मंगलवार, 29 नवंबर 2022

पीजीआई में पहली बार स्थापित हुई गैस्ट्रो जेजुनोस्टॉमी -पेट के कैंसर मरीजों की जिंदगी होगी आसान -छोटी आंत और आमाशय के बीच बनाया खाना जाने का रास्ता

 




पीजीआई में पहली बार स्थापित हुई गैस्ट्रो जेजुनोस्टॉमी

-पेट के कैंसर मरीजों की जिंदगी होगी आसान

 -छोटी आंत और आमाशय के बीच बनाया खाना जाने का रास्ता 

-छोटी आंत और आमाशय के बीच में कैंसर के कारण नहीं खा पा - रहे खाना होती थी उल्टी

 


 

45 वर्षीय पुरुष के छोटी आंत और आमाशय के बीच में कैंसर के कारण खाना जाने का रास्ता पूरी तरह बंद हो गया था। इसके कारण यह लगातार उल्टी, खाना  खाने में परेशानी हो रही थी। पोषण न मिलने  के कारण शरीर के भार में गिरावट तेजी से हो रही है। इस परेशानी में अमूमन कैंसर के सर्जरी कर निकाला जाता है लेकिन  शारीरिक हालत ठीक न होने के कारण इनमें सर्जरी संभव नहीं थी।  ऐसे में इनकी जिंदगी को सरल बनाने के लिए संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट प्रो. प्रवीर राय ने एंडोस्कोपिक  अल्ट्रासाउंड  तकनीक से गैस्ट्रो जेजुनोस्टॉमी तकनीक से आमाशय और खाने के बीच में विशेष स्टंट डालकर खाने का रास्ता बना दिया। नया रास्ता बनने के  अगले दिन से यह खाना खाने लगे और उल्टी की परेशानी दूर हो गई।  यह तकनीक स्थापित करने वाला प्रदेश का पहला संस्थान व विभाग है।  उत्तर भारत के केवल तीन संस्थानों में  ही यह तकनीक स्थापित है।  प्रो राय के मुताबिक अभी तक आमाशय और छोटी आंत के बीच जो स्टंट डाला जाता है वह कैंसर कोशिकाओं के बीच से या पास से डाला जाता है। इसके कारण यह रास्ता दोबारा बंद हो जाता है।  ऐसे में दोबारा परेशानी शुरू हो जाती है।  हमने यह  रास्ते अलग बनाया जहां पर कैंसर सेल नहीं होते है। दोबारा यह परेशानी नहीं होगी। अमूमन बाकी केंद्रों पर सर्जरी की जाती है

 

प्रो. राय चुने गए एशियन एंडोस्कोपी अल्ट्रासाउंड ग्रुप के सदस्य

 

 एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड तकनीक से होने वाले पेट के कई बीमारियों के इलाज के लिए प्रोफेसर राय को एशियन एंडोस्कोपी ग्रुप का सदस्य चुना गया है । यह उत्तर भारत के अकेले पेट रोग विशेषज्ञ हैं जिन्हें इस ग्रुप में स्थान मिला है।  एशियाई देशों से गिने –चुने लोग  शामिल किए गए हैं जिसमें प्रोफेसर राय शामिल हैं। प्रो. 15 साल से पेट की तमाम बीमारियों के इलाज बगैर सर्जरी

एंडोस्कोपिक तकनीक से विकसित करने में लगे हैं।

 

 

पीजीआई की होगी एशियाई देशों में भागीदारी

 

एशियन एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड ग्रुप में शामिल होने के बाद पीजीआई की भागीदारी एशियाई देशों में होगी।  भारत में यह ग्रुप  तकनीक का विस्तार करेगा ।  पीजीआई उत्तर भारत के नए पेट रोग विशेषज्ञ को इस तकनीक में दक्ष करेगा और पहले से कर रहे विशेषज्ञों को नई तकनीक से अपडेट करेगा। पेट के तमाम बीमारियों के इलाज में सर्जरी की जरूरत कम की जा सकेगी। मरीजों को बिना सर्जरी के भी आराम मिलेगा

