बुधवार, 9 जून 2021

बच्चों में कम है कोरोना संक्रमण की आशंका

 



पांच साल से कम उम्र के बच्चों में नहीं कोरोना के संक्रमण की आशंका 

 बच्चों में  है कोरोना  का प्रभाव कम करने के लिए  आईएल-10 का सुरक्षा कवच

वायरस के फेफड़े में कोरोना के  घुसने का रास्ता बच्चों में नहीं होता है विकसित

 

कोरोना के तीसरी लहर में सबसे अधिक बच्चे प्रभावित होंगे लोगों यह सूचना अभिभावकों को काफी डरा रही है। संजय गाधी पीजीआइ के एनेस्थीसिया और आईसीयू एक्सपर्ट प्रो. एसपी अंबेश ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि पांच साल कम उम्र को बच्चों में कोरोना वायरस के संक्रमण की आशंका बहुत ही कम है लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि कोरोना के नियमों के पालन लापरवाही बरतें। प्रो. अबेश ने कहा कि  पूरे विश्व में दो साल से कम उम्र को बच्चों में कोरोना का संक्रमण के मामले 23 से भी कम है। पांच साल से कम उम्र के बच्चों में वायरस के घुसने के लिए फेफड़े में पाए जाने वाला एंजियोटेंशिन कन्वर्टिंग एंजाइम(एसीई) रिसेप्टर विकसित नहीं होता है।    इसके विकसित न होने के कारण वायरस श्वशन तंत्र के जरिए फेंफडे में पहुंच कर फेफड़े में नहीं पहुंच पाएंगा क्योंकि घुसने के लिए रिसेप्टर बच्चों में विकसित नहीं होता है। वायरस के फेफड़े में घुसने के लिए एक और रास्ता है जिसे  ट्रांस मेम्बरेन सिरीन प्रोटीएस2( टीएमपीआरएसएस2)  रिसेप्टर भी एक रास्ता होता है, यह भी विकसित नहीं होता है इसलिए हम साफ तौर पर कह सकते है कि पांच साल के बच्चे में कोरोना की आशंका बहुत कम है। पांच से 12 साल में कोरोना वायरस का संक्रमण का खतरा है क्योंकि इस उम्र में एसीई और ट्रांस मेंब्रेन सिरीन प्रोटीएस विकसित हो रहा होता है। इसके अलावा इस उम्र के बच्चों में आईएल -10 होता है तो एंटी इंफ्लामेटरी होता है यह साइटोकाइन स्ट्राम को रोकता है इससे अंगो  को नुकसान नहीं होता है।  

 

 

स्वाइन फ्लू की तरह टेट्रा वेरिएंट वैक्सीन की जरूरत

प्रो. अबेश ने कहा कि स्वाइन फ्लू की तरह कोरोना के लिए भी टेट्रा वैलेंट वैक्सीन पर काम करने की जरूरत है। देखा जाए तो कोरना के चार वैरिंएंट आ चुके है संभव है कि आगे भी वायरस में बदलाव आए। ऐसा स्वाइन फ्लू मे देखा गया है।

 

बच्चों में नहीं म्यूकर माइकोसिस की आशंका

 

बहुत ही कम बच्चे ऐसे होंगे जिनमें  इम्यूनो सप्रेसिव  चल रही हो। बच्चे डायबिटीज से ग्रस्त भी बहुत ही रेयर है। रक्त में  शुगर भी बढा नहीं होता है। देखा गया है कि यह परेशानी उनमें अधिक हुई जिनमें  सीरम फेरिटिन का स्तर काफी बढा हुआ था । इसकी आशंका  बच्चों में कम है इसलिए कह सकते है बच्चों में बहुत कम आशंका है।  

 

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