सोमवार, 26 जुलाई 2021

महिलाओं में सर्जरी और पुरुषों में रोड पर दाढ़ी बनवाना बना सबसे बडा हेपेटाइटिस सी का कारण

 




महिलाओं में सर्जरी और पुरुषों में रोड पर दाढ़ी बनवाना बना सबसे बडा हेपेटाइटिस  सी का कारण

 

प्रदेश के 25 जिले में संक्रमित मरीजों में कारण जानने के लिए हुआ शोध

 

 कुमार संजय

असुरक्षित सर्जरी, किसी भी डॉक्टर से दांत उखडवाना और सड़क पर बैठे नाई से दाढ़ी बनवाना लिवर को बीमार करने वाले हेपेटाइटिस सी के संक्रमण  का सबसे बड़ा कारण इसके साथ टैटू बनवाना, संक्रमित खून चढना और नशे की सुई लेना भी कारण है। प्रदेश में हेपेटाइटिस सी वायरस के संक्रमण का कारण जानने के लिए शोध हुआ जिसमें 25 से अधिक जिलों को हेपेटाइटिस सी से ग्रस्त 310 मरीजों पर शोध किया गया । 50.3 फीसदी पुरुष और 49.7 महिलाएं थी।  इसमें सबसे अधिक मरीज लखनऊ, सीतापुर उन्नाव जिलों से शामिल हुए शोध को हाल में ही जर्नल आफ फैमिली मेडिसिन एंड प्राइमरी केयर ने स्वीकार किया है। इसके साथ किस टाइप के  जीनोम वाले सी वायरस से संक्रमित थे यह भी देखा गया। देखा गया कि सभी संक्रमित में एसजीओटी, एसजीपीटी, एल्कलाइन फॉस्फेट का स्तर बढा था। रिपोर्ट का कहना है कि लोगों को बचाव के लिए जागरूक करना होगा।

  

92.9 फीसदी- महिलाओं में मुख्य कारण पहले

सर्जरी( निचले गर्भाशय खंड सीजेरियन सेक्शन (एलएससीएस), हिस्टरेक्टॉमी, डिम्बग्रंथि के सिस्ट कैंसर की सर्जरी, फाइब्रॉएड और प्रोलैप्स गर्भाशय शामिल हैं)


75.6 फीसदी – पुरुषों में मुख्य कारण रोड साइड सेविंग  

 

 

 मुख्य कारण महिला पुरुष


पहले सर्जरी – 49.0

दांत निकलवाना- 41

रोड साइड दाढ़ी – 38.1

 

एचसीवी जीनोम

जीनोटाइप 3- 81.6

3ए- 11.3

3बी-5.8

1-0.7

4-0.7

 

15 से 45 फीसदी-  हेपेटाइटिस सी वायरस से संक्रमित होने वाले लोगों में वायरस का संक्रमण अपने आप बिना किसी इलाज के खत्म हो जाता है।

 

15 से 30 फीसदी- लिवर सिरोसिस संक्रमण के 20 साल में हो सकता है

 

10 से 20 फीसदी- लिवर सिरोसिस हो सकता है

 

12 से 32 फीसदी- हेपैटोसेलुलर कार्सिनोमा की परेशानी हो सकती है

 

2.8 लाख- हर साल नए मरीज सामने आते है

60 लाख- भारत में हेपेटाइटिस सी लोग संक्रमित है

 

 

ऐसे हुआ शोध

किंग जार्ज मेडिकल विवि के मेडिसिन विभाग के डा. अजय कुमार पटवा, डा. वीरेंद्र आतम, गैस्ट्रो मेडिसिन के डा. सुमित रूंगटा, लखनऊ विवि के जूलॉजी विभाग के डा. अमरदीप, डा. सुचित स्वरूप, डीडीयू गोरखपुर विवि के जूलॉजी विभाग के डा. सुशील कुमार ने तीन साल तक शोध किया। प्रीवियस हिस्ट्री ऑफ सर्जरी इन फीमेलस एंड रोड साइड सेविंग इन मेलस आऱ द कॉमनेस्ट रिस्क फैक्टर फाऱ हेपेटाइटिस सी इंफेक्शन शीर्षक से हुए शोध को जर्नल आफ फैमिली मेडिसिन एंड प्राइमरी केयर ने स्वीकार किया है।   

