मंगलवार, 30 नवंबर 2021

पीजीआई - मेस्थेनिया ग्रेविस ग्रस्त वेंटीलेटर पर निकाला एंडीबाडी परेशानी दूर

 

पीजीआई बेड साइट पर शुरू किया सेल सेपरेशन

 मेस्थेनिया ग्रेविस ग्रस्त वेंटीलेटर पर  निकाला एंडीबाडी परेशानी दूर

प्लाज्मा फेरेसिस और प्लेटलेट्स सेपरेशन तकनीक कई बीमारी के इलाज में कारगर

 



मेस्थेनिया ग्रेविस बीमारी से ग्रस्त मरीज संजय गांधी पीजीआई के आईसीयू में भर्ती हुआ । मांसपेशियां इतनी कमजोर हो गयी थी सांस तक लेने में परेशानी थी। विशेषज्ञों ने वेंटिलेटर पर रखा । आईसीयू के विशेषज्ञों ने ब्लड ट्रांसफ्यूजन विभाग के विशेषज्ञों से संपर्क किया तो तय किया गया प्लाज्मा फेरेसिस कर यदि बीमारी पैदा करने वाले दुश्मन( एंटीबॉडी) को शरीर से निकाल दिया जाय तो जिंदगी बच सकती है। वेंटीलेटर पर रखने के साथ दो बार प्लाज्मा फेरेसिस किया गया और मरीज वेंटीलेटर से बाहर आ गए। ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रो. आरके चौधरी और प्रो. राहुल कथारिया के मुताबिक 55 वर्षीय राम शरण इस बीमारी से ग्रस्त हो कर भर्ती हुए। इनमें इस तकनीक से इलाज कर जिंदगी बचायी गयी। हम लोगों ने बेड साइड प्लाज्मा फेरेसिस और प्लेटलेट्स सेपरेशन( केवल प्लेटलेट्स को रक्त से अलग करना)  शुरू किया है। इससे मरीजों का काफी फायदा मिल रहा है। हम लोगों के पास प्लाज्मा एक्सचेंज करने की एक मशीन और प्लेटलेट्स सप्रेटर की तीन मशीनें है। सभी क्रियाशील है।  इस तकनीक से हम लोग मेस्थेनिया ग्रेविस के आलावा, थ्रम्बोसाइटोपीनिया, एक्यूट लिवर फेल्योर सहित अन्य में इलाज करते हैं। थ्रोम्बोसाइटोपेनिया के मरीजों में प्लेटलेट्स की संख्या बढ़ जाती है जिससे रक्त का थक्का बनने लगता है। हम प्लेटलेट्स सेप्रेरटर के जरिए अतिरिक्त प्लेटलेट्स को निकाल देते है। इसी तरह एक्यूट लिवर फेल्योर के मरीजों में शरीर मे बहुत अधिक टाक्सिन बन जाता है जिससे प्लाज्मा एक्सचेंज तकनीक से निकाल देते है मरीज की परेशानी कम हो जाती है। प्रो. राहुल ने बताया कि इस तकनीक की जरूरत बढ़ती जा रही है।

क्या है मेस्थेनिया ग्रेविस

 प्रो. राहुल ने मेस्थेनिया ग्रेविस एसीटलीन क्लीन रिसेप्टर और मसल स्पेस्फेसिक काइनेज के खिलाफ एंटीबाडी बन जाती है जिससे मांसपेशियां कमजोर हो जाती है। सासं लेने के लिए काम करने वाली मांसपेशियां तक काम नहीं करती है। इस बीमारी का इलाज संभव है। बस जीवन बच जाए इसके लिए यह तकनीक जीवनदायी साबित होती है।

रविवार, 28 नवंबर 2021

अंगदान से किसी को मिल सकता है जीवन--- स्टेट ऑर्गन डोनेशन पालसी होगी प्रदेश में लागू

 

