क्रोमेटिन पर निशाना साध कर रोका जा सकेगा उम्र का प्रभाव
उम्र के प्रभाव को कम करने वाले दवाओं पर जारी है शोध
भारतीय मूल के वैज्ञानिक खोला उम्र का राज
कुमार संजय। लखनऊ
कुछ लोग 60 की उम्र के होते है लेकिन दिखते 75 की उम्र के तो वहीं कुछ लोग होते है 75 की उम्र के दिखते है 60 के यह राज संजय गांधी पीजीआई के एल्युमिनाई अमेरिका के बाल्टीमोर में शोध कर रहे भारतीय मूल के विज्ञानी डा. अमित सिंह ने खोला है। वह एजिंग प्रक्रिया पर अमेरिका में शोध कर रहे हैं। डा. अमित ने संस्थान के मॉलिक्यूलर मेडिसिन विभाग में विशेष व्याख्यान देने आए थे। विशेष वार्ता में बताया कि इस रहस्य के पीछे सारा खेल डीएनए में पाए जाने वाले क्रोमेटिन का है। कम उम्र के होने के बाद भी अधिक उम्र के दिखते है उनमें क्रोमेटिन अलग रूप से काम करता है जिससे उनमें इंफ्लामेशन होता है । साइटोकाइन आईएल6 और टीएनएफ अल्फा अधिक बनने की आशंका रहती है। इन रसायनों के कारण एजिंग का प्रभाव अधिक दिखता है। अधिक उम्र के होने बाद भी कम उम्र के दिखते है इनमें क्रोमेटिन में अधिक बदलाव नहीं होता है। इंफ्लामेशन कम होता है जिससे एजिंग प्रक्रिया धीमी होती है। अब ऐसे रसायन बन रहे है तो क्रोमेटिन को नियंत्रित कर सकते है। इन रसायन पर शोध जारी है। इससे हम एजिंग प्रक्रिया को धीमी करने के साथ उम्र के कारण होने वाली परेशानी को भी कम कर पाएंगे।
संक्रमण से होने वाले नुकसान को कम करना होगा संभव
इसके साथ ही हमने देखा है कि युवा के रक्त के कोशिका मोनोसाइट में आईएल-1 बीटा साइटोकाइन मौजूद होता है। इससे आईएल 27 साइटोकाइन अधिक होता है । बुजुर्ग में लाइपो पाली सैकेराइड प्रोटीन होता है जो इंफ्लामेशन करता है। डा. अमित कहते है कि आईएल 27 को नियंत्रित कर एजिंग को धीमा करने के साथ इंफेक्शन होने पर शरीर में नुकसान को कम सकते है। इसके लिए भी दवा पर काम हो रहा है।
भारत में शोध की तलाश रहे है संभावना
रायबरेली जिले अमर नगर के रहने वाले डा. अमित सिंह भारत में शोध को बढावा देना चाहते है। डा. अमित ने क्लीनिक इम्यूनोलॉजी में प्रो. आरएन मिश्रा और विभाग की प्रमुख प्रो. अमिता अग्रवाल के निर्देशन में शोध 2011 में पूरा किया। वह नेशनल इंस्टीट्यूट आफ एजिंग वाल्टीमोनर अमेरिका में शोध के लिए चुने गए। वह लगातार शोध कर रहे है कई शोध पत्र भी आ चुका है। भारत में शोध की संभावना तलाशने के लिए वह भारत में है। इस दौरान वह केजीएमयू, अवध विवि, पीजीआई और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी दिल्ली में शोध विज्ञानियों से मिल कर साथ में शोध करने की योजना बना रहे हैं।
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