ब्रेन डेड व्यक्ति के पोस्टमार्टम और ग्रीन कॉरिडोर में पुलिस की अहम भूमिका
-पुलिस मुख्यालय में अंग और ऊतक दान में पुलिस की भूमिका विषय पर कार्यशाला
-प्रदेश के 26 जिलों के अंग प्रत्यारोपण करने वाले अस्पतालों के
जिम्मेदार और वहां के पुलिस अधिकारी शामिल हुए
ब्रेन डेड व्यक्ति के परिजनों द्वारा अंग प्रत्यारोपण की सहमति देने के
बाद पुलिस की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। इन्हें कम समय में पंचनामा समेत
दूसरी कानूनी कार्रवाई कराकर जल्द पोस्टमार्टम कराना। ग्रीन कॉरिडोर
बनाकर अंगों को जल्द पहुंचाने का काम बिना पुलिस के संभव नहीं है। इससे
जरूरतमंद को जल्द अंग प्रत्यारोपित कर जीवन दिया जा सकता है। यह बातें
शनिवार को राज्य अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (सोटो) और पीजीआई के
अस्पताल प्रशासन विभाग द्वारा पुलिस मुख्यालय में आयोजित कार्यशाला में
सोटो के नोडल अफसर डॉ. राजेश हर्षवर्धन ने कहीं। कार्यशाला में डीजीपी
मुकुल गोयल समेत प्रदेश के अंग प्रत्यारोपण करने वाले 26 अस्पताल व उस
इलाके इंस्पेक्टर और वहां के एसपी मौजूद रहे। डीजीपी मुकुल गोयल ने
मातहतों को सम्बोधित करते हुए कहा कि वह ब्रेन डेड व्यक्ति के परिजनों
द्वारा अंगदान की सहमित देने के बाद बिना किसी विलंब के कानूनी कार्रवाई
सुनिश्चित कराएं।
कई को मिल सकता है जीवन
पीजीआई निदेशक डॉ. आरके धीमान ने कहा कि अंगदान जीवन दान का उपहार है।
किसी जीवित या मृत व्यक्ति के शरीर का ऊतक या कोई अंग दान कई लोगों को
जीवन दे सकता है। ब्रेन डेड व्यक्ति के अंग एक नियत समय में प्रत्यारोपित
करने होते हैं। ऐसे में ब्रेन डेड व्यक्ति के परिजनों की सहमित के बाद
पुलिस, अंगों का रखरखाव, प्रत्यारोपण केन्द्र तक पहुंचाना और
प्रत्यारोपित करने में समय लगता है। पीजीआई चण्डीगढ़ के जनरल सर्जरी
विभाग के प्रमुख डॉ. अरुणांशु बेहरा मानव अंग और ऊतक अधिनियम और नियमों
के प्रत्यारोपण के साथ-साथ मेडिकोलेगल मामलों के प्रबंधन में पुलिस का
काम होता है। इस मौके पर एडीजी जीआरपी पीयूष आनंद, पीजीआई के नेफ्रोलॉजी
विभाग के प्रमुख डॉ. नारायण प्रसाद ने विचार रखे।
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