गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

.तो पीएचसी स्तर पर संभव होगी प्रोस्टेट कैंसर की जांच सीबीएमआर ने खोजा बायोमार्कर

 

...तो पीएचसी स्तर पर संभव होगी प्रोस्टेट कैंसर की जांच

 सीबीएमआर ने खोजा बायोमार्कर दक्षता जानने के लिए  संस्थानों से करार

 

प्रोस्टेट कैंसर का पता शुरूआती दौर में वह भी पीएचसी स्तर पर लगाने के लिए सेंटर आफ बायोमेडिकल रिसर्च ने रोड मैप तैयार कर लिया है। सेंटर के निदेशक डा. आलोक धावन के मुताबिक हमने प्रोस्टेट कैंसर के लिए चार बायोमार्कर का पता लगा है जिसके आधार पर इस कैंसर का पता शुरूआती दौर में लगाने के साथ कैंसर के स्टेज का भी पता लगाना  संभव है। इन बायोमार्कर का पता लगाने के लिए सेंटर ने तीन सौ अधिक मरीजों पर शोध जिसे विश्व स्तर पर मान्यता भी मिली है। इन बायोमार्कर का और अघिक मरीजों पर परीक्षण करने के लिए किंग जार्ज मेडिकल विवि, राम मनोहर लोहिया संस्थान के अलावा एम्स जोधपुर से करार किया है।  अधिक मरीजों पर शोध होगा तभी इन बायोमार्कर की सेंसटिवटी और स्पेसीफिसिटी यानि टेस्ट का सटीक है यह पता लगेगा। इसके बाद हम किट बनाने वाली कंपनी से करार करेंगे जो सरल तरीके से ऐसी किट बनाएगी जिससे पीएचसी लेवल पर जांच संभव हो सके। पीएचसी स्तर पर हिपेटाइटिस , प्रिगनेंसी सहित तमाम टेस्ट कार्ड या एग्यूलिटेशन के रूप में संभव हैं।    

 

यह परेशानी तो लें सलाह

-जलन और पेशाब में दर्द

-पेशाब करने और रोकने में कठिनाई

-रात में बार-बार पेशाब करने की इच्छा होना

-मूत्राशय के नियंत्रण में कमी

-मूत्र प्रवाह में कमी

-मूत्र में रक्त (हेमट्यूरिया)

-सीमेन में रक्त

लक्षण प्रारंभिक अवस्था में दिख सकते हैं या नहीं भी दिख सकते। अधिकांश प्रोस्टेट कैंसर का शुरुआत में पहचान करना मुश्किल है।

 

बेंच टू बेड निति पर काम करेगा सेंटर

 

प्रो.आलोक ने कहा कि यह प्रदेश का अकेला विशेष सेंटर है जो बीमारी का पता शुरूआती दौर पर  लगाने के लगातार शोध कर रहा है। तमाम शोध विश्व स्तर पर स्वीकार भी किए गए । इन शोधों का फायदा मरीजों  मिले इसके लिए बेंच टू बेड नीति पर काम शुरू किया है जिसका फायदा जल्दी मरीजों को मिलेगा।   

अब पहले पता लग जाएगा किसमें सफल होगा कॉकलियर इंपलांट- बच्चों में सुनाई देने का सटीक इलाज होगा संभव

 अब पहले पता लग जाएगा किसमें सफल होगा कॉकलियर   इंपलांट



सीबीएमआर ने स्थापित की तकनीक





अब जंम जात या किसी अन्य कारण ने सुनाई न देने की परेशानी से राहत दिलाने के लिए होने वाले कॉकलियर इंपलांट की सफलता का पता इंपलांट से पहले लगाया जा सकता है। सेंटर आफ बायोमिडकल रिसर्च(सीबीएमआर) ने ऐसी तकनीक स्थापित की है जिसमें फंक्सनल एमआरआई के जरिए दिमाग की प्लास्टीसिटी देख कर बताया जा सकता है कि इंपलांट कितना सफल होगा। इससे इंपलांट की सफलता दर काफी बढ़ जाती है। सेंटर के निदेशक प्रो.आलोक धावन के मुताबिक हम लोगों ने 50 से अधिक सुनाई न देने की क्षमता वाले बच्चों में शोध के साबित किया है कि दिमाग की प्लास्टीसिटी( लचीलापन) के आधार पर इंपलांट की सफलता का आकलन किया जा सकता है। जिन बच्चों में प्लास्टीसिटी अधिक होती है उनमें इंपलांट सफल होता है।  कॉकलियर लगने के बाद उनमें पूरी क्षमता से सुनाई देने लगता है। इस शोध के बाद हम लोगों ने रूटीन तौर पर जांच करने लगे है जिसमें बताते है कि किसमें यह सफल होगा।  संजय गांधी पीजीआइ के न्यूरो ईएनटी विभाग के प्रो.अमित केशरी के साथ मिल कर यह शोध किया गया । अब विभाग किसी भी मरीज में इंपलांट से पहले जांच करा कर सफलता का आकलन कर लेते है। विशेषज्ञों का कहना है कि  कॉकलियर इंपलांट काफी मंहगा होता है इसलिए लगने के बाद अपेक्षित परिणाम न मिले तो यह दुखद स्थित मरीज और चिकित्सक दोनों के लिए होती है। इस शोध के बाद दोनों लोगों को संतुष्टि मिलती है।

6 से 10 साल के बच्चों में भी संभव होगा इंपलांट

एक से तीन साल में बेस्ट रिजल्ट देता है लेकिन 6 साल तक करते है लेकिन 6 से 10  साल के बाद वाले बच्चों में क्यों नहीं करना है इसके लिए कोई मानक नहीं था जिससे जानने के लिए शोध किया गया किया तो पता चला कि फंक्सनल एमआरआई इस उम्र के बच्चों में कुछ हद तक इंपलांट का फैसला ले सकते हैं।  

 कैसे होता है इंप्लांट

कॉकलियर इंप्लांट उपकरण है, जिसे सर्जरी के द्वारा कान के अंदरूनी हिस्से में लगाया जाता है और जो कान के बाहर लगे उपकरण से चालित होता है। कान के पीछे कट लगाते है और मैस्टॉइड बोन (खोपड़ी की अस्थाई हड्डी का भाग) के माध्यम से छेद किया जाता है। इस छेद के माध्यम से इलेक्ट्रॉइड को कॉक्लिया में डाला जाता है। कान के पिछले हिस्से में पॉकेट को बनाया जाता है, जिसमें रिसीवर को रखा जाता है।  सर्जरी के लगभग एक महीने के बाद, बाहरी उपकरणों जैसे माइक्रोफोन, स्पीच प्रोफेसर और ट्रांसमीटर को कान के बाहर लगा दिया जाता है।

सोमवार, 28 दिसंबर 2020

खोजा एसाइटिस से राहत दिलाने के लिए नुस्खा

 

पीजीआइः खोजा एसाइटिस से राहत दिलाने के लिए नुस्खा

लिवर सिरोसिस के मरीजों को मिली राहत नुस्खे को मिली विश्व स्तर पर मान्यता  


लिवर सिरोसिस या पेट की दूसरी बीमारी के कारण पेट में पानी भरने की परेशानी(एसाइटिस) से निजात दिलाने के लिए संजय गांधी पीजीआइ ने एक नया नुस्खा खोज लिया है। इस नुस्खे से गंभीर मरीज की जिंदगी की डोर लंबी हो रही है। इस नुस्खे को जर्नल आफ क्लिनिकल एंड एक्परीमेंटल हिपैटोलाजी के अलावा अमेरिकन गैस्ट्रोइंट्रोलाजी सोसाइटी के अलावा तमाम पेट रोग विशेषज्ञों के संगठनों ने स्वीकार किया। इस नुस्खे का खोज करने वाले पेट रोग विशेषज्ञ डा. गौरव पाण्डेय ने 40 से अधिक एसाइटिस के मरीजों में शोध के किया है।  इससे मरीज की स्थित में काफी सुधार आया। विशेषज्ञों का कहना है कि पेट में पानी भरने( एसाइटिस) होने पर पानी निकाला जाता है जिसमें कई तरह की परेशानी की आशंका रहती है। नए नुस्खे में एलब्यूमिन के साथ फ्यूरोसीमाइड के खास मात्रा में मिला कर इंट्रावेनस चढाया जाता है। किस मरीज में कितना नुस्खा देना है यह स्थिति के आधार पर तय करते हैं। इस नुस्खे का कोई कुप्रभाव भी नहीं है। डा. गौरव ने लिवर  सिरोसिस में नुस्खा कारगर है

 

नए नुस्खे से बच गया 23 वर्षीय युवक का जीवन

 

यह तो साबित किया ही था हाल में ही बड़ चैरी सिंड्रोम से ग्रस्त 24 वर्षीय रजक जो क्लीनिकल इम्यूनोलाजिस्ट प्रो.विकास अग्रवाल के देख –रेख में भर्ती था । उनमें भी पेट में पानी भर गया जिसके कारण जीवन खतरे में पड़ गया था। प्रो.विकास ने डा. गौरव पाण्डेय के सहयोग से इस परेशानी से मुक्ति दिला कर उसका जीवन बचा लिया। रजक अब पूरी तरह ठीक है।    

क्या है एसाइटिस

लिवर सिरोसिस, बड चैरी सिंड्रोम सहित तमाम पेट की बीमारी में पेट की कैवटी में पानी भरने लगता है जिससे पेट फूल जाता है। कई बार स्थित गंभीर हो जाती है। लिवरकैंसरकंजस्टिव हार्ट फेलियर या किडनी जैसी अन्य बीमारियों की वजह से पेट (एब्डॉमिनल कैविटी) में पेल येलो या पानी की तरह तरल पदार्थ जमा होने लगता हैजिसे एसाइटिस कहते हैं। एब्डॉमिनल कैविटी और चेस्ट कैविटी डायफ्रम से अलग होती है।

 

यह होती है परेशानी

- पेट फूल जाना

-अचानक वजन कम होना

-पेट में सूजन आना

-लेटने के दौरान सांस लेने में परेशानी महसूस होना

-भूख कम लगना

-पेट में दर्द महसूस होना

-मितली और उल्टी होना

-सीने में जलन महसूस होना

क्यों होती है परेशानी

 

क्यो होता है एसाइिटस

लिवर में घाव की वजह से एसाइटिस की समस्या होती है। इससे ब्लड वेसेल्स में ब्लड का दवाब बढ़ता है। दवाब बढ़ने की वजह से एब्डॉमिनल कैविटी में तरल पदार्थ जमा होने लगता हैजिस कारण एसाइटिस की बीमारी होती है

रविवार, 13 दिसंबर 2020

आधार कार्ड की तरह होगा जीनोम कार्ड जो बताएगा कौन सी दवा होगी कारगर

 

आधार कार्ड की तरह होगा जीनोम कार्ड जो बताएगा कौन सी दवा होगी कारगर 
पीजीआइ ने किया है कई शोध संस्थान से समझौता बढ़ेगी रफ्तार


वह दिन दूर नहीं है जब हर व्यक्ति के पास आधार कार्ड की तरह जिनोमकार्ड होगा जिसके जरिए डाक्टर जीनोम के आधार पर पता लगा लेंगे कि किस मरीज में कौन सी दवा कारगर साबित होगी। इस दिशा में कई स्तर पर काम हो रहा है। इंजीनिंयरिंग और चिकित्सा विज्ञान की संयुक्त शोध के जरिए यह संभव होने  जा रहा है। सुपर कंप्यूटर के जरिए हम लोग डीएनए, आरएनए की गुत्थी सुलझा रहे है इसे जिनोम स्टडी कहते है। यह व्यक्ति का जीनोम अलग होता है। इंडियन इंस्टीट्यूट आफ इंफार्मेनशन टेक्नोलॉजी रायपुर के डा. प्रदीप सिन्हा ने संजय गांधी पीजीआइ में शोध दिवस पर आयोजित वेबीनार कम सेमिनार के मौके पर कहा कि अभी एक समान लक्षण वाले या बीमारी वाले मरीज में जो दवा प्रचलित होती है दी जाती है । इस दवा से कुछ लोगों को फायदा होता है तो कुछ लोगों को दवा से फायदा नहीं होता है। चिकित्सक फिर कारण खोज कर दूसरी दवा देता है कई बार यह दवा भी कारगर साबित नही होती है ऐसे में बीमारी बढ़ती जाती है। इस तमाम परेशानी को देखते हुए बहुत तेजी से पर्सनलाइज्ड मेडिसिन पर काम हो रहा है जिसमें व्यक्ति के जीनोम के आधार पर दवा बनेगी और मरीज को दी जाएगी। हर व्यक्ति के पास आधार कार्ड की तरह जीनोम कार्ड होगा जिसे लेकर मरीज़ डाक्टर के पास जाएगा डाक्टर रीडर में कार्ड रीड करेगा और बता देगा कौन सी दवा किस मरीज में कारगर होगी। संस्थान के पिडियाट्रिक मेडिसिन विभाग के डा.मोनिक सेन शर्मा ने सुक्षाव दिया कि लखनऊ में ही कई शोध संस्थान है जो फैकल्टी नई है उनका वहां पर कोई परिचय नहीं है इन संस्थान के साथ काम करने के लिए एक प्लेट फार्म की जरूरत है जिसके बारे में रिसर्च सेल के प्रभारी प्रो.यूसी घोषाल ने बताया कि कई संस्थान के हम लोगों शोध के लिए समझौता किया है आने वाले दिनों में जूनियर फैकल्टी को शोध के कई मार्ग खुूलेंगे। प्रो.अमित केशरी ने कहा कि संस्थान के आईआईटी कानपुर के साथ साथ काम करने के लिए संस्थान में कोर लैब की तरह लैब की जरूरत है जिस पर संस्थान प्रशासन कामकरने की बात कही। इस मौके पर रजिस्ट्रार प्रो.सोनिया नित्यांनद, डीन प्रो.एसके मिश्रा,  माइक्रोबायलोजी विभाग की प्रमुख प्रो.उज्वला घोषाल सहित अन्य संकाय सदस्यों ने शोध पर बल देते हुए कहा कि शोध के बिना इलाज की नई दिशा तय करना संभव नहीं है। 

पीजीआई में बढेगा शोध का बजट
निदेशक प्रो.आरके धीमन ने कहा कि शोध के वर्तमान बजट को तीन गुना तक बढाने के योजना पर काम शुरू कर दिया है। इंट्रामुरल शोध के लिए बजट बढने के बाद अधिक संकाय सदस्यों को शोध का मौका मिलेगा । इसके साथ जो संकाय सदस्य पीएचडी करना चाहेंगे उनके लिए शोध का मार्ग प्रसस्त किया जाएगा। 

मरीज देखने के साथ करें लैब में शोध

नेशनल मेडिकल काउंसिल के प्रमुख डा.एसके सरीन ने कहा कि चिकित्सक को हाई ब्रिड होना पड़ेगा। मरीज देखने के साथ उन्हें लैब में रिसर्च करना होगा क्योंकि दिमाग किसी का हाथ किसी का होने से शोध संभव नहीं है। संजय गांधी पीजीआईजैसे संस्थान में ही केवल चिकित्सक लैब में शोध भी कर रहे है लेकिन इनकी संख्या भी कमहै। इस लिए संकाय सदस्यों को पीएचडी करना और करने की जरूरत पूरे देश के मेडिकल संस्थानों में है।