पीजीआई बेड साइट पर शुरू किया सेल सेपरेशन
मेस्थेनिया ग्रेविस ग्रस्त वेंटीलेटर पर निकाला एंडीबाडी परेशानी दूर
प्लाज्मा फेरेसिस और प्लेटलेट्स सेपरेशन तकनीक कई बीमारी के इलाज में कारगर
मेस्थेनिया ग्रेविस बीमारी से ग्रस्त मरीज संजय गांधी पीजीआई के आईसीयू में भर्ती हुआ । मांसपेशियां इतनी कमजोर हो गयी थी सांस तक लेने में परेशानी थी। विशेषज्ञों ने वेंटिलेटर पर रखा । आईसीयू के विशेषज्ञों ने ब्लड ट्रांसफ्यूजन विभाग के विशेषज्ञों से संपर्क किया तो तय किया गया प्लाज्मा फेरेसिस कर यदि बीमारी पैदा करने वाले दुश्मन( एंटीबॉडी) को शरीर से निकाल दिया जाय तो जिंदगी बच सकती है। वेंटीलेटर पर रखने के साथ दो बार प्लाज्मा फेरेसिस किया गया और मरीज वेंटीलेटर से बाहर आ गए। ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रो. आरके चौधरी और प्रो. राहुल कथारिया के मुताबिक 55 वर्षीय राम शरण इस बीमारी से ग्रस्त हो कर भर्ती हुए। इनमें इस तकनीक से इलाज कर जिंदगी बचायी गयी। हम लोगों ने बेड साइड प्लाज्मा फेरेसिस और प्लेटलेट्स सेपरेशन( केवल प्लेटलेट्स को रक्त से अलग करना) शुरू किया है। इससे मरीजों का काफी फायदा मिल रहा है। हम लोगों के पास प्लाज्मा एक्सचेंज करने की एक मशीन और प्लेटलेट्स सप्रेटर की तीन मशीनें है। सभी क्रियाशील है। इस तकनीक से हम लोग मेस्थेनिया ग्रेविस के आलावा, थ्रम्बोसाइटोपीनिया, एक्यूट लिवर फेल्योर सहित अन्य में इलाज करते हैं। थ्रोम्बोसाइटोपेनिया के मरीजों में प्लेटलेट्स की संख्या बढ़ जाती है जिससे रक्त का थक्का बनने लगता है। हम प्लेटलेट्स सेप्रेरटर के जरिए अतिरिक्त प्लेटलेट्स को निकाल देते है। इसी तरह एक्यूट लिवर फेल्योर के मरीजों में शरीर मे बहुत अधिक टाक्सिन बन जाता है जिससे प्लाज्मा एक्सचेंज तकनीक से निकाल देते है मरीज की परेशानी कम हो जाती है। प्रो. राहुल ने बताया कि इस तकनीक की जरूरत बढ़ती जा रही है।
क्या है मेस्थेनिया ग्रेविस
प्रो. राहुल ने मेस्थेनिया ग्रेविस एसीटलीन क्लीन रिसेप्टर और मसल स्पेस्फेसिक काइनेज के खिलाफ एंटीबाडी बन जाती है जिससे मांसपेशियां कमजोर हो जाती है। सासं लेने के लिए काम करने वाली मांसपेशियां तक काम नहीं करती है। इस बीमारी का इलाज संभव है। बस जीवन बच जाए इसके लिए यह तकनीक जीवनदायी साबित होती है।