मंगलवार, 28 जून 2022

पीजीआई प्रदेश का पहला संस्थान मैट्रिक्स रिब तकनीक से दिया कान को सही आकार

 



पीजीआई प्रदेश का पहला संस्थान मैट्रिक्स रिब तकनीक से दिया कान को सही आकार


मैट्रिक्स रिब तकनीक से पसली से निकाला कार्टिलेज और पसली को भी किया रिपेयर 

अब सुकन्या का चेहरा भी सामान्य जम से ही आगे तरफ झुके थे कान

 


संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के विशेषज्ञों ने उन्नाव की 12 वर्षीय सुकन्या के दोनों कान आगे की तरफ जन्मजात कारणों से झुके हुए थे जो सुकन्या के चेहरे की बनावट को खराब कर रहा था। इसकी वजह से आगे चल कर तमाम सामाजिक परेशानी की आशंका को कान को सही आकार ला कर इन परेशानियों को दूर कर दिया। प्रदेश में पहली बार इस परेशानी को दूर करने के लिए मैट्रिक्स रिब तकनीक का इस्तेमाल किया गया। विभाग के प्रमुख प्रो.राजीव अग्रवाल के मुताबिक कान कार्टिलेज से बना होता है। कान की किसी भी तरह को बनावट को ठीक करने के लिए कार्टिलेज की ही जरूरत होती है। शरीर में सबसे अधिक कार्टिलेज पसली की हड्डी में होता है।  प्रचुर मात्रा में कार्टिलेज लिया जा सकता है। हमने पसली के पास चीरा लगा कर पसली का हिस्सा लिया जिससे कान की विकृति को दूर किया। अभी तक पसली से निकले हिस्से को वैसे ही छोड़ दिया जाता रहा है। इससे सांस लेने में परेशानी के अलावा अन्य परेशानी की आशंका रहती है। पसली सांस लेने के साथ गतिमान रहती है। हमने  टाइटेनियम से बनी प्लेट से पसली के खाली हिस्से को भी भर दिया जिससे आगे चल कर किसी तरह की परेशानी सुकन्या को नहीं होगी। प्रो. अग्रवाल कहते  है कि यह एक जटिल सर्जरी है क्योंकि पसली चलती रहती है ऐसे में प्लेट लगाना जटिल होता है । इसके नीचे फेफड़ा होता है जिसे बचाना होता है। सर्जरी में एनेस्थीसिया विभाग के डॉ.  संजय कुमार एवं डा. दिव्या श्रीवास्तव और प्लास्टिक सर्जरी के रेजिडेंट डा. भूपेश गोगीया के सहयोग से यह सर्जरी करने में सफलता हासिल हुई।

 

 

 

क्या है मैट्रिक्स रिब रिबप्लास्टी

 

एक अथवा एक से अधिक पसलियों को निकालने के बादए  टाइटेनियम प्लेट से जोड़ा जाता है।  पसलियों  में  कहीं  भी  खाली  जगह  नही रह जाती  है।   पसली पूर्व कि तरह  मजबूत रहती है। एक से ज्यादा पसलियों के लिए भी किया जा सकता है। 

 

 

मैट्रिक्स रिब तकनीक अत्यन्त नाजुक एवं कठिन तकनीक

 पसलियों को निकालने एवं पुनः बनाने का कार्य अत्यंत संवेदनशील एवं जोखिम भरा हो सकता है। इस पूरी प्रक्रिया में रोगी निश्चेतना कि अवस्था में होता है।    सांस लेते रहता है। सांस लेते वक्त रोगी कि पसलियां निरंतर गतिशील रहती हैं। हिलते हुए स्थान पर सर्जरी करना पड़ता है।  पावर ड्रील मशीन  से  सुराख  करने  पड़ते  है।   पसलियों  के  कुछ मिलीमीटर नीचे फेफड़ा होता है और जरा सी भूल फेफड़े को क्षतीग्रस्त कर सकती है।

गुरुवार, 23 जून 2022

युवा होने से पहले कम हो रहा है हड्डियों में दम

 

युवा होने से पहले कम हो रहा है हड्डियों में दम

 

55 फीसदी स्कूल जाने की उम्र के बच्चों में मिली विटामिन डी की कमी

लड़को से अधिक लड़कियों में अधिक मिली कमी

लड़कियों में धूप और कैल्शियम युक्त आहार की कमी बडा कारण कारण

कुमार संजय। लखनऊ

 

युवा होने से पहले स्कूल जाने वाली उम्र( 6 से 18)  में 55 फीसदी

 विटामिन डी के कमी के शिकार है।  दूध और धूप की कमी( सन

 एक्सपोजर) सबसे बड़ा कारण है। संजय गांधी स्नातकोत्तर

 आयुर्विज्ञान संस्थान के पीडियाट्रिक इंडोक्राइनोलॉजी में आने वाले

 स्कूल जाने की उम्र के बच्चों पर शोध के बाद यह तथ्य सामने

 आया है। इस उम्र के 135 बच्चों पर विटामिन डी की स्थिति

 जानने के लिए हाइड्रोक्सी विटामिन डी के स्तर का अध्ययन किया

 गया तो देखा गया कि इनमें 55 फीसदी में विटामिन डी का स्तर

 12 मोनोग्राम प्रति मिलीलीटर से कम मिला जबकि यह 30 नैनो

 ग्राम प्रति मिलीलीटर से अधिक होना चाहिए। देखा गया कि

 लड़कियों में हाइड्रोक्सी विटामिन डी का स्तर लड़को के मुकाबले

 कम मिला। लड़कियों में औसतन 12.3 और लड़कों में 15.8 नैनो

 ग्राम प्रति मिलीलीटर मिला। विटामिन डी की कमी पीछे कारण धूप

 और कैल्शियम युक्त आहार की कमी होता तो देखा गया कि

 लड़कियां कम धूप लेती है।  औसतन यह 38.9 मिनट धूप लेती है

 जबकि लड़के 63.0 मिनट धूप में एक्सपोज होते है। कैल्शियम

 युक्त आहार लड़कियां 517 मिली ग्राम लेती है जबकि लड़के

 623.3 मिलीग्राम कैल्शियम युक्त आहार लेते है जिसमें दूध और

 दूध से बने पदार्थ शामिल हैं। संस्थान के एंडोक्राइन विभाग से डॉ.

 कीर्ति जोशीडा. इशिता जोशीडॉ. निरुपमा सिंह और प्रो. विजय

 लक्ष्मी भाटिया के शोध को इंडियन जर्नल ऑफ पीडियाट्रिक

 विटामिन डी स्टेटस आफ स्कूल एज चिल्ड्रेन शीर्षक से शोध पत्र

 को स्वीकार किया है। शोध पत्र में विशेषज्ञों ने कहा है कि लड़कियों

 मे विटामिन डी के कमी अधिक आशंका है।

कैसे करें कमी पूरी

पोषण विशेषज्ञ डा. निरुपमा सिंह के मुताबिक  धूप और दूध से बने उत्पाद,चना

 अंडे का सफेद भाग  सेवन से कमी पूरी की जा सकती है । सुबह की धूप 45

 मिनट लेना चाहिए। धूप  सीधे स्किन पर धूप पड़े। चेहरागर्दनकंधे पीठ खुली

 हो।  अधिक कमी होने पर  चिकित्सक की सलाह पर 60000 आईयू टैबलेट या

 पाउच  कॉलेकैल्सिफेरॉल लेना चाहिए। यह पहले 6 सप्ताह कर हर हफ्ते एक

 इसके बाद महीने में एक गोली लेने से कमी पूरा हो जाती है। यह विटामिन-डी

 का एक रूप है। कैल्शियमफॉस्फेट और विटामिन ए के अवशोषण को बढ़ावा देता है।

 

   

 यह हो सकती है परेशानी

 

-    मोटापा

-शरीर में लगातार दर्द रहना

- ज्यादा थकान रहना और दिनभर सुस्ती रहना

- जोड़ों में दर्द

- डिप्रेशन

- कूल्हों, पीठ और घुटनों में दर्द

- बच्चों में रिकेट ( हड्डी के कमजोरी )

- ओस्टियोपेनिया (हड्डियों में प्रोटीन की कमी)

- पीरियड्स का अनियमित होना

- ऑस्टियोपोरोसिस हड्डियों का घनत्व  कम हो जाता है ।  आसानी से टूटने लगती हैं.

बुधवार, 22 जून 2022

गोरखपुर के मनोज दुनिया में नहीं लेकिन किडनी और लिवर हमेशा रहेगा जिंदा

 ब्रेन डेड के शिकार मनोज तीन को जिंदगी




अपोलो में ब्रेन डेड शिकार मनोज के परिजनों ने दो किडनी और लिवर कराया दान

  किडनी का पीजीआई, अपोलो और लिवर का मेडिकल विवि में हुआ प्रत्यारोपण


अपोलो मेडिक्स में ब्रेन डेड के शिकार 50 वर्षीय मनोज  तीन लोगों को जिंदगी दे गए। ब्रेन डेड के बाद इनके परिजनों ने अंगदान का फैसला लिया। एक किडनी पीजीआई में दी गयी। एक किडनी अपोलो में प्रत्यारोपित की गयी। लीवर किंग जार्ज मेडिकल विवि में प्रत्यारोपण के लिए दिया गया। संजय गांधी पीजीआई में प्रत्यारोपण पूरी तरह सफल रहा। संस्थान के गुर्दा रोग विशेषज्ञ एवं नेफ्रोलॉजी विभाग प्रमुख प्रो. नारायण प्रसाद के मुताबिक सोमवार को देर रात अपोलो से एक किडनी मिलने की जानकारी मिली । हमने तुरंत डोनर के मैचिंग वाले मरीजों को बुलाया । क्रॉस मैचिंग परीक्षण के बाद 53 वर्षीय मुनेश्वर दयाल जिनमें 2018 से किडनी खराबी की परेशानी थी। इन्हे प्रत्यारोपण के लिए उपयुक्त पाया गया। यूरोलॉजिस्ट प्रो. यूपी सिंह और डा. संचित की टीम ने प्रत्यारोपण किया जो सफल रहा है। किंग जार्ज मेडिकल विवि में भी लिवर प्रत्यारोपण जारी है।

 

रोड एक्सीडेंट के कारण मनोज को हुआ ब्रेन डेड

गोरखपुर के रहने वाले मनोज कुमार सड़क दुर्घटना के शिकार हो गए थे। गोरखपुर में ही इनका इलाज चला । सर्जरी भी हुई लेकिन राहत न मिलने पर 20 जून को परिवार के लोग इन्हे अपोलो मेडिक्स वे जाए जहां पर ब्रेन डेड हो गया। परिजनों को अंगदान के लिए अस्पताल के लोगों ने प्रेरित किया ।

 

मुनेश्वर के लिए संजीवनी साबित हुई किडनी

मुनेश्वर के किडनी की बीमारी ऑटोसोमल डोमिनेंट पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज( एडीपीकेडी)   से ग्रस्त थे जिसके कारण किडनी काम नहीं कर रही थी। जिन जीन के कारण यह बीमारी होती है वह परिवार में होता है जिसके कारण परिवार के लोगों की किडनी इनमें नहीं लग सकती थी।डोनर न होने के कारण 2018 से डायलिसिस पर जीवन काट रहे थे।

 

आठ लोगों में एक की मैच की किडनी

प्रो. नारायण प्रसाद के मुताबिक पहले मैचिंग के लिए पांच लोगों को बुलाया । सोमवार की रात में एक बजे से मैचिंग जांच फ्लोसाइटोमेटरी से शुरू किया लेकिन इन सबसे मैचिंग नहीं पायी। इनके बाद तीन लोगों को और बुलाया सुबह सात बजे तक मैचिंग जांच किया । इनमें से मुनेश्वर की मैचिंग हो पायी। 

मंगलवार, 14 जून 2022

मष्तिष्क नाकाम होने के बाद भी तीन लोगों को जिंदगी दे गए प्रदीप

 





लंबे समय से किडनी की परेशानी लेकर जूझ रहे एक महिला  और एक पुरुष को जिंदगी दे गए प्रदीप विश्वकर्मा। 








शनिवार को मेडिकल कॉलेज में ब्रेन डेड के बाद विश्वकर्मा से मिले दोनों किडनी दो लोगों को जिंदगी दे गया । जिन्हें जिंदगी मिली है उसमें से एक जिंदगी देने वाले की धर्म से अलग दूसरे धर्म के हैं । प्रदीप विश्वकर्मा ब्रेन डेड के शिकार थे इनके परिजनों को मेडिकल विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों ने समझाया और बताया कि अब इनके बचने की कोई उम्मीद नहीं है।  यह 3 लोगों को जिंदगी दे सकते हैं।  परिजन अंगदान के लिए तैयार हो गए इसकी सूचना संजय गांधी पीजीआई के अस्पताल प्रशासन विभाग के प्रमुख एवं स्टेट ऑर्गन ट्रांसप्लांट के नोडल ऑफीसर प्रो राजेश हर्षवर्धन को जैसे ही मिली तुरंत मेडिकल विश्वविद्यालय से किडनी लाने के लिए तमाम इंतजाम कराए।  मेडिकल विश्वविद्यालय  पहुंच कर यूरोलॉजिस्ट एवं किडनी ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ प्रो संजय सुरेखा ने सर्जरी करके दोनों किडनी को सुरक्षित निकाला। विशेष एहतियात के साथ निकाला  लेकर वह पीजीआई।  इसके बाद प्रो सुरेखा प्रोफेसर अनीश श्रीवास्तव, प्रो यू पी सिंह सहित अन्य विशेषज्ञों ने दोनों लोगों में किडनी प्रत्यारोपण किया । 

6 लोगों में कराई गई मैचिंग

गुर्दा रोग विशेषज्ञ एवं नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो नारायण प्रसाद ने बताया कि जैसे ही जानकारी मिली कि मेडिकल विश्वविद्यालय से दो किडनी मिल रही है वैसे ही लंबे समय से इंतजार कर रहे किडनी खराबी के 6 लोगों को बुलाया गया किडनी दाता से क्रश मैच परीक्षण फ्लो साइटो मेट्री तकनीक से  किया जिसमें से एक महिला और एक पुरुष से दाता की किडनी मैच किया। यह दोनों मरीज ट्रांसप्लांट के लिए बिल्कुल फिट पाए गए इनके अन्य परीक्षण भी सही निकले यह दोनों लंबे समय से डायलिसिस पर थे।  तमाम परीक्षण के बाद इन दोनों मरीजों को प्रत्यारोपण टीम को सौंप दिया गया।  प्रत्यारोपण प्रक्रिया शुरू हो गई है।  यह देर रात तक चलेगा । 

बना कैरी डोर

मेडिकल विश्वविद्यालय से पीजीआई तक बना ग्रीन कॉरिडोर 17 मिनट मैं किडनी संजय गांधी पीजीआई पहुंच गई।
 प्रो राजेश हर्षवर्धन ने बताया कि मेडिकल कॉलेज से बताया गया कि ब्रेन डेड के बाद विश्वकर्मा के परिजन अंगदान के लिए तैयार हैं यह जानकारी मिलते ही संस्थान  किडनी को लेने के लिए यूरोलॉजिस्ट प्रोफेसर सुरेखा को जिम्मेदारी सौंपी ग्रीन कॉरिडोर के जरिए मेडिकल विश्वविद्यालय से पीजीआई किडनी लाई गई लीवर मेडिकल विश्वविद्यालय के सर्जिकल गैस्ट्रो विभाग के प्रोफेसर अभिजीत चंद्रा ने मेडिकल कॉलेज में ट्रांसप्लांट प्रक्रिया शुरू किया है।



दीप से मिले किडनी और लीवर का सफल रहा प्रत्यारोपण

सड़क दुर्घटना में घायल प्रदीप विश्वकर्मा से मिले दोनों किडनी का ट्रांसप्लांट संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान में सफल रहा। इन से मिली किडनी को एक महिला और एक पुरुष में प्रत्यारोपित किया गया । संस्थान के यूरोलॉजी विभाग के सर्जन एवं किडनी ट्रांसप्लांट एक्सपर्ट प्रोफेसर संजय सुरेखा प्रोफेसर यू पी सिंह ने अंजाम दिया । नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो नारायण प्रसाद ने बताया कि ट्रांसप्लांट देर रात तक चला यूरीन आउटपुट के आधार पर कहा जा सकता है कि ट्रांसप्लांट पूरी तरह सफल है । रोड एक्सीडेंट मैं घायल प्रदीप विश्वकर्मा का ब्रेन डेथ होने के बाद उनके परिजनों ने अंगदान करने का फैसला लिया था।  किडनी का प्रत्यारोपण संजय गांधी पीजीआई में किया गया और लीवर का प्रत्यारोपण मेडिकल विश्वविद्यालय में गैस्ट्रो सर्जरी विभाग विभाग के प्रमुख प्रो अभिजीत चंद्रा के देखरेख में हुआ।  इसके अलावा इनके नेत्र का भी प्रत्यारोपण मेडिकल विश्वविद्यालय में हुआ।


45 फीसदी लड़कियों को नहीं है मासिक धर्म के बारे में सही जानकारी

 



45 फीसदी लड़कियों को नहीं है मासिक धर्म के बारे में सही जानकारी

 53.3 फीसदी ही इस्तेमाल करती है सेनेटरी पैड

28.3 फीसदी मनाती है ईश्वरीय देन है पीरियड

कुमार संजय । लखनऊ

मासिक धर्म(पीरियड) एक शारीरिक प्रक्रिया है जो प्रजनन जीवन की शुरुआत को निर्धारित करती है। सांस्कृतिक वर्जनाओंअपर्याप्त जानकारीऔर किशोर लड़कियों के बीच गलत ज्ञान के कारण एक अशुद्ध घटना के रूप में माना जाता हैजो उनकी दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों में अनावश्यक सीमाओं का कारण बनता है। ऐसा ही संकेत राम मनोहर लोहिया संस्थान के शोध में मिलता है।  डा. नीतू सिंह, डा. रश्मि कुमारी, डा. दीप्ति अग्रवाल और डा. सुगंधा जौहरी के शोध इंडियन जर्नल ऑफ फैमिली मेडिसिन ने शीर्षक कंपैरिजन आफ अवेयरनेस एंड परसेप्शन आफ मेंसचुरल हाइजीन बिटविन प्री एंड पोस्टमेनर्चल एडोलसेंट आफ नार्थ इंडिया से स्वीकार किया है।

 शोध रिपोर्ट के मुताबिक मासिक धर्म के दौरान अभी भी केवल 53.3 फीसदी लड़कियां सेनेटरी पैड का इस्तेमाल करती है। हाइजनिक प्रैक्टिस केवल 66.67 फीसदी लड़कियां करती है। शोध रिपोर्ट का कहना है कि इस दौरान 85 फीसदी लड़कियों पर तमाम तरह की पाबंदी रहती है। 31.7 फीसदी लड़किया स्कूल नहीं जाती है। इस दौरान 35 फीसदी डिप्रेशन की शिकार हो जाती है।   मासिक धर्म के बारे में जानकारी सबसे अधिक 49.9 फीसदी को मां से मिलती है।  रिपोर्ट का कहना है कि किशोरियां भविष्य की मां हैं।  मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में पर्याप्त और सही जागरूकता की आवश्यकता है क्योंकि इससे उन्हें प्रजनन या यौन संक्रमित संक्रमण (आरटीआई/एसटीआई) विकसित होने के जोखिम से बचाया जा सकेगा। यह परेशानी  कई महिलाओं को मां बनने में परेशानी खड़ी करता है।  अन्य स्वास्थ्य पर  प्रतिकूल परिणामों का कारण बनते हैं।

 

मासिक धर्म के दौरान में प्रैक्टिस फीसदी

 

हाइजनिक प्रैक्टिस- 66.67

रोज स्नान- 60

सेनेटरी पैड का इस्तेमाल-53.3

कपडे और पैड का इस्तेमाल-26.7

कपड़े का इस्तेमाल-20

दिन भर में तीन पैड बदलना-45

स्कूल में पैड बदलने की सहूलियत-53.3

पैड बदलने के बाद हाथ धुलना-63.3

पैड का दोबारा इस्तेमाल-20

जननांग की सफाई- 75

 

रक्तस्राव के बारे में ज्ञान फीसदी

शारीरिक प्रक्रिया- 55

ईश्वरीय देन-28.3

कोई जानकारी नहीं-16.7

 

किस तरह की कितने फीसदी में पाबंदी

मंदिर जाना-पूजा – 41.7

अलग बैठना-18.3

घर के काम से अलग रहना-23.3

खेलना - 28.3

तेज चलना या दौड़-8.3

स्कूल न जाना-31.7 


संजय गांधी पीजीआई के एमआरएच विभाग की प्रो. इंदु लता साहू ने बताया कि इस दौरान यह सावधानी बरतें-

  • - दुर्गंध से बचने और संक्रमण को रोकने के लिए नियमित अंतराल( चार से पांच घंटे) पर अपने पैड बदलें

    - पैरों के ऊपरी हिस्से और योनि (वल्वा) को सूखा रखें.

    - योनि को पानी से अच्छी तरह से धोएं लेकिन ध्यान रखें कि योनि के पास या अंदर किसी भी साबुनदुर्गंध और कॉस्मेटिक उत्पाद का उपयोग न करें

    - हमेशा मासिक धर्म-स्वच्छता उत्पाद का उपयोग करने से पहले और बाद में अपने हाथों को साबुन या हैंडवॉश जेल से धोएं.