गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

अब पहले पता लग जाएगा किसमें सफल होगा कॉकलियर इंपलांट- बच्चों में सुनाई देने का सटीक इलाज होगा संभव

 अब पहले पता लग जाएगा किसमें सफल होगा कॉकलियर   इंपलांट



सीबीएमआर ने स्थापित की तकनीक





अब जंम जात या किसी अन्य कारण ने सुनाई न देने की परेशानी से राहत दिलाने के लिए होने वाले कॉकलियर इंपलांट की सफलता का पता इंपलांट से पहले लगाया जा सकता है। सेंटर आफ बायोमिडकल रिसर्च(सीबीएमआर) ने ऐसी तकनीक स्थापित की है जिसमें फंक्सनल एमआरआई के जरिए दिमाग की प्लास्टीसिटी देख कर बताया जा सकता है कि इंपलांट कितना सफल होगा। इससे इंपलांट की सफलता दर काफी बढ़ जाती है। सेंटर के निदेशक प्रो.आलोक धावन के मुताबिक हम लोगों ने 50 से अधिक सुनाई न देने की क्षमता वाले बच्चों में शोध के साबित किया है कि दिमाग की प्लास्टीसिटी( लचीलापन) के आधार पर इंपलांट की सफलता का आकलन किया जा सकता है। जिन बच्चों में प्लास्टीसिटी अधिक होती है उनमें इंपलांट सफल होता है।  कॉकलियर लगने के बाद उनमें पूरी क्षमता से सुनाई देने लगता है। इस शोध के बाद हम लोगों ने रूटीन तौर पर जांच करने लगे है जिसमें बताते है कि किसमें यह सफल होगा।  संजय गांधी पीजीआइ के न्यूरो ईएनटी विभाग के प्रो.अमित केशरी के साथ मिल कर यह शोध किया गया । अब विभाग किसी भी मरीज में इंपलांट से पहले जांच करा कर सफलता का आकलन कर लेते है। विशेषज्ञों का कहना है कि  कॉकलियर इंपलांट काफी मंहगा होता है इसलिए लगने के बाद अपेक्षित परिणाम न मिले तो यह दुखद स्थित मरीज और चिकित्सक दोनों के लिए होती है। इस शोध के बाद दोनों लोगों को संतुष्टि मिलती है।

6 से 10 साल के बच्चों में भी संभव होगा इंपलांट

एक से तीन साल में बेस्ट रिजल्ट देता है लेकिन 6 साल तक करते है लेकिन 6 से 10  साल के बाद वाले बच्चों में क्यों नहीं करना है इसके लिए कोई मानक नहीं था जिससे जानने के लिए शोध किया गया किया तो पता चला कि फंक्सनल एमआरआई इस उम्र के बच्चों में कुछ हद तक इंपलांट का फैसला ले सकते हैं।  

 कैसे होता है इंप्लांट

कॉकलियर इंप्लांट उपकरण है, जिसे सर्जरी के द्वारा कान के अंदरूनी हिस्से में लगाया जाता है और जो कान के बाहर लगे उपकरण से चालित होता है। कान के पीछे कट लगाते है और मैस्टॉइड बोन (खोपड़ी की अस्थाई हड्डी का भाग) के माध्यम से छेद किया जाता है। इस छेद के माध्यम से इलेक्ट्रॉइड को कॉक्लिया में डाला जाता है। कान के पिछले हिस्से में पॉकेट को बनाया जाता है, जिसमें रिसीवर को रखा जाता है।  सर्जरी के लगभग एक महीने के बाद, बाहरी उपकरणों जैसे माइक्रोफोन, स्पीच प्रोफेसर और ट्रांसमीटर को कान के बाहर लगा दिया जाता है।

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