शुक्रवार, 30 अगस्त 2024

प्रदेश में पहली बार साथ हुई पेट की सात घंटे एक ही मरीज में चार सर्जरी

 

प्रदेश में पहली बार साथ हुई पेट की सात घंटे एक ही मरीज में  चार सर्जरी


 


अब दोबारा अपनी जगह से नहीं हटेगा किडनी, आमाशय और तिल्ली


 


चेस्ट में फंसे आमाशय, किडनी , तिल्ली को निकाल कर दिया सौरभ को जीवन


 


 


पीजीआई में हुई प्रदेश की पहली सर्जरी


 


बिहार (सिवान) के रहने वाले 19 वर्षीय सौरभ सिंह को लंबे समय से सांस लेने के साथ पेट में दर्द और उल्टी की परेशानी हो रही थी। कई फेफड़ा और दूसरे  विशेषज्ञ को दिखाया लेकिन राहत नहीं मिली । हालत दिन ब दिन बिगड़ती चली गई। दो कदम भी चलना संभव नहीं हो रहा था। परिजन लेकर संजय गांधी पीजीआई आए तो यहां पर गैस्ट्रो सर्जरी विभाग में प्रो. अशोक कुमार द्वितीय के ओपीडी में नंबर लगा। शारीरिक परीक्षण के बाद सौरभ का पेट का  अल्ट्रासाउंड सीटी स्कैन कराया गया। जिसमें पाया गया कि उनका आमाशय बाई तरफ के चेस्ट में चला गया था साथ ही ट्विस्ट हो गया था। इसके साथ साथ पूरा तिल्ली तथा  किडनी भी डाई फ्रैग्मेटिक हर्निया के  वजह से चेस्ट में चला गया था। जिसकी वजह से फेफड़े दबाव पड़ रहा है। साँस लेने में दिक्कत हो रही थी फेफड़े से इन अंगो को सही जगह पर लाने की सर्जरी बहुत ही चुनौती पूर्ण था यह ऑपरेशन बहुत ही चुनौती पूर्ण था क्यों कि तिल्ली और किडनी से खून के रिसाव का खतरा होता है। यह स्थिति जटिल होती है।   सर्जरी की कार्ययोजना तैयार किया क्योंकि इस तरह की पहली सर्जरी संस्थान में होने जा रही थी। अभी तक इस तरह की सर्जरी प्रदेश में कहीं से भी रिपोर्टेड नहीं है। हमने एक साथ सात घंटे चली सर्जरी में चार तरह की सर्जरी किया जिसमें   डी रोटेशन ऑफ आर्गन, रिडक्शन ऑफ हार्नियल कंटेंट इन टू द एब्डॉमिनल कैविटी, गैस्ट्रोपेक्सी, मेश रिपेयर आफ हार्नियल डिफेक्ट किया।


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ऐसे हुई सर्जरी


 


 प्रो. अशोक ने बताया कि सर्जरी की पूरी तैयारी के बाद लेप्रोस्कोपी से बहुत ही  सावधानी के साथ  आमाशय, तिल्ली, तथा किडनी को चेस्ट कैविटी  से बाहर निकाला गया और आमाशय को सीधा कर उसे दो स्थानों पर फिक्स किया गया। साथ ही डाइ फ्रैग्नेटिक हर्निया डिफेक्ट को मेस ( जाली) से बंद किया गया।  जिससे की दोबारा से यह परेशानी नहीं हो।दूसरे दिन मुंह से हल्का खाना शुरू किया। के तीसरे दिन मरीज को डिस्चार्ज किया ।


 


 


जंम जात  या चोट की कारण होती है यह परेशानी


 


यह काफी रेयर डिजीज  है। जिसका मुख्यतौर पर कारण जन्मजात होता है।  यह हाई स्पीड ट्रामा की वज़ह से भी हो सकता है। डायफ्राम एक दीवार होती जो फेफड़े और हार्ट को आमाशय के  ऑर्गन, लिवर और आंत को अलग करती है। उसमे डिफेक्ट होने की वजह से यह समस्या होती है l


 


 


 


इन्होंने दिया साथ


सीनियर रेजिडेंट डा. प्रशांत, डा. सार्थक, निश्चेतना विशेषज्ञ प्रो. अरुणा भारती, डा. मेघा, नर्सिंग ऑफिसर रोहित, नर्सिंग ऑफिसर वंदना

शनिवार, 24 अगस्त 2024

अब उंगली की टूटी हड्डी में प्लेट लगाकर जोड़ना है संभव


 अब उंगली की टूटी हड्डी में प्लेट लगाकर जोड़ना है संभव 




 हफ्तों के लिए नहीं फिक्स करनी पड़ेगी उंगली दो दिन में होगा मूवमेंट


 


ओआरआईएफ तकनीक पीजीआई में स्थापित








 


कलाई की नीचे की हड्डी ( उंगली के पोर, कलाई अन्य)  के फ्रैक्चर को नई तकनीक से जोड़ कर दो दिन  में ही गति( मूवमेंट) देना संभव हो गया है। ओपेन रीडक्शन इंटरनल फिक्सेशन(ओआरआईएफ) तकनीक जरिए यह सूक्ष्म सर्जरी प्लास्टिक सर्जन ही कर सकते हैं। संजय गांधी पीजीआई के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के प्रमुख प्रो. राजीव अग्रवाल ने बताया कि रोड एक्सीडेंट या दूसरे कारण से चोट लगने पर कई बार उंगली के पोर की हड्डी टूट जाती है जिससे उंगली का मूवमेंट नहीं हो पाता है। ऐसे मामलों में पहले के वायर अंदर डालकर  पूरी उंगली को फिक्स 6 से 8 सप्ताह के लिए फिक्स  किया जाता रहा है । इससे कलाई के नीचे की मांसपेशियां कमजोर हो जाती है। कड़ापन आ जाता है। सूजन आ जाता है। कई बार इसके बाद भी पोर की हड्डी नहीं जुड़ती है। ऐसे मामलों के लिए विशेष तकनीक स्थापित किया है। इस तकनीक में जिस  पोर में फ्रैक्चर है उसमें हड्डी में त्वचा को हटाकर उसमें प्लेट लगाकर टूटी हड्डी को फिक्स कर देते है।इससे के वायर के होने वाली परेशानी नहीं होती है। दो दिन में ही उंगली चलने लगती है। यह बहुत सूक्ष्म सर्जरी है जिसे प्लास्टिक सर्जरी ही कर सकते हैं। कम उम्र के लड़के लड़कियों के यह तकनीक वरदान है क्योंकि उंगली में मूवमेंट न होने पर वह काम नहीं कर पाते है। 


 


 


नर्व स्टिमुलेटर से टूटी नर्व खोज कर जोड़ना संभव


 


रोड एक्सीडेंट में चेहरे पर चोट लगना आम है। इसमें कई बार चेहरे की फेशियल नर्व डैमेज हो जाती है। यह नर्व चेहरे के काम पानी पीना, कुल्ला करना, पलक का झपकना सहित चेहरे के भाव प्रकट करने में अहम भूमिका निभाता है। नर्व 0.1 मिमी का होता है। इसे रिपेयर करने के लिए टूटी नर्व को नर्व स्टिमुलेटर से खोज कर प्लास्टिक सर्जन रिपेयर करते हैं। हम लोग लगातार यह केस कर रहे हैं। कई बार नाक की हड्डी चूर-चूर हो जाती है ऐसे में शरीर के दूसरे अंग से हड्डी लेकर बोन ग्राप्ट करते हैं।

शनिवार, 10 अगस्त 2024

पुरानी पेंशन कर्मचारियों का संविधानिक हक है- विजय बंधु-

 




पुरानी पेंशन कर्मचारियों का संविधानिक हक है- विजय बंधु---


पीजीआई में शनिवार को नर्सिंग स्टाफ एसोसिएशन की आम सभा में पुरानी पेंशन का सभी ने समर्थन किया। अटेवा के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय कुमार बंधु ने कहा कि पुरानी पेंशन सभी कर्मचारियों और अधिकारियों का संविधानिक हक है। इसे पाने के लिये संगठन 2014 से संघर्ष कर रहा है, लेकिन केन्द्र व राज्य सरकार इसे लागू नहीं कर रही है। जबकि कई राज्यों में पुरानी पेंशन बहाल कर लागू कर दी गई है। संगठन ने निर्णय लिया कि पुरानी पेंशन बहाली के लिए सभी विभागों के कर्मचारी सक्रिय हैं। सभी इसे लागू कराने के लिए संघर्षरत हैं। सभा में शामिल एनएसए की अध्यक्ष लता सचान, महामंत्री विवेक सागर, उपाध्यक्ष सुजान सिंह, राजकुमार, संयुक्त मंत्री मनोज कुमार, मंजू कुशवाहा, मंजू लता राव, सुरेन्द्र वीर, गजेंद्र सिंह, सुरेन्द्र कटियार समेत भारी संख्या में संस्थान कर्मी शामिल हुए।

पीजीआई: नए टेक्नीशियन का स्वागत, सेवानिवृत्त का सम्मान

 




