शनिवार, 23 अप्रैल 2022

पहले 24 घंटे गंभीर मरीजों के लिए महत्वपूर्ण

 

पीजीआई में फंडामेंटल क्रिटिकल केयर सपोर्ट पर कोर्स

पहले 24 घंटे गंभीर मरीजों के लिए महत्वपूर्ण




किसी भी गंभीर मरीज के लिए पहले 24 घंटे बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं खास तौर पर जब मरीज को सांस लेने की परेशानी हो और ऑक्सीजन लेवल बहुत ही कम हो । ऐसे में मरीज को क्रिटिकल  केयर की जरूरत पड़ती है।   आवश्यक है कि परेशानी का कारण पता किया जाए   और उसका सही तरीके से निदान किया जाय । यह जानकारी संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के एनेस्थीसिया विभाग द्वारा आयोजित

 एफसीसीएस ( फंडामेंटल क्रिटिकल  केयर सपोर्ट )प्रोवाइडर एंड इंस्ट्रक्टर कोर्स के संयोजक प्रो संदीप साहू ने कही।  प्रो साहू ने बताया कि यह कोर्स सोसाइटी ऑफ क्रिटिकल केयर मेडिसिन (एससीसीएम), यूएसए स्वीकृत है।   पाठ्यक्रम का नेतृत्व एफसीसीएस सलाहकार प्रोफेसर कुंदन मित्तल ने किया।  आईसीयू में किसी भी अस्थिर  बीमार रोगी के प्रारंभिक प्रबंधन को सिखाया गया । एफसीसीएस पाठ्यक्रम निदेशक डॉ. सिमंत कुमार झा ने एक्यूट रेस्पिरेट्री फेलियर का प्रबंधन सिखाया। प्रो. संदीप साहू ने वायुमार्ग और श्वास प्रबंधन सिखाया। कोर्स का उद्घाटन आज सुबह 11 बजे निदेशक प्रो आर के धीमान, डीन प्रोफेसर अनीश श्रीवास्तव और एनर्जी सा विभाग के प्रमुख प्रोफेसर एसपी अंबेश  ने किया।  कोर्स में भारत से लगभग 60 डॉक्टर और पाठ्यक्रम के 15 फैकल्टी मौजूद थे। बताया कि एफसीसीएस पाठ्य क्रम  का उद्देश्य स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं द्वारा गंभीर रूप से बीमा, घायलों की प्रारंभिक देखभाल न सावधानी के बारे में

जानकारी देना है। कोविड युग के आज के महामारी के समय में यह पाठ्यक्रम अधिक महत्वपूर्ण है जो गंभीर रूप से बीमार या गंभीर रूप से बीमार रोगियों के प्रारंभिक आईसीयू प्रबंधन के ज्ञान और कौशल को कवर करता है। पाठ्यक्रम में  इलेक्ट्रोलाइट्स और मेटाबोलिक गड़बड़ी, एक्यूट कोरोनरी सिंड्रोम, वायुमार्ग प्रबंधन, गर्भावस्था में गंभीर देखभाल, कार्डियोपल्मोनरी / सेरेब्रल रिससिटेशन, शॉक का निदान और प्रबंधन, तीव्र श्वसन विफलता का निदान और प्रबंधन, जीवन के लिए खतरा संक्रमण, बुनियादी न्यूरोलॉजिकल समर्थन, यांत्रिक वेंटिलेशन, विशेष विचार, सामान्य बाल चिकित्सा बनाम वयस्क रोगी, रक्त प्रवाह की निगरानी, ​​ऑक्सीजन, एसिड और आधार की स्थिति, तीव्र देखभाल के दौरान नैतिक विचार, आघात और जलन प्रबंधन, यांत्रिक वेंटिलेशन (मूल और उन्नत), इलेक्ट्रोलाइट्स और मेटाबोलिक गड़बड़ी, कौशल स्टेशन: वायुमार्ग प्रबंधन, सीपीआर, आघात सहित अन्य विधियों के बारे में जानकारी दी जा रही है

ब्रेन डेड व्यक्ति के पोस्टमार्टम और ग्रीन कॉरिडोर में पुलिस की अहम भूमिका


 ब्रेन डेड व्यक्ति के पोस्टमार्टम और ग्रीन कॉरिडोर में पुलिस की अहम भूमिका

-पुलिस मुख्यालय में अंग और ऊतक दान में पुलिस की भूमिका विषय पर कार्यशाला

-प्रदेश के 26 जिलों के अंग प्रत्यारोपण करने वाले अस्पतालों के

जिम्मेदार और वहां के पुलिस अधिकारी शामिल हुए


ब्रेन डेड व्यक्ति के परिजनों द्वारा अंग प्रत्यारोपण की सहमति देने के

बाद पुलिस की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। इन्हें कम समय में पंचनामा समेत

दूसरी कानूनी कार्रवाई कराकर जल्द पोस्टमार्टम कराना। ग्रीन कॉरिडोर

बनाकर अंगों को जल्द पहुंचाने का काम बिना पुलिस के संभव नहीं है। इससे

जरूरतमंद को जल्द अंग प्रत्यारोपित कर जीवन दिया जा सकता है। यह बातें

शनिवार को राज्य अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (सोटो) और पीजीआई के

अस्पताल प्रशासन विभाग द्वारा पुलिस मुख्यालय में आयोजित कार्यशाला में

सोटो के नोडल अफसर डॉ. राजेश हर्षवर्धन ने कहीं। कार्यशाला में डीजीपी

मुकुल गोयल समेत प्रदेश के अंग प्रत्यारोपण करने वाले 26 अस्पताल व उस

इलाके इंस्पेक्टर और वहां के एसपी मौजूद रहे। डीजीपी मुकुल गोयल ने

मातहतों को सम्बोधित करते हुए कहा कि वह ब्रेन डेड व्यक्ति के परिजनों

द्वारा अंगदान की सहमित देने के बाद बिना किसी विलंब के कानूनी कार्रवाई

सुनिश्चित कराएं।

कई को मिल सकता है जीवन

पीजीआई निदेशक डॉ. आरके धीमान ने कहा कि अंगदान जीवन दान का उपहार है।

किसी जीवित या मृत व्यक्ति के शरीर का ऊतक या कोई अंग दान कई लोगों को

जीवन दे सकता है। ब्रेन डेड व्यक्ति के अंग एक नियत समय में प्रत्यारोपित

करने होते हैं। ऐसे में ब्रेन डेड व्यक्ति के परिजनों की सहमित के बाद

पुलिस, अंगों का रखरखाव, प्रत्यारोपण केन्द्र तक पहुंचाना और

प्रत्यारोपित करने में समय लगता है। पीजीआई चण्डीगढ़ के जनरल सर्जरी

विभाग के प्रमुख डॉ. अरुणांशु बेहरा मानव अंग और ऊतक अधिनियम और नियमों

के प्रत्यारोपण के साथ-साथ मेडिकोलेगल मामलों के प्रबंधन में पुलिस का

काम होता है। इस मौके पर एडीजी जीआरपी पीयूष आनंद, पीजीआई के नेफ्रोलॉजी

विभाग के प्रमुख डॉ. नारायण प्रसाद ने विचार रखे।

बुधवार, 20 अप्रैल 2022

जन्मजात थायराइड हार्मोन की कमी से मंदबुद्धि की आशंका -हार्मोन की दवा का कभी न करें नागा

 



पीजीआई में हाइपोथायरायडिज्म ग्रस्त बच्चों का केयर प्रोग्राम


जन्मजात थायराइड हार्मोन की कमी से मंदबुद्धि की आशंका

   -हाइपोथायरायडिज्म ग्रस्त इलमा साइंटिस्ट बनने का सपना करेगी पूरा


- हार्मोन की दवा का कभी न करें नागा


कंजनाइटल हाइपोथायरायडिज्म( जंम से ही थायराइड हार्मोन की कमी)  से ग्रस्त सिधौली सीतापुर की  इलमा अब साइंटिस्ट बनने का सपना पूरा कर सकेगी। इलमा के पिता मुख्तार की जागरूकता के कारण जन्म के सात दिन के अंदर  पता चला कि  इलमा में  थायराइड हार्मोन की कमी है। इसका पता समय पर लगता तो शायद मंदबुद्धि की शिकार होती।  संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के जेनेटिक्स विभाग ने एक विशेष परियोजना के तहत नवजात शिशुओं के मानसिक विकास की कमी से रोकने के लिए थायराइड स्क्रीनिंग प्रोग्राम चलाया जिसमें जन्म के तुरंत बाद शिशु का रक्त लेकर उनमें थायराइड सहित अन्य जांचें की जाती है। इसी योजना के तहत कई जिलों में जन्म के यह परियोजना चलाई गयी जिसमें लगभग 67 हजार बच्चों की स्क्रीनिंग की गयी जिसमें 40 बच्चों में हार्मोन की कमी मिली। इस योजना के कारण इन बच्चों को मंदबुद्धि होने से बचाने में कामयाबी मिली। इन बच्चों के केयर के लिए विभाग ने बुधवार को परीक्षण कार्यक्रम रखा जिसमें परीक्षण के बाद माता-पिता और अभिभावकों देखभाल की जानकारी दी गयी। विभाग की प्रमुख प्रो. शुभा फड़के ने बताया कि पहले एनएचएम के तहत यह योजना कई जिलों में चलायी जा रही थी लेकिन फंड बंद होने के बाद डीबीटी( डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी) से मिले प्रोजेक्टर से श्रावस्ती और बहराइच में योजना उम्मीद के नाम चल रही है। इंडोक्राइनोलॉजी

 विभाग की प्रो. विजय लक्ष्मी भाटिया ने सलाह दिया कि

 दवा कभी भी बंद न करें। जैसे जीने के लिए हवा –पानी की

 जरूरत है वैसे ही हार्मोन की दवा रोज लेना है।

 

तीन माह पहले पता चला कि थायराइड हार्मोन की कमी

बहराइच जिले के रामकुमार और पत्नी कृष्णा वती ने बताया कि जन्म के तीन दिन बाद डाक्टर ने बताया कि इनके बच्ची में हार्मोन की कमी है जिसके बाद इलाज चल रहा है। बच्ची का विकास सामान्य है।

मंगलवार, 19 अप्रैल 2022

.....बियर पीते थे शराब नहीं ------ लिवर सिरोसिस का सबसे बड़ा कारण है शराब

 






.....बियर पीते थे शराब नहीं

लिवर सिरोसिस का सबसे बड़ा कारण है शराब

फैटी लिवर भी लिवर की परेशानी का बड़ा कारण मोटापे पर रखें नियंत्रण

विश्व लीवर डे आज ( 19 अप्रैल)


 

केस वन- डॉक्टर साहब शराब तो पीता था लेकिन खाता नहीं था जिसके कारण शराब लिवर पर प्रभाव डाल दिया। ब्रांडेड पीता था उससे तो लिवर नहीं खराब होता है

केस दो- शराब कभी नहीं पिया हां बियर जरूर पीता था बियर शराब नहीं होता है।   

ऐसी ही तमाम भ्रांतियां लोगों में शराब को लेकर है । संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के पेट रोग विशेषज्ञ डा. आकाश माथुर और मेडिकल विवि के पेट रोग विशेषज्ञ डा. अनिल कुमार गंगवार कहते है कि बियर भी शराब है उसमें भी अल्कोहल है कम या अधिक । इसी तरह शराब खाने के साथ पिए खाली पेट नुकसान बराबर करेंगी। ब्रांडेड शराब भी अल्कोहल है। शराब लिवर सिरोसिस का सबसे बडा कारण है। लिवर सिरोसिस के लगभग 40 फीसदी लोगों में कारण शराब देखा गया है। शराब से दूरी बनाने के जरूरत है। फैटी लिवर भी बडा कारण है इसके लिए मोटापे पर नियंत्रण जरूरी है। हर दसवें व्यक्ति का पेट सीने से बाहर मिलेगा इसको नियंत्रित करना है इसके लिए नियमित व्यायामखान-पान पर नियंत्रण जरूरी है। यह अपने हाथ है रही बात हेपेटाइटिस बी और सी तो यह संक्रमण है। इसका इलाज है जिससे काफी लोगों का लिवर बच जाता है। हेपेटाइटिस बी का टीका जरूर लेना चाहिए।


क्या है लिवर सिरोसिस

लीवर सिरोसिस एक ऐसी स्थिति हैजिसमें आपका लीवर धीरे-धीरे खराब होने लगता है। खराबी के चलते यह पहले की तरह काम नहीं करता। खास बात यह है कि आप इस बात से पूरी तरह से अंजान होते हैं। लीवर खराब होने के सबसे बड़े कारणों में लंबे समय से शराब की लत और हेपेटाइटिस है। लीवर सिरोसिस को लीवर के फाइब्रोसिस के रूप में जाना जाता है।

यह परेशानी तो तुरंत ले सलाह

-त्वचा और आंखों के पीला होने की वजह से पीलिया हो जाता है। शरीर का पीला रंग लीवर द्वारा स्रावित बाइल पिगमेंट के कारण होता है।

 

-पेट में द्रव जमा होना।  पेट टाइट और सूजा हुआ दिखता है। लीवर की खराबी के कारण पेट की परत और अंगों के बीच की खाली जगह में तरल पदार्थ भरने लगता है।

 

-पैरों या टखनों में सूजन आना । एल्ब्यूमिन नामक प्रोटीन में उत्पादन में कमी के कारण पैरों और टखनों में सूजन आ जाती है। यह प्रोटीन खून को ब्लड वेसल्स से आसपास के टिशू में बहने से रोकता है जो सूजन का कारण बनता है।

 

 

-खून बहना या चोट लगना। हल्की सी ठोकर या किसी वजह से ज्यादा चोट लग जाए या खून बहने लगता है। रक्त के थक्के जमने के लिए जिम्मेदार पर्याप्त प्रोटीन नहीं बन पाता।

-वजन कम होना। बिना किसी एक्सरसाइज और डाइटिंग के बाद भी वजन कम होना।

रविवार, 17 अप्रैल 2022

पीजीआई में पहली बार रोटा प्रो तकनीक से महिला की धमनी का ब्लॉकेज खोला

 

पीजीआई में पहली बार रोटा प्रो तकनीक से महिला की धमनी का ब्लॉकेज खोला
-महिला की धमनी केई दीवारों पर कैल्शियम जमा हो गया था
-हाथ से की एंजियोप्लास्टी


संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान
के हृदय रोग विशेषज्ञ ने ने पहली बार रोटा प्रो तकनीक से महिला के धमनी में जमें कैल्शियम और ब्लॉकेज को दूर किया। हाथ के रस्ते एंजियोप्लास्टी की है। महिला के स्वस्थ होने पर छुट्टी कर दी गई है। यह कामयाबी संस्थान के कार्डियोलॉजी विभाग के डॉक्टरों हासिल की है। 

पीजीआई के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो आदित्य कपुरने बताया कि राजधानी की 45 साल की महिला के सीने ने छह माह से दर्द हो रहा था। उच्च रक्तचाप के साथ महिला डायबिटीज से पीड़ित है। पीजीआई मेंएंजियोग्राफी  जांच से पता चला कि महिला की धमनियों की दीवारों पर कैल्शियम जमा था। धमनी में जमा कैल्शियम कठोर होने की वजह से एंजियोप्लास्टी गुब्बारा से धमनी को पूरी तरह से खोलना सम्भव नहीं था। लिहाजा डॉक्टरों ने फ्लोरोस्कोप की सहायता से दिल की धमनियों के अंदर कैथेटर के समान ड्रिल को डालकर जमा कैल्सियम काटकर हटाया गया।

कार्डियोलॉजिस्ट प्रो सत्येंद्र तिवारी बताते हैं कि रोटाप्रो तकनीक का उपयोग पैर के बजाय हाथों से होता है। कैल्शियम हटाने के बाद हाथ के रास्ते एंजियोप्लास्टी की मदद से स्टंट डालकर धमनियों को फुला दिया गया। ताकि धमनियों में दोबारा से सिकुड़ न आये।

यह है डॉक्टरों की टीम
महिला की जटिल एंजियोप्लास्टी में रोटा प्रो तकनीक का उपयोग करने वाली टीम में कार्डियोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. आदित्य कपूर, प्रो. सत्येंद्र तिवारी, प्रो. रूपाली खन्ना व प्रो अंकित साहू थे। संस्थान के निदेशक डॉ. आर के धीमन ने कार्डियोलाजी की पूरी टीम को इस उत्कृष्ट कार्य के लिए सराहा एवं सभी को बधाई दी है।

मंगलवार, 12 अप्रैल 2022

पार्किंसंस के 80 फीसदी बीमारी के बिगड़ी स्थिति में पहुंचते है विशेषज्ञ के पास

 




विश्व पार्किंसंस जागरूकता दिवस पर पीजीआई में कार्यक्रम

 

 

 

पार्किंसंस के 80 फीसदी बीमारी के बिगड़ी स्थिति में पहुंचते है विशेषज्ञ के पास

 

कई चिकित्सक एक साथ चला देते है कई तरह की दवाएं 

 

शुरूआती दौर में काफी हद तक दवाओं से इलाज

 युवा भी हो रहे है इस परेशानी के शिकार 

डोपामिन की कमी से होती है पार्किंसंस

 

जागरण संवाददाता। लखनऊ

 

 

 

पार्किंसंस के 80 फीसदी मरीज संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान के विशेषज्ञों के पास तब पहुंचते है जब दवाओं का असर कम हो जाता है। ऐसी स्थिति तब आती है जब कई दवाएं यानि प्रथम श्रेणीद्वितीय श्रेणी की दवाएं साथ चिकित्सक चला देते इससे दवाओं का प्रभाव कम होने लगता है।  संस्थान के न्यूरोलॉजी विभाग की प्रो. रुचिका टंडन ने विश्व पार्किंसंस जागरूकता दिवस पर आयोजित कार्यक्रम मे सलाह दिया कि लक्षण महसूस होते ही किसी भी  न्यूरोलॉजिस्ट से सलाह लेना चाहिए ।  तमाम दवाएं एक साथ शुरू करने पर दवाएं चार-पाच साल तक काम करती है फिर बेअसर होने लगती है ऐसे में दवा से इलाज का विकल्प खत्म हो जाता है ऐसे में डीप  ब्रेन स्टीमुलेशन जैसी ही विशेष इलाज का तरीका बचता है। प्रो. रुचिका ने बताया कि दिमाग में डोपामिन न्यूरोट्रासमीटर ( एक तरह का रसायन)  की कमी से यह परेशानी होती है। मरीज के शुरुआती दौर में आने पर उचित मात्रा में इस रसायन को बढाने की दवाएं देते है लक्षण के आधार पर दवा की मात्रा कम या अधिक करते है। जब इन दवाओं का असर कम होने लगता है जब सीओएमटी इनहैबिटर दवाएं देते है।  यह रक्त में डोपामिन को क्षतिग्रस्त होने से रोकता है।  ब्रेन में अधिक मात्रा में डोपामिन पहुंचता है। तमाम चिकित्सक यह दोनों दवाएं एक साथ शुरू कर देते है जिससे दवा का असर जल्दी कम होने लगता है। कानपुर मेडिकल कालेज के न्यूरोलाजिस्ट  प्रो. नवनीत कुमार ने कहा कि बीमारी का कारण पता नहीं है लेकिन सिर में चोट, पेस्टीसाइड, आटोइम्यून डिजीज भी कारण माना जा रहा है। पुरूष इस बीमारी से महिलाओं के मुकाबले दो गुना अधिक प्रभावित होते है।   

क्या है पार्किंसंस

 

ब्रेन डिसऑर्डर है।  यह समस्या 60 के बाद होने की आशंका रहती है है। दिमाग की विशिष्ट मस्तिष्क कोशिकाओं में नुकसान होने के कारण मूवमेंट प्रभावित होती है। 

 

 


 पाजिटिव रहे है मरीज 

 

विभाग के  प्रमुख प्रो.सुनील प्रधान ने बताया कि इस बीमारी से ग्रस्त लोगों को पाजिटिव रहने की जरूरत है। दवा कभी भी बिना डाक्टर के सलाह के बंद न करें।    हम लोग पांच मरीजों में डीप ब्रेन स्टिमुलेशन न्यूरोसर्जरी के सहयोग कर चुके है आगे भी कई में तैयारी है। प्रोसंजीव झा और प्रो.वीके पालीवाल ने कहा कि  नियमित व्यायाम करना चाहिए इससे उनकी परेशानी कम होती है।

 

 

 

 

 

 

 

यह परेशानी तो तुरंत लें सलाह

 

पार्किंसंस रोग के लक्षण धीरे-धीरे होते हैं ।  ध्यान नहीं जाता है।

 

-         हाथ-पैर में कंपन

 

-         अंगों में जकड़न

 

-          हर काम में धीमापन

 

-         असंतुलित चाल और शरीर असंतुलन

 

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

पीजीआईः 150 किलो वजन के मरीज में पहली बार लगा पेसमेकर लगा गया

 

पीजीआईः 150 किलो वजन के मरीज में पहली बार लगा  पेसमेकर लगा गया


दिल में कम हो गया था करंट जिसके कारण पल्स रेट हो गया था कम
 जागरण संवाददाता। लखनऊ 

संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान  में कार्डियोलॉजिस्ट ने 150 किलोग्राम वजन वाले गंभीर रूप से मोटे मरीज में पेसमेकर इम्प्लांटेशन किया है। यह  प्रक्रिया एक 61 वर्षीय पुरुष में की गई थीजिसे पूर्ण हृदय ब्लॉक था। मरीज लखनऊ का रहने वाला है और उसे 5 दिन पहले सांस फूलने की शिकायत के साथ एसजीपीजीआई इमरजेंसी में आए इनका  पल्स रेट काफी कम था। पेसमेकर इम्प्लांटेशन की सलाह दी गई। उसके वजन को देखते हुए,इस प्रक्रिया में काफी जोखिम था। एसजीपीजीआई में कार्डियोलॉजी विभाग की हृदय रोग विशेषज्ञ डा.   रूपाली खन्ना के मुताबिक  मोटापे के रोगियों में प्रक्रिया करने में कई चुनौतियां होती है जिसे हम लोगों ने स्वीकार किया। पेसमेकर लगाने के लिए गले की नस में पहुंचना होता है ।   मोटापे और वसा ऊतक के कारण गर्दन में नस को पंचर करना मुश्किल था।  आम तौर पर पंचर करने के लिए 5 सेमी लंबाई की सुई का उपयोग किया जाता हैलेकिन उसके वजन और बड़े शरीर के कारणनस को पंचर करने के लिए एक विशेष बड़ी सुई का उपयोग किया गया । विभाग के प्रमुख प्रो. आदित्य कपूर और  हृदय रोग विशेषज्ञ  प्रो. सत्येंद्र तिवारी ने बताया कि अल्ट्रासाउंड गाइडेड पंक्चर भी एक तरीके है जिससे नस पंक्चर किया जाता है । यह  तकनीकें इस प्रकार के रोगियों के सामने आने वाली समस्याओं से निपटने में मदद कर सकती हैं। दुनिया भर में मोटापे से ग्रस्त लोगों में  में पेसमेकर लगाने के बहुत कम मामले सामने आते हैं। सफल प्रक्रिया के बादरोगी चलने में भी सक्षम है और 2 दिनों के भीतर उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है।


क्या होता है पेसमेकर 

पेसमेकर मेडिकल उपकरण होता है, जिसका संचालन बैटरी के माध्यम से किया जाता है। इसे दिल की धड़कनों को नियमति करने के लिए लगाते हैं। उपकरण के दो भाग होते हैं। पहले भाग को पल्स जनरेटर कहा जाता है, जिसमें बैटरी और इलेक्ट्रॉनकि होता है, जो दिल की धड़कनों को नियंत्रित करता है।दूसरे भाग में तार होते हैं, जो दिल को इलेक्ट्रिकल सिंग्नल भेजता है।पेसमेकर का इस्तेमाल उन लोगों के लिए किया जाता है, जिनकी दिल की धड़कने या तो काफी धीमी चलता है अथवा काफी तेज़ चलती हैं।