 

 

कैंसर के कारण तमाम परेशानी होती है जिससे जिंदगी काफी जटिल हो जाती है ऐसे में ऐसे मरीजों को बची हुई जिंदगी को सरल बनाने के लिए यह तकनीक काफी कारगर है खास तौर पर जब आमाशय और छोटी आंत के बीच में कैंसर हो।  इस तकनीक से उतना ही फायदा होता है जितना सर्जरी में फायदा होता है...प्रो. प्रवीर राय गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट एसजीपीजीआई लखनऊ

 

रविवार, 27 नवंबर 2022

पीजीआई में पहली बार जी पोयम तकनीक से दुरुस्त की गई पाचन शक्ति

 पीजीआई में पहली बार जी पोयम तकनीक से दुरुस्त की गई पाचन शक्ति




पीजीआई में 'गैस्ट्रोपैरेसिस' रोग के उपचार पर कार्यशाला


संजय गांधी पीजीआई के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग द्वारा गैस्ट्रोपैरेसिस रोग की बिना आपरेशन चिकित्सा 'गैस्ट्रिक जी पोयम' (गैस्ट्रिक पर ऑरल एंडोस्कोपिक मायटॉमी) तकनीक से इलाज किया गया। इसके साथ ही यह तकनीक संस्थान में स्थापित हो गई।
विभाग ने इस तकनीक को स्थापित करने के लिए कार्यशाला का आयोजन किया जिसमें इस तकनीक के विशेषज्ञ
  नागपुर डॉ सौरभ मुकेवार   शामिल हुए। 39 वर्ष
महिला
लगभग 2 साल से परेशानी बहुत ज्यादा बढ़ गयी थी जिसमें इस तकनीक से इलाज किया गया।

क्या है 

पीजीआई है गैस्ट्रोपैरेसिस

 गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो उदय घोषाल ने बताया कि 'गैस्ट्रोपैरेसिस' विकार में पाचन प्रक्रिया अत्यंत धीमी हो जाती है और भोजन पचने के बजाय पेट में ज्यादा समय तक रहता है ।ऐसा पेट की मांसपेशियों की गति धीमी या निष्क्रिय होने तथा पाचन तंत्र के वाल्व में विकार आ जाने से होता है।

क्या है जी पोयम प्रक्रिया

'जीपोयम' प्रक्रिया द्वारा बिना ऑपरेशन पाचन तंत्र में मुंह के रास्ते एंडोस्कोप (कैमरे के साथ एक संकीर्ण ट्यूब) डालकर चिकित्सा कर दी जाती है।

यह होती है परेशानी

संस्थान के पेट रोग विशेषज्ञ डॉ आकाश माथुर ने बताया कि
'गैस्ट्रोपैरेसिस' रोग (धीमी पाचन प्रक्रिया) में रोगी को
उल्टी आना, जी मिचलाना,पेट फूलना ,पेट में दर्द,पेट भरा हुआ महसूस होना, सीने में जलन, भूख में कमी आदि लक्षण आते हैं, जो पाचन तंत्र के अन्य सामान्य विकार या रोग जैसे हैं अतः इस विकार की पहचान मुश्किल हो जाती है।

डायबिटीज मरीजों में अधिक आशंका

 डायबिटीज के रोगियों में इस विकार के पाए जाने की संभावना अधिक होती है।
 निदेशक प्रो राधाकृष्ण धीमान के अनुसार पाचन संबंधित विकारों के लिए पीजीआई 'सेंटर ऑफ एक्सीलेंस' (उत्कृष्टता का केंद्र) है। कार्यशाला का आयोजन गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के सहा. प्रोफेसर डॉ आकाश माथुर ने किया।

बुधवार, 23 नवंबर 2022

देशी नुस्खा दिलाएगा छोटी आंत के बैक्टीरियल संक्रमण से मुक्ति - पीजीआई के प्रो. घोषाल के शोध से प्रभावित होकर भारतीय कंपनी ने बनायी कम कीमत वाली दवा

