एक दिन में नहीं बन जाती है वैक्सीन कई चरणों के परीक्षण के बाद मिलती है मंजूरी
टीके पर शक मतलब जीवन से खिलवाड़
वैक्सीन बनाना आसान नहीं है एक दिन का काम नहीं है। कई चरणों के परीक्षण के बाद इसके इस्तेमाल की मंजूरी मिलती है। इस लिए टीके पर शक करने का मतलब है कि अपने जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे है। सफलता मिलने के बाद कई चरणों का क्लीनिकल ट्रायल शुरू बोता है। पहले फेज में दवा या वैक्सीन की जांच कुछ सौ लोगों में होती है। फेज-2 ट्रायल्स थोड़े ज्यादा लोगों में होते हैं। देखा जाता है कितनी सुरक्षित है इम्यून रिस्पांस कितना आ रहा है। इसके बाद बड़े पैमाने पर ट्रायल्स होते हैं।
26 हजार लोगों पर हुआ कोवैक्सीन का परीक्षण
तीसरे चरण में वैक्सीन के मामले में करीब 26 हजार लोगों को वैक्सीन लगाई गई। इन्हें दो ग्रुप में बांटा गया। कोआधे लोगों को प्लेसिबो यानी सलाइन वॉटर दिया गया और आधे लोगों को वास्तविक वैक्सीन देने के बाद देखा गया कि किस ग्रुप से कितने लोगों को वायरस इन्फेक्शन होता है। वैक्सीन की इफेक्टिवनेस देखी जाती है, जिसे मेडिकल भाषा में एफिकेसी कहा जाता है। इसका मतलब है कि वैक्सीन कितने प्रतिशत लोगों को वायरस इन्फेक्शन से बचाकर रखेगी। देखा गया कि वैक्सीन कोरोना वायरस रोकने में 78 फीसदी इफेक्टिव रही। वैक्सीन वाले ग्रुप में भी किसी भी पॉजिटिव मरीज में गंभीर लक्षण नहीं देखे गए। आईसीएमआर का कहना है कि कोवैक्सीन यूके, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील के साथ ही भारत में मिले डबल म्यूटेंट वैरिएंट पर भी कारगर रही है
कोवैक्सीन इनएक्टिवेटेड प्लेटफार्म पर बनी
को वैक्सीन की बात करें तो यह परंपरागत इनएक्टिवेटेड प्लेटफॉर्म पर बनी है। इसमें मरे हुए वायरस का इस्तेमाल किया गया है। इस वायरस को कमजोर कर इंजेक्ट किया जाता है, जिससे शरीर उसके खिलाफ एंटीबॉडी बनाने लगता है। जो भी म्यूटेशन अब तक हुए हैं, वह वायरस की भीतरी संरचना में हुए हैं। इससे वायरस का आकार नहीं बदला है। इस वजह से कोवैक्सीन अलग-अलग वैरिएंट्स पर कारगर साबित हुई है।
फाइजर की वैक्सीन मैसेंजर आरएनए पर बनी
फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन आरएनए प्लेटफॉर्म पर बनी है। इसमें वैक्सीन लगने पर शरीर को मैसेज मिलता है कि वायरस का हमला हो गया है, उससे लड़ने के लिए एंटीबॉडी बनानी है।
कोवीशील्ड वी वायरल वेक्टर प्लेटफार्म पर
कोवीशील्ड और रूसी वैक्सीन स्पुतनिक वी वायरल वेक्टर प्लेटफॉर्म पर बनी है। इसमें किसी और वायरस को लेकर उसमें आवश्यक बदलाव किए और उसे नए कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन जैसा बनाया और शरीर में इंजेक्ट कर दिया। इससे शरीर उस स्पाइक प्रोटीन के खिलाफ एंटीबॉडी बनाता है। म्यूटेशन की वजह से वैरिएंट्स में स्पाइक प्रोटीन का आकार बदल सकता है।
किस आधार पर वैक्सीन बनाना पहले यह फैसला लेना होता है। इसमें वायरस को इनएक्टिवेटेड रूप , मैसेंजर आरएनए के रूप में , वी वेक्टर रूप में सहित अन्य तरह से वैक्सीन तैयार की जाती है। इसके बाद इस वैक्सीन कंप्यूटर मॉडल पर विस्तृत कार्य योजना तैयार की जाती है। वैक्सीन तैयार करने के बाद चूहे, खरगोश, गिनी पिग , बंदर सहित अन्य जीव पर पहले जिसके खिलाफ वैक्सीन तैयार की उस वायरस से इफेक्ट कर उनमें वैक्सीन इंजेक्ट देते है फिर उनमें
बनी एंटीबाडी का अध्ययन करते है। यह सब करने में लंबा समय लगता है इस लिए शक करने की कोई गुंजाइश नहीं है.....प्रो.चिन्मय साहू माइक्रोबायोलॉजिस्ट संजय गांधी पीजीआई
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