पीजीआई रिसर्च शो केस
कम उम्र की महिलाओं के दिल की बीमारी से बचाना होगा संभव- प्रो. रूपाली खन्ना
कम उम्र की महिलाओं के दिल की बीमारी कोरोनरी आर्टरी डिजीज से बचाना संभव होगा। संजय गांधी पीजीआई की हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. रूपाली खन्ना ने 45 से कम उम्र की महिलाओं में दिल की बीमारी की आशंका बढ़ाने वाले कारणों का पता लगाने में कामयाबी हासिल की है। हृदय की बीमारी से ग्रस्त 99 युवा महिलाओं में कारण पता लगाने के लिए शोध किया । इनमें 66 महिलाओं का कोरोनरी एंजियोग्राफी परीक्षण किया गया। दो-तिहाई महिलाओं यानि 66 फीसदी महिलाओं में सीएडी का पता चला है। इनमें मधुमेह, उच्च सीरम ट्राइग्लिसराइड स्तर, कम प्रोजेस्टेरोन और कम इंसुलिन स्तर देखने को मिला। इस शोध से साबित हुआ कि डायबिटीज पर नियंत्रण और प्रोजेस्ट्राम हार्मोन का नियंत्रित रख कर दिल की बीमारी से बचा जा सकता है। प्रो. रूपाली ने बताया कि सीएडी में दिल की रक्त वाहिका में रुकावट आ जाती है जिससे एंजियोप्लास्टी कर खोला जाता है। देख गया है कि कुल महिलाओं में होने वाली सीएडी बीमारी 45 से कम आयु की 20 फीसदी होती है। इस शोध को इंडियन मेडिकल जर्नल आफ कार्डियोवेस्कुलर डिजीज इन वुमेन ने भी स्वीकार किया है। इस शोध पत्र को रिसर्च शो केश में प्रस्तुत किया।
नहीं लेना पड़ेगा बिना जरूरत एंटीबायोटिक- डा. किशन मजीठिया
आटो इण्यून डिजीज एसएलई से ग्रस्त मरीजों में बुखार का कारण पता लगाना होगा संभव होगा। इस बीमारी से ग्रस्त मरीज इमरजेंसी में बुखार के साथ आते है बुखार का कारण बीमारी की सक्रियता या संक्रमण इसका पता लगाना जरूरी होता है तभी इलाज की सही दिशा तय होती है। कारण का पता जल्दी लगाने के लिए संजय गांधी पीजीआई के क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी विभाग के डा. किशन मजीठिया ने विभाग की प्रमुख प्रो. अमिता अग्रवाल के साथ 159 मरीजों पर शोध किया तो पाया कि बैक्टीरिया संक्रमण होने पर सीआरपी, टीएलसी, न्यूट्रोफिल एवं लिम्फोसाइट का अनुपात, सीडी 64, सीडी 14 मार्कर बढ़ जाता है। यह सबी जांच संस्थान में उपलब्ध है तो चार से पांच घंटे में रिपोर्ट मिल जाती है। बुखार का कारण बैक्टीरिया का संक्रमण होने पर एंटीबायोटिक चलाते है और बीमारी की सक्रियता के कारण बुखार होने पर इलाज उस दिशा में किया जाता है। इस मार्कर से कारण का सही पता लगने पर अनावश्यक एंटीबायोटिक मरीज को नहीं देना होता है। यदि कारण बीमारी की सक्रियता है तो एंटीबायोटिक का कोई रोल नहीं होता है।
समय से होता है उच्च सांद्रता एंटी डी एंटीबॉडी युक्त महिलाओं में प्रसव- डा. वसुंधरा
पति पत्नी में ब्लड ग्रुप में भिन्नता के कारण गर्भस्थ शिशु में एनीमिया की आशंका बढ़ जाती है। ऐसे दंपति के गर्भस्थ शिशु का जीवन बचाने के लिए गर्भ में रक्त चढ़ाया जाता है जिसे इंट्रा यूटेराइन ब्लड ट्रांसफ्यूजन कहते हैं। अभी तक माना जाता रहा है कि एंटी डी एंटीबॉडी की उच्च सांद्रता वाले महिलाओं में आईआईटी के बाद भी जल्दी प्रसव कराना पड़ता है लेकिन संजय गांधी पीजीआई के ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन की डा. वसुंधरा सिंह,डा.धीरज खेतान, डा. प्रशांत अग्रवाल ने साबित किया है कि एंटी डी की सांद्रता अधिक होने पर भी प्रसव समय से होता है। समय से पहले प्रसव की जरूरत नहीं है। 105 गर्भस्थ महिलाओं पर शोध किया इनमें एंटी डी एंटीबॉडी टाइटर को आधार पर प्रसव के समय देखा तो पाया कि एंटी डी सांद्रता और समय से पहले प्रसव का कोई संबंध नहीं है। उच्च सांद्रता वाले एंटी डी एंटीबॉडी वाली महिलाओं के गर्भस्थ शिशु में जल्दी इंट्रा यूटेराइन रक्त चढ़ाना पड़ता है। इससे गर्भस्थ शिशु में रक्त की कमी नहीं होती है। मां में उपस्थित एंटी डी गर्भस्थ शिशु के लाल रक्त कणिका को नष्ट कर देता है जिसके कारण शिशु एनीमिया होता है।
स्टेरॉयड नहीं करेगा नुकसान – प्रो. जिया हाशिम
फेफड़ों के संक्रमण, सूक्ष्म रक्त वाहिका में रुकावट (वैस्कुलाइटिस) , सीओपीडी( क्रोनिक आब्सट्रेक्शन पल्मोनरी डिजीज) सहित कई बीमारी में स्टेरॉयड ( इम्यूनो सप्रेसिव) देना पड़ता है। हाई डोज डेक्सामेथासोन अक्सर दिया जाता है हमने देखा कि इससे फंगल संक्रमण की आशंका बढ़ जाता है। संजय गांधी पीजीआई के पल्मोनरी मेडिसिन के प्रो. जिया हाशिम ने शोध में पाया कि कम मात्रा में डेक्सामेथासोन की जगह वाइसोलोन, मिथाइन प्रिडलीसिलोन स्टेरायड देना चाहिए। सौ से अधिक मरीजों पर शोध किया है। इस शोध को विश्व स्तर पर स्वीकार किया गया है। शोध को रिसर्च शो केस में भी प्रस्तुत किया।
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