 देशी नुस्खा दिलाएगा छोटी आंत के बैक्टीरियल संक्रमण से मुक्ति

 


स्माल इंटेस्टाइनल बैक्टीरियल ओवर ग्रोथ का इलाज अब 60 गुना सस्ता

 

पीजीआई के प्रो. घोषाल के शोध से प्रभावित होकर  भारतीय  कंपनी ने बनायी कम कीमत वाली  दवा

 

छोटी आंत में बैक्टीरिया के संक्रमण(सीबो से निजात अब 60 गुना कम कीमत पर भी संभव है।   संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. यूसी घोषाल को शोध से प्रभावित हो कर  भारतीय कंपनी से सस्ती दवा तैयार किया है।  । इस परेशानी के इलाज के लिए विदेशी कंपनी का दवा का इस्तेमाल मरीजों में करना पड़ता जिसके पूरे कोर्स में लगभग 60 हजार का खर्च आता था । देशी दवा में केवल पूरे कोर्स का खर्च एक हजार आता है। देशी दवा से इलाज के खर्च में 60 गुना की कमी आ गई है। दवा का असर विदेशी दवा से जरा भी कम नहीं है। 1200 से 1600 मिली ग्राम रोज दो सप्ताह मरीज को दी जाती है।   देशी दवा से मरीजों को काफी राहत आर्थिक तौर पर मिल रही है। रिफाक्सीमिन  रिफैम्पिन के तरह संरचात्मक रसायन है। यह डीएनए पर निर्भर आरएनए पोलीमरेज़ से जुड़कर बैक्टीरिया आरएनए संश्लेषण को रोकता है। इस दवा का   अवशोषण आंत में  कम होता है। यह माइक्रोबियल दवा है जो एरोबिक और एनारोबिक ग्राम-पॉजिटिव और ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया दोनों के खिलाफ प्रभावी है। सीबो  के साथ 1331 रोगियों सहित 32 अध्ययनों के एक विश्लेषण में देखा गया कि रिफाक्सीमिन उपचार के साथ सीबो  को ठीक करने   70.8 फीसदी तक कारगर है।  आईबीएस के 20 से 30 फीसदी लोगों में  सीबो   जुड़ा हुआ होता  है। यह दवा  आईबीएस(इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम)  के लक्षणों को दूर करने के लिए 41 फीसदी तक  प्रभावी रहा है।  15 रोगियों में  87.5 फीसदी में 1 महीने में इलाज के लिए अच्छा परिणाम मिला है। सीबो के बिना आईबीएस के  65 मरीजों में   25 फीसदी  रोगियों अच्छे परिणाम मिले हैं।

 

कब्ज में भी कारगर 

एलएचबीटी( लैक्टूलोज हाइड्रोजन ब्रेथ टेस्ट)  के जरिए देखा गया कि सांस में  अधिक  मीथेन गैस पुरानी कब्ज और धीमी कोलन ट्रांजिट(आंत की गति)  से जुड़ा हुआ है। देखा गया है कि  रिफाक्सीमिननियोमाइसिन या इन दोनों के संयोजन दवाओं के साथ उपचार से सांस में  मीथेन में कमी होती है ।  कब्ज में सुधार होता है। देखा गया है कि सांस  में मीथेन की कमी  लाने और कोलन ट्रांजिट के कमी   के इलाज में रिफाक्सीमिन प्रभावी रहा है।


यह परेशानी तो लें सलाह

गैस बनने, पेट फूलनेस बार-बार मल द्वार से हवा निकलने, भूख में कमी, पेट में दर्द की परेशानी शुरूआती दौर में होती है। एडवांस स्टेज मे इन परेशानियों के सात  शरीर के भार में कमी, विटामिन एवं मिनिरल की कमी, न्यूरोपैथी 

