पित्ताशय कैंसर के साथ लिवर की हुई प्रदेश की पहली लेप्रोस्कोपिक सर्जरी
92 किलोग्राम की महिला में प्रदेश में पहली बार हुई एक्सटेंड कोलेस्टेटोमी
कम हो सर्जरी के बाद होने वाली चार परेशानियां
मोटापे के कारण जटिल थी सर्जरी
पित्ताशय में कैंसर की ओपेन सर्जरी सामान्य सर्जरी खास तौर पर सामान्य लोगों में लेकिन मोटापे की शिकार महिला में ओपेन सर्जरी संभव नहीं थी तो ऐसे में जिंदगी बचाने के लिए लेप्रोस्कोपिक सर्जरी को संजय गांधी पीजीआइ के गैस्ट्रो सर्जन प्रो. अशोक कुमार ( द्वितीय) ने अंजाम दिया। सर्जरी पूरी तरह सफल रही । सर्जरी के बाद सोमवार को इन्हे अस्पताल से छुट्टी दे गयी है। उन्नाव जिले की रहने वाली 42 वर्षीय रानी सिंह के पेट में दर्द की परेशानी हुई तो उन्होंने डॉक्टर को दिखाया तो जांच में पता चला कि पित्ताशय में गांठ है। इन्हे पीजीआई रिफर कर दिया गया। यहां पर तमाम जांच के बाद पता चला कि पित्ताशय में जो गांठ है वह कैंसर युक्त है। सर्जरी ही एक उपाय है । प्रो. अशोक कहते है कि सामान्य लोगों में ओपेन सर्जरी बहुत आसाना होती है लेकिन रानी का वजन 92 किलो था। पेट पर अधिक चर्बी के कारण पित्ताशय तक पहुंचने के लिए पहुंत अंदर जाना पड़ता जो काफी कठिन था। पूरे मामले को यूनिट हेड गैस्ट्रो सर्जन प्रो. अनु बिहारी के सामने रखा तय हुआ कि लेप्रोस्कोपिक सर्जरी है उपाय है। जो काफी जटिल है । प्रो.अशोक का कहना है कि इतने भार के मरीज में पित्ताशय कैंसर की लेप्रोस्कोपिक सर्जरी फिलहाल कहीं से रिपोर्टेड नहीं है। यह प्रदेश का पहला मामला है जिसमें यह सर्जरी की गयी।
इनका रहा सहयोग
सर्जरी में यूनिट हेड गैस्ट्रो सर्जन प्रो. अनु बिहारी, डा. मुक्तेश्वर, डा. रोहित, डा. रवींद्र के आलावा एनेस्थीसिया के डा. प्रतीक , डा. रफत और डा. सुरुचि ने सहयोग किया। शुरुआती दौर में मरीज के आने के कारण पित्ताशय के आस-पास कैंसर सेल नहीं फैले थे।
इस सर्जरी के लिए विशेष तैयारी
इसके लिए हम लोगों ने स्पेशल पोर्ट, हारमोनिक स्कैल पल
ल सहित अन्य उपकरण की व्यवस्था करायी। सर्जरी से पहले पूरी रूप –रेखा तैयार किया। पांच दिन पहले हम लोगों ने इस सर्जरी को अंजाम दिया। पित्ताशय निकालने के साथ , इससे सटे हुए लिवर के की तीन सेमी टुकडे को भी निकाला इसके साथ ही आस –पास स्थिति लिम्फ नोड को निकाला। इस तकनीक को एक्सटेंड कोलेस्टेटोमी कहती है।
इन परेशानियों की आशंका हो गई कम
मोटापे से ग्रस्त मरीजों में ऑपरेशन के बाद आने आने वाले कॉम्प्लिकेशन फेफड़ों के इन्फेक्शन, डीवीटी , पलमोनरी एंबॉलिज्म और बाद में इंसीजनल हर्निया होने का काफी चांस होता है जोकि लेप्रोस्कोपिक सर्जरी द्वारा काफी हद तक कम किया जा सकता है।
मोटापा बन रहा है कारण
अनुवांशिकी , दो सेंटीमीटर से बड़े गॉलब्लैडर स्टोंस, पोर्सलिन गॉलब्लैडर, एक सेंटीमीटर गॉलब्लैडर पॉलिप, मोटापा तथा अन्य कई कारण हैं। मोरबिड ओबेसिटी इस समय का सबसे नया और बढ़ता हुआ रिस्क फैक्टर है जिसे सर्जिकल डिफिकल्ट के चलते मैनेज करना और भी मुश्किल है।
पांचवे दिन पेशंट की छुट्टी कर सके।
ओपन सर्जरी जी की तुलना में मिनिमली इनवेसिव सर्जरी के बहुत ही सारे फायदे हैं जैसे कि ऑपरेशन के बाद बहुत ही कम दर्द का होना, न के बराबर इंसीजन(चीरा) साइज ही नहीं बल्कि ओवरऑल टिशु इंजरी भी लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में कम होती है तथा ब्लड लॉस भी कम होता जिससे कि पेशेंट को ऑपरेशन के बाद कम दर्द झेलना पड़ता है तथा उसे जल्दी से मोबिलाइज किया जा सकता है इसके साथ ही साथ लेप्रोस्कोपिक सर्जरी के मरीजों में फेफड़े का इन्फेक्शन और घाव से रिलेटेड इंफेक्शन और कॉम्प्लिकेशन होने के चांस भी कम हो जाते हैं
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें