ब्रेन स्ट्रोक के नए नुस्खे से आसान होगी जिंदगी
इलाज के लिए मिलेगा अधिक समय
अमेरिका और भारत के सात विशेषज्ञों ने ब्रेन स्ट्रोक के इलाज नए नुस्खे को बताया कारगर
ब्रेन स्ट्रोक के बाद दिमाग में बढ़ने वाले रसायन को कम कर दिया जा सकता है राहत
इस्केमिक ब्रेन स्ट्रोक के बाद दिमाग में बढ़ जाता है खास स्तर
ब्रेन स्ट्रोक के इलाज का नया नुस्खा स्ट्रोक के कारण हुई परेशानी
को कम करने के साथ ही जिंदगी की राह आसान करने में कारगर
साबित हो सकता है। खास तौर पर इस्केमिक ब्रेन स्ट्रोक के मामले
में। अमेरिका और भारत के सात संस्थान के विशेषज्ञों ने इस
नुस्खे को हां कहा है। विशेषज्ञों ने इस स्ट्रोक से प्रभावित चालीस
मरीजों पर शोध के बाद कहा है कि खास रसायन सोवाटीलाइड देने
से मरीजों को काफी फायदा होगा। यह रसायन दिमाग की नस के
भीतरी सेल (एंडोथेलियल-बी रिसेप्टर) पर काम करता है। दवा को
इंट्रावेनस(सीधे नस) में देने से स्ट्रोक के कारण हुए दिमाग की
नस में हुई क्षति की भरपाई होती है। स्ट्रोक के कारण होने वाली
परेशानियों में भी कमी देखी गयी है। जिंदगी की लय काफी हद
तक ठीक हो जाती है। शोध वैज्ञानिकों का कहना है कि इस्केमिक
ब्रेन स्ट्रोक स्ट्रोक बाद रक्त और मस्तिष्क के ऊतकों में खास
रसायन( एंडोथेलियल -1) का स्तर बढ़ जाता है। इसके स्तर को
कम करके काफी हद दिमाग के नुकसान को कम किया जा सकता
है। इस रसायन के स्तर को कम करने के लिए खास सोवाटीलाइड
कारगर साबित होता है। यह दिमाग की रक्त वाहिका में रक्त
प्रवाह को बढ़ाता है।
नए नुस्खे से मिला मरीजों को बचाने का अधिक समय
सेरेब्रल इस्केमिक स्ट्रोक के लिए वर्तमान में उपलब्ध उपचार में
ऊतक प्लास्मिनोजेन एक्टीवेटर (टीपीए) और मैकेनिकल
थ्रोम्बेक्टोमी शामिल हैं। टीपीए का उपयोग लक्षणों की शुरुआत
से 4.5 घंटे से कम समय तक संभव है। स्ट्रोक के लक्षणों की
शुरुआत के बाद मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी 6 घंटे तक सीमित
थी, लेकिन हाल ही में इसे 24 घंटे तक बढ़ा दिया गया है। सात
से आठ घंटे तक की समय सीमा बढ़ गयी है।
इस्केमिक स्ट्रोक क्या है
50-85 प्रतिशत स्ट्रोक इस्केमिक
आपूर्ति की स्थिति में मस्तिष्क की कोशिकाओं के
लिए आक्सीजन और पोषण के अभाव को इस्कीमिक स्ट्रोक कहा
जाता है। मस्तिष्क की कोशिकाएं मर जाती है। क्षतिग्रस्त मस्तिष्क
में तरल युक्त गुहिका ( इंफ़ैक्ट) उनकी जगह ले लेती है। जब
मस्तिष्क में रक्तप्रवाह बाधित होता है तो मस्तिष्क की कुछ
कोशिकाएं तुरंत मर जाती हैं और शेष कोशिकाओं के मरने का
खतरा पैदा हो जाता है। समय पर दवाइयां देकर क्षतिग्रस्त
कोशिकाओं को बचाया जा सकता है।
इन लोगों ने किया शोध
मिड वेस्टर्न यूनिवर्सिटी अमेरिका के डा. अनिल गुलाटी के अगुवाई में
न्यू एरा हास्पिटल नागपुर के डा. नीलेश अग्रवाल , एम्स दिल्ली
डा. दीप्ति विभा, संजय गांधी पीजीआई के पूर्व न्यूरोलॉजी विभाग
के प्रमुख प्रो. यूके मिश्रा, दयानंद मेडिकल कालेज लुधियाना डा.
विरेंद्र पाल और डा. दिनेश जैन, क्रिश्चियन मेडिकल कालेज
लुधियाना डाय जायराज पांडियन, निजाम इंस्टीट्यूट ऑफ हैदराबाद
डा. रूपम बुरागोहेन के शोध को इंटरनेशनल मेडिकल
जर्नल सीएनए ड्रग ने स्वीकार किया है।
यह तो हो जाएं सावधान
· -हरे, हाथ या पैर में शरीर के दोनों ओर कमजोरी या सुन्नता या पक्षाघात होना
· -बोलने या समझने में कठिनाई होना
· -चक्कर आना, संतुलन खोना या बिना किसी स्पष्ट कारण के जमीन पर गिरना
· -एक या दोनों आँखों से दिखाई न देना, अचानक धुंधला या कम दिखाई देना
· -सामान्य रूप से गंभीर और अचानक सिरदर्द होना, या बिना किसी स्पष्ट कारण के सिरदर्द के पैटर्न में परिवर्तन होना
· -निगलने में कठिनाई होना