वर्जन


स्माल इंटेस्टाइन बैक्टीरियल ओवर ग्रोथ(सीबो) और आंत सहित पेट के भीतरी आंगों की अनियमित गति से कुल पेट रोगियों में 50 से 60 फीसदी होते है। इनमें इलाज की दिशा तय करने के लिए विशेष सावधानी की जरूरत है। सीबो कई अन्य बीमारियों में बढ़ जाता है । इसके इलाज के लिए खास एंटीबोयिटक दवा इस्तेमाल होती है। देशी दवा आने के बाद इलाज सस्ता हो गया। यह मेक इंडिया के दिशा में बडी सफलता है....प्रो.यूसी घोषाल विभागाध्यक्ष गैस्ट्रोइंट्रोलाजी एसीजीपीजीआई 

शुक्रवार, 18 नवंबर 2022

हिंदु की किडनी मुसलमान के खून को करेगा साफ- पहली बार एक ही मरीज में हुआ कि़डनी और लिवर का प्रत्यारोपण

 टूट गई मजहब की दीवार


 

हिंदु की किडनी मुसलमान के खून करेगा साफ

 

सुरेंद्र दो लोगों को दे गए जिंदगी

 

 सड़क दुर्घटना में घायल सुरेंद्र के अंग रहेंगे जिंदा

 

 कुमार संजय। लखनऊ

 

    

तमाम लोग मजहब की बात पर एक दूसरे के जान के दुश्मन बन जाते हैं लेकिन यहां तो एक हिंदू की किडनी एक मुस्लिम युवक के खून को साफ कर रगों में शुद्ध खून दौडा कर  जिंदगी देगा। सड़क दुर्घटना में घायल हरदोई जिले के लोनार गांव के रहने  21 वर्षीय सुरेंद्र सिंह की किडनी 35 वर्षीय साद में प्रत्यारोपित की गयी। साद के परिवार में कोई डोनर नहीं था।  लंबे समय से  डायलिसिस पर थे। सुरेंद्र  इलाज के लिए मेडिकल विवि आए थे ।  दस दिन से वेंटिलेटर पर जिंदगी के लिए संघर्ष कर रहे थे, लेकिन  ब्रेन डेड के शिकार हो गए। मेडिकल विवि के लिवर ट्रांसप्लांट एक्सपर्ट प्रो. अभिजीत चंद्रा और सोटो और पीजीआई के अस्पताल प्रशासन विभाग के प्रमुख प्रो. राजेश हर्ष वर्धन की टीम ने परिवार को लोगों की काउंसलिंग की जिसके बाद परिजन अंगदान के लिए तैयार हो गए।  दोनों किडनीलिवर   रोपित किया गया। एक किडनी संजय गांधी पीजीआई में प्रत्यारोपित की गई। एसजीपीजीआई के यूरोलॉजिस्ट एवं किडनी ट्रांसप्लांट एक्सपर्ट प्रो. संजय सुरेखा , यूरोलॉजिस्ट डा. संचित और डा. मोहित के साथ मेडिकल विव पहुंचे कर किडनी निकाली। किडनी को वह खुद रोपित करने के लिए मेडिकल विवि में किया।  

 

 

पीजीआई की इस टीम ने किया किडनी ट्रांसप्लांट

 

  

  प्रो.एमएस अंसारीप्रो.उदय प्रताप सिंह और एनेस्थीसिया टीम प्रो. संजय धीराजडा. तपस और दिव्या ने किडनी ट्रांसप्लांट को अंजाम दिया।

 

 

 

मेडिकल विवि में एक ही मरीज में पहली बार  हुआ किडनी और लिवर का प्रत्यारोपण

 

 

 

मेडिकल विवि के लिवर ट्रांसप्लांट एक्सपर्ट  में प्रो. अभिजीत चंद्रा और एसजीपीजीआई के प्रो. संजय सुरेखा की टीम  में 50 वर्षीय पुरुष में किडनी एवं लीवर का प्रत्यारोपण किया। इनके यह दोनों अंग काम नहीं कर रहे थे। इनके पास कोई डोनर नहीं था।

 

 

 


 

हार्ट ट्रांसप्लांट के लिए नहीं मिला मरीज


हार्ट ट्रांसप्लांट के लिए एलर्ट नार्थ इंडिया स्तर जारी किया गया लेकिन उपयुक्त मरीज के न मिलने के कारण हार्ट का डोनेशन संभव नहीं हो पया।

