शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2021

ब्रेन स्ट्रोक के नए नुस्खे से आसान होगी जिंदगी - इलाज के लिए मिलेगा अधिक समय

 

ब्रेन स्ट्रोक के नए नुस्खे से आसान होगी जिंदगी

 इलाज के लिए मिलेगा  अधिक समय  

 

अमेरिका और भारत के सात विशेषज्ञों ने ब्रेन स्ट्रोक के इलाज नए नुस्खे को बताया कारगर 

 

ब्रेन स्ट्रोक के बाद दिमाग में बढ़ने वाले रसायन को कम कर दिया जा सकता है राहत

 

 इस्केमिक ब्रेन स्ट्रोक के बाद दिमाग में बढ़ जाता है खास  स्तर


 

ब्रेन स्ट्रोक के इलाज का नया नुस्खा स्ट्रोक के कारण हुई परेशानी

 को कम करने के साथ ही  जिंदगी की राह आसान करने में कारगर

 साबित हो सकता है। खास तौर पर इस्केमिक ब्रेन स्ट्रोक के मामले

 में।  अमेरिका और भारत के सात संस्थान के विशेषज्ञों ने इस

 नुस्खे को हां कहा है। विशेषज्ञों ने इस स्ट्रोक से प्रभावित चालीस

 मरीजों पर शोध के बाद कहा है कि खास रसायन सोवाटीलाइड देने

 से मरीजों को काफी फायदा होगा। यह रसायन दिमाग की नस के

 भीतरी सेल (एंडोथेलियल-बी रिसेप्टर) पर काम करता है। दवा को

  इंट्रावेनस(सीधे नस) में देने से स्ट्रोक के कारण हुए दिमाग की

  नस में हुई क्षति की भरपाई होती है।  स्ट्रोक के कारण होने वाली

 परेशानियों में भी कमी देखी गयी है। जिंदगी की लय  काफी हद

 तक ठीक हो जाती है।  शोध वैज्ञानिकों का कहना है कि इस्केमिक

 ब्रेन स्ट्रोक  स्ट्रोक  बाद रक्त और मस्तिष्क के ऊतकों में खास

 रसायन(  एंडोथेलियल -1) का स्तर बढ़ जाता है। इसके स्तर को

 कम करके काफी हद दिमाग के नुकसान को कम किया जा सकता

 है। इस रसायन के स्तर को कम करने के लिए खास सोवाटीलाइड

 कारगर साबित होता है। यह दिमाग की रक्त वाहिका में रक्त

 प्रवाह को बढ़ाता है।

 

नए नुस्खे से मिला मरीजों को बचाने का अधिक समय

 

 

सेरेब्रल इस्केमिक स्ट्रोक के लिए वर्तमान में उपलब्ध उपचार में

 ऊतक प्लास्मिनोजेन एक्टीवेटर (टीपीए) और मैकेनिकल

 थ्रोम्बेक्टोमी शामिल हैं।  टीपीए का उपयोग लक्षणों की शुरुआत

 से  4.5 घंटे से कम समय तक संभव है।  स्ट्रोक के लक्षणों की

 शुरुआत के बाद मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी 6 घंटे तक सीमित

 थीलेकिन हाल ही में इसे 24 घंटे  तक बढ़ा दिया गया है। सात

 से आठ घंटे तक की समय सीमा बढ़ गयी है।

 

 

 

इस्केमिक स्ट्रोक क्या है 

50-85 प्रतिशत स्ट्रोक इस्केमिक होते हैं। मस्तिष्क में अपर्याप्त रक्त

 आपूर्ति की स्थिति में मस्तिष्क की कोशिकाओं के

 लिए आक्सीजन और पोषण के अभाव को इस्कीमिक स्ट्रोक कहा

 जाता है।  मस्तिष्क की कोशिकाएं मर जाती है। क्षतिग्रस्त मस्तिष्क

 में तरल युक्त गुहिका  ( इंफ़ैक्टउनकी जगह ले लेती है। जब

 मस्तिष्क में रक्तप्रवाह बाधित होता है तो मस्तिष्क की कुछ

 कोशिकाएं तुरंत मर जाती हैं और शेष कोशिकाओं के मरने का

 खतरा पैदा हो जाता है। समय पर दवाइयां देकर क्षतिग्रस्त

 कोशिकाओं को बचाया जा सकता है।

 

 

 

 

इन लोगों ने किया शोध

मिड वेस्टर्न यूनिवर्सिटी अमेरिका के डा. अनिल गुलाटी के अगुवाई में

  न्यू एरा हास्पिटल नागपुर के डा. नीलेश अग्रवाल , एम्स दिल्ली

 डा. दीप्ति विभासंजय गांधी पीजीआई के पूर्व न्यूरोलॉजी विभाग

 के प्रमुख प्रो. यूके मिश्रादयानंद मेडिकल कालेज लुधियाना डा.

 विरेंद्र पाल और डा. दिनेश जैनक्रिश्चियन मेडिकल कालेज

 लुधियाना डाय जायराज पांडियननिजाम इंस्टीट्यूट ऑफ हैदराबाद

 डा. रूपम बुरागोहेन  के शोध को इंटरनेशनल मेडिकल

 जर्नल  सीएनए ड्रग ने स्वीकार किया है।


यह तो हो जाएं सावधान

·         -हरेहाथ या पैर में शरीर के दोनों ओर कमजोरी या सुन्नता या पक्षाघात होना

·         -बोलने या समझने में कठिनाई होना

·         -चक्कर आनासंतुलन खोना या बिना किसी स्पष्ट कारण के जमीन पर गिरना

·         -एक या दोनों आँखों से दिखाई न देनाअचानक धुंधला या कम दिखाई देना

·         -सामान्य रूप से गंभीर और अचानक सिरदर्द होनाया बिना किसी स्पष्ट कारण के सिरदर्द के पैटर्न में परिवर्तन होना

·         -निगलने में कठिनाई होना

 

शुक्रवार, 22 अक्टूबर 2021

पीजीआई-----हेमाटोलॉज़ी विभाग में स्थापित हुआ फिजियो थेरेपी सेंटर

 

हिमोफीलिया में फिजियो थेरेपी की अहम भूमिका

 

 हेमाटोलॉज़ी  विभाग में स्थापित हुआ फिजियो थेरेपी सेंटर

हीमोफीलिया मरीजों के उपचार में फिजियो थेरेपी की अहम भूमिका है।  इन मरीजों में रक्त को थक्का जमाने वाले सेक्टर 8 और 9 की कमी हो जाती है जिसके कारण जरा सा भी चोट लगने पर रक्त स्राव होता है । कई यह रक्त स्राव शरीर के जोड़ों में भी होता है जिससे उनमें विकृति आने की संभावना रहती है इससे बचने के लिए फिजियो थेरेपी की  भूमिका है  ।  एनएचएम के सहयोग से संस्थान के हेमेटोलॉजी विभाग में फिजियो थेरेपी सेंटर की स्थापना की गई है।  सेंटर के उद्घाटन संस्थान के निदेशक प्रोफेसर आरके धीमन ने किया।
 विभाग के प्रमुख प्रो राजेश कश्यप ने बताया कि विभाग हीमोफीलिया के इलाज के लिए हर तरह की व्यवस्था है रक्त का थक्का जमाने वाले फैक्टर मरीजों को देने के अलावा अब उन्हें फिजियोथेरेपी की भी व्यवस्था विभाग में मिलेगी।  एन एच एम के डॉ एबी सिंह मुख्य चिकित्सा अधीक्षक प्रो गौरव अग्रवाल सहित कई अधिकारी और चिकित्सक मौजूद थे।


क्या है हीमोफीलिया
हीमोफीलिया आनुवंशिक बीमारी है। इसमें शरीर में खून का थक्का जमने की क्षमता खत्म हो जाती है। मरीज में खून सामान्य लोगों की तुलना में तेजी से नहीं बहता है, लेकिन ज्यादा देर तक बहता रहता है। उनके खून में थक्का जमाने वाले कारक (क्लोटिंग फैक्टर) पर्याप्त नहीं होते हैं।


मंगलवार, 12 अक्टूबर 2021

रूमेटाइड अर्थराइटिस का दर्द खत्म करेगा बायोसिमिलर - अनियंत्रित रूमेटाइड अर्थराइटिस दे सकता है दिल और दिमाग को झटका

 

 


 

रूमेटाइड अर्थराइटिस का दर्द खत्म करेगा बायोसिमिलर

अनियंत्रित रूमेटाइड अर्थराइटिस दे सकता है दिल और दिमाग  को झटका

चार लाख से घट कर इलाज का खर्च घट हो गया 36 हजार


 

रूमेटाइड अर्थराइटस के इलाज लिए नए नुस्खे अब 60 से 70 फीसदी लोगों को राहत दे रहे हैं। यह नए नुस्खे जब नहीं थे तो पुरानी दवाओं के जरिए दस फीसदी से भी सम कम लोगों में बीमारी पर नियंत्रण हो पाता था । इन नए नुस्खों को डॉक्टरी भाषा में    बायोसिमिलर, जैकनिब्स कहते है। इन दवाओं से पहले भारत में मरीजों के लिए साल भर में खर्च चार से पांच लाख आता था लेकिन अब 36 से 40 हजार का खर्च आता है। इलाज भी सस्ता हो गया इस लिए एक से दो सप्ताह तक शरीर के किसी भी जोड़ में दर्द की परेशानी है तो इसे ऩजंरदाज न करें। यह परेशानी किसी भी उम्र के लोगों में हो सकती है।  किसी रूमेटोलॉजिस्ट से सलाह लेना चाहिए।   विश्व अर्थराइटिस दिवस ( 12 अक्टूबर) के मौके पर संजय गांधी पीजीआई के क्लीनिकल इम्यूनोलॉजिस्ट एवं रूमेटोलॉजिस्ट प्रो.विकास अग्रवाल एवं प्रो,दुर्गा प्रसन्ना कहते है कि रूमेटाइड अर्थराइटिस का सही समय समय पर सही इलाज न होने पर दिल का दौरा पड़ने, ब्रेन स्ट्रोक की परेशानी के साथ त्वचा, आंख, और फेफड़े में परेशानी हो सकती है।

 

कमर दर्द है महिलाएं दर्द निवारक क्रीम लगा कर काम पर न लग जाएं

 

विशेषज्ञों का कहना है कि कमर दर्द महिलाओं में एक बडी परेशानी है। महिलाएं दर्द होने पर विज्ञापन देख कर क्रीम लगा कर काम पर लग जाती है। यदि कमर में दर्द चार से 6 सप्ताह तक रहता है जो रूमेटोलॉजिस्ट से सलाह लेना चाहिए। यह एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस की परेशानी हो सकती है। इस परेशानी का सही इलाज न होने पर दूसरे अंग भी प्रभावित हो सकते हैं।   

 

 

   क्या होती है रूमेटाइड आर्थराइटिस

शरीर की पुरानी सूजन हाथ और पैरों में छोटे जोड़ों को प्रभावित करने लगती है। यह एक ऑटोइम्यून डिसऑर्डर है जिसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता स्वस्थ कोशिकाओं को ही नुकसान पहुंचाना शुरू कर देती है। इसमें रोग प्रतिरोधक तंत्र के कुछ सेल्स सही तरीके से काम नहीं कर पाते। इसे नजरअंदाज करने से जोड़ों में सूजन और गंभीर क्षति हो सकती है। समय पर इसका इलाज न किया जाए तो शारीरिक विकलांगता भी हो सकती है। पुरुषों से ज्यादा महिलाओं में यह अर्थराइटिस आम है। इन दिनों युवाओं में रूमेटाइड अर्थराइटिस पहले की तुलना में काफी तेजी से बढ़ रही है। युवा अक्सर जोड़ों में दर्द, सूजन या कड़ेपन की शिकायत जोड़ों जैसे टखनों, तलुओं, हाथों आदि का सामना कर रहे हैं।

 

 

 

    ऑस्टियोआर्थराइटिस और रूमेटाइड आर्थराइटिस अलग परेशानी अलग इलाज

दोनों गठिया के रूप हैं और जोड़ों के दर्द और विकृति का कारण बनते हैं। ऑस्टियोआर्थराइटिस उम्र बढ़ने के कारण हडियों में होने वाले कार्टीलेज के घिसने होता है।  रूमेटाइड आर्थराइटिस ऑटो इम्यून डिसऑर्डर है। स्टियोआर्थराइटिस जोड़ों पर असर करता है वहीँ रुमेटीइड आर्थराइटिस का हृदय, ब्रेन और रेस्परटोरी सहित शरीर के लगभग सभी प्रणालियों पर प्रभाव पड़ता है। दोनों का इलाज एक दम अलग है। ऑस्टियोआर्थराइटिस घुटने और पीठ जैसे प्रमुख जोड़ों को प्रभावित करता है।  रूमेटाइड आर्थराइटिस मुख्य रूप से हाथों के छोटे जोड़ों में देखा जाता है।

 

 

शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2021

कैंसर मरीजों को दर्द से राहत दिलाएगी इंटरफेसियल प्लेन ब्लॉक तकनीक - कैंसर के अंतिम में दर्द रहित मिलेगी जिंदगी

 



पीजीआई में स्थापित हुई कैंसर के दर्द से राहत के लिए तकनीक 

 

कैंसर मरीजों को  दर्द से राहत दिलाएगी इंटरफेसियल प्लेन ब्लॉक तकनीक

 

कैंसर के अंतिम में दर्द रहित मिलेगी जिंदगी

 

 

दर्द के लिए खाने वाली दवाएं जब हो जाती है बेअसर, रोगियों को दर्द मुक्त बनाते हैं इंटरफेसियल प्लेन ब्लॉक तकनीक

 

 

अब गले, पेट से लेकर प्रोस्टेट कैंसर के कारण नहीं सहना पडेगा दर्द । कैंसर मरीजों को दर्द से राहत दिलाने के लिए संजय गांधी पीजीआई के पेन क्लिनिक के विशेषज्ञों ने इंटरफेसियल प्लेन ब्लॉक तकनीक उपयोग किया । इस तकनीक के जरिए अभी 25 से अधिक कैंसर मरीजों की जिंदगी दर्द रहित हो गयी है। इस तकनीक का विस्तार भी विशेषज्ञ करने की योजना पर काम कर रहे हैं। पेन क्लिनिक के प्रो. सुजीत गौतम और डॉ चेतना शमशेरी के मुताबिक चेस्ट में लंग कैंसर, पेट के अंदरूनी हिस्से जिसमें आमाशय, पैंक्रियाज, आंत , प्रोस्टेट कैंसर सहित अन्य  हिस्से में कैंसर होने पर दर्द होता है। इस दर्द के कारण कैंसर मरीज की जिंदगी काफी कठिन हो जाती है। इस दर्द से राहत दिलाने के लिए मार्फीन सहित दूसरी दवाएं दी जाती है लेकिन इन दवाओं के एक से तीन महीने बाद दवा की मात्रा बढ़ानी पड़ती है फिर भी राहत नहीं मिलती| ऐसे में दर्द से निजात दिलाने के लिए हम लोगों ने विभाग के प्रमुख प्रो. अनिल अग्रवाल, प्रो.संजय धीराज , प्रो.संजय कुमार और डॉ संदीप खुबा के साथ मिल कर आईएफपीबी तकनीक उपयोग किया है

 

क्या है आईएफपीबी तकनीक

कई बार कैंसर के कारण सीने, पेट में दर्द के लिए कोई एक नर्व जिम्मेदार नहीं होती है ऐसे में दर्द से राहत दिलाने के लिए एक नर्व में दवा इंजेक्ट करना संभव नहीं होता है| फिर अल्ट्रासाउंड के जरिए देखते हुए छाती, पेट की मांसपेशियों के बीच नसों के रास्ते में दवा इंजेक्ट करते है, इससे उस जगह से जाने वाली सारी नर्व सुन्न हो जाती है, तथा रोगी को तब दर्द से राहत मिलती है

 

खास अंग के कैंसर के लिए खास नर्व को किया जाता है ब्लाक

विशेषज्ञों के अनुसार गर्दन, पेट, प्रोस्टेट, गर्भाशय, हड्डी आदि के कैंसर से पीड़ित रोगियों के दर्द को, दर्द जिस नर्व से पैदा होता है उदाहरण के लिए स्टेलेट गैंग्लियन, सीलिएक प्लेक्सस, सुपीरियर हाइपोगैस्ट्रिक आदि वहां पर दवा इंजेक्ट कर ब्लॉक करते है| इसे इंटरवेंशन पेन मैनेजमेंट कहा जाता है। खास नर्व में दवा अल्ट्रासाउंड, एक्स-रे या सीटी से देख कर डाली जाती है। 

 

पेन मैनेजमेंट के लिए ले सकते हैं सलाह

विशेषज्ञों ने बताया कि पेन क्लिनिक की ओपीडी रोज न्यू ओपीडी में सोमवार से शनिवार चलती है। इस समय केवल कोरोना जांच की रिपोर्ट के साथ संपर्क कर सकते हैं ।


गुरुवार, 7 अक्टूबर 2021

प्रधान मंत्री ने दिया पीजीआइ को एक हजार लीटर क्षमता का ऑक्सीजन प्लांट

 

प्रधान मंत्री ने दिया पीजीआइ को एक हजार लीटर क्षमता का ऑक्सीजन प्लांट 

नए बनने वाले इमरजेंसी  के लिए होगा उपयोगी

प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को डिजिटल लिंक के माध्यम से संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान को 1000 लीटर क्षमता का  ऑक्सीजन प्लांट भेंट किया । इस ऑक्सीजन प्लांट  से वर्तमान में पी एम एस एस वाई ब्लॉक को ऑक्सीजन की आपूर्ति की जाएगी। नवीन इमरजेंसी ब्लॉक के क्रियान्वित होते ही इस ऑक्सीजन प्लांट द्वारा वहां निर्बाधित ऑक्सीजन आपूर्ति प्रदान की जाएगी।  वित्त, चिकित्सा शिक्षा व संसदीय मामलों के मंत्री  सुरेश खन्ना ने फीता काटकर ऑक्सीजन प्लांट का  उद्घाटन किया। इस अवसर पर प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा राज्य मंत्री  संदीप सिंह और राज्य मंत्री, स्वतंत्र प्रभार,  स्वाति सिंह भी उपस्थित थे।संस्थान के निदेशक प्रोफेसर आर के धीमन ने उपस्थित अतिथियों का स्वागत किया। मुख्य चिकित्सा अधीक्षक प्रोफेसर गौरव अग्रवाल, चिकित्सा अधीक्षक प्रोफेसर वीके पालीवाल, सीएनओ लिज़्सम्मा कलिब सोलंकी सहित अन्य संकाय सदस्य मौजूद रहें। भारत सरकार द्वारा पी एम केयर्स फंड से उत्तर प्रदेश में 127 ऑक्सीजन प्लांट स्थापित किये गये हैं, जिनका वर्चुअल लोकार्पण आज प्रधानमंत्री जी के कर कमलों द्वारा किया गया।

रविवार, 3 अक्टूबर 2021

हुनर मंद हाथों से भी हो सकती है गाल ब्लैडर सर्जरी के दौरान बाइल डक्ट इंजरी

 


हुनर मंद हाथों से भी हो सकती है गाल ब्लैडर सर्जरी के दौरान बाइल डक्ट इंजरी   

देश का पहला शोध जिसमें पता लगा कि कितनी में हो सकती है बाइल डक्ट इंजरी

 कुमार संजय। लखनऊ


पित्ताशय में पथरी होना एक आम परेशानी है देखा जाए तो दस फीसदी से अधिक लोग किसी न किसी उम्र में इस परेशानी के शिकार होते है। इस परेशानी का इलाज केवल सर्जरी है जिसमें पित्ताशय को निकाल दिया जाता है। पित्ताशय निकालने के लिए सबसे सुरक्षित तरीका लेप्रोस्कोपिक सर्जरी है । दस साल से अधिक समय तक यह सर्जरी करने वाले सर्जन से भी इस सर्जरी के दौरान बाइल डक्ट इंजरी की आशंका रहती है। देखा गया है कि सर्जरी के दौरान इस तरह की परेशानी होने पर लोग सर्जन के सर ठिकरा फोड़ते है लेकिन यह मानवीय घटना है ऐसा शोध ने साबित किया। संजय गांधी पीजीआई के विशेषज्ञों ने पहली बार गाल ब्लैडर स्टोन की सर्जरी के दौरान बाइल डक्ट इंजरी की आशंका का पता लगाने के लिए पूरे देश में ई सर्वे किया तो चौंकाने वाले आंकडे सामने आए। संस्थान के गैस्ट्रो सर्जरी विभाग से डा. सुप्रिया शर्मा, डा. अनु बिहारी, डा. रत्नाकर शुक्ला, डा. मुक्तेश्वर और डा. वीके कपूर ने  बाइल डक्ट इंजरी ड्यूरिंग लेप्रोस्कोपिक कोलेसिसटेक्टोमीः एन इंडियन इ सर्वे किया जिसे जर्नल

एनल आफ हिपैटोबिलेरी पैक्रिएटिंक सर्जरी ने स्वीकार किया है।  


278- सर्जन ने लिया सर्वे में भाग

86 फीसदी – 10 साल में  एक बार बाइल डक्ट इंजरी हुई

78 फीसदी- एक बार ज्यादा बाइल डक्ट इंजरी हुई

728 – बाइल डक्ट इंजरी हुई


40 फीसदी- सौ अधिक मरीजों में सर्जरी कर चुके है फिर भी बाइल डक्ट इंजरी हुई

 

80 फीसदी – सर्जन ने इंजरी को ठीक किया

20 फीसदी- सर्जन ने बाइल डक्ट इंजरी के बाद मरीज को दूसरे सेंटर पर भेजा

18 फीसदी- सर्जन ने माना कि बाइल डक्ट इंजरी के कारण मरीज की जिंदगी खतरे में पडी

6 फीसदी- सर्जन मेडिको लीगल केस भी चला