रविवार, 23 अगस्त 2020

नयनो की लगी स्क्रीन की नजर- आन लाइन पढायी बन रही है आंख की परेशानी

 स्क्रीन टाइम बढ़ा रहा है छात्रों के आँख की परेशानी




16 इंच स्क्रीन से दूरी और हर बीस मिनट पर ब्रेक है से बची रहेगी आँख की सेहत

कुमार संजय। लखनऊ    

 

कोरोनावायरस के कारण एजुकेशन ऑनलाइन मोड पर शिफ्ट हो गई है। छात्रों का स्क्रीन टाइम बढ़ रहा है जिसके कारण चार से पांच फीसदी बच्चे आंख में दर्द, सिर दर्द, आँख में सूखापन सहित अन्य परेशानी के शिकार हो रहे है। स्क्रीन के सामने ज्यादा समय बिताने से स्ट्रेनथकान और सिरदर्द जैसी परेशानियां होती हैं। संजय गांधी पीजीआई के नेत्र रोग विशेषज्ञ प्रो. विकास कनौजिया और प्रो. रचना अग्रवाल कहते है कि हमारे पास आंख की परेशानी को लेकर तमाम अभिभावक और छात्र रोज आठ से दस काल करते है। कहा कि बीस मिनट का रूल फालो कर काफी हद तक आंख को पचाया जा सकता है। इसके तहत हर 20 मिनट में आपको 20 फीट की दूरी पर कम से कम 20 सेकंड के लिए कुछ देखना चाहिए। इससे आपकी आंखों को आराम मिलता है और वे अपने नेचुरल पोज में आ जाती हैं। ब्लू लाइट रोकने वाले चश्मों के अलावा ब्रेक लेने को जरूरी बताते हैं। आखों के तनाव और थकान को कम करने में मदद का एकमात्र तरीका है। विशेषज्ञों ने बताया कि डिजिटल डिवाइस को आंखों के लेवल से दो फीट दूर रखने या नीचे रखने की सलाह देते हैं। इससे ज्यादा नजदीक स्क्रीन रखने पर हमारी आंखों को इमेज शार्प रखने के लिए फोकस बनाने में मुश्किल होती है। यह तनाव का कारण बन सकता है और मायोपिया को बिगाड़ सकता है। बच्चे कोहनी को टेबल पर रखते हैं और सिर को हाथों में रखते हैं। इस पोजिशन में उन्हें कोहनी को उठाकर स्क्रीन को छूना चाहिए।

 

 

ऐसे करें आंख का बचाव

आमतौर पर हम पढ़ने के लिए 16 इंच की दूरी रखें।  अब हम पा रहे हैं कि लोग 10-12 इंच की दूरी से रीडिंग कर रहे हैं खास तौर मोबाइल पर। इस दूरी पर आखें आराम के बजाए स्क्रीन पर फोकस करती हैं। कुछ देर बाद मोड़ने पर इसे आंखों की मांसपेशियों में तनाव हो सकता हैजो सिरदर्द और दूसरी देखने की दिक्कतों का कारण बन सकता है।

 

यह हो रही  परेशानी
- सिरदर्दज्यादा पलक झपकानाआंख रगड़ना और बच्चों में थकान महसूस करना देखने में परेशानी के संकेत हो सकते हैं। चमक से दूर रहना मददगार हो सकता है। इंडोर रहते हुए स्क्रीन की ब्राइटनेस को कम रखें और बार डिजिटल डिवाइस का उपयोग न करें।

-    आंखों का सूखा होना भी चिंता का विषय है। जब लोग डिवाइस पर पढ़ते हैं तो उनका ब्लिंक (पलक झपकाना) का रेट प्रति मिनट 5-10 बार कम हो जाता है। यह आंखें सूखने का कारण हो सकता है। हालांकि बच्चों की आंखें बड़े लोगों जितनी नहीं सूखतीं। याद रखें कि जब बच्चा स्क्रीन पर देखकर भले ही आंख बार-बार झपका रहा होलेकिन इसके बाद भी उन्हें इसकी याद दिलाते रहें।

बुधवार, 19 अगस्त 2020

रैपिड एंटीजन कोरोना से केवल 30 फीसदी में लगता है इंफेक्शन का पता...निगेटिव तो भी रहे सावधान

 रैपिड एंटीजन निगेटिव साबित हो सकते है स्प्रेडर 


 रैपिड निगेटिव का मतलब यह नहीं कि कोरोना का नहीं है संक्रमण 

 

रैपिड एंटीजन की  30 फीसदी ही है दक्षता

हाई वायरल के लोड के मामले में रैपिड पाजिटिव

 

