गुरुवार, 24 अक्टूबर 2024

PCOS affects reproductive health as well as metabolism.

 

 



Obesity - Motherhood is taking away, on top of that, it can cause heart problems



PCOS and high cholesterol in obese women


Research conducted on 228 PCOS women


42.5 percent PCOS victims of obesity



 Kumar Sanjay. Lucknow


Irregular daily routine, fast food result in obesity. Along with difficulty in becoming a mother due to obesity, the risk of heart disease is increasing among girls. Dr. Aparna Shukla of the Advanced Research Center of King George's Medical University and Dr. Renu Singh of the Department of Gynecology and Obstetrics conducted research to find out the relationship between body weight and cholesterol levels in women suffering from Polycystic Ovarian Syndrome (PCOS). That western lifestyle can cause PCOS. This research has recently been accepted by the International Medical Journal Cures. Women suffering from PCOS have difficulty becoming mothers. Irregular menstrual cycle creates problems in conceiving. For prevention, it is necessary to lose weight. For this there is a need to change the lifestyle. 



There is a relationship between obesity and cholesterol


To explore the complex relationship between lipid profile and body mass index (BMI) in patients with PCOS visiting the Department of Obstetrics and Gynecology, 228 women with a mean age of 20.4 to 30.4 years were studied. 45.6 percent were currently married.  28.1 percent were overweight. 42.5 percent were obese. Serum cholesterol was more than 200 mg/dl i.e. increased in 28.5 percent women. Triglycerides were found to be more than 150 mg/dl in 70.2 percent. Overweight is significantly associated with triglycerides and total cholesterol.


50 percent of the disease is not detected

According to research reports, PCOC is an endocrine gland disorder that affects approximately 5-18 percent of women of reproductive age.  In more than 50 percent of women, the disease is either not detected or is detected late. PCOS is increasing due to westernization of lifestyle. According to reports, PCOS affects reproductive health as well as metabolism.




मोटापा- छीन रहा है मातृत्व ऊपर से दिल की खड़ी कर सकता है परेशानी

 





मोटापा- छीन रहा है मातृत्व ऊपर से दिल की खड़ी कर सकता है परेशानी

 

 

 

मोटापे के शिकार महिलाओं में पीसीओएस और हाई कोलेस्ट्रॉल

 

228 पीसीओएस महिलाओं पर हुआ शोध

 

 

 

मोटापे के शिकार 42.5 फीसदी पीसीओएस

 

 कुमार संजय। लखनऊ

 

 

 

अनियमित दिनचर्या, फास्ट फूड नतीजा मोटापा । मोटापे के कारण मां बनने में परेशानी के साथ ही दिल की बीमारी का खतरा युवतियों में बढ़ रहा है। किंग जॉर्ज मेडिकल विवि के उन्नत अनुसंधान केंद्र की डा. अपर्णा शुक्ला , स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की डॉ.  रेनू सिंह ने पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस) ग्रस्त महिलाओं में शरीर  भार,  कोलेस्ट्रॉल का स्तर से रिश्ता जानने के लिए शोध किया तो पता चला कि पश्चिमी लाइफस्टाइल के कारण पीसीओएस हो सकता है। इस शोध को इंटरनेशनल मेडिकल जर्नल क्यूरस ने हाल में ही स्वीकार किया है। पीसीओएस ग्रस्त महिलाओं को मां बनने में परेशानी होती है। अनियमित मासिक चक्र गर्भ धारण में परेशानी खड़ी करता है। बचाव के लिए वजन कम करना जरूरी है। इसके लिए लाइफ स्टाइल को बदलने की जरूरत है। 

 

 

 

मोटापा और कोलेस्ट्रॉल के बीच है मिला संबंध

 

 

 

प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग में आने वाले पीसीओएस वाले रोगियों में लिपिड प्रोफाइल और बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) के बीच जटिल संबंध का पता लगाने के लिए 20.4 से  30.4 वर्ष की औसत आयु वाले 228 महिलाओं शोध किया गया। 45.6 फीसदी वर्तमान में विवाहित थी।  28.1 फीसदी  अधिक वजन वाली थी। 42.5 फीसदी  मोटापे के शिकार थी। 28.5 फीसदी महिलाओं में सीरम कोलेस्ट्रॉल 200 मिलीग्राम/डीएल से अधिक यानि बढ़ा हुआ था। 70.2 फीसदी में ट्राइग्लिसराइड्स  150 मिलीग्राम/डीएल से अधिक मिला। अधिक वजन, ट्राइग्लिसराइड्स, कुल कोलेस्ट्रॉल के साथ महत्वपूर्ण रूप से संबंधित है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

50 फीसदी नहीं लगता है बीमारी का पता

 

 

 

शोध रिपोर्ट के मुताबिक पीसीओसी  अंतःस्रावी ग्रंथि का विकार है जो प्रजनन आयु की लगभग 5-18 फीसदी महिलाओं को प्रभावित करता है।  50 फीसदी से अधिक महिलाओं का या तो बीमारी का पता नहीं हो पाता है या देर से  होता है। जीवनशैली के पश्चिमीकरण के कारण पीसीओएस बढ़ता जा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक पीसीओएस प्रजनन स्वास्थ्य के साथ-साथ चयापचय(मेटाबोलिक) को प्रभावित करता है।

 

 

 

 

 

क्या है पीसीओएस

 

 

 

पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) है जो हार्मोन को प्रभावित करती है। यह अनियमित मासिक धर्म, अतिरिक्त बाल विकास, मुँहासा और बांझपन का कारण बनता है।पीड़ित लोगों को मधुमेह और उच्च रक्तचाप खतरा अधिक हो सकता है।

शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2024

पीपल रात में ऑक्सीजन नहीं छोड़ता है

 


पीपल रात को ऑक्सीजन नहीं छोड़ताछोड़ता, वह वायुमण्डल से कार्बनडायऑक्साइड बटोरता है, ताकि दिन में अपनी जल-हानि से बचकर, प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया सम्पादित कर सके।"



पीपल के पेड़ के विषय में यह भ्रामक बात जाने कैसे फैल गयी कि वह रात में ऑक्सीजन छोड़ता है ???


तथ्य या मिथ


"इसका कारण "ऑक्सीजन-उत्सर्जन" और पीपल दोनों को ही ढंग से न समझना है।"


"अब समझा कैसे जाए ?"


"पेड़-पौधे भी अन्य प्राणियों की ही तरह साँस चौबीस घण्टे लेते हैं। इस क्रिया में वे ऑक्सीजन वायुमण्डल से लेते हैं और कार्बनडायऑक्साइड छोड़ते हैं।


 लेकिन वे सूर्य के प्रकाश में एक और महत्त्वपूर्ण क्रिया भी करते हैं , जिसे प्रकाश-संश्लेषण कहा जाता है। इस क्रिया में वे अपना भोजन (ग्लूकोज़) स्वयं बनाते हैं, 


वायुमण्डल से कार्बनडायऑक्साइड और पृथ्वी से जल को लेकर। इस काम में उनका हरा रंजक (क्लोरोफ़िल) महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और सूर्य का प्रकाश भी। इसी प्रकाश-संश्लेषण के दौरान ग्लूकोज़ के साथ साथ ऑक्सीजन बनती है , जिसे वायुमण्डल में वापस छोड़ दिया जाता है।"


"यानि कि यदि पौधा या पेड़ हरा न हो और प्रकाश न हो , तो प्रकाश-संश्लेषण होगा ही नहीं।"


"बिलकुल नहीं।"


"तो ग्लूकोज़ और ऑक्सीजन बनेंगे ही नहीं।"


और उत्तर है, बिलकुल नहीं। 


ज़ाहिर है रात में जब प्रकाश न के बराबर रहता है, तो यह काम प्रचुरता से तो होने से रहा। 


पीपल और उस जैसे कई अन्य पेड़-पौधे कुछ और काम करते हैं, जिसे लोग ढंग से समझ नहीं पाये।


"क्या ?"


पीपल का पेड़ शुष्क वातावरण में पनपता है और इसके लिए उसकी देह में पर्याप्त तैयारियाँ हैं। पेड़-पौधों की सतह पर, विशेषत: पत्तियों की सतह पर 'स्टोमेटा' नामक नन्हें छिद्र होते हैं, जिनसे गैसों और जलवाष्प का आदान-प्रदान होता है। 


सूखे और गर्म वातावरण में पेड़ का पानी न निचुड़ जाए, इसलिए पीपल ऐसे मौसम में दिन में अपेक्षाकृत अपने स्टोमेटा बन्द करके रखता है।


इससे दिन में पानी की कमी से वह लड़ पाता है।


बिलकुल। लेकिन इसका एक नुकसान यह है कि फिर दिन में प्रकाश-संश्लेषण के लिए कार्बन-डायऑक्साइड उसकी पत्तियों में कैसे प्रवेश करे ? क्योंकि स्टोमेटा तो बन्द हैं।


 तो फिर प्रकाश-संश्लेषण कैसे हो?


 ग्लूकोज़ कैसे बने ?


"तो ?"


तो पीपल व उसके जैसे कई पेड़-पौधे रात को अपने स्टोमेटा खोलते हैं और हवा से कार्बन-डायऑक्साइड बटोरते हैं। उससे मैलियेट नामक एक रसायन बनाकर रख लेते हैं। 


ताकि फिर आगे दिन में जब सूरज चमके और प्रकाश मिले , तो प्रकाश-संश्लेषण में सीधे वायुमण्डलीय कार्बन-डायऑक्साइड की जगह इस मैलियेट का प्रयोग कर सकें।


"यानी पीपल का पेड़ रात को भी कार्बन-डायऑक्साइडमे का शोषण करता है।"


"बिलकुल करता है। और वह अकेला नहीं है। कई हैं उस जैसे पेड़। अधिकतर रेगिस्तानी पौधे यही करते हैं। ऐरीका पाम , नीम, स्नेक प्लांट , ऑर्किड , और कई अन्य। 


रात को कार्बनडायऑक्साइड लेकर, उससे मैलियेट बनाकर आगे दिन में प्रकाश-संश्लेषण के लिए प्रयुक्त करने की यह प्रक्रिया CAM मार्ग ( क्रासुलेसियन पाथवे ) के नाम से पादप-विज्ञान में जानी जाती है।


"तो पीपल रात को ऑक्सीजन नहीं छोड़ताछोड़ता, वह वायुमण्डल से कार्बनडायऑक्साइड बटोरता है, ताकि दिन में अपनी जल-हानि से बचकर, प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया सम्पादित कर सके।"


लेकिन अतिवृहद छत्रक (canopy), बड़ी, घनी और चौड़ी पत्तियाँ (pendulous leaves) और अपेक्षाकृत अतिविस्तृत leaf area होने के कारण पीपल में प्रकाश संश्लेषण एवं ऑक्सीजन उत्पादन की दर अन्य वृक्षों की तुलना में काफी अधिक होती है। 


श्वशन और प्रकाश संश्लेषण के बीच उच्च अनुपात भी वृक्ष के आसपास अधिक ऑक्सीजन उपलब्ध करता है। लंबी आयु, शीतलता एवं अन्य अनेक जीवों का आश्रय स्थल होने के कारण इसे Keystone प्रजाति की श्रेणी में रखा गया गया। 


ये वो प्रजातियां होती हैं, जिनमें पर्यावरण की दशाओं में परिवर्तन की क्षमता होती है। यही गुण इस वृक्ष को महत्वपूर्ण और पूजनीय बनाते हैं।

गुरुवार, 10 अक्टूबर 2024

पीजीआई में आज नहीं होगा नए मरीजों का पंजीकरण बंद रहेगा ओपीडी कलेक्शन

 