 

सोमवार, 19 जुलाई 2021

पित्ताशय कैंसर के साथ लिवर की हुई प्रदेश की पहली लेप्रोस्कोपिक सर्जरी


 पित्ताशय कैंसर के साथ लिवर की हुई प्रदेश की पहली लेप्रोस्कोपिक सर्जरी

 

92 किलोग्राम की महिला में प्रदेश में पहली बार हुई एक्सटेंड कोलेस्टेटोमी

कम हो सर्जरी के बाद होने वाली चार परेशानियां

 मोटापे के कारण जटिल थी सर्जरी

 

पित्ताशय में कैंसर की ओपेन सर्जरी सामान्य सर्जरी खास तौर पर सामान्य लोगों में लेकिन मोटापे की शिकार महिला में ओपेन सर्जरी संभव नहीं थी तो ऐसे में जिंदगी बचाने के लिए लेप्रोस्कोपिक सर्जरी को संजय गांधी पीजीआइ के गैस्ट्रो सर्जन प्रो. अशोक कुमार ( द्वितीय) ने अंजाम दिया। सर्जरी पूरी तरह सफल रही । सर्जरी के बाद सोमवार को इन्हे अस्पताल से छुट्टी दे गयी है। उन्नाव जिले की रहने वाली 42 वर्षीय रानी सिंह के पेट में दर्द की परेशानी हुई तो उन्होंने डॉक्टर को दिखाया तो जांच में पता चला कि पित्ताशय में गांठ है। इन्हे पीजीआई रिफर कर दिया गया। यहां पर तमाम जांच के बाद पता चला कि पित्ताशय में जो गांठ है वह कैंसर युक्त है। सर्जरी ही एक उपाय है । प्रो. अशोक कहते है कि सामान्य लोगों में ओपेन सर्जरी बहुत आसाना होती है लेकिन रानी का वजन 92 किलो था। पेट पर अधिक चर्बी के कारण पित्ताशय तक पहुंचने के लिए पहुंत अंदर जाना पड़ता जो काफी कठिन था। पूरे मामले को यूनिट हेड गैस्ट्रो सर्जन प्रो. अनु बिहारी के सामने रखा तय हुआ कि लेप्रोस्कोपिक सर्जरी है उपाय है।  जो काफी जटिल है । प्रो.अशोक का कहना है कि इतने भार के मरीज में पित्ताशय कैंसर की लेप्रोस्कोपिक सर्जरी फिलहाल कहीं से रिपोर्टेड नहीं है। यह प्रदेश का पहला मामला है जिसमें यह सर्जरी की गयी। 


इनका रहा सहयोग

सर्जरी में यूनिट हेड गैस्ट्रो सर्जन प्रो. अनु बिहारी,  डा. मुक्तेश्वर, डा. रोहित, डा. रवींद्र के आलावा एनेस्थीसिया के डा. प्रतीक , डा. रफत और डा. सुरुचि ने सहयोग किया। शुरुआती दौर में मरीज के आने के कारण पित्ताशय के आस-पास कैंसर सेल नहीं फैले थे।

 

 

 

 

 

इस सर्जरी के लिए विशेष तैयारी

 

 इसके लिए हम लोगों ने स्पेशल पोर्ट, हारमोनिक स्कैल पल

ल सहित अन्य उपकरण की व्यवस्था करायी। सर्जरी से पहले पूरी रूप –रेखा तैयार किया। पांच दिन पहले हम लोगों ने इस सर्जरी को अंजाम दिया। पित्ताशय निकालने के साथ , इससे सटे हुए लिवर के की तीन सेमी टुकडे को भी निकाला इसके साथ ही आस –पास स्थिति लिम्फ नोड को निकाला। इस तकनीक को एक्सटेंड कोलेस्टेटोमी कहती है।



 

इन परेशानियों की आशंका हो गई कम

मोटापे से ग्रस्त मरीजों में  ऑपरेशन के बाद आने आने वाले कॉम्प्लिकेशन  फेफड़ों के इन्फेक्शनडीवीटी पलमोनरी एंबॉलिज्म और बाद में इंसीजनल हर्निया होने का काफी चांस होता है जोकि लेप्रोस्कोपिक सर्जरी द्वारा काफी हद तक कम किया जा सकता है। 