पीजीआई: नए टेक्नीशियन का स्वागत, सेवानिवृत्त का सम्मान-


ऑपरेशन थियेटर से लेकर लैब व रेडियोलॉजिकल जांचों में टेक्नीशियन की अहम भूमिका होती है। टेक्नीशियन को एक्सरे, सिटी, एमआरआई से निकलने वाले विकरण एवं लैब में जांच के दौरान तमाम तरह के संक्रमण का खतरों के बीच अपनी ड्यूटी निभाता है। नई तकनीक में टेक्नीशियन की जिम्मेदारी और बढ़ गई है। यह बातें शनिवार को पीजीआई मेडिटेक एसोसिएशन के महामंत्री सरोज वर्मा ने आयोजित समारोह में नई तैनाती पाए टेक्नीशियन को सम्बोधित करते हुए कहा। समारोह में बीते दिनों नियुक्ति पाए अलग-अलग विभाग के करीब 70 टेक्नीशियन स्वागत एवं शील्ड देकर सम्मानित किया गया।

मेडिटेक एसो. के अध्यक्ष डीके सिंह ने कहा कि संस्थान की स्थापना के समय करीब डेढ़ दर्जन टेक्नीशियन थे। अब यह संख्या बढ़कर करीब 350 हो गई है। हर विभाग में टेक्नीशियन रोगियों की जांच में अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना कॉल में संक्रमित रोगियों की कोविड से लेकर एक्सरे, सिटी, एमआरआई समेत अन्य जांच करके अपनी जिम्मेदारी का अहसास कराया है। समारोह में संस्थान के सेवानिवृत्त करीब 30 टेक्निकल ऑफीसर को पुष्प भेंटकर सम्मानित किया गया। सेवानिवृत्त टेक्नीशियन ने नए टेक्नीशियन के साथ संस्थान में बिताए पल साझा किये। इस मौके पर संगठन के संस्थापक रहे सीटी ओ जे के उपाध्यक्ष टीओ एपी दीक्षित,  मनोज शुक्ला, राकेश निगम,मनोज सिंह व अजय वर्मा समेत संस्थान के टेक्नीशयन मौजूद रहे। इस मौके पर ऑल इंडिया लैब टेक्नोलॉजिस्ट संगठन के पदाधिकारीभी शामिल। कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष तकनीकी अधिकारी जितेंद्र यादव नेकहा कि संगठन को मजबूत करने के लिए नए लोगोंको सक्रिय होना पड़ेगा।  टेक्नोलॉजिस्ट एक परिवार है सबको एक दूसरे के साथ हर समय खड़ा रहनाहोगा।

मंगलवार, 6 अगस्त 2024

54 किडनी ट्रांसप्लांट में मददगार बन आयुष्मान भारत

 


आयुष्मान भारत ने की मदद और चला गया किडनी

54 किडनी ट्रांसप्लांट में मरीज़ आयुष्मान भारत


आयुष्मान भारत योजना के तहत 54 रोगियों को किडनी ट्रांसप्लांट में मदद की गई। संजय गांधी इंस्टीट्यूट के अस्पताल प्रशासन विभाग के प्रमुख और आयुष्मान भारत के निदेशक प्रोफेसर राजेश अंसारी ने बताया कि 13191 से अधिक मरीजों को इस योजना के तहत आर्थिक सहायता दी जाती है, जिसमें न्यूरो सर्जरी, ब्लड कैंसर ऑटोइम्यून डिजीज पीडियाट्रिक सर्जरी शामिल हैं। है. इस योजना के तहत 54 किडनी ट्रांसप्लांट डिस्चार्ज को शामिल करने में मदद की गई, जिसमें ट्रांसप्लांट से पहले मरीज के परीक्षण का खर्च, ट्रांसप्लांट का खर्च और ट्रांसप्लांट के बाद प्रत्यारोपित हुई किडनी को शरीर में स्वीकार करना शामिल है, इसके लिए दी जाने वाली इम्यूनो सप्रेसिव दवा का खर्च भी शामिल है। किडनी ट्रांसप्लांट के बाद लंबे समय तक ये दवा मशीनें बनी रहीं। शुरुआत में दवा का खर्च 15 से ₹20000 आता है, उसके बाद धीरे-धीरे दवा का खर्च कम हो जाता है। प्रो ऑर्थोडॉक्स ने बताया कि 25 जनवरी को 24 साल के बीच एक करोड़ 22 लाख रुपये की क्रोशिया ट्रांसप्लांट की मौत हो गई। हृदय शल्य चिकित्सा चिकित्सा जिसमें प्लास्टिक सर्जरी भी शामिल है। दिल के अन्य इलाज के लिए भी प्लास्टर उपलब्ध है। आयुष्मान भारत की सीईओ संगीता सिंह ने बताया कि आयुष्मान भारत में किडनी ट्रांसप्लांट बोन मैरो ट्रांसप्लांट का क्लियर इंप्लांट भी पहले शामिल किया जा चुका है। प्रोफेसर ने बताया कि एस वाई बिल्डिंग में आयुष्मान भारत का एक विशेष काउंटर है जहां कार्ड धारकों को सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। इलाज करने वाले डॉक्टर का एस्टीमेट मिलता है कि हम लोग 24 घंटे के लिए आयुष्मान भारत में इलाज कराने जाते हैं और इलाज करने वाले मरीज के लिए पैसे लेकर उसे ठिकाने लगाते हैं। आयुष्मान कार्ड धारक के किसी मरीज को कोई परेशानी हो तो वह सीधे अस्पताल प्रशासन विभाग में एमवाय से संपर्क कर सकता है। हमारा ऑफिस लाइब्रेरी बिल्डिंग में है।

