संजय गांधी पीजीआई के विशेषज्ञों ने चिकित्सा जगत में कुछ काम ऐसा किया जो देश में पहली बार हुआ या प्रदेश में पहली बार हुआ। डाक्टरर्स डे के मौके पर कुछ ऐसी ही उपलब्धियों को बताने की कोशिश की है।
कुमार संजय। लखनऊ
किडनी ट्रासंप्लांट के लिए खत्म हुई दाता और मरीज के बीच ब्लड ग्रुप की मैचिंग
एक - देश के किसी सरकारी अस्पताल में पहली एबीओ इंकपटेबिल किडनी ट्रांसप्लांट एसजीपीजीआई में हुआ जिसे किडनी रोग विशेषज्ञ प्रो.नारायन प्रसाद और यूरो सर्जन प्रो.अनीस श्रीवास्तव ने अंजाम दिया। इस तकनीक के स्थापित होने के बाद किडनी ट्रांसप्लांट के डोनर और मरीज के ब्लड ग्रुप एक होने की जरूरत खत्म हो गयी। इस तकनीक के स्थापित होने के बाद अब 25 से अधिक किडनी ट्रांसप्लांट हो चुका है। इस तकनीक में पहले मरीज का इम्यून सिस्टम इस लायक बनाया जाता है कि दूसरे ब्लड ग्रुप की किडनी को वह स्वीकार करें। विशेषज्ञों का कहना है कि किडनी लगने के बाद शरीर दूसरे ब्लड ग्रुप वाली किडनी स्वीकार कर लेता है।
आयोइम्यून डिजीज के इलाज हुआ संभव
दो- भारत में पहली बार किसी सरकारी अस्पताल में क्लीनिकल इम्यूनोलाजी विभाग स्थापित हुआ जिसमें पढ़ाई. परीक्षण और रिसर्च का काम शुरू हुआ। यह काम किया 12 साल इंग्लैंड में बतौर संकाय काम करने वाले प्रो.आरएन मिश्रा ने। प्रो.मिश्रा ने बिभाग शुरू करने के बाद पहली डीएम इम्यूनोलाजी पाठयक्रम शुरू किया जिससे देश को पहली बार इस विशेषज्ञता का डाक्टर मिला। प्रो.मिश्रा ने आटोइम्यून डिजीज को पता लगाने के लिए एटी न्यूक्लियर एंटीबाडी, एक्सट्रेक्टिबल एटीबाडी. सहित तमाम परीक्षण शुरू किया। विभाद हर साल देश को दो विशेषज्ञ दे रहा है। देश में केवल तीन संस्थान है जहां यह पढ़ाई अब शुरू हो गयी है। इन विभाग एसएलइ, रूहमटायड अर्थराइटिस, पाली मायोसाइटिस, स्कैलोडर्मा सहित 70 से 80 आटो इम्यून डिजीजी का इलाज संभव है
मस्कुलर डिस्ट्राफी बीमारी के मरीजों को उम्मीद
तीन- भारत ने पहली मांसपेशियों की बीमारी मस्कुलर डिस्ट्राफी पता करने के लिए लक्षण पूरे विश्व को दिया। यह लक्षण न्यूरोलाडिस्ट प्रो.सुनील प्रधान ने खोजा। इनके खोजे गए लक्षण को प्रधान साइन के नाम से पूरे विश्व में पढ़ाया जाता है। इस खोज के लिए इन्हें र्शांत स्वरूप भटनागर, पदम श्री जैसे तमाम सम्मान मिले हैं। प्रो.सुनील ने बताया कि इस बीमारी को पता करने के लिए मांसपेसी की बायोप्सी की जाती थी जिसकी सुविधा हर जगह नहीं होती थी। अब केवल लक्षण के आधार पर बीमारी का पता लगा कर इलाज की दिशा तय की जा सकती है। इस बीमारी मांसपेशियां धीरे-धीरे कमजोर हो जाती है । आगे चल कर बीमारी गंभीर हो जाती है।
आईबीएस का इलाज हुआ संभव
चार- भारत में पहली बार पीजीआई पेट की चाल की गड़बड़ी बता करने के लिए मोटैलटी लैब की स्थापना हुई। संस्थान के पेट रोग विशेषज्ञ प्रो.यूसी घोषाल ने इस बीमारी पर लगातार काम कर रहे हैं। इन्होंने इंडियन सोसाइटी की भी स्थापना कर पूरे विश्व में संस्थान का मान बढ़ाया है। वह अमेरिका स्थित रोम फाउडेशन के को चेयरमैन भी है जो इरेटबुल बाउल सिंड्रोम परेशानी के लिए मानक तय करता है। प्रो.घोषाल ने बताया कि इस बीमारी का कारण पेट, छोटी आत की चाल में गड़बड़ी है। इसको पता करने के लिए लैब की स्थापना की देखा कि आईबीएस से ग्रस्त मरीजों में किस तरह चाल होती है। इस बीमारी को पहले मानसिक बीमारी मानी जाती थी जिस पर पेट रोग विशेषज्ञ ध्यान नहीं देते थे।
लिवर ट्रासंप्लांट से मरीजों को मिल रही है जिदंगी
पांच- भारत में पहली बार लिवर ट्रांसप्लांट किसी सरकारी अस्पताल में पहली बार पीजीआई के गैस्ट्रो सर्जन प्रो.राजन सक्सेना ने किया। वह 20 से अधिक लिवर ट्रांसप्लांट को अंजाम दे चुके हैं। कुछ परेशानी के कारण बीच में इस अभियान को थोड़ा ब्रेक लग गया था। प्रो.राजन ने कैडेवर लिवर ट्रांसप्लांट को भी अंजाम दिया। अब विभाग दोबारा लिवर ट्रांसप्लांट को गति देने की प्लानिंग कर रहा है।