मोटापा बन रहा है कारण

 

अनुवांशिकी दो सेंटीमीटर से बड़े गॉलब्लैडर स्टोंसपोर्सलिन गॉलब्लैडरएक सेंटीमीटर गॉलब्लैडर पॉलिप मोटापा  तथा  अन्य कई कारण हैं। मोरबिड ओबेसिटी इस समय का सबसे नया और बढ़ता हुआ रिस्क फैक्टर है जिसे सर्जिकल डिफिकल्ट के चलते मैनेज करना और भी मुश्किल है।

 

 

 

 पांचवे दिन पेशंट की छुट्टी कर सके। 

ओपन सर्जरी जी की तुलना में मिनिमली इनवेसिव सर्जरी के बहुत ही सारे फायदे हैं जैसे कि ऑपरेशन के बाद बहुत ही कम दर्द का होनान के बराबर इंसीजन(चीरा) साइज ही नहीं बल्कि ओवरऑल टिशु इंजरी भी लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में कम होती है तथा ब्लड लॉस भी कम होता जिससे कि पेशेंट को ऑपरेशन के बाद कम दर्द झेलना पड़ता है तथा उसे जल्दी से मोबिलाइज किया जा सकता है इसके साथ ही साथ लेप्रोस्कोपिक सर्जरी के मरीजों में फेफड़े का इन्फेक्शन और घाव से रिलेटेड इंफेक्शन और कॉम्प्लिकेशन होने के चांस भी कम हो जाते हैं

पीजीआइ खोजा अनियंत्रित डायबिटीज के इलाज का नुस्खा

 पीजीआइ  खोजा अनियंत्रित डायबिटीज के इलाज का नुस्खा






चुनिंदा मरीजों पर क्लिनिकल ट्रायल की तैयारी

 

प्रैक्रियाज से स्रावित शुगर बढ़ाने वाले हार्मोन को रोक कर होगा शुगर पर नियंत्रण

 

अब तमाम इलाज के बाद शुगर नियंत्रित न होने की परेशानी से निपटने का  नुस्खा खोज लिया  है। इसके साथ ही डायबिटीज के इलाज का नया रास्ता भी खुल गया है। वैज्ञानिकों ने इस नुस्खे को प्रयोगशाला में स्थापित किया है जिसे विश्व स्तर पर स्वीकार किया गया है। इस नुस्खे को स्थापित करने वाले संजय गांधी पीजीआइ के इंडोक्राइनोलॉजी विभाग के वैज्ञानिक डा. रोहित सिन्हा के मुताबिक  चूहों और अल्फा सेल पर परीक्षण के बाद जल्दी ही कुछ चुनिन्दा शुगर के मरीजों पर भी इस दवा का परीक्षण करने की तैयारी में है।


 डा. सिन्हा के मुताबिक प्रैक्रियाज से  इंसुलिन हार्मोन का स्राव होता है जो पैंक्रियाज में स्थिति बीटा सेल करता है। इस सेल के कार्य प्रणाली में कमी आने पर इंसुलिन कम बनता है जिससे शुगर का उपापचय नहीं हो पाता है यह एक सामान्य शुगर की बीमारी होने की प्रक्रिया है। हमने देखा है कि प्रैक्रियाज से  ग्लूकागन हार्मोन का भी स्राव होता है जो पैंक्रियाज में स्थित अल्फा सेल से स्रावित होता है। यह हार्मोन  लिवर में जाकर अधिक शुगर बनाने को प्रेरित करता है।  इंसुलिन लेने के बाद भी यदि ग्लूकागन अधिक मात्रा में बनेगा तो शुगर अधिक बनेगा इससे डायबिटीज इंसुलिन देने के बाद भी कई बार अनियंत्रित रहती है। शुगर के कुल मरीजों में से 0.5 से 0.8 में अनियंत्रित शुगर की परेशानी होती है।  हमने देखा कि प्रैक्रियाज में स्थिति एमटीओआरसी1 प्रोटीन प्रैक्रियाज से ग्लूकागन को स्रावित करता है। इस प्रोटीन के ब्लाक कर दिया जाए तो यह प्रैक्रियाज से बाहर नहीं निकलेगा तो शुगर का अधिक नहीं बनेगा और शुगर का स्तर नियंत्रित रहेगा।


ऐसे किया शोध

 

हमने चूहों में खास दवा देकर पहले उनके बीटा सेल को नष्ट किया जिससे उनमें इंसुलिन बनना बंद हो गया । इनमें शुगर का स्तर बढ गया इन चूहों को ग्लूकागन हार्मोन के स्राव को रोकने के लिए रापामायसिन एक खास दवा त्वचा में सबक्यूटेनियस दिया तो देखा उनमें शुगर का स्तर कम हो गया। इसके साथ लैब में सेल पर यह प्रक्रिया कर इसे स्थापित किया गया। इस शोध के   अंतर्राष्ट्रीय जर्नल मॉलिक्यूलर मेटाबॉलिज्म ने स्वीकार किया है। इस शोध छात्र डा. संगम रजक, डा. अर्चना तिवारी और डा. सना रजा ने विशेष भूमिका निभाई । 

शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

आयुर्वेद में एलोपैथ के मुकाबले किया अच्छा कोरोना से मुकाबला

 



आर्युवेद ने किया कोरोना से मुकाबला

 कोरोना के इलाज के लिए मिली नई दिशा 

पहली बार कोरोना के मरीजों पर आर्युवेद से इलाज पर हुआ शोध

कुमार संजय

 

कोरोना के इलाज में आयुर्वेद कारगर साबित हुआ है।  यह 120 कोरोना के मरीजों पर शोध के बाद साबित किया है। इस शोध को विश्व स्तर पर स्वीकार किया गया है। कोरोना की पुष्टि वाले इन मरीजों को तीन वर्ग में बांट कर शोध किया गया है। एबी और सी समूह में चालिस चालिस मरीजों को रखा गया है। ए और बी समूह के मरीजों को विशेष आयुर्वेदिक दवाएं दी गयी और सी  को विटामिन सी और पेरासिटामोल दिया गया देने के बाद उनमें 10 दिन के अंदर लक्षण में आराम और कोरोना निगेटिव होने में लगने वाले समय का अध्ययन किया गया। यह शोध लोकबंधु राजनारायण अस्पताल में आने वाले कोरोना मरीजों पर किया गया। शोध में इस अस्पताल के चिकित्सकों के अलावा नेशनल हेल्थ मिशन आयुष के चिकित्सकों ने भी भाग लिया।   

 

किसे शोध में किया गया शामिल

 

कोरोना पॉजिटिव उन मरीजों को शोध में शामिल किया गया जिनमें बुखारगले में खराशखांसीसांस की तकलीफनाक बहनासामान्य कमजोरीसिरदर्दचिड़चिड़ापनमतली / उल्टीदस्तस्वाद की हानि और गंध की कमी की परेशानी थी। ऐसे मरीजों को भी शामिल किया जिनमें लक्षण नहीं थे।



किस वर्ग के मरीजों को क्या दी गई दवा

समूह ए- व्याघ्र्यादि कषाय 50 एमएल दो बारपिपली पाउडर खाली 50 ग्राम सुबह और शाम खाली पेट 500 मिली ग्राम दो बार समशमणि वटी

 

समूह बी- दो ग्राम शुंठी दो बाररसोना पेस्ट एक ग्राम एक बार

 

समूह सी – विटामिन सी 500 ग्राम दो बार 500 ग्राम पैरासिटामाल

 

शोध में क्या हुआ साबित

 

 

ग्रुप सी  की तुलना में ग्रुप ए  और बी में पहले वायरल क्लीयरेंस( कोरोना निगेटिव) के साथ औसत जल्दी रिकवरी देखी गई थी। ग्रुप बी और सी की तुलना में ग्रुप ए में बुखारखांसीगले में खराश और चिड़चिड़ापन में अधिकतम राहत देखी गईजो सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण थी। समूह सी के कुछ रोगियों में उचित स्वाद और गंध का नुकसान अधिक प्रमुख था। समूह बी के रोगियों ने स्वाद की असामान्य अनुभूति और सामान्य कमजोरी में सुधार दिखा।

 

 

 

5 वें दिन वें दिन कोरोना निगेटिव

 

 समूह ए - 92.5 फीसदी

समूह बी - 87.5 फीसदी

समूह सी - 57.75 था।

 7 वें दिन

 समूह ए - 100 फीसदी

 समूह बी - 97.5 फीसदी

ग्रुप सी - 72.5 फीसदी

 

