शुक्रवार, 27 अगस्त 2021

योगा करें शऱीर की बढ़ती है प्रतिरक्षा क्षमता- पीजीआई मेडिकल कालेजों का थामे हाथ,,,क्लीनिकल इम्यूनोलाजी विभाग की डा. पंक्ति के मेडल पहनाते

 





पीजीआई की 26 वां दीक्षा समारोह 

योगा करें शऱीर की बढ़ती है प्रतिरक्षा क्षमता- राम नाथ कोविंद

 

 

संजय गांधी पीजीआई के 26 वें दीक्षा समारोह के मुख्य अतिथि राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने कहा कि योगा को अपना कर  कोरोना महामारी के दौरान  लोगों ने शरीर की बीमारी से लड़ने की क्षमता बढा कर समाना किया। योगा से लाइफस्टाइल से जुडी बीमारी की आशंका कम होती है। आयुर्वेद प्राचीन चिकित्सा विधि है इसे भी अपनाने की जरूरत है। राष्ट्रपति ने कहा कि  डिग्री पाने वाले छात्र से कहा कि  देश के बडे संस्थान से डिग्री हासिल किए है अपने को यूपी या लखनऊ तक सीमित न करें पूरा विश्व और पूरा देश आपकी की प्रतिभा का लाभ उठाएं यह कोशिश करें। इसलिए मैंने अंग्रेजी में अपनी बात कही। कोरोना का टीका 61 करोड़ लोगों को लग चुका है । टीका लगवाने के लिए लोग आगे आए इसके लिए जागरूक करना होगा। सबको स्वास्थ्य खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध कराने के लिए काम करना होगा। संस्थान के विशेषज्ञ प्रदेश में जो मेडिकल कॉलेज खुल रहे है उनके साथ मिल विशेषज्ञता का विस्तार करें जिससे अधिक लोगों को फायदा मिले। छात्र से कहा कि वह बिना किसी भेदभाव के मरीजों की सेवा करें। इस मौके पर राज्य मंत्री चिकित्सा शिक्षा संदीप सिंह ने अतिथियों के प्रति आभार प्रकट करते हुए कहा मेरे बाबूजी यहां पर लंबे समय तक रहे है डॉक्टर , पैरा मेडिकल स्टाफ सहित अन्य लोगों ने मनोयोग सेवा किया। इस मौके पर मेदांत के निदेशक के प्रो. राकेश कपूर, कैंसर संस्थान के निदेशक प्रो. शालीन कुमार , गृह सचिव अवनीश अवस्थी  सहित तमाम लोग भागीदारी किए।  

 

तीसरी लहर से प्रति रहे सावधान

राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने कहा कि तीसरी लहर की चेतावनी दी जा रही है इसलिए लोगों को इसके प्रति सजग रहना होगा। टीके के साथ मास्क और सामाजिक दूरी को आपनाएं। सरकार ब्लाक स्तर पर जांच और इलाज की सुविधा को मजबूत करने के लिए काम कर रही है। जन औषधि केंद्र पर दवाएं कम दर मिल रही है जिससे गरीबों को भी दवा उपलब्ध हो रही है। आयुष्मान भारत योजना के जरिए सबको को इलाज देने का काम हो रहा है। हमारे देश के वैज्ञानिकों ने तीन टीका विकसित किया यह बडी उपलब्धि है। 12 से 18 साल के बच्चों के लिए भी टीका आ गया है। छोटे बच्चों के लिए टीका विकसित करने की कोशिश जारी है।

 

कोरोना पॉजिटिव रेट घट कर रह गया 0.01

मुख्य सचिव एवं संस्थान के अध्यक्ष आरके तिवारी ने कहा कि हम लोगों ने कोरोना से बहुत अच्छा मुकाबला किया जिसके लिए चिकित्सकों सहित अन्य स्टाफ ने काम किया। कोरोना पॉजिटिव रेट घट कर 0.01 रह गया। इसे बनाए रखना है। हम लोगों ने 78 हजार बेड तैयार किया है। 554 ऑक्सीजन प्लांट स्वीकृत किया गया । 344 प्लाट काम करने लगे है। संस्थान के प्रगति पर संतोष जताया कहा कि उत्कृष्ट इलाज दिया  जा रहा है।

 

नंबर तक शुरू होगा एयर एंबुलेंस

संस्थान नंबर तक एयर एंबूलेंस शुरू करने की योजना पर काम कर रहा है। इससे मरीजों को बाहर से लाने में समय नहीं लगेगा। माइक्रोबायोलॉजी विभाग ने 20 लाख से अधिक लोगों का कोरोना आरटी पीसीआर जांच किया जो सराहनीय है। एक सितंबर से ई ऑफिस शुरू करने जा रहे है। संस्थान को टेली आईसीयू का सेंटर बनाया गया है इससे प्रदेश से 6 मेडिकल कॉलेजों के 200 आईसीयू जुड़ेंगे इससे वहां पर मरीजों को विशेष इलाज मिलेगा।


इनको मिली डिग्री

 

डी एम - 40

 एम सी एच -18

 पी डीएफ -10

 एमडी- 33

 पी एच डी - 2

 एम एच ए- 5

 बीएससी नर्सिंग- 8


  प्रोफेसर एस आर नायक पुरस्कार-  इंडोक्राइन सर्जरी के प्रोफेसर और मुख्य चिकित्सा अधीक्षक प्रोफेसर गौरव अग्रवाल

प्रो. एसएस अग्रवाल एवार्ड- एंडोक्राइनोलॉजी  विभाग के डा. संगम रजक 

प्रो. आरके शर्मा एवार्ड - क्लीनिकल इम्यूनोलॉजी की डीएम डॉ पंक्ति मेहता यूरोलॉजी के एमसीएच छात्र - डा. सितांगशु काकोटी (यूरोलॉजी)

  




आटो इम्यून डिजीज के इलाज का करेंगे विस्तार

डा. कोसी नितिन थॉमस- डीएम क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी एंड रूमेटोलॉजी

 

आटो इम्यून डिजीज से ग्रस्त लोगों की संख्या बहुत अधिक है लेकिन जागरूकता की लोगों में कमी है। इन बीमारियों से ग्रस्त लोगों को समय पर सही इलाज नहीं मिल पा रहा है।  बीमारी के इलाज के लिए विशेषज्ञ डॉक्टर भी बहुत कम है। इसी बात को ध्यान में रख कर मैने क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी एंड रूमेटोलॉजी विषय में विशेषज्ञता हासिल करने का फैसला लिया। इस संस्थान का यह विभाग देश का पहला विभाग है जहां पर यह पाठ्यक्रम शुरू हुआ। इस विभाग की एडवांस लैब ट्रेनिंग, पेशेंट मैनेजमेंट देश में पायनियर है। इस लिए यहां पर प्रवेश लिया। कोरना के रहने वाले डा. कोसी कहते है कि इंटर में जब था तभी डॉक्टर बनने के लिए सोचा था जिसके लिए एक साल तैयारी भी किया । एमबीबीएस और एमडी दोनों केरला गवर्नमेंट मेडिकल कालेज से किया। पत्नी पैथोलाजिस्ट है। पिता भी चिकित्सक है। इस विशेषज्ञता के विस्तार के लिए काम करूंगा। 



मेडिकल कॉलेजों में सुपर स्पेशियलिटी की जरूरत

डा. अनिल कुमार गंगवार- डीएम गैस्ट्रो एन्ट्रोलॉजी

मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पतालों में इलाज की सुविधा बढ़े बिना सुपरस्पेशल्टी संस्थानों में भीड़ कम नहीं होगी। देखा गया है कि 20 से 25 फीसदी ऐसे मरीज आते है जिसका इलाज जिला अस्पताल स्तर पर हो सकता है। मेडिकल कॉलेजों में भी विशेषज्ञ नहीं है। गिने चुने विशेषज्ञता वाले संस्थान पूरे प्रदेश के मरीजों को राहत नहीं दे सकते है। बरेली के मूल निवासी और जीएसवीएम कानपुर से एमबीबीएस व केजीएमयू से एमडी करने वाले डॉक्टर अनिल गंगवार को दीक्षा समारोह में गैस्ट्रोएंटरोलॉजी में डीएम की डिग्री मिली है। वो कहते हैं कि सरकार चिकित्सा सुविधाओं का विस्तार करें और विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में सुपर स्पेशलिटी सेवाएं शुरू की जाए ताकि ग्रामीण इलाके के गरीबों को भी बेहतर चिकित्सा सुविधा मिल सके। 

डीएम की डिग्री लेने के बाद भी वह ग्रामीण इलाके में सेवा देने को तैयार हैं बशर्ते संबंधित चिकित्सा संस्थान में मरीजों के उपचार के संसाधन मिले। परिवार के पहले चिकित्सक के रूप में वह गांव और गरीब की सेवा के प्रति पूरी तरह तत्पर रहने का संकल्प लेते हैं। 

 
पेट है बीमारी की जड़ 

 डॉ आकाश माथुर- डीएम गैस्ट्रोएंटरोलॉजी 

सही खान-पान न होना तमाम बीमारी की जड़ है। अधिक कैलोरी ले रहे है लेकिन उतना ऊर्जा निकाल नहीं रहे है यानि श्रम नहीं कर रहे है तो मोटापा होगा कई बीमारी की  जड़ है। एसजीपीजीआई में गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग से डिग्री हासिल करने वाले डॉक्टर आकाश माथुर कहते हैं कि शास्त्र में लिखा है कि सभी बीमारियों की जड़ पेट में होती है। मॉडर्न साइंस भी यह मानती है। ऐसे में उन्होंने एमबीबीएस करने के दौरान ही तय कर लिया था कि गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट बन कर समाज के ज्यादा से ज्यादा लोगों को राहत देने का प्रयास करेंगे। अजमेर के मूल निवासी डॉ आकाश माथुर इंदौर से एमबीबीएस और . मेडिकल कॉलेज जयपुर से एमडी हैं। वह अपनी ऊर्जा ऐसी जगह लगाना चाहते हैं जहां उनकी पढ़ाई का ज्यादा से ज्यादा लोगों को फायदा मिल सके।


छोटे शहरों में पेट रोग विशेषज्ञ की है जरूरत  
डॉ अंकुर यादव- डीएम गैस्ट्रो एन्ट्रोलॉजी 

गैस्ट्रोएंटरोलॉजी से डीएम की डिग्री ले रहे डॉ अंकुर यादव का कहना है कि उन्होंने संकल्प लिया है कि हर मरीज के साथ एक जैसा व्यवहार रखेंगे। उनके कार्य और व्यवहार में शहरी, ग्रामीण, गरीब और अमीर के बीच कोई अंतर नहीं दिखेगा। प्रयास रहेगा कि उन लोगों को भी गैस्ट्रो संबंधित चिकित्सा सुविधाएं मिलें जो ग्रामीण इलाके में रहते हैं। आर्थिक रूप से कमजोर को भी शहरों की तरह बेहतर चिकित्सा सुविधा देने का प्रयास किया जाएगा। जौनपुर के मूल निवासी डॉ अंकुर ने इंदौर से एमबीबीएस और आगरा से एमडी की डिग्री ली है। परिवार के पहले चिकित्सक के रूप में वह गरीबों की सेवा में तत्पर रहने की बात कहते हैं। इसके लिए छोटे शहरों में गैस्ट्रोलॉजी की शाखाएं शुरू करने पर विचार है। 

 
बढ रही दिल की बीमारी 

डॉ स्मारक राउत- डीएम कार्डियोलॉजी

कार्डियोलॉजी से डीएम की डिग्री लेने वाले डॉक्टर स्मारक राउत का कहना है कि हृदय रोगियों की संख्या बढ़ रही है लेकिन अस्पतालों में संसाधन कम है। ऐसे में तमाम लोगों की मौत हो जाती है। इस मृत्यु दर को कम करने के लिए वह छोटे शहरों और कस्बों में कार्डियोलॉजी सेवा का विस्तार करेंगे। कार्डियोलॉजी में इंटरवेंशन और मेडिसिन दोनों के जरिए मरीजों का उपचार किया जा सकता है। इस वजह से भी उन्होंने इस विधा को चुना।  डॉ राउत परिवार के पहले डॉक्टर हैं और उड़ीसा के मूल निवासी हैं। इन्होंने कोलकाता से एमबीबीएस और गुवाहाटी से एमडी किया है।


गुरुवार, 26 अगस्त 2021

पीजीआई के होनहारों ने शोध के साथ मरीजों की सेवा में कमाया नाम

 


हर मायोसाइटिस बीमारी नहीं होती है खतरनाक

 

डा. पंक्ति मेहता प्रो.आरके शर्मा बेस्ट डीएम स्टुडेंट एवार्ड

 

 

 

क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी विभाग की डा. पंक्ति मेहता ने वार्ड में मरीजों के मैनेजमेंटओपीडी में सलाह और रिसर्च में अहम भूमिका निभाया। पूरे पाठ्यक्रम के दौरान बेस्ट रहने के कारण उन्हें इस अवॉर्ड के लिए चुना गया। इन्हें सभी डीएम छात्रों के फाइनल एक्जाम में सबसे अधिक अंक प्राप्त हुआ।शोध मे देखा कि हर तरह की मायोसाइटिस बीमारी खतरनाक नहीं होती है। इस बीमारी में समय से इलाज और लगातार फालोअप से लंबी और अच्छी जिंदगी पायी जा सकती है। मायोसाइटिस एक मांसपेशियों के कमजोरी की बीमारी है। यह बीमारी शऱीर के मांसपेशियों के खिलाफ खास एंटीबॉडी के बनने के कारण होती है। इससे आटो इम्यून डिजीज कहते है। हमने इस बीमारी से प्रभावित मरीजों पर हर 3 महीने बाद फालोअप स्टडी किया। इस बीमारी का पता लगाने के लिए इंस्ट्रक्टेबल न्यूक्लियर एंटीजन परीक्षण कराते है जिसमें 14 एंटीजन का देखते है। किस मरीज किस एंटीजन के कारण बीमारी है उसके आधार पर बीमारी की गंभीरता का आकलन करते हैं।  टाकायासू आर्टराइटिस बीमारी की गंभीरता देखने के लिए एक खास बायोमार्कर देखा जिसका नाम  हिस्टीडीन इसके कम से बीमारी अधिक परेशान  करती है।  प्रो. अमिता अग्रवाल प्रो. विकास अग्रवाल प्रो. एबल लॉरेंस  प्रो. लतिका गुप्ता प्रो. दुर्गा के सहयोग ने यह स्थान मिला है। 

 

 



किडनी कैंसर के दौरान रक्त वाहिका रुकावट का संभव है इलाज 

  

डा. सितांगशु काकोटी बेस्ट एमसीएच स्टूडेंट प्रो. आरके शर्मा शर्मा अवॉर्ड

 

 

 

यूरोलाजी एंड किडनी ट्रासप्लांट विभाग के एमसीएच छात्र डा. सितांगशु काकोटी ने वार्डओटीओपीडी में बेस्ट मैनेजमेंट के साथ एमसीएच के छात्रो में परीक्षा में सबसे अधिक अंक प्राप्त किया। इसके साथ इन्होंने शोध भी किया। रीलनल सेल कार्सीनोमा( किडनी कैंसर) किडनी के ट्यूमर के इलाज आउट पेशेंट विभाग में 1309 रोगी उपस्थित आए। इनमें से 61 मरीजों में  आईवीसी थ्रोम्बस यानि ट्यूमर के पास स्थित वेनाकोवा नस में ट्यूमर का कुछ हिस्सा चला जाता है ।  के मरीज देखने को मिले। इनमें से ५६ रोगियों ने नेफ्रेक्टोमी यानि लैप्रोस्कोपी द्वारा जिसमे ट्यूमर वाले हिसे को हटा दिया गया। सर्जरी के  के समय नस को खोल कर ट्यूमर के निकाला जाता है फिर नस को जोड़ दिया जाता है। इसे डॉक्टरी भाषा में आईवीसी थ्रोम्बेक्टोमी कहते हैं। ऐसे मामलों में  सर्जरी और प्रीऑपरेटिव में विशेष सावधानी बरतने की जरूरत होती है। एक्सपीरियंस विथ मैनेजमेंट रीनल सेल कार्सिनोमा विथ इंफीरियर वेना केवा राइट आर्टरी ट्यूमर थ्रोम्बोसिस विषय पर हुए शोध को इंडियन जर्नल आफ यूरोलॉजी ने स्वीकार किया है।