बुधवार, 9 नवंबर 2022

भेष बदल कर आया डेंगू वायरस कर रहा अधिक परेशान

 भेष बदल कर आया डेंगू वायरस कर रहा अधिक परेशान



डेन टू सबटाइप   पीजीआई के अध्ययन में खुलासा

  तेजी से घटता है प्लेटलेट बढ़ती है ब्लीडिंग की आशंका


इस बार का डेंगू पिछले सालों के मुकाबले अधिक खतरनाक है। संजय गांधी पीजीआई के माइक्रोबायोलॉजी विभाग की प्रमुख प्रो. उज्जवला घोषाल के मुताबिक हमने डेंगू वायरस के प्रकार को लेकर अध्ययन किया तो पाया कि इस साल डेन -2 सब सबटाइप सबसे अधिक लोगों को संक्रमित कर रहा है। इसके साथ डेन -3 सब टाइप भी पाया गया है। वायरोलाजी लैब के प्रभारी डा. अतुल गर्ग के मुताबिक हर साल डेंगू का सब टाइप बदलता रहता है। पिछले साल डेन -3 सब टाइप संक्रमित कर रहा था । डेन -2 सब टाइप हेमोरेजिक फीवर और शांक सिंड्रोम की आशंका को बढाता है। इस लिए सचेत रहने की जरूरत है।   विशेषज्ञों के मुताबिक  रोगी को पहले दो दिनों तक बुखार रहता है। तीसरे दिन बुखार उतर जाता है। रोगी स्वयं को स्वस्थ समझता है। इसके बाद अचानक मरीज के प्लेटलेट्स कम होने लगते हैं। डेंगू में प्लेटलेट काउंट 10,000 से कम होना चिंता का विषय हैलेकिन डी2 में 40,000 से कम प्लेटलेट काउंट पर सचेत रहने की जरूरत है।  युवा डेंगू की चपेट में आ रहे हैं। 21 से 50 साल के आयु वर्ग में मरीजों की संख्या सबसे ज्यादा है।  पुरुषों की संख्या महिलाओं की तुलना में अधिक है।

 

 

 

 

सामान्य डेंगू बुखार के लक्षण

 तेज बुखार, सिरमांसपेशियों और जोड़ों दर्द,  कमजोरी, भूख न लगना,  जी मिचलाना, उल्टी , शरीर पर लाल-गुलाबी दाने

 

डेंगू हिमोरेजिक फीवर

 

नाक और मसूड़ों ,  शौच या उल्टी में खून आना ,  त्वचा पर छोटे-छोटे गहरे नीले-काले निशान

 

डेंगू शॉक सिंड्रोम के लक्षण

बेचैन होना,तेज बुखार के बावजूद उसकी त्वचा की ठंडक, धीरे-धीरे बेहोश होना, नब्ज कभी-कभी तेज और धीमी होना

 

 

 डेंगू की रोकथाम और उपचार

-ऐसे कपड़े पहने जो पूरे शरीर को ढक सके

-      मच्छर क्रीमस्प्रेतरल आदि का प्रयोग करें

 

क्या खाएं 

ताजे फलजूसअंकुरित अनाजदलियादूधदाल का पानी , अधिक से अधिक पानी 

 

छोटी आंत में अधिक बैक्टीरिया का कारण बन सकता है एनीमिया और बी12 की कमी

 छोटी आंत में अधिक बैक्टीरिया का कारण बन सकता है एनीमिया और बी12 की कमी


 पीजीआई के प्रो. घोषाल ने एशिया के देशों लिए  बनाई गाइड लाइन में नए कारण और इलाज का बताया तरीका

 उम्र बढ़ने के साथ बढ़ सकती है सीबो की आशंका

 

