट्रासाउंड से देखते हुए उस नस तक निडिल से पहुंच कर उसे बंद कर देते है। प्रो.शिव कुमार ने बताया कि विभाग में यह तकनीक स्थापित है जिससे यह परेशानी है है वह सीधे विभाग में संपर्क कर सकता है। 


एमअार हाइफू से फाब्रायड का और अच्छा होगा इलाज
प्रो.शिव कुमार ने बताया कि हम लोग फाब्रायड के और बेहतर इलाज के लिए एमअार हाई इंटेस्टी फोकस अल्ट्रासाउंड तकनीक स्थापित करने जा रहे है जिसमें उच्च तीव्रता के अल्ट्रा साउंड तरंग से सीधे ट्यूमर पर प्रहार करते है । इससे ट्यूमर नष्ट हो जाता है। यह तकनीक बिल्कुल सुरक्षित है क्योंकि कोई निडिल भी शरीर के अंदर नहीं जानी है जैसे अल्ट्रासाउंड होता है वैसे ही इलाज किया जाता है। 


क्रायोथिरेपी से नष्ट होगा कैंसर

विशेषज्ञों ने बताया कि लिवर, लंग, किडनी सहित शरीर के दूसरे अंगों में ट्यूमर होने पर अभी तक हम लोग इंटरवेंशन तकनीक से कैंसर को खत्म करने की दवा सीधे ट्यूमर में इंजेक्ट करते है। इसके अलावा रेडियोफ्रिक्वेंसी एबीलेशन तकनीक से ट्यूमर पर हाई करंट देकर नश्ट करते है।  अब हम लोग क्रायोथिरेपी तकनीक स्थापित करने जा रहे है जिसमें ट्यूमर तक पहुंच कर उसका तापमान माइनस 40 डिग्री सेल्यिस किया जाएगा। इस तापमान पर कैंसर सेल मर जाएगा। यह तकनीक अधिक सफल है। 


नहीं रूकेगी डायलिसस खुल जाएगा फेस्चुला

विशेषज्ञों ने बताया कि किडनी के खराबी वाले मरीजों को बार-बार डायलसिस करानी होती है। इसके लिए फेस्चुला बनाया जाता है। फेस्तुला बनने के एक से दो साल में 70 फीसदी से अधिक लोगों में यह बंद हो जाता है या नस पतली हो जाती है एेसे में दोबारा फेस्चुला बनना काफी जटिल होता है। हम लोग इंटरवेंंशन तकनीक से बंद नस को खोल देते है साथ ही वैलूनिंग कर देते है जिससे डायलसिस चलती रहती है। 

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