 

 

जीन पर लगाम लगा बचेगा दिल

 

डा. संगम रजक  प्रो.एसएस अग्रवाल बेस्ट रिसर्च पेपर एवार्ड

 

 

 

दिल के बीमारी के लिए कोलेस्ट्रॉल को खतरनाक माना जाता है। रक्त वाहिकाओं में कोलेस्ट्रॉल के जमा होने पर रक्त प्रवाह कम हो जाता है जिससे दिल की मांसपेशियों को रक्त नहीं मिलता और हार्ट अटैक की आशंका बढ़ जाती है। इंडोक्राइनोलॉजी विभाग के शोध छात्र डा. संगम रजक ने डा. रोहित सिन्हा के निर्देशन में शोध किया तो देखा कि यूएलके-1 जीन के अधिक क्रियाशील होने पर कोलेस्ट्रॉल रक्त वाहिकाओं में जमा होने की आशंका बढ़ जाती है। इस जीन की क्रियाशीलता को कम करने के लिए यूएलके-1 इनहैबिटर का इस्तेमाल किया तो देखा इससे रक्त वाहिकाओं में कोलेस्ट्रॉल जमा होना कम हो गया। यह परीक्षण कोशिकाओ पर करने के साथ ही रैट मॉडल पर किया। इस शोध को लास आप यूएलके-1 एडीन्यूटेस कोलेस्ट्रोजेनिक जीन एक्सप्रेशन इन मैमिलियन हिपेटिक सेल के नाम फ्रंटियर इन सेल एंड डेवलपमेंट बायोलॉजी इंटरनेशनल जर्नल ने स्वीकार किया है। इस शोध से दिल की बीमारी की आशंका कम करने के लिए नई दवा आने की संभावना बढ़ जाएगी।

 

 

  

सेंटेनियल लिम्फ नोड बायोप्सी से दोबारा स्तन कैंसर की आशंका कम

 

 

 

प्रो.  गौरव अग्रवाल प्रो.एस आर नायक एवार्ड

 

 

 

इंडो सर्जरी विभाग के प्रो. गौरव अग्रवाल मुख्य चिकित्सा अधीक्षक और  स्तन स्वास्थ्य कार्यक्रम के संयोजक है।  स्तन कैंसर  और इलाज के प्रभाव पर लंबे समय तक शोध किया है। इनके पास कई शोध अनुदान हैं। अनुसंधान रुचियां भारत और विकासशील देशों में कम लागत पर उच्च गुणवत्ता वाले  स्तन कैंसर उपचार  उपलब्ध कराने पर केंद्रित हैं। सेनटेनियल लिम्फ नोड बायोप्सी इससे लिम्फनोड फैले स्तन कैंसर का पता लगा कर उसे निकाल दिया जाता है जिससे दोबारा स्कन कैंसर की आशंका कम हो जाती हैय़।  ऑन्कोप्लास्टिक स्तन सर्जरी को स्थापित किया।  भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय की तकनीकी समिति का हिस्सा रहे हंल जिसमें स्तन कैंसर प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय गाइडलाइन तैयार किया।

 

पैराथाइरॉइड हड्डी रोगफियोक्रोमोसाइटोमा  हाइपर पैरा थायरायडिज्ममल्टीपल एंडोक्राइन नियोप्लाजिया सिंड्रोम टाइप 2 , पारिवारिक अंतःस्रावी रोगों पर शोध किया । प्रो अग्रवाल ब्रेस्ट सर्जरी इंटरनेशनल (बीएसआई) के मौजूदा अध्यक्ष हैं। वर्ल्ड जर्नल ऑफ़ सर्जरी सहित कई उच्च-प्रभाव वाली पत्रिकाओं के संपादकीय बोर्ड में काम किया है। प्रोफेसर अग्रवाल को भारत में ब्रेस्ट सर्जरी और ऑन्कोलॉजी में एक प्रमुख ओपिनियन लीडर के रूप में जाना जाता है।

