अब ट्यूमर पर कौन सी टारगेट थेरेपी होगी कारगर पहले लगेगा पता
कैंसर विहीन पिट्यूरी ग्लैंड का ट्यूमर बार-बार करता है परेशान
अब पिट्यूटरी ग्लैंड के ट्यूमर से बार-बार सामना नहीं करना पड़ेगा। हिस्टोपैथोलाजिस्ट ट्यूमर की जांच कर पहले ही बता देंगे कि कौन सी टारगेट थिरेपी किस मरीज पर कारगर होगी। संजय गांधी स्नातकोत्तर आर्यविज्ञान संस्थान के हिस्टोपैथोलाजिस्ट सुपर सब स्पेशिएल्टी विभाग द्वारा डायगनोस्टिक अपडेट ऐंड मालीक्यूलर एडवांस इन इंडोक्राइन आर्गन विषय़ पर आयोजित सेमीनार में चंडीगढ़ पीजीआई के पैथोजाली विभाग के प्रमुख प्रो. बिशन रडोत्रा ने बताया कि ब्रेन ट्यूमर का ट्यूमर का 10 फीसदी ट्यूमर पिट्यूटरी ग्लैंड का होता है। इसमें केवल एक से दो फीसदी ही कैंसर युक्त ट्यूमर होते है। बिना कैंसर वाले ट्यूमर के निकालने के बाद भी बार-बार ट्यूमर बढ़ता रहता है जिसके कारण कारण मरीज को ऑपरेशन कराना पड़ता है। कैंसर विहीन ट्यूमर बार-बार न हो इसके लिए टारगेट थिरेपी दी जाती है जो मोनोक्लोनल एंटी बाडी होती है। यह थेरेपी किसमें कितनी कारगर होगी यह जानने के लिए हम लोगों ने ट्यूमर में ट्रांसक्रिप्शन फैक्टर देख कर बता देते है कि कौन की दवा कारगर होगी। ट्रांसक्रिप्शन फैक्टर देखने के इम्यूनो हिस्टोकमेस्ट्री तकनीक ही इस्तेमाल की जाती है। इसमें सेल के रिसेप्टर को देखते है।
20 फीसदी लोगों में दोबारा नहीं हुआ ट्यूमर
प्रो. रडोत्रा ने बताया कि हम लोगों ने इस तकनीक से पहले से दवा के प्रभाव का पता लगा कर न्यूरो सर्जन को बताया तो देखा कि 20 से 25 फीसदी लोगों में दोबारा ट्यूमर नहीं हुआ । 30 से 50 फीसदी में दोबारा ट्यूमर होने का समय बढ़ गया।
अब मॉलिक्यूलर जांच से छिपे थायराइड कैंसर का लगेगा पता
संजय गांधी पीजीआई के हिस्टो पैथोलाजिस्ट प्रो. मनोज जैन ने बताया कि फाइन निडिल एस्पिरेशन तकनीक से थायराइड कैंसर का पता लगाते है लेकिन देखा गया है कि 30 से 40 फीसदी मामले में ऐसे कैंसर का पता नहीं लग पाता है। मॉलिक्यूलर परीक्षण के जरिए ऐसे छिपे कैंसर का भी पता लगना संभव हो गया है। हम लोग ग्रंथि से डीएनए अलग कर उसका पीसीआर तकनीक से जीन देखते है। अलग -अलग कैंसर में अलग जगह पर जीन में म्यूटेशन होता है जिसे देख कर कैंसर के प्रकार और कैंसर का पता लगाते हैं।
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