इन्होंने किया शोध

लोकबंधु अस्पताल के पंचकर्म विशेषज्ञ डा. आदिल रईसमुख्य चिकित्सा अधीक्षक डा. अमिता यादवडा. महेंद्र यादवचिकित्सा अधीक्षक डा.पीएन अहिरवारनेशनल हेल्थ मिशन के डा. हिमांशु आर्यडा. रामजी वर्माआल इंडिया इंस्टिट्यूट आफ आयुर्वेदा के डा. अबसार अहमद कम्युनिटी मेडिसिन कैरियर इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस के डा. आर गालिब और डीजी हेल्थ डा.डीएस नेगी   

मंगलवार, 13 जुलाई 2021

वायरल हेपेटाइटिस ही नहीं टाइफाइड भी हो सकता है पीलिया का कारण

 

टाइफाइड से प्रभावित हो गया  लिवर

वायरल हेपेटाइटिस ही नहीं टाइफाइड भी हो सकता है पीलिया का कारण

इंट्रावेनस एंटीबायोटिक से संभव है इलाज


कुमार संजय

12 वर्षीय सत्यम को बुखार लंबे समय से आ रहा था डॉक्टर दवा देते कुछ कम होता लेकिन फिर एक दो दिन बाद तेज बुखार होने लगता । इस तरह 15 दिन बीतने के बाद खून की जांच हुई तो पीलिया का पता लगा। डॉक्टर ने पीजीआइ में दिखाने का सलाह दिया तो परिवार वाले संस्थान के पीडियाट्रिक गैस्ट्रोइंटेरोलाजिस्ट प्रो. मोइनक सेन शर्मा को दिखाया।  पीलिया का कारण जानने के लिए वायरल हेपेटाइटिस एबीसी और ई की जांच कराया जब यह संक्रमण शुरुआती जांच में नहीं मिला और बुखार में कोई कमी नहीं आयी तो अल्ट्रासाउंड के साथ विडाल की जांच सहित कई जांच बुखार का कारण जानने के लिए कराया तो पता चला कि विडाल टीएच( सैल्मोनेला टाइफी) 640 टाइटर यानि इंड टाइटर तक पॉजिटिव आया इसके साथ ही टीओ 160 टाइटर तक पॉजिटिव आया । इसके इलाज के खास एंटीबायोटिक इंट्रावेनस देने शुरू किया तब जा कर पांच दिन बुखार आना बंद हुआ । डॉक्टर का कहना है कि दस दिन तक इंट्रावेनस दवा देने के बाद खाने की गोली के रूप में एंटीबायोटिक जारी रहेगा । भारत में टाइफाइड प्रति एक लाख आबादी में 493.5 लोगों को प्रभावित करता है

 

यह होती है परेशानी

 

तेज बुखारसिरदर्दउबकाई आनाभूख कम होनाकब्ज और डायरियाटाइफाइड के मुख्य लक्षण हैं।   गंभीर टाइफाइड संक्रमण जटिलताओं को बढ़ा देता है और मौत तक की वजह बन सकता है। 2 से 5 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों पर इसका खतरा ज्यादा होता है। गंभीर टाइफाइड तो बड़े लोगों में भी हो सकता है।

 

 

ऐसे करें बचाव

पीने के पानी को पीने से पहले एक मिनट तक उबाल कर पीएं। बर्फबोतल के पानी या उबले पानी से बनी हुई न हो तो पेय पदार्थ बिना बर्फ के ही पीएं। स्वादिष्ट बर्फीले पदार्थ न खाएं। पूरी तरह पकाए और गर्म तथा वाष्प निकलने वाले खाद्य पदार्थ ही खाएं। कच्ची ऐसी साग सब्जियां और फल न खाएं जिन्हें छीलना संभव न हो।जब छीली जा सकने वाली कच्ची सब्जियां या फल खाएं तो स्वयं उन्हें छीलकर खाएं। (पहले हाथ साबुन से धो लें) छिलके न खाएं। पानी हमेशा उबालकर ही पियें

 

 

यह तो एक मामला है हमारे पास ऐसे मामले महीने में आठ से दस आते है।  टाइफाइड का सही समय पर सही इलाज न होने पर आंत में छेद तक हो जाता है जिससे परेशानी बढ़ जाती है। टाइफाइड के कारण लिवर एंजाइम बढा होने पर सबसे पहले शक वायरल हेपेटाइटिस पर ही जाता है । इसके साथ ही बुखार के दूसरे कारणों की भी जांच करानी चाहिए... प्रो.मोइनक सेन शर्मा प्रो. पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंटरोलॉजी         

मंगलवार, 6 जुलाई 2021

हार्ट फेल्योर से परेशान को फ्लूड मैनेजमेंट से मिली राहत भरी सांस






 हार्ट फेल्योर से परेशान को फ्लूड मैनेजमेंट से मिली राहत भरी सांस

 

क्रोनिक हार्ट फेल्योर के मरीजों की बढ़ सकती है जिंदगी की डोर

  

 


 

69 वर्ष की  अमरावती दो कदम भी नहीं चल पा रही थी। बैठी हो या ले'टी हो सांस इतनी तेज फूलती कि लगता थासांस थम रही है। तेज सीने में दर्द ले परेशान रहती थी । इनके दिल की माँस पेशियां कमजोर हो गयी है जिससे दिल की पंपिंग शक्ति काफी कम हो गयी है। इस स्थिति को हार्ट फेल्योर कहती है। परेशानी बढ़ने पर परिजन संजय गांधी पीजीआइ लाए । संस्थान के हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो.सुदीप कुमार  इको कार्डियोग्राफी परीक्षण किया तो पता चला कि मांसपेशियाँ पहले से अधिक कमजोर हो गयी है। जिससे शरीर में रक्त संचार कम हो रहा था। तमाम परीक्षण के बाद प्रो.सुदीप ने इन्हें भर्ती कर लिया । फ्लूड मैनेजमेंट थिरेपी के जरिए शरीर में जमा पानी का दवाओं के जरिए मूत्र मार्ग से निकला हालांकि इस दौरान कई बार अमरावती की स्थिति में उतार –चढाव आया लेकिन एक सप्ताह की इस मैनेजमेंट से स्थिति में सुधार के साथ बायोमार्कर सोडियम , पोटेशियम , सीरम क्रिएटिनिन सहित अन्य में सुधार हो गया। इन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी। अब यह काफी राहत महसूस कर रही है। फ्लूड मैनेजमेंट के बाद  के साथ  पहले से चल रही  कंबीनेशन थिरेपी के साथ एंजियोटेंसिन रिसेप्टर नेप्रीलाइसिन इनहिबिटर (एआरएनआई) रसायन को जोड़ दिया।  प्रो.सुदीप का कहना है कि हार्ट की पंपिग कमजोर होने की वजह से शरीर में पानी जमा हो जाता है जिससे सांस लेने में परेशआनी बढ़ जाती है। पानी का इंटेक कम करने के साथ पानी को शरीर में जमा न होने पाए डाइयूरेटिक दवाओं पर रखा जाता है जिससे जिंदगी काफी आसान हो जाती है।

 

 

क्या होता है हार्ट फेल्योर

 

 

हार्ट फेलियर का मतलब है कि आपका ह्रदय कमजोर है और आपके फेफड़ों और पूरे शरीर में खून पंप नहीं कर सकता है. सांस फूलनाथकानऔर आपके पैरोंटखनोंपेट और शरीर के अन्य हिस्सों में सूजन होना इसके आम लक्षण हैं।

 

 

 

क्यों होता है हार्ट फेल्योर

- यदि हार्ट तक ऑक्सीजन पहुंचानेवाली धमनियों (कोरोनरी आर्टरी) में किसी तरह की रुकावट पैदा हो जाती है तो हार्ट तक रक्त का प्रवाह ठीक प्रकार से नहीं हो पाता है। इसके पीछे हाई ब्लड प्रेशरमायोकार्डिटिस(हार्ट हृदय में सूजन) हार्ट में जन्म  ही खराबी,-हृदय की धड़कन का असामान्य रहनालिवर की बीमारीकिडनी का खराब होनाथायराइड  एचआईवीशरीर में प्रोटीन का जमाव होना,  वायरस ए संक्रमणफेफड़ों में रक्त के थक्के जमनाकिसी दवाई के रिएक्शन के कारण या  एलर्जी।