मंगलवार, 1 मई 2018

4 से 6 रूपए में ले सकते है अच्छी सांस



पल्मोनरी फंक्सन टेस्ट से चलता है अस्थमा का पता

4 से 6 रूपए में ले सकते है अच्छी सांस

इनहेलेशन थिरेपी ही है  दमा में कारगर

लखनऊ। कुमार संजय 

देश का हर दसवां व्यक्ति अस्थमा का शिकार है। यह बच्चों और बड़ों दोनों में ही कुछ महीने में उभर कर आ जाता है। दमा का सही इलाज नहीं होने पर यह जानलेवा भी साबित होता है। इनहेल्ोशन थेरेपी सबसे कारगर इलाज है, जो 4 से 6 रुपये प्रतिदिन की कीमत में उपलब्ध है। संजय गांधीपीजीआई के पल्मोनरी मेडिसिन के विशेषज्ञ प्रो.आलोक और प्रोफेसर जिया हासिम के मुताबिक सांस फूलने के दूसरे कारण भी होते है। इसका पता लगाने के लिए पल्मोनरी फंक्सन टेस्ट किया जाता है जिसमें फेफड़े की क्षमता का आकलन किया जाता है। कितनी फ्लो में आक्सीजन इन्हेल हो रहा है। इसमें लंबे समय तक उपचार की आवश्यकता पड़ती है। अधिकांश रोगी जब दवा के सेवन से बेहतर महसूस करने लगते हैं, तब वे कुछ सप्ताह के बाद ही इलाज बंद कर देते हैं। इससे रोग की दोबारा होने का खतरा बढ़ जाता है और रोगी अस्थमा के अटैक से ग्रस्त हो सकता है। विश्व अस्थमा दिवस पर उन्होंने कहा कि अस्थमा से से ग्रस्त लोगों में 10 से 12 फीसदी बच्चे होते हैं। बच्चे में इनहेलेशन थेरेपी की शुरुआत जल्द से जल्द करनी चाहिए। इससे बीमारी को नियंत्रित करने और उसे अटैक से बचाने और फेफड़ों को सुरक्षित रखने में मदद मिलती है।ज्यादातर लोग बार-बार होनी वाली कफिंग, सांस लेने में तकलीफ, छींक आने जैसे लक्ष्णों का उपचार कफ दवाइयों या बिना डॉक्टर की सलाह के दवा लेकर करते हैं। 

80 फीसदी अस्थमा के मरीज गोली पर रहते हैं निर्भर

अस्थमा और इनहेलर्स को लेकर डर भी व्याप्त है। वहीं, डॉक्टर भी ऐसे समय में अस्थमा के लिए 'ब्रोंकियल स्पाज्म' और 'व्हीजिंग कफ' आदि वैकल्पिक नामों का इस्तेमाल करते हैं।उन्होंने कहा कि अस्थमा और इनहेलर्स को लेकर व्याप्त मिथकों के कारण भारत में लगभग 80 प्रतिशत अस्थमा रोगी ओरल टैब्लेट पर निर्भर हैं, जबकि इनहेलर ही सटीक और सुरक्षित इलाज है। 

अस्थमा होने के कारण:
धूल, सर्दी-जुकाम, परागकण, पालतू जानवरों के बाल, विषाणु और वायु प्रदूषक साथ ही भवानात्मक आवेश भी दमा के आघात का कारण बन जाता है। जब एक व्यक्ति इसके संक्रमण से ग्रस्त हो जाता है। तब सूजे हुए वायुछिद्र विचलित हो उठते हैं, जिससे वहां की मांसपेशियों में जकड़न उत्पन्न हो जाती है। इससे फेफड़ों की नलिकाएं अपना कार्य स्वाभाविक रूप से नहीं कर पाती हैं और व्यक्ति को सामान्य तरीके से सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। यह स्थिति कभी-कभी घातक भी हो जाती है।

अस्थमा के सामान्य लक्षण:
सीने में बार-बार जकड़न, सांस लेने में परेशानी, कफ का लगातार आना। हालांकि दमा के लक्षण अलग-अलग लोगों में अलग-अलग प्रकार के होते हैं और बेहद जरूरी है कि इनकी निगरानी उचित चिकित्सक द्वारा की जाए। आज दुनियाभर में दमा क उपचार का सबसे सुरक्षित तरीका इनहेलेशन थेरेपी को माना जाता है, क्योंकि यह सीधे रोगी के फेफड़ों में पहुंचकर अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर देता है। टैबलेट और सीरप पेट में जाने के बाद रक्त के माध्यम से फेफड़ों में पहुंचता है। इसके अनेक साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं। वहीं, इनहेलेशन थेरेपी टैबलेट्स और सीरप की अपेक्षा कहीं अधिक प्रभावी है।

 प्री मेच्योर बेबी में अधिक अाशंका
  


के फेफड़े को मेच्योर बनाने के लिए गर्भवती को दी जाने वाली स्टेरॉयड दवाएं हैं।  अस्थमा (दमा) अनुवांशिक बीमारी है। साथ ही यह बचपन से ही उभरती है। ऐसे में हमें जेनेटिक रिस्क फैक्टर को कम करने पर फोकस करना पड़ेगा। उन्होंने बताया कि वर्तमान में महिलाओं में पेन लेस डिलीवरी का चलन बढ़ा है। खासकर, निजी अस्पताल 60 फीसद तक डिलीवरी सिजेरियन कर रहे हैं। ऐसे में गर्भवती को स्टेरॉयड का डोज देकर प्री-मेच्योर बेबी का फेफड़ा मेच्योर किया जाता है। कारण, बच्चे के जन्म वक्त उसका फेफड़ा ही पहले एक्टिव होता है। ऐसे में गर्भ के दौरान दी जाने वाली स्टेरॉयड की डोज बच्चों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालती हैं। हाल में हुई स्टडी में पाया गया कि सिजेरियन डिलीवरी से होने वाले बच्चों में अस्थमा का प्रकोप अधिक पाया गया है। ऐसे में महिलाओं को नॉर्मल व फुल टर्म डिलीवरी पर फोकस करना होगा। वहीं चिकित्सक इमरजेंसी पड़ने पर ही सिजेरियन का विकल्प चुनें।

सांस लेने में हर परेशानी अस्थमा नहीं

 सांस की हर तकलीफ दमा नहीं होती है। ऐसे में डॉक्टरों को डायग्नोसिस पर फोकस करना होगा। बेवजह मरीजों पर एंटीबायोटिक व स्टेरॉयड का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। देखने में आया कि सीओपीडी, इंटस्टीसियल लंग डिजीज को कई चिकित्सक अस्थमा समझकर दवाएं चला देते हैं।


बरतें सावधानी
-घर में धूल व नमी न रहने दें।
-बारिश में भीगने से बचें।
-ठंड से बचाव करें। 
-धूल, धुआं आदि से एलर्जी के बचाव के लिए मुंह पर मास्क या रूमाल लगा लें।
-खान-पान पर नियंत्रण रखें। खाना धीरे-धीरे चबाकर खाएं।
-गरम मसाला, लाल मिर्च, अचार, चाय, कॉफी आदि का सेवन सीमित मात्र में करें।
-प्राणायाम नियमित करें।
-अटैक पड़ने पर डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाओं का सेवन करें। सीधे बैठ जाएं, लेटे नहीं। कपड़ों को ढीला कर लें। शांत रहने का प्रयास करें।

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