 

  

 

- 220 वैज्ञानिक पत्र प्रकाशित किए हैं,

 

-  6300 शोध पत्रों का दूसरे शोध वैज्ञानिकों ने उल्लेख किया

 

 -   42 गूगल स्कॉलर पर एच स्कोर

 

-   240 से अधिक गेस्ट लेक्चर

 

शुक्रवार, 13 अगस्त 2021

किडनी , ब्रेन और लिवर को प्रभावित कर सकता है स्क्रब टाइफी

 किडनी ब्रेन और लिवर को प्रभावित कर सकता है स्क्रब टाइफी 


 

बुखार के दूसरे कारण न मिले परमिला स्क्रब टाइफस का संक्रमण  

 

कुमार संजय।  लखनऊ  

 स्क्रब टाइफी किडनी की कार्यक्षमता में कमीदिमाग में सूजन और लीवर की कार्य क्षमता को कमी का कारण साबित हो रहा है। राजधानी के चिकित्सा विज्ञानियों ने इस बैक्टीरिया से संक्रमित लोगों पर शोध के बाद पाया कि यदि 10 दिन से बुखार है तमाम कारण टाइफाइडडेंगूमलेरिया सहित अन्य की जांच से कारण का  पता नहीं लग रहा है तो इस बैक्टीरिया के संक्रमण की आशंका पर भी नजर रखने की जरूरत है। इस बैक्टीरिया के संक्रमण के इलाज न होने पर किडनी की कार्य क्षमता में कमी यानी एक्यूट किडनी इंजरीएक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम हेपेटाइटिस और सांस लेने में परेशानी हो सकती है। वैज्ञानिकों ने देखा कि स्क्रब टाइफी से संक्रमित होने वाले लोगों में 82.7 फीसदी ग्रामीण इलाके के लोग मिले। स्क्रब टायफस पिस्सू के काटने से होता है। यह पिस्सू घास और झाड़ियों और चूहे के रहने वाले स्थानों में पाया जाता है। घास और झाड़ियों में घूमना, जंगलों में कैंपिंग करना, घास और जंगलों में पूरे तन को न ढकने के कारण लोग इसकी चपेट में आ सकते हैं। यह  पशुओं के शरीर में पाए जाने वाले पिस्सू से फैलने वाली बीमारी है. जो पिस्सू के खून चूसने से होती है जो काटने पर लार छोड़ देते हैं. इससे रिकेट्सिया नाम का वायरस इंसान के शरीर में प्रवेश कर जाता है. जो खून की प्लेटलेट्स को तेजी से कम करता है और रोगी की हालत बिगड़ जाती है.। सभी को आठ से 12 दिन से बुखार की परेशानी थी। 


क्या है इलाज
कई अध्ययनों में यह साबित हुआ है कि इस रोग के इलाज में टेट्रासाइक्लिन के साथ कीमोप्रोफिलेक्सिस बेहद प्रभावशाली रहती है. जिन इलाकों में पिस्सू अधिक पाए जाते हों, वहां के लोगों को त्वचा और कपड़ों पर कीट भगाने वाली क्रीम या स्प्रे का प्रयोग करना चाहिए. कपड़ों और बिस्तर आदि पर परमेथ्रिन और बेंजिल बेंजोलेट का छिड़काव करना चाहिए.