वर्ष 2023 -24 में दी जाने वाली बड़ी सहायता

सीवी टी एस- 151
इंडो सर्जरी- 1355 
नेफ्रोलॉजी- 1939 
प्लास्टिक सर्जरी- 209

क्रोमेटिन पर निशाना साध कर रोका जा सकेगा उम्र का प्रभाव

 


क्रोमेटिन पर निशाना साध कर रोका जा सकेगा उम्र का प्रभाव

उम्र के प्रभाव को कम करने वाले दवाओं पर जारी है शोध

भारतीय मूल के वैज्ञानिक खोला उम्र का राज

 कुमार संजय। लखनऊ

कुछ लोग 60 की उम्र के होते है लेकिन दिखते 75 की उम्र के तो वहीं कुछ लोग होते है 75 की उम्र के दिखते है 60 के यह राज संजय गांधी पीजीआई के एल्युमिनाई अमेरिका के बाल्टीमोर में शोध कर रहे भारतीय मूल के विज्ञानी डा. अमित सिंह ने खोला है। वह एजिंग प्रक्रिया पर अमेरिका में शोध कर रहे हैं। डा. अमित ने संस्थान के मॉलिक्यूलर मेडिसिन विभाग में विशेष व्याख्यान देने आए थे। विशेष वार्ता में बताया कि इस रहस्य के पीछे सारा खेल डीएनए में पाए जाने वाले क्रोमेटिन का है। कम उम्र के होने के बाद भी अधिक उम्र के दिखते है उनमें क्रोमेटिन अलग रूप से काम करता है जिससे उनमें इंफ्लामेशन होता है ।  साइटोकाइन आईएल6 और टीएनएफ अल्फा अधिक बनने की आशंका रहती है। इन रसायनों के कारण एजिंग का प्रभाव अधिक दिखता है। अधिक उम्र के होने बाद भी कम उम्र के दिखते है इनमें क्रोमेटिन में अधिक बदलाव नहीं होता है। इंफ्लामेशन कम होता है जिससे एजिंग प्रक्रिया धीमी होती है। अब ऐसे रसायन बन रहे है तो क्रोमेटिन को नियंत्रित कर सकते है। इन रसायन पर शोध जारी है। इससे हम एजिंग प्रक्रिया को धीमी करने के साथ उम्र के कारण होने वाली परेशानी को भी कम कर पाएंगे।

 

संक्रमण से होने वाले नुकसान को कम करना होगा संभव

 

इसके साथ ही हमने देखा है कि युवा के रक्त के कोशिका मोनोसाइट में आईएल-1 बीटा साइटोकाइन   मौजूद होता है। इससे आईएल 27 साइटोकाइन अधिक होता है । बुजुर्ग में लाइपो पाली सैकेराइड प्रोटीन होता है जो इंफ्लामेशन करता है। डा. अमित कहते है कि आईएल 27 को नियंत्रित कर एजिंग को धीमा करने के साथ इंफेक्शन होने पर शरीर में नुकसान को कम सकते है। इसके लिए भी दवा पर काम हो रहा है।

 

भारत में शोध की तलाश रहे है संभावना

रायबरेली जिले अमर नगर के रहने वाले डा. अमित सिंह भारत में शोध को बढावा देना चाहते है। डा. अमित ने क्लीनिक इम्यूनोलॉजी में प्रो. आरएन मिश्रा और विभाग की प्रमुख प्रो. अमिता अग्रवाल के निर्देशन में शोध 2011 में पूरा किया। वह नेशनल इंस्टीट्यूट आफ एजिंग वाल्टीमोनर अमेरिका में शोध के लिए चुने गए। वह लगातार शोध कर रहे है कई शोध पत्र भी आ चुका है। भारत में शोध की संभावना तलाशने के लिए वह भारत में है। इस दौरान वह केजीएमयू, अवध विवि, पीजीआई और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी दिल्ली में शोध विज्ञानियों से मिल कर साथ में शोध करने की योजना बना रहे हैं।