पीजीआई में आज नहीं होगा नए मरीजों का पंजीकरण बंद रहेगा ओपीडी कलेक्शन


 संजय गांधी पीजीआई में  11 अक्तूबर शुक्रवार को ओ पी डी में नये पंजीकरण नहीं होंगे। ।

जिन पुराने रोगियों को ओ पी डी परामर्श के लिये पहले से ही तारीख दी गयी है, उन्हे ओ पी डी में देखा जायेगा व जिन रोगियों की विभिन्न विभागों में जाँचो की तारीख है, उनकी जांचे भी होंगी। ऑपरेशन थिएटर भी यथावत चलेगे। 24  घंटे लैब

 क्रियाशील रहेगी। आकस्मिक सेवाएं यथावत चलेगी।

ओ पी डी का सैम्पल कलेक्शन बंद रहेगा।

मां पीतांबरा सरोजिनी नगर द्वारा फलाहार एवं हवन






 मां पीतांबरा सरोजिनी नगर द्वारा  हवन एवं फलाहार कार्यक्रम का आयोजन कानपुर रोड स्थित सेक्टर जी स्थित राधा कृष्ण मंदिर में हुआ जिसमें उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक आयोजन करता दुर्गेश पांडेय एवं एस  एन पांडेय के साथ हवन एवं फलाहार कार्यक्रम में शामिल हुए

शनिवार, 5 अक्टूबर 2024

PGI-AI data will tell what is the risk during anesthesia

 

37th Foundation Day Celebration of PGI Anesthesia Department




AI data will tell what is the risk during anesthesia




AI will make surgery safe




PGI is working on 2 model 












Sanjay Gandhi PGI is going to prepare an Artificial Intelligence (AI) based program (algorithm) to make the surgery safe. On the 37th foundation day of the Department of Anesthesiology of the Institute, Prof. Sandeep Khuba said that pre-anesthesia checkup is necessary before surgery, for this, after various tests of the patient, we see how fit the patient is for surgery. We are working on such an algorithm in which after feeding all the data of the patient, the program will tell how many medicines will be given during the surgery and in what quantity so that the surgery can be made safe. It can also be seen how much surgery will be safe in this patient and what are the risks which can be managed first. Head of the department Prof. Prabhat Tiwari said that the role of anesthesia is continuously increasing. It plays an important role in pain management, protection of all body parts during surgery, post-operative care and ICU care after surgery. During the pre-anesthesia checkup, the problems during surgery can be reduced by giving complete information to the doctor about the patient's allergies, the medicines he is taking, the treatment he has taken before, family history of the disease. Prof. Sujit Gautam on AI, Prof. Tapas Singh Ethics, Prof. Puneet Goyal on the future of anesthesia, Prof. Chetna Shamsheri, technical officer Rajeev Singh and others presented their views on balance between work and life.            




 




Sensor will control medicine during surgery




 




Pro. Khuba said that we are working on target control infusion.  During surgery, many parameters including heart rate, blood pressure, saturated oxygen level are monitored. We are making such an AI based program in which the center will inject medicines into the body to control these parameters. This will help in increasing the success of the surgery.


He was honored




 Best Junior Resident III: Dr. Esther Ovac, 


Best Office Employee: Mr. Suresh Pal, 


Best Office Staff (Outsourced): Ms. Meenu Singh, Best Nursing Officer: Mrs. Meena, 

Best Nursing Officer (Outsourced): Shri Vimal Kumar, Best Technical Officer: Shri Lallan Gupta, 

Best Technical Officer (Outsourced): Mr. Akhilesh Kumar, Best Office Assistant: Mr. Ram Kishun,

 Certificate of Appreciation for Drawing and Art: Dr. Rumit Bhagat

पीजीआई -एआई डाटा बताएगा कितनी है एनेस्थीसिया के दौरान रिस्क

 

 पीजीआई एनेस्थीसिया विभाग का 37 वा  स्थापना दिवस समारोह


एआई डाटा बताएगा कितनी है एनेस्थीसिया के दौरान रिस्क


एआई सुरक्षित करेगा सर्जरी


पीजीआई दो आई मांडल पर कर रहा काम 






सर्जरी के सुरक्षित करने के लिए संजय गांधी पीजीआई ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस( एआई) आधारित प्रोग्राम( एल्गोरिदम) तैयार करने जा रहा है। संस्थान के एनेस्थेसियोलॉजी विभाग के 37 वें स्थापना दिवस पर विभाग के प्रो. संदीप खूबा ने बताया कि सर्जरी से पहले प्री एनेस्थीसिया चेकअप जरूरी है इसके लिए मरीज की कई तरह जांच कराने के बाद मरीज में सर्जरी के लिए कितना फिट है यह देखते है। हम लोग ऐसे एल्गोरिदम पर काम कर रहे है जिसमें मरीज का सभी डाटा फीड करने के बाद प्रोग्राम बता देगा कि सर्जरी के दौरान किस मात्रा में कितनी दवाएं देकर सर्जरी को सुरक्षित की जा सकेगी। यह भी देखा जा सकेगा कि इस मरीज में कितनी सर्जरी सुरक्षित होगी और क्या रिस्क हो सकते है जिसका पहले मैनेजमेंट किया जा सकेगा। विभाग के प्रमुख प्रो. प्रभात तिवारी ने कहा कि एनेस्थीसिया की भूमिका लगातार बढ़ रही है। पेन मैनेजमेंट, सर्जरी के दौरान शरीर के सभी अंगों का बचाव, सर्जरी के बाद पोस्ट ऑपरेटिव केयर और आईसीयू केयर में अहम भूमिका है। प्री एनेस्थेसिया चेकअप के दौरान मरीज को डॉक्टर से एलर्जी, क्या दवा खा रहे, पहले जो इलाज लिया हो, फैमली हिस्ट्री बीमारी की पूरी जानकारी देने से सर्जरी के दौरान परेशानी को कम किया जा सकता है। प्रो, सुजीत गौतम ने एआई , प्रो. तपस सिंह एथिक्स, प्रो. पुनीत गोयल ने एनेस्थीसिया के भविष्य, प्रो. चेतना शमशेरी ने कार्य और जीवन के बीच संतुलन , तकनीकी अधिकारी राजीव सिंह सहित अन्य लोगों ने अपनी बात रखी।            


 


सेंसर दवा करेगा सर्जरी के दौरान नियंत्रित


 


प्रो. खूबा ने बताया कि हम लोग टारगेट कंट्रोल इंफ्यूजन पर काम कर रहे हैं।  सर्जरी के दौरान हार्ट रेट, रक्त दाब , सैचुरेटेड ऑक्सीजन स्तर सहित कई पैरा मीटर पर नजर रखा जाता है। हम लोग एआई आधारित ऐसा प्रोग्राम  बना रहे है जिसमें सेंटर इन मानकों को नियंत्रित करने के लिए दवा शरीर में इंजेक्ट करेगा। इससे सर्जरी की सफलता बढ़ाने में मदद मिलेगी।

यह हुए सम्मानित


 सर्वश्रेष्ठ जूनियर रेजिडेंट III: डॉ. एस्थर ओवक, 

सर्वश्रेष्ठ कार्यालय कर्मचारी: श्री सुरेश पाल, 

सर्वश्रेष्ठ कार्यालय कर्मचारी (आउटसोर्स): सुश्री मीनू सिंह, सर्वश्रेष्ठ नर्सिंग अधिकारी: श्रीमती मीना, 

सर्वश्रेष्ठ नर्सिंग अधिकारी ( आउटसोर्स्ड): श्री विमल कुमार, सर्वश्रेष्ठ तकनीकी अधिकारी: श्री लल्लन गुप्ता, 

सर्वश्रेष्ठ तकनीकी अधिकारी (आउटसोर्स्ड): श्री अखिलेश कुमार, सर्वश्रेष्ठ कार्यालय सहायक: श्री राम किशुन,

