शुक्रवार, 25 सितंबर 2020

दारोगाजी तनाव ग्रस्त तभी तो बिगड़ जाते है बोल

 

दारोगाजी तनाव ग्रस्त तभी तो बिगड़ जाते है बोल


 


इंसपेक्टरमें तनाव का स्कोर मिला सबसे अधिक सिपाही कम लेते है टेंशन


 


पुलिस कर्मियों में तनाव की स्थित जानने के लिए हुआ शोध


 


कुमारसंजय। लखनऊ


 


वर्दी में दारोगा जी का रूतबा देख कर उनकी दिमागी हालत का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है लेकिन हकीक़त है कुछ अलग है सामाजिक दबाव, अधिकारियों का दबाव, ड्यूटी का दबाव,परिवार का दबाव सहित कई कारण है जो  दारोगाजी दिमाग का दही बना देते है। मानसिक दबाव के कारण वह तनाव ग्रस्त रहते है जिसका प्रभाव कई बार उनके व्यवहार में दिखने में लगता है। लखनऊ, वाराणसी, मेरठ, रायबरेली,गाजीपुर और नोयडा जिलों में तैनात दारोगा( इंसपेक्टर) , पुलिस अधिकारी( सीओ,डिप्टीएसपी, एसपी) और सिपाही में तनाव का स्तर जानने के लिए शोध वैज्ञानिकों ने शोध किया तो पता चला कि इन तीनों में से सबसे अधिक तनाव का स्कोर इंसपेक्टर में मिला देखा गया कि तनाव का स्कोर इंसपेक्टर में तनाव का  स्कोर 39.89 मिला।


दूसरे नंबर पर तनाव का स्कोर पुलिस अधिकारियों में देखा गया ।इनमें तनाव का स्कोर 37.03 मिला।  सबसे कम तनाव का स्कोर सिपाही में मिला। इनमें 36.0 स्कोर मिला।    शोध वैज्ञानिकों ने शोध पत्र में कहा है कि पुलिस बल में तैनात अधिकारियों और कर्मचारियों के तनाव के स्तर को कम करने के विशेष योजना की जरूरत है। विशेषज्ञों के मुताबिक सात से अधिक स्कोर होने पर अधिक तनाव माना जाता है।


 


 कैसे हुआ शोध


 


किंi जार्ज मेडिकल विवि के मानसिक रोग विभाग की डा. श्वेता सिंह, डा. बंदना गुप्ता . डा.दिव्या शर्मा और लखनऊ विवि के डा. प्रेम चंद्र मिश्रा ने  ए स्टडी आफः स्ट्रेस,कोपिंग, सोशल सपोर्ट एंड मेंटल हेल्थ इन पुलिस पर्सनल आफ उत्तर प्रदेश विषय को लेकर शोध किया ।  इंसपेक्टर, आफीसर और सिपाही पद पर तैनात सौ-सौ लोगों लोगों में तनाव का स्तरजनाने के लिए विशेष रूप से तैयार प्रश्न पत्र( क्वैसचनायर)  इनके जानकारी हासिल करने के बाद हर प्रश्न पर स्कोर के आधार पर तनाव का स्कोर का आकलन किया। इस शोध को हाल में ही इंडियन जर्नल आफ आक्यूपेशनल एंडइनवारमेंटल मेडिसिन ने स्वीकार किया है।     


 


तनाव जानने के लिए कुछ इस तरह के सवाल पर अंक दिए गए जिसके आधार पर स्कोर का आकलन किया गया


 


-   ड्यूटी के दौरान चोट की आशंका


-   सामाजिक जीवन कैसा


-   परिवार और दोस्तों को कितना समय दे पाते है


-   समय पर भोजन


-   थकान


-   समाज से नकारात्मक कमेंट


-   सामाजिक जीवन में बाध्यता


-   अपने स्वास्थ्य के लिए समय


-   ड्यूटी के कारण शारीरिक परेशानी


-   कार्य के अवधि


-   रात में अकेले कार्य


-   ओवर टाइम


-   ड्यूटी से जुडी अन्य गतिविध जैसे कोर्ट, सामाजिक क्रियाशीलता


-   पेपर वर्क


-   परिवार और दोस्तों को हमारे काम को लेकर परेशानी की समझ


-   हमेशा ड्यूटी पर है यह सोच

बुधवार, 23 सितंबर 2020

पूरी जिंदगी वायरस से लोहा लेने वाले प्रो. ढोल को वायरस ने दिया मात - कोरोना संक्रमण के कारण हुई मौत

