शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

जीवन दूत बने राजधानी के रक्तदाता

जीवन दूत बने राजधानी के रक्तदाता
इससे बड़ा कोई दान नहीं...

पीजीआई के ही वीके सिंह रक्तदान को सबसे बड़ा दान समझते हैं। वे अब तक लगभग ८५ बार रक्तदान कर चुके हैं। वो कहते हैं कि बस मन ने कहा, रक्तदान करना चाहिए और ब्लड बैंक पहुंच गया। इसके बाद जो सिलसिला शुरू हुआ वो आज भी जारी है। हर तीन माह में रक्तदान करता हूं। वीके सिंह का कहना है कि यदि शरीर में अपने आप बनने वाले खून की एक यूनिट देकर आप चार लोगों के जीवन की रक्षा में भागीदार बनते हैं तो इससे बड़ा कार्य और क्या हो सकता है। मेरी नजर में इससे बड़ा कोई दान नहीं है। ऐसे बहुत से मरीज होते हैं जिनके ऑपरेशन या फिर जान बचाने के लिए रक्तदाता नहीं मिलते। ब्लड कैंसर से जूझ रहे लोग और थौलीसीमिया पीड़ित बच्चों को भी हर सप्ताह खून की जरूरत पड़ती है। ऐसे लोगों को स्वैच्छिक रक्तदान से ही मदद मिलती है। बस, इसी एक सोच ने रक्तदान करने की प्रेरणा दी।

रक्तदाताओं के सचिन हैं आरके भौमिक
आरके भौमिक रक्तदाताओं के च्सचिनज् माने जाते हैं। वो अब तक १०५ बार रक्तदान कर चुके हैं। वैसे तो वो पुलिस विभाग में हैं, लेकिन खाकी वर्दी के पीछे उनका एक अलग ही चेहरा है। वो बताते हैं कि १९८४ में उत्तरकाशी में आए भूकंप में घायल लोगों की मदद के लिए पहली बार रक्तदान किया था। तब से आज तक रक्तदान करते आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि वो अब तक १०५ बार रक्तदान कर चुके हैं। उनका बेटा अभिषेक भौमिक भी वर्ष २००८ से रक्तदान कर रहा है और अब तक लगभग १८ बार रक्तदान कर चुका है। दोनों ही ईश्वर चाइल्ड फाउंडेशन और भारत सेवाश्रम कोलकाता से जुड़े हैं। ये संस्थाएं नि:सहाय और कैंसर पीड़ित बच्चों की मदद करती हैं। भौमिक का कहना है कि युवाओं को दूसरों को जीवन दान देने वाले इस पुनीत कार्य के लिए आगे आना चाहिए। लोग तरह-तरह का दान देते हैं। इसे भी एक दान बनाएं। क्योंकि एक यूनिट रक्त बहुत कीमती है, जो चार लोगों की जान बचाता है।

जिम्मेदारी बन गया रक्तदान
घर और ऑफिस की तरह ही अब रक्तदान भी मेरी जिम्मेदारी बन चुका है। रेयर बी निगेटिव ग्रुप होने के कारण उनका रक्तदान करना और अधिक महत्वपूर्ण है। यह कहना है मौसम विभाग में राजभाषा अधिकारी कल्पना श्रीवास्तव का। वे ४ जून, २००५ को अखबार में पढ़कर पहली बार केजीएमयू के ब्लड बैंक में रक्तदान के लिए पहुंची थी। तब से अब तक ३० बार रक्तदान कर चुकी हैं। उन्होंने बताया कि ब्लड कैंसर से पीड़ित बच्चों को समय-समय पर रक्त की जरूरत होती है। उनका इलाज कराते-कराते आर्थिक रूप से टूट चुके माता-पिता की इतनी क्षमता नहीं होती कि वो बार-बार खून की व्यवस्था कर पाएं। ऐसे ही बच्चों की मदद के लिए ईश्वर फाउंडेशन से जुड़ी और लगातार रक्तदान कर रही हैं। उन्होंने बताया कि पिता, भाई और बहन भी निगेटिव ग्रुप के हैं। भाई भी समय-समय पर रक्तदान करते हैं। उन्होंने कहा कि सामान्य ग्रुप के लोग रक्तदान के लिए बहुत हैं, जिसका भी रेयर ग्रुप है उसे रक्तदान के लिए स्वयं ही आगे आना चाहिए। क्योंकि कभी उसको भी रक्त की जरूरत पड़ सकती है। ऐसे में उसकी मदद कौन करेगा।

शरीर के लिए भी फायदेमंद
रक्तदान शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होता है। क्योंकि रक्तदान के बाद शरीर में कई नई कोशिकाएं बनती हैं, जिससे शरीर को काफी फायदा होता है। यह कहना है पीजीआई के टेक्निकल ऑफिसर डीके सिंह का। सिंह ने केजीएमयू में डिप्लोमा करते समय १९८४ में पहली बार रक्तदान किया था। इसके बाद १९८८ में पीजीआई में नियुक्ति मिल गई, लेकिन रक्तदान का सिलसिला लगातार जारी रहा। वे बताते है कि १९८४ से अब तक ८८ बार रक्तदान कर चुका हूं। उनकी पत्नी और बेटा जयंत भी इस बेमिसाल कार्य से जुड़े हुए हैं। बेटा लगभग दो साल से रक्तदान कर रहा है और पत्नी ने ७ मार्च को ही रक्तदान किया था। डीके सिंह बताते है कि वे एफरेसिस भी कई बार करा चुके हैं। इसमें ब्लड तो शरीर में वापस आ जाता है, लेकिन मशीन प्लेटलेट्स को अलग कर लेती है। उन्होंने बताया कि रक्तदाता दिवस पर यूपी राज्य एड्स कंट्रोल सोसाइटी उन्हें सम्मानित करेगी।

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४० फीसदी से पूछा ही नहीं जाता, रक्तदान करोगे क्या?
एसजीपीजीआई के सर्वे में सामने आए रोचक तथ्य, ९० फीसदी से ज्यादा दोबारा रक्तदान के इच्छुक
यह भ्रांतियां और बाधाएं भी रोक रहीं रक्तदान से

•कुल लोगों में
४.६६त्न
का मानना कि रक्तदान करेंगे तो नपुंसक हो जाएंगे, जबकि ऐसा नहीं होता है।
•वहीं
४.२५त्न
का मानना था कि इससे वे हमेशा के लिए कमजोर हो जाएंगे, यह भी गलत है। दान किया गया रक्त हमारा शरीर कुछ ही घंटों में फिर बना लेता है।
•कभी रक्तदान नहीं करने वालों में
६.५०त्न
को रक्तदान में लगने वाले ५ से ७ मिनट बोरिंग और लंबे लगते हैं, इसलिए वे रक्तदान नहीं करते।
•इसी किस्म के
४.२५त्न
लोगों का मानना है कि उनका रक्त बेकार चला जाएगा।
•इसी श्रेणी के
६.२५त्न
इसलिए कभी रक्तदान नहीं करते क्योंकि रक्तदान करने की जगह उनके घर से दूर पड़ती है।
२२.७५त्न में गलत धारणा कि सेहत को नुकसान होगा
जहां रक्तदान नहीं करने वालों में ४०.७५त्न ने बताया कि उनसे रक्तदान के लिए कभी पूछा ही नहीं गया तो वहीं २२.७५ प्रतिशत में यह गलत धारणा है कि रक्तदान से उनकी सेहत को नुकसान होगा। ३.७५ फीसदी जहां सूई चुभने के डर से रक्तदान नहीं करना चाहते तो ५.५० फीसद में धारणा है कि यह दर्द भरी प्रक्रिया है। ४.२५ प्रतिशत का मानना था कि उनका रक्त बेकार चला जाएगा, ६.२५ फीसद सिर्फ इसलिए कभी रक्तदान नहीं करते क्योंकि रक्तदान करने की जगह उनके घर से दूर है। इन ४०० लोगों में से ५७.२५ प्रतिशत ने कहा कि अगर जरूरत पड़े तो वे रक्तदान जरूर करेंगे, वहीं १३.२५ प्रतिशत लोग आज भी अज्ञान की गिरफ्त में इतने उलझे हैं कि वे कभी रक्तदान नहीं करना चाहते।

समाधानों पर क्या कहता है सर्वे
सर्वे रिपोर्ट के अनुसार आज राष्ट्रीय स्तर पर रक्तदान को लोकप्रिय करने के लिए अभियान छेड़ने की जरूरत है। अमेरिका में भी कुछ दशकों पहले तक रक्तदान को लेकर भ्रांतियां दूर करने के लिए इसी किस्म के अभियान की शुरुआत की गई थी। वहीं ऐसे लोग जो स्वेच्छा से रक्तदान करते हैं उन्हें प्रेरित करने की जरूरत है, क्योंकि उनमें अपनी बीमारियों के बारे में झूठ बोलने जैसी खराबी नहीं होती जो गैरकानूनी रूप से रक्त बेचने वालों में पाई गई है। वहीं ८५ प्रतिशत रक्तदान करने वाले अखबारों और टेलीविजन की वजह से प्रेरित होकर रक्तदाता बने, ऐसे में इनके जरिए और प्रचार-प्रसार की भी जरूरत है।

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