एनीमिया और बी 12 विटामिन की कमी के कारण पेट की परेशानी हो सकती है। हीमोग्लोबिन एवं विटामिन बी 12 की कमी के कारण छोटी आंत में बैक्टीरिया अधिक संख्या में पैदा हो जाते है जिसे स्माल इंटेस्टाइन बैक्टीरिया ओवर ग्रोथ( सीबो) कहते है। इस नए कारण का पता संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के गैस्ट्रो एन्ट्रोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो.यूसी घोषाल ने लगाया है। इस तथ्य को प्रो. घोषाल ने इंडियन न्यूरो गैस्ट्रोएंट्रॉलजी एंड मोटैलिटी एसोसिएशन( एशिया पेसिफिक रीजन) ने  एशिया के देशों के लिए  सीबो के इलाज और बीमारी को पता करने के लिए गाइडलाइन में शामिल किया है। सीबो अधिक उम्र के लोगों में अधिक होता है और स्वस्थ लोगों में कम होता है।  इस प्रस्ताव पर एशियन कंट्री के 84 फीसदी विशेषज्ञों ने सहमति जतायी। इसके कारण पर लंबी चर्चा हुई । प्रो. घोषाल के मुताबिक डायबटीज, कम सरीम एलब्यूनिन, पैक्रिएटाइटिस,सीलिएक डिजीज, आईबीएस, आटो इम्यून डिजीज, क्रॉनिक लिवर डिजीज सहित अन्य कारण है ।   एनीमिया और विटामिन बी 12 की कमी भी एक कारण है। इस नए तथ्य से एशिया के देशों के पेट रोग विशेषज्ञों का सीबो का कारण पता करने में सफलता कर इलाज में मदद मिलेगी। इलाज के लिए खास एंटीबायोटिक को भी हाइड लाइन में शामिल किया गया है। यह कई तरह से सुरक्षित और प्रभावी है।  इस खोज को इंडियन जर्नल आफ गैस्ट्रोइंट्रोलाजी ने भी  स्वीकार किया है।  


 

जीएचबीटी जांच से पकड़ में आती है परेशानी

  

प्रो. घोषाल के मुताबिक सीबो का पता करने के लिए आंत से द्रव लेकर उसका कल्चर जांच करना गोल्ड स्टैंडर्ड माना जाता रहा है लेकिन 30 फीसदी गट ( आंत) के पानी में उपस्थित बैक्टीरिया का कल्चर संभव नहीं होता है ऐसे में ग्लूकोज हाइड्रोजन ब्रेथ टेस्ट(जीएचबीटी) और लैक्टूलोज हाइड्रोजन ब्रेथ टेस्ट(एलएचबीटी) जिसमें किसी भी सूई की जरूरत नहीं होती है टेस्ट अधिक सफल माना जा रहा है। गाइड लाइन में बताया गया है कि  हाइड्रोजन ब्रेथ टेस्ट अच्छा है। लैक्टूलोज हाइड्रोजन ब्रेथ टेस्ट में गलत पॉजिटिव रिपोर्ट की आशंका अधिक है।     

 

आईबीएस और सीबो का बीच है रिश्ता

प्रो. घोषाल के मुताबिक देखा गया है कि आईबीएस( इरिटेबल बावेल सिंड्रोम और सीबी को बीच रिश्ता है। आईबीएस के 40 फीसदी मरीजों में ब्रेथ टेस्ट पॉजिटिव मिला है। 19 फीसदी में आंत के पानी के कल्चर में बैक्टीरियल ग्रोथ मिला है।

 

सीबो में यह होती है परेशानी

प्रो. घोषाल के मुताबिक सीबो की परेशानी के साथ विभाग में आने में कुल मरीजों में 50 से 60 फीसदी होते है। इस परेशानी में   छोटी आंत में बैक्टीरिया की संख्या अधिक हो जाता है।  पेट में गैस और मालीक्यूल बनते है। इसके कारण गैस बनने, पेट फूलने, बार मल द्वार से हवा निकलने, पाचन में कमी, भूख में कमी, पेट दर्द की परेशानी शुरुआती दौर में होती है। एडवांस स्टेज में शरीर के भार में कमी, विटामिन और मिनरल की कमी, एनीमिया, न्यूरोपैथी की परेशानी हो सकती है।