 

ऐसे हुआ शोध

 

पांच दिन से अधिक बुखार के मरीज का मलेरिया परजीवियों के लिए पेरीफेरल ब्लड स्मीयरलिवर फंक्शन टेस्टकिडनी फंक्शन टेस्टयूरिन टेस्ट और डेंगूचिकनगुनियास्क्रब टाइफसलेप्टोस्पायरोसिस और एंटरिक फीवर के लिए सीरोलॉजी सहित कम्पलीट ब्लड काउंट (सीबीसी) परीक्षण किया गया।  छाती का एक्स-रे और पेट का अल्ट्रासाउंड भी कियागया। स्क्रब टाइफस सीरोलॉजी का एलिसा किट का उपयोग करके आरेटिंयासुत्सुगामुसी  के खिलाफ आईजीएम एंटीबॉडीके लिए परीक्षण किया गया था। एक्यूट एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम के लिए मस्तिष्क की  सीटी/एमआरआई इमेजिंग और रोगियों के सेरेब्रल स्पाइनल  द्रव का विश्लेषण उन रोगियों में किया गया। किंग जार्ज मेडिकल विवि के मेडिसिन विभाग के डा. सुधीर कुमार वर्मा के साथ डा. कमलेश के गुप्ताडा. विवेक कुमारडा. डी हिमांशुडा. श्याम सी चौधरीडा. सत्येंद्र कुमार सोनकरडा. नीरज वर्माडा. दीपक शर्मामेडिकल कालेज जालौन के डा. राजेश के आर्याकिंग जार्ज मेडिकल विवि के इंडोक्राइनोलॉजी विभाग के डा. सतीश कुमार के शोध को जर्नल ऑफ फैमिली मेडिसिन एंड प्राइमरी केयर ने स्वीकार किया है।   

 

  स्क्रब टाइफी के कारण परेशानी

 

 -हेपेटाइटिस- 69.2 फीसदी

 

 - एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम 47 फीसदी

 

- एक्यूट किडनी इंजरी 23.1फीसदी

- एक्यूट रेस्पिरेटरी फेल्योर 19.2 फीसदी 

 

त्वचा पर पपड़ी 21.2 फीसदी

 

 

क्या है स्क्रब टाइफस 

 

 

संक्रामक रोग है जो  ओरिएंटिया सुत्सुगामुषी नामक बैक्टीरिया के कारण होता है। यह पहली बार जापान में 1899में रिपोर्ट किया गया था और इसे सुत्सुगामुषी रोग भी कहा जाता है।स्क्रब टाइफस संक्रमण के लक्षण क्या हैं

-त्वचा पर  पपड़ी पड़ जाती है (इसे एस्चर के नाम से भी जानाजाता है) 

-लाल चकत्ते

-शरीर में दर्द और मांसपेशियों में दर्द

-सिरदर्द-बुखार और ठंड लगना

-लिम्फ नोड्स का बढ जाना 

-मानसिक परिवर्तनमतिभ्रम

दो गुना हो गयी है तंत्रिता तंत्र की बीमारी ब्रेन स्ट्रोक, मिर्गी और सिर पर चोट की परेशानी

 दो गुना हो गई गैर संचारी न्यूरोलॉजिकल परेशानियां 


 



ब्रेन स्ट्रोक, मिर्गी , चोट बन रहे बड़े कारण

 

 देश का पहला शोध में जिसमें पता लगा कि कितने लोग किस न्यूरोलॉजिकल बीमारियों प्रभावित

 

 कुमार संजय। लखनऊ

   तंत्रिका तंत्र की परेशानियां  ब्रेन स्ट्रोकमिर्गीसिर दर्द   में 4.2 की वृद्धि दर्ज की गयी है। इस तथ्य का खुलासा इंडिया स्टेट लेवल डिजीज वर्जन इनीशिएटिव ने किया है।  द वर्डेन ऑफ न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर एक्रॉस द स्टेट ऑफ इंडिया द ग्लोबल वर्डेन आफ डिजीज स्टडी नाम से हुए शोध को इंटरनेशनल मेडिकल जर्नल लासेंट ने इसी हफ्ते जारी किया है। उत्तर प्रदेश सहित  कई राज्यों से मिले आकड़ों पर शोध करने के बाद बताया है कि 1990 में न्यूरोलॉजिकल ( तंत्रिका तंत्र) की बीमारियों की चार फीसदी थी जो 2019 में बढ़ कर 8.2 फीसदी हो गया। ब्रेन स्ट्रोक सबसे बडा कारण  सामने आया है। सिरदर्द और मिर्गी भी बड़ा कारण है। रिपोर्ट के मुताबिक संचारी( कम्युनिकेबल ) तंत्रिका तंत्र की बीमारी इंसेफेलाइटिसमेनिनजाइटिस और टिटनेस के बीमारियों में कमी आयी है। 2019 में घट कर 1.1 फीसदी हो गया जो 1990 में 4.1 फीसदी था। चोट से संबंधित तंत्रिका संबंधी विकारों का योगदान 02 फीसदी  से बढ़कर 06 फीसदी हो गया।

 

रिपोर्ट की सलाह

 

गैर-संचारी और चोट से संबंधित तंत्रिका संबंधी विकार बढ़ रहे है। न्यूरोलॉजिकल बीमारियों के इलाज  विशिष्ट स्वास्थ्य प्रणाली की जरूरत है।   जागरूकताप्रारंभिक पहचानउपचार और पुनर्वास पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।

 

 

 

 

तीन तरह के होते है न्यूरोलॉजिकल बीमारी  

 

न्यूरोलॉजिकल विकारों में गैर-संचारी तंत्रिका( नॉन कम्युनिकेबल न्यूरोलॉजिकल) बीमारी में    स्ट्रोकसिरदर्द विकारमिर्गीसेरेब्रल पाल्सीअल्जाइमर रोग और अन्य मनोभ्रंशमस्तिष्क और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र कैंसरपार्किंसंस रोगमल्टीपल स्केलेरोसिसमोटर न्यूरॉन रोग और अन्य तंत्रिका संबंधी विकार) शामिल हैं। संचारी तंत्रिका तंत्र की बीमारी( कम्युनिकेबल न्यूरोलॉजिकल डिजीज)  में एन्सेफलाइटिसमेनिन्जाइटिस और टिटनेस और चोट से संबंधित तंत्रिका बीमारी में  दर्दनाक मस्तिष्क की चोट और रीढ़ की हड्डी की चोट।

 

 

 

 

 

यह हो सकते है कारण

तंत्रिका रोगों के कारणों में  उच्च रक्तचापवायु प्रदूषणआहार संबंधी जोखिमउच्च रक्चताप,  उपवास प्लाज्मा ग्लूकोज और उच्च बॉडी-मास इंडेक्स (मोटापा)  बडे कारण है। इसके आलावा संक्रमण और चोट भी बडा कारण है। 

 

उत्तर प्रदेश में न्यूरोलॉजिकल बीमारियों की दर

-गैर संचारी न्यूरोलॉजिकल बीमारियां- 2559 प्रति एक लाख

-संचारी न्यूरोलॉजिकल बीमारियां - 400 से अधिक प्रति एक लाख

 -चोट के कारण न्यूरोलॉजिकल बीमारियां-160 -189 प्रति एक लाख

 

स्ट्रोक- 37.9 फीसदी

सिर दर्द- 17.5

मिर्गी- 11.3

सेरीब्रल पाल्सी- 5.7

 

इंसेफेलाइटिस- 5.3

अल्जाइमर- 4.6

ब्रेन और सीएनएस( सेंट्रल नर्वस सिस्टम) कैंसर- 2.2

पार्किंसंस- 1.8

मल्टीपिल स्केलोरोरिस- 0.2

मोटर न्यूरॉन डिजीज- 0.1

मेनिनजाइटिस- 4.8

टिटनस- 1.1

इंजरी-6.0

ब्रेन इंजरी और स्पाइनल कॉर्ड इंजरी - 4.1

 

 

ब्रेन और स्पाइनल कार्ड इंजरी न्यूरोलॉजिकल परेशानी का बड़ा कारण है इसके लिए वाहन चलाते समय हेलमेटओवर स्पीड से बचने की जरूरत है। इसके साथ शुगर बीपीमोटापे कम करने  पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। न्यूरोलॉजिकल बीमारियों के कारण व्यक्ति कई बार काम करने में असमर्थ हो जाता है। अपने काम भी नहीं कर पाता है ...प्रो. रुचिका टंडन तंत्रिका रोग विशेषज्ञ संजय गांधी पीजीआई