 






पूरी जिंदगी वायरस से लोहा लेने वाले प्रो. ढोल को वायरस ने दिया मात

कोरोना संक्रमण के कारण हुई मौत

 

 

पूरी जिंदगी वायरस से लोहा लेने वाले संजय गांधी पीजीआइ के माइक्रोबायलोजिस्ट रहे प्रो. टीएन ढोल को वायरस ने ही हरा दिया। वह कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए एक सितंबर के संस्थान के कोरोना अस्पताल में भर्ती हुए थे तमाम प्रयास के बाद हालत बिगड़ती गयी । बीती देर रात उनकी मौत हो गयी है। प्रो. ढोल पोलियो, जपानी इंसेफेलाइटिस, स्वाइन फ्लू वायरस के जांच की तकनीक को स्थापित करने के साथ ही इसका विस्तार किया। पोलियों उन्मूलन के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ हाथ मिलाया जिसमें उन्हें सफलता भी मिली। ऊत्तर भारत का एक मात्र सेंटर पीजीआइ बना जहां पर पोलियो के जांच के नमूने आते है। पोलियो उन्मूनल के लिए 1998 में प्रोजेक्ट शुरू किया जो आज भी जारी है। इसके आलावा जेई वायरस के जांच की सुविधा स्थापित करने के साथ विस्तार किया। प्रो. ढोल संस्थान की नींव के साथ 1988 में बतौर सहायक प्रोफेसर ज्वाइन किया शुरू से उहोंने वायरोलाजी( वायरस ) पर काम करना शुरू किया अभी हाल में वह रिटायर हुए थे। सौ से अधिक शोध छात्रों के गाइड रहे। 389 शोध पत्र उनके इंटरनेशनल मेडिकल जर्नल में स्वीकार हुए जिससे तमाम शोध छात्र आज उनके शोध पत्र को बतौर रिफरेंश कोट करते हैं। उनके शोध छात्र डा. धर्मवीर सिंह कहते है कि स्वाइन फ्लू की जांच तकनीक स्थापित किया जिसके अनुभव के आधार पर हम लोग आज कोरोना की जांच बिना किसी रूकावट के कर रहे हैं। प्रो. ढोल को उत्तर भारत में वायरोलाजी शुरू करने का श्रेय जाता है। प्रो. ढोल के निधन पर विभाग की प्रमुख प्रो. उज्जवला घोषाल कहती है कि वह मेरे टीचर रहे है यह माइक्रोबायलोजी चिकित्सा विज्ञान के लिए बडी क्षति है।

पीजीआईःउत्तर भारत की पहली लेप्रोस्कोपिक पैरा थायरायड ग्लैंड सर्जरी





 पीजीआइ

 

कोरोना काल में हुई उत्तर भारत की पहली लेप्रोस्कोपिक पैरा थायरायड ग्लैंड सर्जरी

 

अभी तक सभी अस्पतालों में होती रही है ओपेन सर्जरी जिससे गले पर पड़ता है निशान

 

लड़कियों ओपेन सर्जरी के बाद छिपाना पड़ता था गला

 

 

संजय गांधी पीजीआइ उत्तर भारत का पहला अस्पताल हो जिसने पहली बार  पैरा थायरायड ग्रंथि की सर्जरी दूरबीन तकनीक से करने में सफलता हासिल की है। इस तकनीक से  गले पर निशान नहीं पड़ता साथ ही मरीज को चार –पाच दिन में छुट्टी मिल जाती है। इस तकनीक को डाक्टरी भाषा में  बाइलेटरल एक्सीलो –ब्रेस्ट एप्रोच इंडोस्कोपिक पैरा थायरडक्टमी( बाबा) कहते हैं।  कश्मीर की रहने वाली याशमीन यहां इस सर्जरी के लिए केवल इसी लिए आयी कि जिससे उनके गले पर निशान न पडे। इस सर्जरी को आंजाम देने वाले इंडोक्रान सर्जन प्रो. ज्ञान चंद का दवा है कि उत्तर भारत के किसी भी अस्पताल में पैरा थायरायड ग्लैंड की लोप्रोस्कोपिक सर्जरी नही होती है सभी सेंटर ओपन सर्जरी ही करते है। इस केस को वह मेडिकल जर्नल में भी बतौर केस रखेंगे। परिजन कई जगह कोशिश किए लेकिन लेप्रोस्कोपिक सर्जरी तकनीक से करने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ तो परिजनों ने पता लगाया कि लखनऊ पीजीआई में प्रो.ज्ञान चंद से सलाह लिया जाए। प्रो. ज्ञान ने इस चुनौती को स्वीकार कर पूरी योजना तैयार की लेकिन तमाम परीक्षण के बाद सर्जरी की डेट भी तय हो गयी लेकिन लाक डाउन के कारण यह लोग नहीं आ पाए। लाक डाउन खुलने के बाद यह लोग संपर्क किए जिसके बाद 14 सितंबर को भर्ती कर सर्जरी की गयी 22 सितंबर को छुट्टी दे दी गयी।

 

 

क्या होती है परेशानी

 

पैराथायराइड ग्रंथि  मसूर के दाने के आकार की चार छोटी-छोटी ग्रंथियों का समूह हैजिनमें से प्राय: दो-दो थाइरॉइड ग्रंथि पिछली सतह में स्थित रहती है। यह रक्त में कैल्शियम की अधिकता और कमी का नियन्त्रण इसी के द्वारा सम्पादित होता है। इस में ट्यूमर होने पर कैल्शियम को हड्डी से खीचने लगता है। 26 वर्षीय यासमीन के किडनी में कई स्टोन थे तो डाक्टर कैल्शियम के स्तर का परीक्षण कराया जो पता चला कि इसका स्तर भी बढ़ा है। जांच से पता चला कि पैरा थायरायड ग्लैंड ट्यूमर के कारण इस हारमोन का स्तर बढ़ गया जो हड्डी से कैल्शियम को अवशोषित कर रहा है।

 

याशमीन नहीं हुई ओपेन सर्जरी के लिए तैयार

 

 शल्य चिकित्सा के लिए  याशमीन और उनके पिता बसीर दिल्ली के एक बड़े अस्पताल गये थे जहाँ उन्हें बताया गया कि गले पर कट लगा कर ट्यूमर निगाल देंगे जिसपर 26 वर्षीया याशमीन जिनकी हाल ही में शादी हुई है वह राज़ी नहीं हुईं। उनके पिता बसीर स्वयं श्रीनगर मेडिकल कॉलेज के सेवा निवृत्त प्रोफ़ेसर हैं उन्होंने अपनी बेटी को ऑपरेशन के बाद गले पर आने वाले निशान से बचाने की मंशा से अपने कई डॉक्टर मित्रों से सम्पर्क किया।

शनिवार, 12 सितंबर 2020

पीजीआई वेंटीलेटर पर आए सुरक्षित गए घर 15 दिन वेंटीलेटर पर किया जीवन से संघर्ष फिर मिला जीवन


 वेंटीलेटर पर आए सुरक्षित गए घर

15 दिन वेंटीलेटर पर किया जीवन से संघर्ष फिर मिला जीवन


  निजि अस्पताल से भेजे गए थे पीजीआई

दिल को किया दुरुस्त और कोरोना से दिलायी मुक्ति

 

60 वर्षीय हसीब राजधानी के ही एक निजि अस्पताल में भर्ती थे उनके सीने में लगातार दर्द की परेशानी हो रही है लेकिन दर्द से निजात नहीं मिल रहा था। इस बीच उन्हे दिल का दौरा भी पडा। इस परेशानी के इलाज के लिए निजि अस्पताल में ही एंजियोप्लास्टी हुई लेकिन एंजियो प्लास्टी के सांस लेने में परेशानी होने लगी। इस बीच यह कोरोना पाजिटिव भी थे स्थिति गंभीर होने पर निजि अस्पाल ने इन्हें वेंटीलेटर पर रख दिया। घर वाले इनको लेकर पीजीआई कोरोना अस्पताल लाए तो स्थिति को देखते हुए आईसीयू में भर्ती कर इलाज की दिशा तय की गयी। इमरजेंसी मेडिसिन के प्रो. तन्मय घटक ने बताया कि इनका इलाज संस्थान के सात विशेषज्ञों की देख रेख में इलाज शुरू किया गया। 27 अगस्त को  को यह कोरोना अस्पताल के इमरजेंसी में भर्ती किए गए थे लेकिन 29 तारिख को इन्हे कार्डियक एरेस्ट( दिल ने एक दम से काम करना बंद कर दिया) हो गया । आईसीयू में मौजूद डा. जय और डा. आनंद  ने सीपीआऱ(कार्डियक पल्मोनरी री सक्शेन ) कर दोबारा दिल को गति को शुरू करने में सफलता हासिल की।  दिल की मांस पेशियों की शक्ति काफी कम हो गयी थी। कार्डियोलाजी विभाग के प्रो. सुदीप कुमार और आईसीयू एक्सपर्ट प्रो. पुनीत गोयल की देख –रेख में सांस लेने में परेशानी के कारण का पता करने के साथ दिल की परेशानी का इलाज किया जिसमें सफलता मिली। दस सितंबर को इन्हे अस्पताल से छुट्टी दे गयी।  





इन विशेषज्ञों ने दिया सलाह  

 नेफ्रोलाजी विभाग की प्रो. अनुपमा कौल  , हिमैटोलाजी विभाग के प्रो. अशुंल गुप्ता, पल्मोनरी मेडिसिन के प्रो. आलोक नाथ , सीसीएम के विशेषज्ञों ने कई स्तर पर सलाह देकर मरीज को ठीक करने में मदद किया। इस सफलता पर निदेशक प्रो.आरके धीमन ने टीम को बधाई दी

पीजीआइ देश का पहला संस्थान 24 घंटे में 6241 मरीजों में हुई कोरोना की जांच


 पीजीआइ देश का पहला संस्थान 24 घंटे में 6241 मरीजों में हुई कोरोना की जांच

 

24 घंटे सात दिन चल रही है जांच 7 जिलों की जांच का जिम्मा

 

 

संजय गांधी पीजीआइ का माइक्रोबायलोजी विभाग देश का पहला संस्थान हो गया है जहां पर कोरोना की जांच 24 घंटे में 6 हजार 241 मरीजों में किया गया। विभाग की प्रमुख प्रो. उज्वला घोषाल ने बताया कि गुरूवार की भोर में 3 बजे यह रिकार्ड हम लोगों ने कायम किया जिसके लिए 24 घंटे जांच में लगे लगभग 50, शोध छात्र, लैब टेक्नोलाजिस्ट, प्रयोगशाला सहायक सहति अन्य की अहम भूमिका है। यह संस्थान और विभाग के लिए बडी उपलब्धि है। 24 घंटे सात दिन लैब में जांच का काम चल रहा है । शिफ्ट में ड्यूटी लगी है। हम लोग रीयल टाइम पीसीआऱ से तकनीक से जांच के यह रिकार्ड बनाने में कामयाब हुए। आठ घंटे की ड्यूटी लगायी जाती है जिसमें जांच में लगे लोग अपनी जिंदगी खतरे में डाल कर काम करते है सीधे वायरस से सामना करते है। सभी लोग पीपीई किट सहित तमाम एहतियात बरतते है फिर भी संक्रमण हो ही जाती है। इस समय हम लोग संस्थान में आने वाली लोगों के आलावा जौनपुर, संतकबीर नगर, उन्नाव, आजमगढ़, प्रतापगढ़, सीतापुर , लखीमपुर खीरी के जिलों के मरीजों की जांच कर रहे हैं। इस मेहनत और सफलता के लिए टीम के सगस्यों के प्रति प्रो. उज्वला ने आभार प्रकट किया कहा कि अभी लड़ाई लंबी है ऐसे ही लडाई जारी रखनी है। बिना कोरोना जांच के किसी भी मरीज का आगे इलाज संभव नहीं है ऐसे में जल्दी रिपोर्ट देने की जिम्मेदारी है।    

गुरुवार, 10 सितंबर 2020

पुरूषों को अधिक सता रहा है कोरोना --पीजीआइ निदेशक ने प्रेस वार्ता

 

पीजीआई


पुरूषों को अधिक सता रहा है कोरोना

पीजीआइ निदेशक ने प्रेस वार्ता कर दी जानकारी



पुरूष कोरोना संक्रमण के कारण महिलाओं के मुकाबले अधिक गंभीर हुए। संजय गांधी पीजीआइ के राजधानी कोविड अस्पताल में भर्ती होने होने वाले मरीजों के आंकडे इसी तथ्य की गवाही देते है। संस्थान के निदेशक प्रो. आरके धीमन आन-लाइन प्रेस वार्ता के जरिए संस्थान में कोरोना मरीजों के देख-भाल, इलाज की सफलता सहति तमाम जानकारी देते हुए बताया कि अभी तक 824 कोरोना संक्रमित मरीजों को भर्ती किया गया जिसमें से 71 फीसदी पुरूष और 29 फीसदी महिलाएं थी। इससे साबित होता है कि पुरूषों में कोरोना का संक्रमण महिलाओं के मुकाबले अधिक गंभीर हो रहा है। संस्थान के कोविद अस्पताल में कोरोना संक्रमण के कारण परेशानी होने पर भर्ती के लिए प्रदेश भर से मरीज भेजे जाते है। संस्थान दो सौ बेड आईसीयू के है जिसमें गंभीर मरीजों को भर्ती किया जाता है। इस समय 164 मरीज भर्ती है। 660 मरीजों मे से 573 मरीज ठीक होकर घर जा चुके है। 87 मरीजों की मत्यु हुई जो 13 फीसदी दर है। हम लोगों ने आठ महीने के बच्चे को ठीक करके भेजा है तो 90 और 83 साल के बुजुर्ग मरीजों को भी ठीक करते भेजने में सफलता हासिल की है। किडनी के खराबी वाले मरीजों के लिए डायलसिस की सुविधा भी की गयी है रोज 10 से 12 मरीजों की डायलसिस कोरोना अस्पताल में की जा रही है। अगस्त से 500 से अधिक किडनी खराबी मरीजों की डायलसिस कर चुके है। निदेशक ने बताया कि वह लगातार प्रदेश के मेडिकल कालेजों सहित अन्य स्टाफ, डाक्टर के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम चला रहे है।

24 घंटे  सुविधा

प्रो.धीमन ने बताया कि संस्थान लगभग एक लाख 94 हजार लोगों में कोरोना संक्रमण की जांच पीसीआऱ तकनीक से कर चुका है। इसके अलावा टू नेट से 4 हजार से अधिक मरीजों में जांच की जा चुकी है। 24 घंटे लैब चलती है जहां पर सभी जांचे हो रही है।  खास तौर भर्ती मरीजों के लिए बडी सहूलियत है। 24 घंटे एचआरएफ फार्मेसी भी काम कर रही है। मरीजों के खाना उनकी सेहत के आधार पर देने की व्यवस्था की गयी है। जिसमें डायटीशियन और इडोक्राइनोलाजिस्ट मिल कर पोषण की जरूरत पर ध्यान देते है

बढती गयी इलाज की सफलता दर

अप्रैल- 67 फीसदी

मई- 91

जून-78.5

जुलाई-89

अगस्त- 87

बुधवार, 9 सितंबर 2020

पीजाआइ आउट सोर्स कर्मचारियों को नियमित तैनाती में मिले प्राथमिकता -- कर्मचारी महासंघ



 पीजाआइ आउट सोर्स कर्मचारियों को नियमित तैनाती में मिले प्राथमिकता  

कर्मचारी महासंघ ने निदेशक को सौपा ज्ञापन कहा करोना योद्धाओं को इससे मिलेगा सम्मान




संजय गांधी पीजीआइ कर्मचारी महासंघ ने संस्थान प्रशासन को ज्ञापन देकर मांग किया है कि संस्थान में आउट सोर्सिंग पर तैनात कर्मचारियों को नियमित तैनाती में प्रथम वरीयता दी जाए ।  अध्यक्ष जितेंद्र यादव  , महामंत्री धर्मेश कुमार ने कहा है कि संस्थान में कई संवर्ग में आउट सोर्सिंग में काम कर रहे है। कोरोना काल में अपने जीवन की बाजी लगा कर नर्सेज, लैब, एक्स-रे टेक्नीशियन, डाटा इंट्री, पेशेंट हेल्पर काम कर रहे है। कोविद अस्पताल में सबकी ड्यूटी लग रही है यह लोग नियमित कर्मचारियों की तरह पूरी तल्लीनता से सेवा कर रहे है ऐसे में इनके त्यग और श्रम का मेहनत मिलना चाहिए। नर्सिग एसोसिएशन की अध्यक्ष सीमा शुक्ला ने मांग की है कि नर्सेज को एम्स के समान मानदेय दिया जाए।  एनआरएचम में सीएचओ को 30 हजार मिल रहा है जबकि संस्थान की नर्सेज अति विशिष्ट सेवा दे रही है और मानदेय 16 हजार मिल रहा है। महासंघ के मांग का समर्थन करते हुए कहा कि आउट सोर्सिग हटा कर सीधे संस्थान संविदा पर रखें और इनको नियमित करने का काम करें यही करोना योद्धाओं के प्रति सच्चा सम्मान होगा। महासंघ के पदाधिकारियों का कहना है कि आउट सोर्सिंग पर तैनात कर्मचारी को नियमित करने से इनके अनुभव का लाभ संस्थान को मिलेगा । पैरा मेडिकल स्टाफ तीन –चार साल से काम कर रहा है जिससे इनमें अपने क्षेत्र की दक्षता आ गयी है इसका फायदा संस्थान को मिलना चाहिए।

सोमवार, 7 सितंबर 2020

पीजीआई में कोरोना संक्रमित मायस्थीनिया ग्रेविस मरीज की बचाई जान

 

पीजीआई में कोरोना संक्रमित मायस्थीनिया  ग्रेविस मरीज की बचाई जान

6 विभाग के विशेषज्ञों ने मिलकर तय की इलाज़ रणनीति

 मएस्थेनिया ग्रविश से ग्रस्त दुर्गेश नंदिनी को संजय गांधी पीजीआई में कोरोना संक्रमण के कारण 29 जुलाई को भर्ती किया गया संस्थान के 6 विभाग के विशेषज्ञों ने मिलकर मरीज की जिंदगी बचाने में सफलता हासिल की है l स्थिति खराब होने पर आईसीयू में भर्ती किया गया सांस लेने में परेशानी के कारण ऑक्सीजन थेरेपी पर रखा गया उसके बाद भी  स्वशन तंत्र कमजोर होता जा रहा था जिसके कारण उन्हें वेंटिलेटर पर रखना पड़ा और हाई ऑक्सीजन का की मात्रा देनी पड़ी ।मरीज को बचाने के लिए स्पेशल थेरेपी इंट्रावेनस इम्मयून ग्लोबिन प्लाज्मा थेरेपी रेमिडिसवीर के अलावा मोनोक्लोनल एंटीबॉडी दवाएं दी गई ।दुर्गेश नंदिनी के इलाज में न्यूरोलॉजिस्ट प्रोफेसर विमल पालीवाल, एनेस्थेशिया विभाग के एक्सपर्ट प्रोफेसर पुनीत गोयल, डॉक्टर प्रतीक हेमेटोलॉजी विभाग के प्रोफेसर अंशुल गुप्ता , इम्यूनोलॉजी विभाग के प्रोफेसर एविल लारेंस और ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन के प्रोफेसर अनुपम वर्मा ने मिलकर इलाज की दिशा तय की इमरजेंसी मेडिसिन के डॉ तन्मय घटक ने बताया कि कोरोना निगेटिव होने के बाद 30 अगस्त को न्यूरो वार्ड में मरीज को शिफ्ट कर दिया गया है



मायस्थीनिया ग्रेविस क्या है?

मायस्थीनिया ग्रेविस एक तरह की कमजोरी होती है। जो हमारे नियंत्रण में रहने वाली मासंपेशियों में होने वाली थकान को दर्शाती है।

मायस्थीनिया ग्रेविस हमारी नसों और मांसपेशियों के बीच स्थापित सामान्य तालमेल में आई बाधा के कारण होती है।

मायस्थीनिया ग्रेविस के लिए वैसे तो कोई इलाज उपलब्ध नहीं है, परंतु उपचार की मदद से आप इसके संकेतों और लक्षणों से राहत पा सकते हैं, जैसे कि हाथ या पैर की मांसपेशियों की कमजोरी, दोहरी दृष्टि और पलकों के खुलने और झुकने में नियंत्रण न होना। इसके अलावा बोलने, चबाने, निगलने व श्वास लेने में होने वाली कठिनाइयों से राहत पा सकते हैं।

हालांकि मायस्थीनिया ग्रेविस की समस्या किसी भी आयु वर्ग के लोगों को प्रभावित कर सकती है, यह 40 से कम उम्र की महिलाओं व 60 से अधिक उम्र के पुरुषों में होना आम बात है।