रविवार, 25 फ़रवरी 2018

स्वछ्ता के साथ लोगों को स्वस्थ्य रखने के लिए जांच शिविर



स्वछ्ता के साथ लोगों को स्वस्थ्य रखने के लिए जांच शिविर

सामाजिक सरोकार मंच के अजय कुमार सिंह ने चला रखा है अभियान

  


स्वच्छ वातावरण प्रोत्साहन समिति इब्राहिम पुर  दो और सामाजिक सरोकार मंच सामान्य लोगों के स्वास्थ्य की जांच करने के लिए गोल मार्केट  साउथ सिटी एल्डिको में शिविर का अायोजन किया गया शिविर में 200 से अधिक लोगों का परीक्षण किया गयाा संजय गांधी पीजीआई के ईएनटी स्पेशलिस्ट प्रोफेसर अमित केसरी के अलावा क्लीनिकल इम्यूनोलॉजी विभाग स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर आंचल केसरी के अलावा कई अन्य विशेषज्ञों ने परीक्षण किया । इस मौके पर निशुल्क सामान्य जांच के अलावा कम दर पर विशेष जांच भी की गई। सिमित के अध्यक्ष एवं ट्रेंड नर्सेज एसोसिएशन के सदस्य  अजय कुमार सिंह और सामाजिक सरोकार मंच के संयोजक डा. पीके गुप्ता ने बताया कि दस से पंद्रह लोगों को पता ही नहीं होता कि उन्हे कोई बीमारी है।   उद्घाटन प्रशांत भाटिया एवं रीशू भाटिया ने किया।

प्री एनेस्थेसिया चेक अप में तीस फीसदी में पकड़ अाती है बीमारी- सर्जरी के लिए जाएं तो बताएं पहले से कौन सी खा रहे हैं दवा



पीजीआई में पीजी एनेस्थेसिया रिफ्रेशर कोर्स



प्री एनेस्थेसिया चेक अप में तीस फीसदी में पकड़ अाती है बीमारी

प्री एनेस्थेसिया चेक अप से एनेस्थेसिया विशेषज्ञ पहले से होता है एलर्ट 

बिना चेक अप सर्जरी से 20  फीसदी में हो सकती है गंभीर परेशानी

जागरणसंवाददाता। लखनऊ      

सर्जरी से पहले प्री एनेस्थेसिया चेक अप में तीस फीसदी लोगों में सालों से शरीर में घर बना चुकी बीमारी पकड़ में अाती है  लेकिन प्री एनेस्थेसिया चेक अप तमाम अस्पतालों में नहीं होता है। इससे सर्जरी के दौरान एनेस्थेसिया के कारण परेशानी की अाशंका बढ़ जाती है। कई बार है यह काफी गंभीर होती है। संजय गांधी पीजीआई में पीजी एनेस्थेसिया रिफ्रेशर कोर्स में विशेषज्ञों ने कहा कि मरीज के तीमार दार भी  सर्जरी से पहले प्री एनेस्थेसिया चेक अप की मांग करें। एनेस्थेसिया के डाक्टर भी जहां काम कर रहे है वहां सिस्टम विकसित करें। कोर्स के अायोजक प्रो.संदीप साहू ने बताया कि 45 साल की अायु की बाद सर्जरी के लिए अाने वाले 30 फीसदी से अधिक लोगों में हाई बीपी, डायबटीज, अस्थमा, फैटी लिवर डिजीज, लिपिड प्रोफाइल में गड़बडी, एनीमिया सहित कई परेशानी मिलती है। इन परेशानियों का इलाज करने के बाद सर्जरी प्लान करना चाहिए। सर्जरी की इमरजेंसी है तो एनेस्थेसिया विशेषज्ञ को उस परेशानी के साथ एनेस्थेसिया देने की तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए। इससे जटिलता की अाशंका कम हो जाती है। प्रो.साहू ने कहा कि प्री एनेस्थेसिया चेक अप न होने से सीधे सर्जरी करने पर सात से 20 फीसदी में गंभीरता जटिलता की अाशंका रहती है। 


दिल के मरीजों में सर्जरी से पहले जाने दिल की परेशानी की गंभीरता
 
एसजीपीजीआर्ई के प्रो. प्रभात तिवारी ने कहा कि दिल की मरीजों में दिल की बीमारी कितनी है इसका पता लगाने के बाद सर्जरी के लिए एनेस्थेसिया प्लान करना चाहिए। मरीज का ईसीजी, इको जांच कर बीमारी का गंभीरता देेखते है। एनेस्थेसिया की दवाएं और मात्रा बीमारी के अनुसार तय करनी चाहिए। कहा कि सर्जरी के दौरान मरीज में हार्ट एटैक भी पड़ सकता है इससे निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए। मरीज में पहले से दिल की परेशानी से बचाने के लिए दवाएं देनी चाहिए।   


मोटापा ग्रस्त मरीजों में शरीर के अंगों पर अधिक रहता है लोड

एम्स दिल्ली के प्रो.लोकेश कश्यप ने कहा कि मोटापे से ग्रस्त लोगों में उनके दिल, लिवर और फेफडे को अधिक काम करना पड़ता है जिससे वह जल्दी जबाव देने लगता है। एेसे लोगों के शऱीर के अंगों पर पहले से अदिक लोड़ है एेसे में इनकी सर्जरी के दौरान बेहोशी देने के लिए दवा और डोज तय करने में अधिक सावधानी की जरूरत है। दवा की मात्रा शरीर के भार के अनुसार दी जाती है एेसे में अगों पर और अधिक लोड पड़ने पर फेल्योर की स्थित अा सकती है। 


सर्जरी से पहले डाक्टर को बताएं कौन सी चल रही है दवा

किसी भी सर्जरी के लिए जाने से पहले अपने डाक्टर को जरूर बताएं कौन -कौन सी दवाएं चल रही है। सर्जरी से पहले खून पतला करने की दवाएं बंद करते है। बीटा ब्लाक जैसी दवाएं नहीं बंद की जाती है। डायबटीज है तो खाने की गोली बंद कर इंसुलिन पर लेते है। एनेस्थेसिस्ट को पहले से चल रही दवाओं के बारे में जानकारी नहीं है तो वह अपने हिसाब से दवाएं तय करते है जिसमें रिस्क हो सकता है। 

शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018

अब बिना चीरा -टांका संभव है पीजीाई में गर्भाशय के फाब्रायड से निजात



अब बिना चीरा -टांका संभव है पीजीाई में  गर्भाशय के फाब्रायड से निजात

फायब्रायड ( ट्यूमर) की खून सप्लाई करने वाली नस  इटरवेशन रेडियोलाजिस्कल तकनीक किया जाता है बंद




गर्भाशय में फायब्रायड ( ट्यूमर)  की परेशानी तीस से चालिस वर्ष उम्र की 20 से 30 फीसदी महिलाअों में देखी जाती है। इसकी वजह से महिला गर्भधारण नहीं कर पाती है । कई बार गर्भधारण करने के बाद पाइब्रायड का अाकार बढ़ जाता है जिससे गर्भ में फल रहे शिशु में दबाव पडता है। इससे शिशु का विकास नहीं पाता है। इसके अलावा फायब्रायड की वजह से अनियमित रक्त स्राव की परेशानी होती है। इस परेशानी का इलाज सामान्य तौर पर सर्जरी कर किया जाता है। इसमें कई तरह के रिस्क होते है लेकिन अब इंटरवेशन रेडियोलाजिकल तकनीक से बिना किसी चीरा या टांका के ट्यूमर को खून सप्लाई करने वाली नस को क्वायल , पाली विनायल एल्कोहल से नस को बंद कर दिया जाता है। ट्यूमर को खून न मिलने पर कुछ दिनों में ट्यूमर सूख कर खत्म या छोटा हो जाता है। संजय गांधी पीजीआई में इंटरवेंशन रेडियोलाजिकल तकनीक पर अायोजित अधिवेशन में संस्थान के इंटरवेंशन रेडियोलाजिस्ट प्रो.शिव कुमार और आईएलबीएस दिल्ली के इंरटवेंशन रेडियोलाजिस्ट डा.यशवंत पट्टीदार ने बताया कि पहले गर्भाशय में ट्यूमर की स्थित और अाकार की जानकारी लेने है। इसके बाद देखते है कि किस से नस से इसे खून मिल रहा है।    अल्ट्रासाउंड से देखते हुए उस नस तक निडिल से पहुंच कर उसे बंद कर देते है। प्रो.शिव कुमार ने बताया कि विभाग में यह तकनीक स्थापित है जिससे यह परेशानी है है वह सीधे विभाग में संपर्क कर सकता है। 


एमअार हाइफू से फाब्रायड का और अच्छा होगा इलाज
प्रो.शिव कुमार ने बताया कि हम लोग फाब्रायड के और बेहतर इलाज के लिए एमअार हाई इंटेस्टी फोकस अल्ट्रासाउंड तकनीक स्थापित करने जा रहे है जिसमें उच्च तीव्रता के अल्ट्रा साउंड तरंग से सीधे ट्यूमर पर प्रहार करते है । इससे ट्यूमर नष्ट हो जाता है। यह तकनीक बिल्कुल सुरक्षित है क्योंकि कोई निडिल भी शरीर के अंदर नहीं जानी है जैसे अल्ट्रासाउंड होता है वैसे ही इलाज किया जाता है। 


क्रायोथिरेपी से नष्ट होगा कैंसर

विशेषज्ञों ने बताया कि लिवर, लंग, किडनी सहित शरीर के दूसरे अंगों में ट्यूमर होने पर अभी तक हम लोग इंटरवेंशन तकनीक से कैंसर को खत्म करने की दवा सीधे ट्यूमर में इंजेक्ट करते है। इसके अलावा रेडियोफ्रिक्वेंसी एबीलेशन तकनीक से ट्यूमर पर हाई करंट देकर नश्ट करते है।  अब हम लोग क्रायोथिरेपी तकनीक स्थापित करने जा रहे है जिसमें ट्यूमर तक पहुंच कर उसका तापमान माइनस 40 डिग्री सेल्यिस किया जाएगा। इस तापमान पर कैंसर सेल मर जाएगा। यह तकनीक अधिक सफल है। 


नहीं रूकेगी डायलिसस खुल जाएगा फेस्चुला

विशेषज्ञों ने बताया कि किडनी के खराबी वाले मरीजों को बार-बार डायलसिस करानी होती है। इसके लिए फेस्चुला बनाया जाता है। फेस्तुला बनने के एक से दो साल में 70 फीसदी से अधिक लोगों में यह बंद हो जाता है या नस पतली हो जाती है एेसे में दोबारा फेस्चुला बनना काफी जटिल होता है। हम लोग इंटरवेंंशन तकनीक से बंद नस को खोल देते है साथ ही वैलूनिंग कर देते है जिससे डायलसिस चलती रहती है। 

बुधवार, 14 फ़रवरी 2018

दिल ही नहीं पैर की रक्त वाहिका में होती है स्टंटिंग

दिल ही नहीं पैर की रक्त वाहिका में होती है स्टंटिंग

पेऱीफेरल अार्टरी डिजीज में इंटरवेंशन तकनीक से की जाती है वैलूनिंग


अभी तक यही पता था कि दिल की रक्त वाहिका में रूकावट होने पर उसमें स्टंट डालकर रक्त प्रवाह सामान्य किया जाता है अब पैर की रक्त मुख्य रक्त वाहिका में रूकावट होने पर वैलूनिंग और स्टंटिंग कर रक्त प्रवाह को सामान्य किया जाता है। संजय गांधी पीजीआई में सोसाइटी फार इंटरवेंशन रेडियोलाजी के अधिवेशन में अायोजक प्रो.शिव कुमार ने बताया कि  शरीर के निचले हिस्से पैर, पेलविस, जनांग में रक्त मुख्य रक्त वाहिका एरोटा और इलियक से पहुंचता है । उम्र बढ़ने के साथ इस रक्त वाहिका में रूकावट अा जाती है जिसके कारण इन अंगों में रक्त संचार रूक जाता है या कम हो जाता है जिसके कारण पैर में दर्द, पैर ठंडा, पहना , पैर में घाव, गैंगरीन की परेशानी होती है। जनांग में रक्त संचार कम होने के कारण नपुंसकता की स्थित तक अा जाती है। विशेषज्ञों ने बताया कि हम लोग केथेडर से जहां पर रूकावट होती है नस में  वहां पर पहुंच रूकावट को दूर कर वैलूनिंग करने के बाद स्टंट लगा देते है जिससे रक्त प्रवाह सामान्य हो जाता है। बताया कि   65 के बाद 12 से 20 फीसदी लोगों में पेरीफेरल अार्टरी डिजीज की परेशानी होती है।   

सूई से ब्रर्टीब्रा में बोन सीमेंट भर कर ठीक होगा फ्रैक्टर
 
सूई से ब्रर्टीब्रा( रीढ़ की हड्डी की कशेरूका) में बोन सीमेट भर कर इसके फ्रैक्टर को ठीक करना संभव हो गया है। इस तकनीक को ब्रर्टीब्रा प्लास्टी या केफैलोप्लास्टी कहा जाता है। उम्र बढ़ने के साथ हड्डी में कैल्शियम की कमी के कारण कशेरूका में फ्रैक्टर हो जाता है जिसके कारण रीढ़ की हड्डी में दर्द के कारण पीढ़ में दर्द, कमर सीधे न होने की परेशानी होती है । इंटरवेंशन तकनीक से जिस कशेरूका में फ्रैक्टर होता है वहां पर उसके अंदर निडिन से पहले होल बनाते है फिर उसके अंदर बोन सीमेंट भर देते है इसमें एक घंटे का समय लगता है और मरीज अोपेन सर्जरी से बच जाता है। लाइफ स्टाइन ठीक हो जाती है।

रविवार, 4 फ़रवरी 2018

पीजीआई में ब्रासकान-2018-- ट्यूमर का अाकार घटा कर बचाया जा सकता है स्तन

पीजीआई में ब्रासकान-2018

ट्यूमर का अाकार घटा कर बचाया जा सकता है स्तन

बढ़ रही है स्तन कैंसर के प्रति जागरूरकता
अब चालिस फीसदी महिलाएं स्तन कैंसर के शुरूअाती दौर में ले रही है विशेषज्ञ से सलाह
   