 ड्राइंग और कला के लिए प्रशंसा प्रमाण पत्र: डॉ. रुमित भगत

मंगलवार, 1 अक्टूबर 2024

कीटनाशक विषाक्तता का सही इलाज मिले तो सौ फीसदी को बचाना संभव


 क्रिटिकांन -2024


 


कीटनाशक विषाक्तता का सही इलाज मिले तो सौ फीसदी को बचाना संभव


 


सही इलाज न मिलने पर 15 फीसदी में हो जाता है घातक


 


कीटनाशक विषाक्तता खासतौर पर  ग्रामीण क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण  समस्या है। कई किसान अनजाने में शिकार होते है तो कई बार लोग जीवन लीला समाप्त करने के लिए इसका इस्तेमाल जानबूझकर करते हैं। ऑर्गनोफॉस्फोरस कीटनाशक की विषाक्तता होने पर सही इलाज से सभी को बचाया जा सकता है। सही समय पर सही इलाज न मिलने पर 15 फीसदी से अधिक मामले घातक हो जाते हैं। क्रिटिकांन 2024 में इस विषय़ पर आयोजित एक सत्र में प्रो. तनमय घटक ने बताया कि समय पर यदि मरीज आ जाए तो दवाओं से मरीज की जिंदगी बचा सकते हैं। पहले पेट में नली डालकर रसायन को बाहर निकालते हैं। इसके बाद लक्षण के आधार पर एट्रोपिन दवा देते है जिससे हार्ट रेट बढ़ जाता है। रेस्पायरेटरी पैरालिसिस की आशंका कम हो जाती है। इसके आलावा पैली डाक्सीन एक नई दवा भी आयी है जो विषाक्तता के प्रभाव को कम करती है। प्रो. तमनय ने बताया कि मुख्य उपचार - एट्रोपिन, ऑक्सिम्स और डायजेपाम  को सबसे अच्छा उपचार है लेकिन तमाम को नहीं पता है। यह दवाएं ऊतकों को ऑक्सीजन की आपूर्ति में सुधार करती है।  एट्रोपिन श्वसन में  सहायता करता है। गैस्ट्रिक लैवेज की भूमिका है  लेकिन रोगी के स्थिर होने के बाद ही इसे किया जाना चाहिए। ऑर्गनोफॉस्फोरस विषाक्तता के बेहतर चिकित्सा प्रबंधन के परिणामस्वरूप दुनिया भर में आत्महत्या से होने वाली मौतों में कमी लायी जा सकती है। ऑर्गन फास्फोरस कीटनाशक  मौतों में से लगभग दो-तिहाई के लिए जिम्मेदार हैं । हर साल 15 से 30 फीसदी  मरीज कीटनाशकों  जहर खाकर मर जाते हैं।


क्या करता है कीट नाशक


ऑर्गनोफॉस्फोरस कीटनाशक एस्टरेज़ एंजाइम को बाधित करते हैं। एसिटाइलकोलिनेस्टरेज़ अवरोधन के परिणामस्वरूप  तंत्रिका तंत्र, सीएनएस(नर्वस सिस्टम), और न्यूरोमस्कुलर जंक्शनों में एसिटाइलकोलाइन का संचय और एसिटाइलकोलाइन रिसेप्टर्स की अधिक उत्तेजना होती है जिसके कारण परेशानी होती है। दवाएं इन्ही पर काम करती है। 


 


यह परेशानी तो तुरंत लें सलाह


 


 


- सांस लेने में परेशानी


- रोना


 


-    पेशाब


 


-दस्त


 


-    अल्प रक्त-चाप


मंदनाड़ी


-उल्टी करना


-लार निकालना


 


आईसीयू में बुखार माने सेप्सिस ही नहीं


 


हर बुखार सेप्सिस नहीं होता है। आईसीयू में बुखार होने पर तुरंत मान लिया जाता है कि सेप्सिस हो गया है। प्रो. तमनय घटक कहते है कि केवल 30 से 40 फीसदी में बुखार को कारण सेप्सिस होता है। बाकी में बुखार के दूसरे कारण उस पर ध्यान देने के बाद इलाज की दिशा तय करनी चाहिए। कई दवाओं के कारण भी बुखार होता है।

आईसीयू में संक्रमण रोकने होगा संभव

 


क्रिटिकांन -2024


आईसीयू में संक्रमण रोकने होगा संभव


 आईसीयू में 30 फीसदी होते है संक्रमण के शिकार


वेंटीलेटर भी बनता  है संक्रमण का कारण


आईसीयू में खर्च बढ़ाता है संक्रमण


 


अब आईसीयू में मरीजों को संक्रमण से बचाना और आशंका को कम करना संभव होगा। संक्रमण को रोकने के लिए इंडियन सोसाइटी ऑफ क्रिटिकल केयर मेडिसिन ने विशेष कार्यशाला( क्रिटिकांन-2024) का आयोजन शुक्रवार किया संजय गांधी पीजीआई में किया। आयोजक इमरजेंसी मेडिसिन विभाग के प्रो. तनमय घटक ने बताया कि आईसीयू में जिंदगी बचाने के लिए मरीजों को वेंटिलेटर पर रखा जाता है। इनमें से 30 से 40 फीसदी में  वेंटीलेटर एसोसिएटेड निमोनिया, सेंट्रल लाइन एसोसिएटेड इंफेक्शन, यूटीआई होता है। इसके कारण इलाज का खर्च और स्टे बढ़ जाता है।  संक्रमण को रोकने के तरीकों के बारों में नए छात्रों को बताया गया कि मरीजों को छूने से पहले हाथ को धोना जरूरी है। गैस्ट्रिक अल्सर और डीप वेन थ्रोम्बोसिस को रोकने के लिए पहले इलाज शुरू करना चाहिए। इसे प्रोफाइलेक्सिस कहते हैं। सुई जहां लगती है उस जगह को साफ रखना चाहिए। बेड का सिरहाना 30 डिग्री तक उठा होना चाहिए। इससे संक्रमण की आशंका को कम किया जा सकता है। प्रो. तनमय ने बताया कि सोसाइटी 14 कार्यशाला का आयोजन एक साथ विभिन्न विषय़ों पर एक साथ राजधानी के कई संस्थानों में कर रहा है जिसमें नेफ्रो क्रिटकल केयर, पिडियाट्रिक केयर, ट्रैक्योस्टोमी, सहित कई विषयों के बारे में आन हैंड जानकारी दी गयी।


 


नहीं करना पड़ेगा रेडियोलाजिस्ट का इंतजार


इमरजेंसी में कई बार तुरंत अल्ट्रासाउंड की जरूरत होती है ऐसे में रेडियोलॉजिस्ट का इंतजार मरीज के लिए खतरनाक हो सकता है। इसके लिए हम इमरजेंसी के डॉक्टर को अल्ट्रासाउंड की ट्रेनिंग के लिए विशेष वर्कशाप का आयोजन किया। कई बार फेफड़ों में हवा भर जाता है।  पेट में रक्त भर जाता है। दिल में रक्त भर जाता है ऐसे में तुरंत अल्ट्रासाउंड कर परेशानी का पता कर रक्त को निकाल कर जिंदगी बचायी जा सकती है।


 


600 डॉक्टरों ने सीखा हुनर


 


   वर्कशॉप में 600 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिन्हें 200 प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों द्वारा क्रिटिकल केयर में हैंड्स-ऑन प्रशिक्षण प्राप्त किया।  वर्कशॉप में नर्सिंग क्रिटिकल केयर, हेमो डायनामिक मॉनिटरिंग, इकमो, आईसीयू  में मैकेनिकल वेंटिलेशन, पीडियाट्रिक क्रिटिकल केयर और कार्डियक क्रिटिकल केयर जैसे विभिन्न क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया