गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के प्रमुख बने प्रोफेसर यूसी घोषाल
गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के प्रमुख बने प्रोफेसर यूसी घोषाल
पीजीआई फैकल्टी फोरम आम सभा
सीनियर डाक्टर सहित कई विभाग के प्रमुखों ने रिटायरमेंट उम्र बढ़ाने को कहा गलत
संकाय सदस्यों के रिटायरमेंट की उम्र सीमा बढ़ाने पर जताया विरोध
इससे नए संकाय सदस्यों को नहीं मिलेगा मौका
संजय गांधी पीजीआइ के फैकल्टी फोरम के आम सभा की बैठक में वरिष्ठ संकाय सदस्यों के अलावा कई विभागों के प्रमुखों ने संकाय सदस्यों की सेवानिवृत्ति की आयु 70 वर्ष तक बढ़ाने के प्रस्ताव को नकार दिया है। फोरम शासन और प्रशासन से विरोध दर्ज करा दिया है। संकाय सदस्यों का कहना है कि इससे नए डीएम,एमसीएच छात्रों को मौका नहीं मिलेगा। हम लोगों का भी जीवन कब तक काम करते रहेंगे। तमाम पारिवारिक और व्यक्गित जिम्मेदारियां है। इसके अलावा वर्तमान में तैनात संकाय सदस्यों को भी आगे प्रगति के मौके कम होंगे। यह प्रस्ताव रोगी देखभाल के लाभ के लिए उचित नहीं है क्योंकि बढ़ती उम्र के विभिन्न शारीरिक और मानसिक परेशानियों के कारण मरीजों की देखभाल करने में सक्षम नहीं हैं। संस्थान और अस्पताल की गुणवत्ता और सेवाओं में सुधार के लिए नई ऊर्जा और आधुनिक दृष्टि नहीं है। बढ़ती उम्र के साथ पुराने फैकल्टी में शिक्षण पाठ्यक्रमों में सुधार के लिए शिक्षण और प्रशिक्षण के नए तरीकों का अभाव है। नए संकाय को कौशल प्राप्त करने से रोक देगी इससे अस्पतालों और मरीजों के देखभाल के लिए दूसरी पंक्ति कभी तैयार नहीं हो पाएगी। फोरम के अध्यक्ष डा.पीके प्रधान और सचिव प्रो.संदीप साहू ने कहा कि इससे नए फैकल्टी मेंबर्स का पद सृजित नहीं किया जाएगा, जिससे नए छात्रों को फैकल्टी जॉब का मौका नहीं मिलेगा। यह किसी भी राज्यों में लागू नहीं है। वरिष्ठ संकाय सदस्यों का कहना है कि बूढ़े हाथ और दिमाग मरीजों की देखभाल, शिक्षण और शोध कार्य को प्रभावी ढंग से करने के लिए चिकित्सकीय और शारीरिक रूप से फिट नहीं हैं। सरकार को जनता और युवा डॉक्टरों के भविष्य और कैरियर के व्यापक हित के लिए सेवानिवृत्ति की आयु में वृद्धि नहीं करनी चाहिए और प्रत्येक विभाग के रोटरी हेडशिप को भी लागू करना चाहिए ताकि सभी संकाय सदस्यों को प्रशासनिक अनुभव प्राप्त हो सके।
आए दांत के इलाज के लिए पता चला हैं बीपी के शिकार
दिल , दिमाग और किडनी के खतरे से 25 फीसदी अंजान
हाई बीपी साइलेंट किलर इस लिए रखें नजर
कुमार संजय। लखनऊ
25 फीसदी लोगों को पता ही नहीं है कि वह साइलेंट किलर यानी हाई ब्लड प्रेशर के साथ जिंदगी जी रहे है। इस तथ्य का खुलासा किंग जार्ज मेडिकल विवि के विशेषज्ञों ने 20 से 60 वर्ष आयु वर्ग के 2500 दांत के इलाज के लिए मरीजों पर शोध के बाद किया है। इलाज के लिए आए सभी मरीजों का रक्तचाप (बीपी) तीन बार लिया गया । सभी रीडिंग को चार श्रेणियों में बांटा गया था, जिसमें सामान्य, प्रीहाइपरटेन्सिव( उच्च रक्त चाप से तुरंत पहले की स्थिति) स्टेज, स्टेज 1 और उच्च रक्तचाप का स्टेज 2 शामिल है। विशेषज्ञों ने देखा कि ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जरी विभाग की ओपीडी में भाग लेने वाले सभी लोगों में से लगभग 24.39 फीसदी मरीजों को पहले पता ही नहीं था कि वह हाई बीपी के शिकार है। यह देखा गया कि जब इन्हे दांत के इलाज के लिए लोकल एनेस्थीसिया दिया गया तो 16.71 फीसदी मरीज स्टेज वन हाइपरटेंशन की स्थित आ गयी। देखा गया कि 31 से 40 आयु वर्ग के 60.11 फीसदी लोग प्री हाइपरटेंशन के शिकार थे। स्टेज वन बीपी के शिकार सबसे अधिक 51 से 60 आयु वर्ग के 48.02 फीसदी लोग शिकार मिले।
किस स्टेज में कितना होना चाहिए बीपी
सामान्य <120
प्री हाइपरटेंशन 120-139
हाइपरटेंशन स्टेज वन 140-159 90-99
स्टेज टू- >160
किस आयु वर्ग में कितने फीसदी किस स्टेज बीपी के शिकार
बीपी स्टेज 20-30 वर्ष, 31-40 वर्ष 41-50 वर्ष
सामान्य 59.75 32.98 32.94 8.01
प्री हाइपरटेंशन 40.1
स्टेज एक 0 17.01 15.89
किस लिंग में कितने फीसदी
पुरुष महिला
सामान्य 15.47 29.92
प्री हाइपरटेंशन 58.10 53.01
स्टेज वन 22.94 15.2
इन्होंने ने किया शोध
ओरल और मैक्सिलोफेशियल सर्जरी विभाग विभाग के डा. सतीश कुमार, डा. हरेराम, मेडिसिन विभाग के डा. ईशा आतम, डा. वीरेंद्र आतम, डा. सत्येंद्र कुमार सोनकर, डा. मुन्ना लाल पटेल, डा. अजय कुमार के शोध को नेशनल जर्नल आफ मैक्सिलोफेशियल सर्जरी ने डिटेक्शन ऑफ अन डायगनोस एंड इनएडीक्वेटली ट्रीटेंड हाई बल्ड प्रेशर इन डेंटिस्ट्री बाई स्क्रीनिंग विषय से हुए शोध को स्वीकार किया है।
काफी लोगों में नहीं महसूस होता लक्षण
संजय गांधी पीजीआई के हृदय रोग विशेषज्ञ और यूपी कार्डियोलॉजी सोसाइटी सोसाइटी ऑफ इंडिया के सचिव प्रो. सुदीप कुमार कहते है कि उच्च रक्तचाप को "साइलेंट किलर" के रूप में जाना जाता है। अधिकांश लोग अपने उच्च रक्तचाप से अनजान हैं क्योंकि चेतावनी के संकेत या लक्षणों की अनुपस्थिति हो सकती है। यही कारण है कि समय-समय पर बीपी की जांच कराते रहना चाहिए। ग्लोबल बर्डन ऑफ हाइपरटेंशन 2005 के अध्ययन में पाया गया कि 20.6फीसदी भारतीय पुरुषों और 20.9 फीसदी भारतीय महिलाओं को उच्च रक्तचाप था। जिसके परिणामस्वरूप सभी स्ट्रोक के कारण 57 फीसदी और 24 फीसदी कोरोनरी हृदय रोग के कारण असमय मौत का कारण बनती है।
युवाओं को रहना होगा सचेत
संजय गांधी पीजीआई के हृदय रोग विशेषज्ञ एवं यूपी कार्डियोलॉजी सोसाइटी आफ इंडिया के अध्यक्ष प्रो. सत्येंद्र तिवारी कहते है कि दिल के दौरा और उच्च रक्तचाप विश्व स्तर पर मृत्यु का सबसे आम कारण हैं। विशेष रूप से युवा आबादी में उनकी बढ़ती संख्या चिंता का कारण है। इन रोगों के महत्वपूर्ण परिवर्तनीय कारण, जिन्हें लोग स्वयं बदल सकते हैं। व्यायाम की कमी, धूम्रपान और एक अस्वास्थ्यकर आहार मुख्य कारण है। इस वर्ष विश्व हृदय दिवस का विषय "यूज़ हार्ट टू कनेक्ट" है, इसलिए हम अपने दिलों से जुड़ते हैं, और यह सुनिश्चित करते हैं कि हम अपने दिल जुडे। अपने दैनिक जीवन में हृदय-स्वस्थ रखने के लिए शारीरिक गतिविधियों जैसे चलना, टहलना, दौड़ना आदि को शामिल करके एक फिट जीवन शैली बनाए रखें। संतुलित और पौष्टिक आहार पर भी ध्यान दें हैं।
पित्ताशय कैंसर के नए कारण का लगा पता
टाइफाइड से बचाव तो संभव है पित्ताशय कैंसर पर लगाम
बुखार ही पित्ताशय कैंसर का कारण साबित हो सकता है टाइफाइड
कुमार संजय। लखनऊ
गाल ब्लैडर कैंसर( पित्ताशय कैंसर) का एक नया कारण पता लगाने में चिकित्सा शोध वैज्ञानिकों ने हासिल किया है। संजय गांधी पीजीआई के सर्जिकल गैस्ट्रो सर्जरी, ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन ने जापान के साथ मिल कर शोध करने बाद साबित किया है कि टाइफाइड की परेशानी पैदा करने वाले बैक्टीरिया साल्मोनेला टाइफी और सालमोनेला पैराटाइफी पित्ताशय कैंसर की आशंका आगे बढा सकते है। यह नया रिस्क फैक्टर सामने आया है। पित्ताशय कैंसर पर लगाम लगाने के लिए टाइफाइड संक्रमण की जांच के साथ इलाज की जरूरत है। इस बैक्टीरिया के संक्रमण पर लगाम लगा कर पित्ताशय कैंसर की आशंका को कम किया जा सकता है। शोध वैज्ञानिकों ने देखा कि पित्ताशय कैंसर सौ मरीजों में से 22 फीसदी मरीजों में पूर्व में टाइफाइड की पुष्टि हुई । ज़ैंथोग्रानुलोमेटस कोलेसिस्टिटिस (एक्सजीसी) जो कैंसर के पहले का रूप होता है। इस परेशानी 24 मरीजों में से 29 फीसदी में पूर्व में टाइफाइड के संक्रमण की पुष्टि हुई । सामान्य दो सौ (हेल्दी कंट्रोल) में संक्रमण पहले नहीं रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि टाइफाइड आंत को संक्रमित कर केवल बुखार नहीं कैंसर का कारण साबित हो सकता है। इस लिए बचाव के उपाय पर जोर देने की जरूरत है।
एक लाख में 12 को कैंसर की आशंका
गॉल ब्लैडर कैंसर आम पित्त पथ( बाइल ट्रैक) का कैंसर है। इस कैंसर का पूर्वानुमान नहीं हो पाता है। लिम्फ नोड्स, यकृत और पेरिटोनियम के मेटास्टेसिस जैसे लक्षण काफी देर में प्रकट होते है। भारत में उत्तर और उत्तर-पूर्व में दक्षिण और पश्चिम की तुलना में कैंसर मामले अधिक हैं। एक लाख में से 11.8 में इस कैंसर की आशंका होती है। महिलाओं में तीसरा प्रमुख कैंसर प्रकार है।
लंबे समय तक पित्ताशय में स्टोन से बढ़ जाती है आशंका
गॉल ब्लैडर (जीबी) का गॉल स्टोन (जीएस) से लंबे समय तक संपर्क बने रहने पर क्रोनिक कोलेसिस्टिटिस(सीसी) होता है जो जीबीसी( गाल ब्लैडर कैंसर ) के विकास के लिए सबसे आम कारण है। ज़ैंथोग्रानुलोमेटसकोलेसिस्टिटि
इन्होंने ने किया शोध
संजय गांधी पीजीआई के सर्जिकल गैस्ट्रो सर्जरी विभाग के डा. रत्नाकर शुक्ला, डा. पूजा शुक्ला, प्रो. अनु बिहारी, प्रो. वीके कपूर, ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन के प्रो. धीरज खेतान, प्रो, राजेंद्र चौधरी, जापान के निगाटा मेडिकल विवि के डा. यासुओ त्सुचिया, डा. तोषिकाजु इकोमा,, डा. ताको असे, डा. कजुतोषी नकामुरा शोध को एशिया पेस्फिक जर्नल आफ कैंसर प्रिवेंशन ने पित्ताशय की थैली के कैंसर के विकास में साल्मोनेला टाइफी और सालमोनेला पैराटाइफी की भूमिका विषय पर हुए शोध को स्वीकार किया है।
ऐसे करें बचाव
- वैक्सीन के अलावा कई अन्य उपाय ऐसे हैं
- हाथों की साफ-सफाई का ख्याल रखें। खाना खाने से पहले और वॉशरूम से आने के बाद हाथों को साबुन से धोएं।
- स्ट्रीट फूड से परहेज करें। यहां टाइफाइड बैक्टीरिया के पनपने की संभावना अधिक होती है।
- घर के बर्तनों को साफ-स्वच्छ पानी से धोएं।
- घर का बना ताजा और गर्म खाना खाएं, क्योंकि उच्च तापमान में बैक्टीरिया के बढ़ने की संभावना कम हो जाती है।
- कच्ची सब्जी, फल खाने और दूषित पानी पीने से बचें।
- अपने सभी घरेलू सामानों (विशेष रूप से रसोई के सामान) की साफ-सफाई करते रहें।
अब चंद मिनटों में तय होगी लीवर सिरोसिस के गंभीर मरीजों में इलाज की दिशा
बायोमार्कर सीडी 64 बताएगा परेशानी का कारण
सिरोसिस के मरीजों में परेशानी होने पर चार से
पांच घंटे है गोल्डेन आवर
कुमार संजय। लखनऊ
अल्कोहलिक लीवर सिरोसिस से
ग्रस्त मरीजों जिंदगी की डोर बढाने के लिए
विशेषज्ञों ने खास बायोमार्कर का पता लगाया है।
इस बायोमार्कर के जरिए मात्र एक से दो घंटे में
लिवर सिरोसिस के मरीजों में परेशानी का कारण
पता लग जाएगा। इलाज की दिशा तय हो
जाएगी। लिवर सिरोसिस के मरीजों में बीच –बीच
में रक्त स्राव, पेट में पानी भरने, सोडियम –
पोटैशियम में असंतुलन, मनोभ्रम सहित कई
परेशानी होती है। इस परेशानी का इलाज क
र
इन मरीजों को काफी हद तक सरल जिंदगी दी जा
सकती है। संजय गांधी पीजीआई के पेट रोग
विशेषज्ञ प्रो. गौरव पाण्डेय के मुताबिक इस
परेशानी का कारण संक्रमण या इंफ्लामेशन
( सूजन) होता है। कारण का पता लगाने में
न्यूट्रोफिल सीडी 64 बायोमार्कर काफी अहम
भूमिका अदा करता है। यह हम लोगों ने
अल्कोहल लिवर सिरोसिस के 128 मरीजों पर
शोध
के बाद साबित किया है। सीडी 64 की संख्या कम
है तो कारण सूजन होता है। संख्या अधिक है तो
इंफेक्शन है। इंफेक्शन है तो तुरंत हम लोग हाई
एंटीबायोटिक शुरू करते है मरीजों को आराम मिल
जाता है। सूजन है तुरंत इम्यूनोसप्रेसिव शुरू करते
है मरीज को आराम मिल जाता है।
लिवर सिरोसिस
के मरीजों में होने वाली तमाम परेशानी को एक्यूट
आन लिवर फेल्योर (एसीएलएफ ) कहते है
। इलाज की दिशा तय करने के लिए हम लोगों को
पास चार से 5 घंटे का समय होता है। सही समय
पर इलाज सही इलाज न मिलने पर जीवन को
खतरा हो सकता है। इस शोध के बाद
एंटीबायोटिक का गलत इस्तेमाल रूकेगा। एटी
बायोटिक रसिस्टेंट कम होगा। इलाज का खर्च
घटेगा।
टीएलसी का बढ़ा स्तर देता रहा है चकमा
प्रो. गौरव के मुताबिक अभी तक टीएलसी( टोटल लिम्फोसाइट काउंट) का स्तर बढा होने पर मान लिया जाता रहा है कि इंफेक्शन है और एंटीबायोटिक शुरू कर दी जाती थी लेकिन मरीज को आराम नहीं मिलता था। देखा कि टीएलसी अमूमन 90 से 95 फीसदी में बढ़ा रहता है। देखा गया कि टीएलसी बढे होने के बाद भी 50 से 60 फीसदी में इंफेक्शन नहीं होता है। सूजन के कारण भी यह बढ़ सकता है। 128 मरीजों में से 58 में इंफेक्शन मिला। इस जांच की सुविधा संस्थान में उपलब्ध है।
शोध के मिली इंटरनेशनल स्तर पर मान्यता
यूटिलिटी आफ न्यूट्रोफिल सीडी64 इन डिटिन्गिवस बैक्टीरियल इंफेक्शन फ्रॉम इंफ्लामेशन इन सीवियर अल्कोहलिक हेपेटाइटिस विषय पर हुए शोध को साइंटिफिक रिपोर्ट जर्नल ने स्वीकार किया है। शोध क्लीनिकल इण्यूनोलाजी विभाग के प्रो.विकास अग्रवाल के प्रो. दुर्गा प्रसन्ना और गैस्ट्रोइंट्रोलाजिस्ट प्रो. गौरव पाण्डेय ने किया।