स्तन कैंसर के मामले में ट्यूमर के अाकार को दवा से छोटा करने के साथ एक्सिला की गांठ को निकाल कर स्तन को बचाया जा सकता है लेकिन यह तभी संभव है जब स्तन कैंसर के  मरीज विशेषज्ञ के पास शुरूअाती दौर में  पहुंचे। संजय गांधी पीजीआई में अायोजित सोसाइटी फार ब्रेस्ट एस्थेटिक एंड रीकांस्ट्रेक्टिव सर्जरी ब्रास कान 2018 में अर्ली ब्रेस्ट कैंसर को लेकर विशेषज्ञों ने चार्चा की है। संस्थान के इंडोक्राइनोलाजिस्ट प्रो. गौरव अग्रवाल, प्रो. ज्ञान चंद और प्लास्टिक सर्जन प्रो. अंकुर भटनागर ने बताया कि महिलाअों में स्तन कैंसर को लेकर जागरूकता अायी है पहले शुरूअाती दौर में 10 फीसदी से भी  महिलाएं विशेषज्ञ के पास पहुंचती थी लेकिन अब 40 फीसदी महिलाएं शुरूअाती दौर में पहुंच रही है लेकिन इलाज में अभी भ्रांति है कि कैंसर है तो पूरा स्तन ही निकाल दें। प्रो.ज्ञान चंद ने बताया कि शुरूअाती दौर में अाने पर हम लोग कीमोथिरेपी से गांठ के अाकारा को कम करते है इससे पूरा कैंसर युक्त ट्यूमर निकल जाता है। एक्सिला( कांख) में सेंनटेनियल ग्लैड बायोप्सी कर देख कैंसर की अाशंका देखते है यदि इसमें कैंसर है ग्लैड को निकाल देते है इससे दोबारा कैंसर की अाशंका बिल्कुल कम हो जाती है।इस तरीके हम लोग 60 फीसदी से अधिक स्तन कैंसर की महिलाअों के स्तन को बचा सकते है । 

नहीं है जीवन के अायु पर फर्क

प्रो.ज्ञान चंद का कहना है कि  स्तन कैंसर के इलाज में पूरा स्तन निकलाने और स्तन को बचाने दोनों इलाज की तकनीक में टोटल सर्वाइवल लगभग बराबर है। कहने का मतलब है कि स्तन कैंसर युक्त महिला का जीवन दस साल है दोनों तकनीक से इलाज में जीवन दस साल ही रहेगा। देखा गया है कि स्तन बचाने वाली सर्जरी में कुछ मामलों में लोकल रीकरेंश होता है जिसका इलाज कर दिया जाता है। 


पीठ और पेट की चर्बी से बनाते है स्तन

प्रो. अंकुर भटनागर ने बताया कि स्तन निकल जाने पर हम लोग पीठ की मांसपेशी ( लैटिमस डोरसाई) , पेट की चर्बी से स्तन बना देते है इसके अलावा जिन महिलाअों में केवल स्तन में ट्यूमर को निकाला जाता है वहां गडढे को स्तन की मांसपेशी से भर जाते है जिससे स्तन का अाकार खराब नहीं होता है। जिनमें यह संभव नहीं होता उनमें इंप्लांट लगाते हैं। अब तक पीजीआई में हम लोग 30 से अधिक महिलाअों में ब्रेस्ट रीकांस्ट्रेक्टिव सर्जरी कर चुके हैं। 

वहीं कराएं इलाज जहां हो सब सुविधा
विशेषज्ञों ने कहा कि ब्रेस्ट कैंसर का इलाज उसी सेंटर पर कराना चाहिए जहां पर मल्टी स्पेशिएल्टी हो जिससे इलाज की सफलता दर बढ़ती है और मरीज को दौड़ना नहीं पड़ता है।     स्तन कैंसर के इलाज के लिए मल्टी डिस्पेलेनरी विशेषज्ञता की जरूरत होती है जिसमें इंडो सर्जन ,प्लास्टिक , रेडियोथिरेपी, हिस्टोपैथोलाजिस्ट , रेडियोलाजिस्ट की अहम भूमिका है
 

गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018

पीजीआई में ब्रांसकान -2018 --- स्तन कैंसर के बाद भी नहीं रहेंगी अधूरी



पीजीआई में ब्रांसकान -2018 

स्तन कैंसर के बाद भी नहीं रहेंगी अधूरी 

बकरार रखी जा सकती है ब्रेस्ट की सुंदरता

ब्रेस्ट कैंसर की सर्जरी के दौरान ही होती है रीकांस्ट्रेक्टिव सर्जरी नहीं बढ़ता खर्च



स्तन कैंसर के इलाज  अब महिला अधूरी नहीं रहेगी।  स्तन निकलाने के बाद भी स्तन की सुंदरता को रीकंस्ट्रेक्टिव सर्जरी से बकरार रखा जा सकता है लेकिन  दस फीसदी से कम महिलाएं और उनके परिजन स्तन की सुंदरता बनाए रखने के लिए रीकंस्ट्रेक्टिव सर्जरी पर अमल करते है । इनका मानना होता है कि  सर्जरी में खर्चा बढ़ जाएगा।  विशेषज्ञों का कहना है कि  स्तन कैंसर की सर्जरी के दौरान ही यदि रीकंट्रेक्टिव सर्जरी की जाए तो इलाज के खर्च पर कोई असर नहीं पड़ता है । बस सर्जरी का समय एक से 1.5 घंटे बढ जाता है। स्तन कैंसर से जुडी तमाम  जनाकारी देने के लिए पहली बार संजय गांधी पीजीआई में सोसाइटी अाफ रीकांस्ट्रेक्टिव एंड एस्थेटिक(ब्रांसकांन 2018)  विशष कार्यशाला का अायोजन कर रहा है। संस्थान के इंडो सर्जरी विभाग के प्रो.गौरव अग्रवाल , प्लास्टिक सर्जरी विभाग के प्रो. अंकुर भटनागर और इंडो सर्जन प्रो.सबारत्नम ने बताया कि स्तन कैंसर के इलाज के लिए मल्टी डिस्पेलेनरी विशेषज्ञता की जरूरत होती है जिसमें इंडो सर्जन ,प्लास्टिक , रेडियोथिरेपी, हिस्टोपैथोलाजिस्ट , रेडियोलाजिस्ट की अहम भूमिका है इस एसोसिएशन के जरिए सभी को मंच पर लाया गया है। इस कार्यशाला में सभी विधाअों से जुडे लोगों के अलावा महिला रोग विशेषज्ञ, एमबीबीएस छात्रों को स्तन कैंसर के इलाज के बारे में जानकारी दी जाएगी। वर्कशाप में यूनिवर्सटी मलाया कुअालालम्पुर की प्रो.एमीरेटस चेंग हर चिप, सिंगापुर से माइकल हार्टमैन, अमेरिका से डा. पीटर कैरीडो सहित कई विशेषज्ञ जानकारी देने अा रहे हैं। 

पीठ और पेट की चर्बी से बनाते है स्तन

प्रो. अंकुर भटनागर ने बताया कि स्तन निकल जाने पर हम लोग पीठ की मांसपेशी ( लैटिमस डोरसाई) , पेट की चर्बी से स्तन बना देते है इसके अलावा जिन महिलाअों में केवल स्तन में ट्यूमर को निकाला जाता है वहां गडढे को स्तन की मांसपेशी से भर जाते है जिससे स्तन का अाकार खराब नहीं होता है। जिनमें यह संभव नहीं होता उनमें इंप्लांट लगाते हैं। अब तक पीजीआई में हम लोग 30 से अधिक महिलाअों में ब्रेस्ट रीकांस्ट्रेक्टिव सर्जरी कर चुके हैं। 

वहीं कराएं इलाज जहां हो सब सुविधा
विशेषज्ञों ने कहा कि ब्रेस्ट कैंसर का इलाज उसी सेंटर पर कराना चाहिए जहां पर मल्टी स्पेशिएल्टी हो जिससे इलाज की सफलता दर बढ़ती है और मरीज को दौड़ना नहीं पड़ता है।    

मनोवैज्ञानिक इलाज करने में नर्सेज की भूमिका अहम- अाशुतोष टंडन

मनोवैज्ञानिक इलाज करने में नर्सेज की भूमिका अहम- अाशुतोष टंडन


बदल रही नर्सेज की भूमिका

तकनीक अौर मानवता के बीच रखना होगा सामंजस्य





















संजय गांधी पीजीाई के  नर्सिग कालेज के दसवें स्थापना दिवस और अाठवें लैंप लाइटिंग सिरोमनी में वह बतौर मुख्य अतिथि अाशुतोष टंडन ने कहा चिकित्सा शिक्षा मंत्री अाशुतोष टंडन ने कहा कि मरीज के इलाज में दवा के अलावा मनोवैज्ञानिक इलाज की भूमिका काफी अहम है। मरीज बात -चीत और स्नेह से काफी संतुष्ट होता है । देखा गया है कि मरीज का मनोबल अच्छा है तो वह जल्दी ठीक होता है इस काम नर्सेज काफी अहम भूमिका निभा सकती है। कहा कि प्रदेश में जितने भी चिकित्सा शिक्षा संस्थान है उनमें एसजीपीजीआई का नाम सबसे ऊपर है यह गर्व की बात है। यहां के छात्र जहां भी जाए संस्थान नाम एेसे ही ऊंचा करते रहे ।  
   संस्थान के निदेशक प्रो.राकेश कपूर ने कहा कि मृदु भाषी बने। नर्सिग की पढाई कर रही छात्राअों के कहा कि वह अच्छी नर्स के साथ ही अच्छा इंसान बन कर यहां से निकलें। समय के साथ नर्सिग बदल रहा है अागे चल कर क्लीनिकल असिसटेंट के रूप में बायोप्सी,अल्ट्रासाउंड जैसे काम भी करने होंगे।  मुख्य चिकित्सा अधीक्षक ने कहा कि जंम अौर मृत्यु दोनों समय व्यक्ति नर्स के हाथ में होता है इस कभी अपना टेंपर लूज न करें। काम के दबाव के साथ अपने को सामान्य बनाए रखें। 
कालेज अाफ नर्सिग के नोडल अाफीसर प्रो.राजेश हर्षवर्धन ने कहा कि अब नई तकनीक अौर मानवीय संवेदना दोनों के साथ नर्स को सामंजस्य बनना है । दोहरा चैलेंज है जिसे स्वीकार करना है। संस्थान के अतिरिक्त निदेशक जयंत नारलीकर, डीन प्रो.अारएन मिश्रा, कर्मचारी महासंघ की अध्यक्ष सावित्री सिंह, न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रो.एके शुक्ला , बायोस्टेटिक्स विभाग के प्रमुख प्रो.सीएम पाण्डेय ने कहा कि  नर्स अस्पताल की हृदय है बिना इनके अस्पताल संभव नहीं है। मरीज से सबसे अधिक करीब यही रहती है इस लिए इनकी सजगता और संवेदना काफी महत्वपूर्ण है।   


बीएससी की छात्रों ने ली शपथ

लैंप लाइटिंग समारोह में अग्नि को साक्षी मानकर सेवा की शपत छात्रों ने लिया। पहले साल की किताबी पढाई के बाद अब यह छात्र वार्ड में मरीजों के साथ काम करके प्रैक्टिकल ज्ञान हासिल करेंगी। 







इन टापरों को मिला सम्मान

बीएससी फोर्थ ईयर- प्रथम- आदित्य कुशवाहादूसरा - सौम्या प्रकाश  , तीसरा- प्रियंका स्पेंसर

बीएससी थर्ड ईयर- प्रथम- प्रियंका रायदूसरा- राखी रावततीसरा- गुंजन सोनी

बीएससी सेकेंड ईयर- प्रथम- निकिता तिवारीदूसरा स्थान- रसिक लालतीसरा स्थान- श्वेता राव

बीएसएसी फर्सट ईयर- प्रथम-स्नेहा सिंह दूसरा -प्रियंका यादव तीसरा स्थान- शिखा भदौरिया

नेशनल कांफ्रेंस विनर
प्रथम पुरस्कार- जतिन जोसफरितिका टंडनक्विज विनर- डेनिश सिंह, , पर्सनालटी कंटेस्ट विनर- रितिका टंडन