पीजीआई में 12 वां इंडियन आर्गन डोनेशन डे

अंगदान से किसी को मिल सकता है जीवन
स्टेट ऑर्गन डोनेशन पालसी होगी प्रदेश में लागू

जागरणसंवाददाता। लखनऊ


अंगदान के जरिए किसी को जीवन दे सकते है। एक व्यक्ति चार से पांच लोगों को जिंदगी दे सकता है। संजय गांधी पीजीआई में आयोजित 12 वें इंडियन आर्गन डोनेशन डे के मौके पर राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने अपील किया कि लोग इस मानवता के काम में आगे आए। मृत्यु के बाद नेत्र दान कर किसी को रोशनी दे सकते हैं।  ब्रेन डेड के बाद परिवार के लोगों को अंगदान के लिए आगे आना पड़ेगा। राज्यपाल ने बताया कि उनके खास जानने वाले के बारे में बताया कि उनका इलाज संभव नहीं था ऐसे में उन्होंने लिवर और किडनी दान किया जिनको लगा वह अच्छी जिंदगी जी रहे हैं। मुख्य सचिव आरके तिवारी ने कहा कि पीजीआई ने स्टेट ऑर्गन डोनेशन पालसी तैयार किया है। सरकार इसे लागू करेगी जिससे अंग की कमी पूरा करने में मदद मिलेगी। चिकित्सा शिक्षा मंत्री सुरेश खन्ना ने संस्थान के साथ ही किंग जार्ज मेडिकल विवि, राम मनोहर लोहिया में चल रहे अंग प्रत्यारोपण प्रोग्राम की सराहना किया। इस काम लगे लोगों के बारे यह लोग निराश लोगों को जिंदगी में आस भर रहे हैं। निदेशक प्रो.आर के धीमन ने कहा कि अंगो के कमी के कारण पांच लाख लोगों की हर साल मौत हो जाती है। इसमें दो लाख लिवर के मरीज है। 1.5 लाख किडनी के मरीज है। इस मौके पर नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. नरायान प्रसाद ने कहा कि किडनी प्रत्यारोपण लाइव हम लोग कर रहे है। आगे कैडेवर मिलने के बाद उन लोगों को फायदा जिनके पास कोई डोनर नहीं है।

रोड एक्सीडेंट के 10 फीसदी से 20 हजार को मिल जाएगी किडनी

प्रो. आरके धीमान ने कहा कि रोड एक्सीडेंट के ब्रेन डेथ के केवल 10 फीसदी केस के ही आर्गन डोनेशन हो जाए तो 20 हजार को किडनी, 10 हजार को लिवर, 20 हजार को आंख मिल सकता है।             

 पोस्टर प्रतियोगिता के विजेता
स्टेट ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट आर्गेनाइजेशन( सोटो) अंग दान को बढ़ावा   जागरूकता अभियान 
शुरू किया था। स्कूल और कॉलेज के छात्रों के बीच पोस्टर प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था थीम था आर्गन डोनेशन -बी ए मिरेकल मेकर होगा। विभिन्न स्कूलों के आठ छात्रों के पोस्टर के पुरस्कार के लिए चयनित किया गया।

प्रथम पुरस्कार- केवी गोमती नगर- आकृति वर्मा
दि्तीय - सीएमएस स्टेशन रोड- विदुषी सिंह
तृतीय पुरस्कार- सीएमएस गोमती नगर- महरुख जेहरा
सांत्वना पुरस्कार-1- सेंट एगनस लोरेंटो- चोइत्री बनर्जी
सांत्वना पुरस्कार 2- सीएमएस गोमतीनगर- आकृति सम्यक
सांत्वना पुरस्कार-3-एलपीएस साउथ सिंटी- ईंशु यादव
सांत्वना पुरस्कार-4- केवीएमएमसी- सपना कुमारी
सांत्वना पुरस्कार-5- एलपीएस साउथ सिटी- हर्षवर्धन नाथ


अंगदान की भ्रांतियां दूर करेगा सोटो

सोटो के नोडल आफीसर प्रो. राजेश हर्षवर्धन ने कहा कि र्अंगदान को लेकर तमाम तरह की भ्रांतिया है । लाइव के साथ कैडेवर डोनेशन को भी बढ़ावा देने की जरूरत है तभी किडनी, लिवर ट्रांसप्लांट, हार्ट ट्रांसप्लांट सहित अन्य को गति मिलेगी।    देश में दो-दो लाख गुर्दा व लिवर प्रत्यारोपण के मुकाबले करीब आठ हजार गुर्दा व एक हज़ार लिवर का प्रत्यारोपण हो पा रहा है। बाकी अंगों की स्थित यही है। प्रदेश में अंगदान के प्रति जागरूक करने की पहल की गई है।  अंगदान किये जाने वाले अंग और ऊतक जो क्रमशः दिल, गुर्दा, लिवर पैंक्रियाज आंत और फेफड़ों के अलावा त्वचा,  अस्थि, अस्थि मज्जा, कार्निया, कारटिलेज , माँसपेशिया  आदि है।

पीजीआई देश का पहला संस्थान देगा डीएम इन मैटर्नल एंड फीटल मेडिसिन डिग्री

 


पीजीआई देश का पहला संस्थान देगा डीएम इन मैटर्नल एंड फीटल मेडिसिन डिग्री

पीजीआई एमआरएच विभाग का स्थापना दिवस समारोह   

पूरे विश्व के 50 फीसदी मृत शिशु का जन्म भारत में


संजय गांधी पीजीआई देश का पहला संस्थान होगा जो गर्भस्थ शिशु और गर्भवती महिला के इलाज के लिए डाक्ट्रेट डिग्री धारक विशेषज्ञ तैयार करेगा। संस्थान मैटर्नल एंड रिप्रोडक्टिव हेल्थ विभाग डीएम इन मैटर्नल एंड फीटल मेडिसिन शुरू करने जा रहा है। विभाग की प्रमुख प्रो. मंदाकिनी प्रधान ने बताया कि इस पाठक्रम के लिए संस्थान स्तर सारी प्रक्रिया पूरी करने के बाद अनुमति के लिए नेशनल मेडिकल कमीशन को प्रस्ताव भेजा गया। कमीशन की अनुमति मिलते ही यह डीएम प्रोग्राम शुरू हो जाएगा। तीन सीट के लिए अनुमति मांगी गयी है। विभाग पीडीसीसी प्रोग्राम चला रहा है। विभाग के पहले स्थापना दिवस समारोह के मौके पर प्रो. इंदु साहू , प्रो.नीता सिंह ने बताया कि अभी डाक्ट्रेट डिंग्री पाठयक्रम पूरे देश में नहीं है। हाई रिस्क प्रेगनेंसी के मामले देखने और मैनेज करने के लिए सुपर स्पेसिएलिटी की जरूर है। इस डिंग्री के बाद विशेषज्ञता बढेगी जिससे हाई रिस्क प्रगिनेंशी मैनेज करना संभव होगा। विशेषज्ञओं ने बताया कि स्टिल बर्थ ( मृत शिशु का जन्म) के मामले में पूरे विश्व के मामलों में 50 फीसदी से अधिक मामले भारत में होते है। इसके पीछे कारण प्रिगनेंशी को अलग तरह से मैनेज करने की सुविधा और विशेषज्ञता में कमी हो सकती है। इस मौके पर कमल मेहरोत्रा ने सफलता हासिल के मंत्र बताए। दिल्ली के हमदर्द मेडिकल संस्थान की डा. रीवा त्रिपाठी ने फीटल मेडिसिन की भारत में जरूरत पर बल दिया। डा. एस सुरेश, डा. श्री विद्या ने मैटर्नल एंड फीटल मेडिसिन के विस्तार के लिए काम करने की जरूरत बताया।

  

गभर्स्थ एक हजार शिशु चढ़ाया खून   

प्रो. मंदाकिनी प्रधान ने बताया कि अल्ट्रासोनोग्राफी,  बल्ड मार्कर के जरिए मां में हम पता लगा लेते है कि किसमें ब्लड प्रेशर बढ़ने, किसमें प्रीमैच्योर प्रसव की आशंका है। शिशु में परेशानी का पता लगा कर कुछ हद गर्भ में ही इलाज संभव है। गर्भस्थ शिशु में रक्त की कमी को पूरा करने के लिए हम लोग गर्भ में ही रक्त चढ़ाते है। हमारा विभाग उत्र भारत का तीसरा अस्पताल है जिसमें यह शुरू हुई। इसे इंट्रा यूट्राइन ब्लड ट्रांसफ्यूजन कहते है। अभी तक एक हजार से अधिक गर्भस्थ शिशुओं में रक्त चढ़ाया गया है। यह बहुत ही जटिल प्रक्रिया है।  निदेशक प्रो.आरके धीमन ने कहा कि कहा कि हाई रिस्क प्रेगनेंसी के मामले विभाग काफी अच्छा काम कर रहा है। 

सोमवार, 22 नवंबर 2021

वार्ड मैनेजमेंट के लिए पीजीआई तैयार विशेषज्ञ- जीएनएम या बीएससी नर्सिंग धारक ले सकेंगे प्रवेश

 वार्ड मैनेजमेंट के लिए पीजीआई तैयार विशेषज्ञ

 


प्रदेश का पहला संस्थान जो तैयार करने जा रहा है विशेषज्ञ

तीस सीट के लिए मांगी है अनुमति

 

किसी भी अस्पताल में मरीज के भर्ती होने के बाद पूरी –देख रेख की जिम्मेदार नर्सेज पर होती है। सही समय पर दवा, वाइटल चार्ट, सही समय पर सही भोजन, बेड प्रबंधन, आकस्मिक दवा की उपलब्धता, मेडिकल उपकरणों का रखरखाव  सहित तमाम जिम्मेदारी नर्सेज के हवाले होती है। वार्ड प्रबंधन एक अलग तरह की विशेषज्ञता है जिस पर ध्यान नहीं दिया गया। इसके कारण कार्य की गुणवत्ता कई बार प्रभावित होती है। इसी तथ्य को ध्यान में रख कर संजय गांधी पीजीआई का अस्पताल प्रशासन विभाग प्रदेश में पहली बार नर्सिंग एडमिनिस्ट्रेशन में सर्टिफिकेट प्रोग्राम शुरू करने जा रहा है। इस प्रोग्राम के लिए तीस सीट की अनुमति मांगी गयी है। विभाग के प्रमुख प्रो.राजेश हर्ष वर्धन का मानना है कि इस पाठ्यक्रम को करने वाले लोग यदि वार्ड मैनेजमेंट करेंगे तो वार्ड की व्यवस्था की गुणवत्ता में 40 से 50 फीसदी गुणवत्ता में वृद्धी होगी। मरीजों को संतुष्टि मिलेगी। इलाज की सफलता दर बढेगी। इस पाठ्यक्रम के लिए कोर्स का पूरा विवरण तैयार लिया गया। इसमें बीएससी नर्सिग एवं जीएनएम कर चुकी नर्सेज को प्रवेश दिया जाएगा। यह सर्टिफिकेट कोर्स एक साल का होगा। प्रो. हर्ष वर्धन का कहना है नर्सेज , एमबीबीएस, बीडीएस कर चुके लोगों के लिए पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन हास्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन चला रहे है । इसके अलावा फर्स्ट एड. फूड एंड न्यूट्रिशन , कम्युनिटि हेल्थ, हेल्थ केयर वेस्ट मैनेजमेंट सर्टिफिकेट कोर्स चल रहा है जिसका फायदा अस्पताल संचालन में मिल  रहा है।

