सोमवार, 7 सितंबर 2020

पीजीआई में कोरोना संक्रमित मायस्थीनिया ग्रेविस मरीज की बचाई जान

 

पीजीआई में कोरोना संक्रमित मायस्थीनिया  ग्रेविस मरीज की बचाई जान

6 विभाग के विशेषज्ञों ने मिलकर तय की इलाज़ रणनीति

 मएस्थेनिया ग्रविश से ग्रस्त दुर्गेश नंदिनी को संजय गांधी पीजीआई में कोरोना संक्रमण के कारण 29 जुलाई को भर्ती किया गया संस्थान के 6 विभाग के विशेषज्ञों ने मिलकर मरीज की जिंदगी बचाने में सफलता हासिल की है l स्थिति खराब होने पर आईसीयू में भर्ती किया गया सांस लेने में परेशानी के कारण ऑक्सीजन थेरेपी पर रखा गया उसके बाद भी  स्वशन तंत्र कमजोर होता जा रहा था जिसके कारण उन्हें वेंटिलेटर पर रखना पड़ा और हाई ऑक्सीजन का की मात्रा देनी पड़ी ।मरीज को बचाने के लिए स्पेशल थेरेपी इंट्रावेनस इम्मयून ग्लोबिन प्लाज्मा थेरेपी रेमिडिसवीर के अलावा मोनोक्लोनल एंटीबॉडी दवाएं दी गई ।दुर्गेश नंदिनी के इलाज में न्यूरोलॉजिस्ट प्रोफेसर विमल पालीवाल, एनेस्थेशिया विभाग के एक्सपर्ट प्रोफेसर पुनीत गोयल, डॉक्टर प्रतीक हेमेटोलॉजी विभाग के प्रोफेसर अंशुल गुप्ता , इम्यूनोलॉजी विभाग के प्रोफेसर एविल लारेंस और ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन के प्रोफेसर अनुपम वर्मा ने मिलकर इलाज की दिशा तय की इमरजेंसी मेडिसिन के डॉ तन्मय घटक ने बताया कि कोरोना निगेटिव होने के बाद 30 अगस्त को न्यूरो वार्ड में मरीज को शिफ्ट कर दिया गया है



मायस्थीनिया ग्रेविस क्या है?

मायस्थीनिया ग्रेविस एक तरह की कमजोरी होती है। जो हमारे नियंत्रण में रहने वाली मासंपेशियों में होने वाली थकान को दर्शाती है।

मायस्थीनिया ग्रेविस हमारी नसों और मांसपेशियों के बीच स्थापित सामान्य तालमेल में आई बाधा के कारण होती है।

मायस्थीनिया ग्रेविस के लिए वैसे तो कोई इलाज उपलब्ध नहीं है, परंतु उपचार की मदद से आप इसके संकेतों और लक्षणों से राहत पा सकते हैं, जैसे कि हाथ या पैर की मांसपेशियों की कमजोरी, दोहरी दृष्टि और पलकों के खुलने और झुकने में नियंत्रण न होना। इसके अलावा बोलने, चबाने, निगलने व श्वास लेने में होने वाली कठिनाइयों से राहत पा सकते हैं।

हालांकि मायस्थीनिया ग्रेविस की समस्या किसी भी आयु वर्ग के लोगों को प्रभावित कर सकती है, यह 40 से कम उम्र की महिलाओं व 60 से अधिक उम्र के पुरुषों में होना आम बात है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें