बुधवार, 9 जून 2021

जीपीएस और अल्ट्रा साउंड से संभव है सफल ब्रेन ट्यूमर की सर्जरी




विश्व ब्रेन ट्यूमर डे आज 

 

जीपीएस और अल्ट्रासाउंड  से बिना दिमाग को नुकसान पहुंचाएं संभव हो गई सफल सर्जरी

ब्रेन का हर ट्यूमर कैंसर नहीं होता है

ट्यूमर का पता जल्दी लगे तो बढ़ जाती है इलाज की सफलता दर

 जागरण संवददाता।लखनऊ

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ब्रेन ट्यूमर का नाम सुनते कई लोग परेशान हो जाते है। अब ब्रेन ट्यूमर की सफलता दर जीपीएस और अलट्रासाउंड जैसे तकनीक से काफी हद तक सफल हो रही है।सर्जरी के सफलता के  तकनीक और मल्टी स्पेशलिटी एप्रोच कारगर साबित हो रही है।  विश्व ब्रेन ट्यूमर डे के मौके पर संजय गांधी पीजीआइ के न्यूरो सर्जरी विभाग के विशेषज्ञों के मुताबिक कैंसर विहीन ब्रेन ट्यूमर मेनिनजियोमापिट्यूटरी एडेनोमालो ग्रेड ग्लायोमास्वानोमा एपीडर्मायड सहित अन्य ब्रेन ट्यूमर की सर्जरी के सफलता जिंदगी काफी अच्छी हो जाती है।  अल्ट्रासोनिक सक्शन एस्पिरेटर तकनीक काफी कारगर साबित हो रही है।  इस तकनीक के तहत बडे ब्रेन ट्यूमर को छोटो-छोटे टुकड़ों में तोड़ दिया जाता है। इससे पूरा ट्यूमर सक्शन कर निकाल लेते है। इससे ट्यूमर के आस-पास के हिस्से को नुकसान नहीं होता है

सर्जरी की सफलता के पीछे काम करती है टीम

विभाग के प्रो. संजय बिहारी कहते है कि न्यूरो सर्जरी के सफलता किसी एक विशेषज्ञ से संभव नहीं है । इसके पीछे टीम भवना बहुत जरूरी है जो कि हमारे विभाग में है।  प्रो. राजकुमार,  डा. अवधेश जायसवाल,डा. अरुण कुमार श्रीवास्तवडा. अनंत मेहरोत्राडा. कुंतल कांति दासडा. जायस सरदाराडा. कमलेश सिंह भैसोराडा. वेद प्रकाशडा. पवन कुमार के आलावा न्यूरो ओटो सर्जरी के  डा. अमित केशरी और डा. रवि शंकर टीम है। यह एक पूरी यूनिट है जो हर केस की मॉनिटरिंग करती है। एक केस में तीन से चार सर्जन लगते है। रोज चार से पांच सर्जरी का लक्ष्य होता है। इनके आलावा नर्सिंग पेशेंट हेल्परओटी टेक्नोलाजिस्टसेनेटरी वर्कर की सर्जरी की सफलता में अहम भूमिका है।  

न्यूरो सर्जरी के सफलता की  तकनीक

न्यूरो नेविगेशन- इस तकनीक के तहत ब्रेन के ट्यूमर वाले हिस्से की 3-डी पिक्चर सामने होती है जिससे पता लगा जाता है कहां पर पर ट्यूमर है और कहां से जाना है

इंट्राऑपरेटिव अल्ट्रासाउंड – इस तकनीक से कहां पर ट्यूमर है पूरी जानकारी मिल जाती है

इंडोसाइनीन ग्रीन ट्रैकर- इस तकनीक के तहत इस खास डाई को इजेक्ट कर दिया जाता है दिमाग की नसों में विशेष रंग दिखाता है इससे ट्यूमर के आस पास के नसों का पता लग जाता है। सर्जरी के दौरान इन नसों को क्षतिग्रस्त होने की आशंका रहती है। इस तकनीक से नसें बच जाती है।

इलेक्ट्रो फिजियोलॉजी – सर्जरी के दौरान हाथ-पैर में करंट का प्रवाह देखते रहते है क्योंकि दिमाग से ही करंट मिलता है। करंट कम होने का मतलब होता है इन्हे करंट देने वाला दिमाग का हिस्सा प्रभावित हो रहा है। उस हिस्से को बचा लेते है इससे हाथ-पैर में कमजोरी की परेशानी से बचा लेते है।

इंट्राऑपरेटिव वायोप्सी- सर्जरी के दौरान ही ट्यूमर का हिस्सा पैथोलॉजी विभाग के भेजते है । पैथोलाजिस्ट सर्जरी के दौरान ही देख कर बता देते है कि कैसा ट्यूमर है।

पोस्ट ऑपरेटिव एनेस्थेसिया- सर्जरी के बाद मरीज को सात से आठ घंटे के लिए होश में नहीं लाते है। एनेस्थीसिया और न्यूरो सर्जरी विभाग के विशेषज्ञ लगातार मॉनिटरिंग करते है ।

माइक्रोस्कोप- इस तकनीक में हम ट्यूमर और उसके आस पास के नसों को बडा कर देखते हुए सर्जरी करते है इससे जहां जरूरत है केवल नहीं पर सर्जरी की जाती है।

हाई क्वालिटी एमआरआई और सीटी स्कैन- इस जांच से ट्यूमर की बारे में सारी जानकारी मिल जाती है 

री साइक्लिड एयर- सर्जरी में संक्रमण से बचाना बडा चैलेंज होता है। हमारी ओटी में विशेष तकनीक का एयर री साइक्लिंग सिस्टम है जिससे सौ फीसदी हवा साफ होती है।

कोरोना काल में भी नहीं थमी सर्जरी

कोरोना काल में भी हम लोगो हर महीने 60 से 70  मरीजों में सर्जरी किया। इनमें कोरोना का संक्रमण नहीं था। इसमें इमरजेंसी के आलावा ऐसे लोगों की न्यूरो सर्जरी की गई जिनमें सर्जरी लंबे समय तक टालना संभव नहीं था।

परेशानी तो हो जाए सचेत

लगातार सिरदर्द या देर से शुरू होने वाला सिरदर्द (50 साल की आयु के बाद)उल्टी आनाअचानक आंखों में धुंधलापन आना,आपको होने वाले सिरदर्द के लक्षणों का बार बार बदलनाडबल विजन (दोहरी दृष्टि)शरीर के किसी भी भाग में कमजोरी महसूस होना और खड़े होने और चलने के दौरान असंतुलन का होना कुछ ऐसे लक्षण हैं जिनके दिखते ही आपको किसी डॉक्टर से परामर्श लेने की आवश्यकता है।

 

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