 

हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन की बढ़ेगी चार सीट

हास्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन डिग्री कोर्स के लिए अभी हमारे पास केवल 6 सीट है । चार सीट बढ़ाने के प्रस्ताव की अनुमति मिल गयी है। जुलाई 2022 से यह सीट बढ़ जाएगी। इसके आलावा किंग जार्ज मेडिकल विवि, कैंसर संस्थान में भी अस्पताल प्रशासन विभाग स्थापित हो गया है। राम मनोहर लोहिया और गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज नोएडा में विभाग खुलने जा रहा है। इसके लिए हम लोग लगातार काम कर रहे। इन संस्थानों में विभाग खुलने के बाद प्रदेश से तीस से अधिक अस्पताल प्रबंधन के डिग्री धारक मिलेंगे। 

रविवार, 21 नवंबर 2021

पीजीआई गैस्ट्रो. पल्मोनरी, न्यूरो और डायबटिक केयर के मामले में देश में टांप 10 में शामिल -पीजीआई नार्थ इंडिया के बेस्ट तीसरा सरकारी अस्पताल

 

पीजीआई नार्थ इंडिया के बेस्ट तीसरा सरकारी अस्पताल


  संजय गांधी पीजीआई ने बेस्ट मल्टी स्पेशियलिटी हास्पिटल सरकारी क्षेत्र  के श्रेणी में देश में तीसरा स्थान हासिल किया है।इसके साथ ही  देश स्तर पर संस्थान के गैस्ट्रो, न्यूरो, और पल्मोनरी केयर सातवां स्थान मिला है जबकि डायबटिक केयर के मामले में दसवां स्थान हासिल किया है। एक पत्रिका ने इसी हफ्ते यह सर्वे जारी किया है। सर्वे  में 17 शहरों (साथ ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) को शामिल किया गया जिसमें  महत्वपूर्ण चिकित्सा केंद्र हैं। 10 स्पेशियलिटी को भी शामिल किया गया जिसमें गैस्ट्रो , न्यूरो , पल्मोनरी, डायबिटीज,  सहित अन्य शामिल है। अस्पतालों को भी स्थान दिया गया। सर्वे में मुख्य रूप से संस्थान की  प्रतिष्ठा, डॉक्टरों की योग्यता, बुनियादी ढांचा और सुविधाएं और अनुसंधान और नई खोज को भी शामिल किया है। सरकारी श्रेणी के पांच अस्पतालों में पहले स्थान पर  एम्स दिल्ली, दूसरे स्थान पर  पीजीआई चंडीगढ़, तीसरे स्थान पर संजय गांधी पीजीआई लखनऊ, चौथे स्थान पर जिपमर पुडुचेरी और पांचवें स्थान पर केईएम हॉस्पिटल मुंबई  शामिल है। सरकारी और निजी अस्पताल को मिला कर देखा जाए तो संजय गांधी पीजीआई पांचवें स्थान पर है। इसके ऊपर मेदांता गुरुग्राम और अपोलो दिल्ली है।  संस्थान प्रशासन का कहना है कि   देश दो सरकारी संस्थान जो एसजीपीआई से ऊपर है वह काफी पहले से स्थापित है। हमारा संस्थान इनके काफी बाद है। पेशेंट केयर की नई सुविधाएं स्थापित करने के साथ शोध में काफी काम हो रहा है। 

न्यूरो, गैस्ट्रो , पल्मोनरी में देश में डंका

देश स्तर पर संस्थान के गैस्ट्रो, न्यूरो, और पल्मोनरी केयर सातवां स्थान मिला है जबकि डायबटिक केयर के मामले में दसवां स्थान हासिल किया है।

बडे होकर यह बच्चे भी भरेंगे जिंदगी की उड़ान - क्रानियोसिनेस्टोसिस से ग्रस्त बच्चों को पीजीआई दो विभाग ने मिल दिया जीवन जल्दी सर्जरी तो अच्छी होगी बच्चों की जिंदगी

 


बडे होकर यह बच्चे भी भरेंगे जिंदगी की उड़ान

  

 क्रानियोसिनेस्टोसिस से ग्रस्त बच्चों को पीजीआई  दो विभाग ने मिल दिया जीवन

जल्दी सर्जरी तो अच्छी होगी बच्चों की जिंदगी 

      

 

संजय गांधी पीजीआई के न्यूरो सर्जरी विभाग और प्लास्टिक सर्जरी विभाग के विशेषज्ञों  ने मिल कर जन्मजात बनावटी बीमारी क्रानियोसिनेस्टोसिस बीमारी से ग्रस्त बच्चों की सर्जरी कर इनकी  जिंदगी में उड़ान भर दिया है। इस बीमारी के कारण इन बच्चों के  सिर, आंख व हाथ की विकृति थी जिसे सर्जरी  कर नया जीवन दिया है। अब दोनों मासूम के अंग दिखने में सामान्य बच्चों की तरह हो गए हैं। इनमें एक बच्चा सीतापुर व दूसरा कोलकाता है। यह उपलब्धि पीजीआई के न्यूरो सर्जरी विभाग के डॉक्टरों हासिल की है। विशेषज्ञों के मुताबिक इस तरह के  जटिल सर्जरी की सुविधा यूपी में सिर्फ पीजीआई में उपलब्ध। यह दोनों ऑपरेशन पीजीआई के न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रो. अरुण श्रीवास्तव व प्रो. वेद प्रकाश मौर्य की टीम ने किया है। प्रो. अरुण बताते हैं कि यह ऑपरेशन काफी जटिल होता है। सिर को पूरा खोलते हैं। फिर हड्डियों को कई टुकड़ों में अलग कर फिर सही क्रम में जोड़ते हैं। जुड़ी हुई उंगली एवं तालु का ऑपरेशन प्लास्टिक सर्जरी विभाग के प्रो. राजीव अग्रवाल व प्रो अंकुर भटनागर द्वारा की गईं। डॉक्टरों ने यह ऑपरेशन नवम्बर में किया था। ऑपरेशन में करीब सात घंटे लगे। एनेस्थीसिया टीम में डॉ. शशी, डॉ. देवेन्द्र गुप्ता एवं डॉ. रूद्रा शीश रहे। दोनों मासूमों को अस्पताल से छुट्टी कर दी गई है। अब दोनों मासूम स्वस्थ्य हैं। 

 

क्या है क्रानियोसिनेस्टोसिस

 

प्रो. अरुण कुमार श्रीवास्तव बताते हैं कि क्रानियोसिनेस्टोसिस एक जटिल बीमारी है। इसमें नवजात बच्चों के सिर की हड्डियां समय से पहले जुड़ जाती हैं। सिर का आकार बढ़ने के साथ दिमाग, आंख व दूसरे अंगों में दबाव पड़ने पर अंग क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। आंखें बाहर निकल आती हैं। यह बीमारी दो से ढाई हजार बच्चों में से एक को होती है। अभी इसका आपरेशन सिर्फ  दिल्ली, चेन्नई व केरल में हो रहा है।

दिमाग का विकास प्रभावित होता

इस बीमारी का सही वक्त पर इलाज न मिलने पर दिमाग व शरीर का विकास प्रभावित होता है। बच्चों में सोचने, समझने की क्षमता और याददाश्त कमजोर होने लगती है। शरीर के दूसरे अंगों पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। इसकी पहचान जितनी जल्दी होगी। उसके ठीक होने की उम्मीद ज्यादा होगी। अभिभावक व बाल रोग विशेषज्ञों को भी चाहिए कि वह बीमारी के शुरुआती लक्षण पता चलने पर तुरन्त न्यूरो सर्जरी के डॉक्टर के पास भेजें

बुधवार, 17 नवंबर 2021

पीजीआई ने खोजा पैंक्रियाटाइटिस का नया कारण---- दिल ही नहीं है पैंक्रियाज का भी दुश्मन साबित हो सकता है फैट

 

पीजीआई ने खोजा पैंक्रियाटाइटिस का नया कारण

दिल ही नहीं है पैंक्रियाज का भी दुश्मन साबित हो सकता है फैट

हाई ट्राइग्लिसराइड विथ पैंक्रियाटाइटिस नॉर्थ इंडिया का पहला मामला    

 कुमार संजय, लखनऊ : दिल के लिए खतरनाक माना जाने वाला ट्राइग्लिसराइड एक तरह का फैट है, जो पैंक्रियाज का भी दुश्मन साबित हो सकता है। नार्थ इंडिया का ऐसा पहला मामला  संजय गांधी पीजीआइ में देखने को मिला है। उड़ीसा की रहने वाली  चार साल की बच्ची छह महीनों से बार -बार  पेट में  दर्द और  उल्टी की परेशानी के साथ संजय गांधी पीजीआइ के पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग में पहुंची। तमाम परीक्षण में देखा गया कि  पीलियापेट में चोट या नशीली दवाओं के सेवन का कोई इतिहास नहीं था।  रक्त की जांच में देखा गया कि सीरम का रंग  सफेद था। जिसमें ट्राइग्लिसराइड (2451 मिलीग्राम / डीएल) और कुल कोलेस्ट्रॉल 343 मिलीग्राम / डीएल था। विशेषज्ञों ने  पेट की कंप्यूटेड टोमोग्राफी(सीटी) जांच कराया। इसके पैंक्रियाज (अग्नाशय) में  भारीपन,  इंट्रा-पैरेन्काइमल द्रव जमा था लेकिन  फैटी लीवर नहीं था। क्रोनिक पैक्रिएटाइटस दिखा जबकि माता-पिता का लिपिड प्रोफाइल सामान्य था।

क्या है ट्राइग्लिसराइड्स

 ट्राइग्लिसराइड्स  रक्त में मौजूद एक प्रकार का वसा होता है। ट्राइग्लिसराइड के उच्च स्तर से हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है। आनुवांशिक विरासतचयापचय रोग (जैसे मधुमेह) और कुछ दवाओं के कारण रक्त ट्राइग्लिसराइड्स का स्तर बढ़ सकता है

 पैंक्रियाटाइटिस क्या है

क्रोनिक पैंक्रियाटाइिटस आपके अग्‍नाशय (पैंक्रियाज) में होने वाली सूजन है जो ग्रंथि (ग्लैंड) के खराब होने का कारण बनता है। इससे ग्रंथि (ग्लैंड) की स्थायी क्षति हो सकती है। इससे अग्‍नाशय में पथरी और अल्सर विकसित हो सकते हैंजो आपकी आंत में पाचन रस को प्रवाहित करने वाली नली को बंद कर देते हैं। इससे आपके शरीर के लिए भोजन को पचाने और ब्लड शुगर को नियंत्रित रखने में कठिनाई आती है। ऊपरी पेट में गंभीर दर्द होता है। इसका दर्द घंटों या दिनों तक भी रह सकता हैं। कुछ भी खाने या पीने से दर्द बढ़ जाता है। जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती हैदर्द निरंतर बढ़ सकता है।

 इन्होने किया शोध

पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग डा. अर्घ्य सामंता, डा.  अंशू श्रीवास्तव,  इंडोक्राइनोलॉजी विभाग से डा सोनाली वर्मापीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग से डा. मोनिक सेन शर्मा और डा.  उज्जवल पोद्दार के  शोध को इंडियन जर्नल ऑफ पीडियाट्रिक ने व्हाइट सीरम ए क्लू टू डायगनोस ऑफ एक्यूट रिकरेंट पैक्रिएटाइटिस विषय को स्वीकार किया है  

ऐसे हुआ इलाज

बच्चे को मौखिक रूप भोजन बंद करने के साथ डेक्सट्रोज इंफ्यूजन के साथ  एनाल्जेसिक और इंसुलिन इंफ्यूजन  दिया गया था। दर्द के पूर्ण समाधान के साथ 72 घंटे के बाद सीरम टीजी घटकर 330 मिलीग्राम / डीएल हो गया। बच्चे को कम वसा वाले आहार पर शुरू किया गया । इंसुलिन बंद कर दिया गया था। हालांकिइंसुलिन रोकने के तीसरे दिन टीजी (1108 मिलीग्राम/डेसीलीटर) में वृद्धि के साथ पेट दर्द की पुनरावृत्ति हुई। फिर दोबारा इंसुलिन इंफ्यूजन दिया गया तो  यह 24 घंटे के भीतर दर्द के गायब होने और टीजी (24 घंटे में 885 मिलीग्राम / डीएल96 घंटे पर 354 मिलीग्राम / डीएल) में कमी आ गयी। इसके बाद बच्ची को लो फैट डाइट के साथ ओमेगा-3 फैटी एसिडफेनोफिब्रेट और नियासिन दिया गया।

रविवार, 14 नवंबर 2021

हफ्ते में एक गोली शुगर का लेवल सामान्य

 

वर्ल्ड डायबिटीज डे

हफ्ते में एक गोली शुगर का लेवल सामान्य

इंसुलिन इंजेक्शन पर आने की आशंका होती है कम

 

 


डायबिटीज मरीजों को रोज-रोज शुगर को नियंत्रण में रखने के लिए गोली खानी पड़ती है। कई बार वह भूल भी जाते है। अब नया नुस्खा आ गया है जिसे हफ्ते में केवल एक बार लेना होगा। यह पूरे सप्ताह शुगर लेवल नियंत्रण में ऱखेगा। यह नए नुस्खे में इस्तेमाल होने वाले रसायन का नाम है सेमाग्लूटाइड। वर्ड डायबिटीज डे( 14 नवंबर) के मौके पर संजय गांधी पीजीआई के एंडोक्राइनोलॉजिस्ट प्रो. सुशील गुप्ता ने बताया कि सामान्य दवाएं लंबे समय तक काम नहीं करती है। शुगर का स्तर कम करने का काम करती है। नई जनरेशन की दवाएं शुगर नियंत्रित करने के साथ बीटा सेल को भी क्रियाशील बनाती है। सेमाग्लूटाइड इसी वर्ग की नई जनरेशन का रसायन है। यह जीएलपी-वन रिसेप्टर पर काम करता है जिससे शुगर का लेवल कम होता है। यह रसायन इस रिसेप्टर पर लंबे समय तक काम करता है। पहले यह केवल इंजेक्शन के रूप में आता था लेकिन अब ओरल ( गोली ) के रूप में आने लगा है। हमने कई मरीजों पर इस दवा से इलाज शुरू किया काफी अच्छा रिसपांस मिल रहा है। यह शरीर के भार को भी कम करता है जिससे इंसुलिन प्रतिरोध की आशंका कम होती है।  

 

दिल के साथ शुगर को भी नियंत्रित

 

डायबिटीज के मरीजों में दिल की परेशानी की आशंका रहती है। इसके लिए एसजीएलटी-2 रसायन आ गया है। हमने एक हजार से अधिक मरीजों का इस दवा से इलाज शुरू किया है। इसकी खासियत यह है कि यह हार्ट को भी सुरक्षित रखता है। हार्ट एटैक की आशंका को कम करता है। देखा गया है कि जिन्हे डायबिटीज नहीं है केवल दिल की बीमारी है  उनमें यह दवा हार्ट फेल्योर की आशंका को कम करता है।