रैपिड से पाजिटिव तो कोरोना का संक्रमण  मान कर मैनेजमेंट

कुमार संजय। लखनऊ

रैपिड कोविड-19 एंटीजन टेस्ट में निगेटिव आने के बाद यदि आप यह मान कर मस्त हो जाते है कि मै तो निगेटिव हूं। मुझसे किसी को संक्रमण का खतरा नहीं है तो आप की भूल है। रैपिड एंटी जन जांच से केवल सौ पाजिटिव मरीजों में से केवल 30 फीसदी लोगों में संक्रमण की पुष्टि करता है। इतना जरूर है कि जिनका रैपिड से पाजिटिव है उनमें संक्रमण की पुष्टि पीसीआर से भी होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि रैपिड एंटीजन टेस्ट फ्रंट लाइन टेस्ट नहीं हो सकता है। इसके आधार पर किसी को निगेटिव नहीं मान सकते है। लक्षण है तो उसे निगेटिव आने के बाद भी एहतियात की जरूरत है। संजय गांधी पीजीआइ के क्लीनिकल इम्यूनोलाजी विभाग पूर्व प्रमुख प्रो.आरएन मिश्रा जर्नल आफ क्लिनिकल वायरोलाजी के शोध रिपोर्ट लो परफारमेंस आफ रैपिड एटीजन डिटेक्शन टेस्ट एस फ्रंटलाइन टेस्टिंग फार कोविड -19 डायग्नोसिस के हवाले कहते है कि विशेषज्ञों ने 148 मरीज़ों में परीक्षण किया जिसमें 106 में पीसीआर तकनीक से जांच रिपोर्ट पाजिटिव थी देखा गया कि पीसीआऱ पाजिटिव मरीजों में केवल 32 में एंटीजन रैपिड एंटीजेन टेस्ट से संक्रमण की पुष्टि हुई। 


रैपिड जाच की सेंसटिवटी( दक्षता) केवल 30.2 फीसदी


देखा गया कि रैपिड एंटीजन से संक्रमण की पुष्टि वाले मरीजों में संक्रमण की पुष्टि पीसीआर से भी हुई। हिंद मेडिकल कालेज  की माइक्रोबायलोजिस्ट डा. विनीता खरे कहती है रैपिड एंटीजन परीक्षण से संक्रमण की पुष्टि होने के बाद यदि पीसीआर की जांच की सुविधा नहीं है तो संक्रमण मान कर देख-रेख और इलाज की प्लानिंग कोरोना पाजिटिव की तरह की करनी चाहिए क्योंकि देखा गया है रैपिड से पाजिटिव लगभग सभी मामलों में पीसीआर से पुष्टि हुई है। इसके पीछे कारण के बारे में कहती है अधिक वायरल लोड के मामले में रैपिड एंटीजन संक्रमण बताता है।

 

फ्रंट लाइन टेस्ट नहीं हो सकता है एंटीजन टेस्ट

 

विशेषज्ञों का कहना है कि रैपिड एंटीजन जांच में निगेटिव को संक्रमण विहीन मान कर उसको सामान्य मान कर ट्रीट नहीं कर सकते है। यह फ्रंट लाइन डायग्नोसिस टेस्ट नहीं हो सकता है। एंटीजन निगेटिव 70 फीसदी लोगों में कोरोना संक्रमण की आशंका हो सकती है। इस लिए लक्षण है तो एंटीजन टेस्ट निगेटिव होने के बाद भी  पीसीआर जांच से पुष्टि की जरूरत है।

विदेशी से अलग है भारतीयों में कोरोना के लक्षण

 आईसीएमआर ने कोरोना के खास लक्षणों के लेकर किया शोध तो मिली नई जानकारी

कोरोना संक्रमित उत्तरभारतीयों में कम हो रही है सांस लेने की परेशानी

बुखार नहीं है प्रमुख लक्षण  

विदेशी से अलग है भारतीयों में कोरोना के लक्षण की दर

कुमार संजय। लखनऊ

उत्तर भारत के कोरोना संक्रमित मरीजों में सांस लेने की परेशानी और बुखार की परेशानी काफी कम मिल रही है। यह देशा का पहला शोध है जिसमें भारतीयों में लक्षण का पता लगाया है अभी तक विदेशी शोध और अनुभव के आधार पर देश के चिकित्सक लक्षण के आधार पर संक्रमण की आशंका जान कर जांच या इलाज की दिशा तय करते रहे है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने अपने इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च  में बताया है कि कोरोना संक्रमित केवल 17 फीसदी लोगों में बुखार की परेशानी और केवल 5.6 फीसदी लोगों में सांस लेने की परेशानी देखी गयी है। विशेषज्ञों का कहना है कि  बुखार कोरोना वायरस के प्रमुख लक्षणों के रूप में सामने आया है। अध्ययन से पता लगा कि सिर्फ 17.4 फीसदी मरीजों को ही संक्रमण के दौरान बुखार था दुनिया के बाकी देशों के विपरीत यहां संक्रमित मरीजों में बुखार प्रमुख लक्षण नहीं था। विज्ञानियों ने 144 मरीजों पर किया गया जो कि उत्तर भारत के अलग-अलग शहरों से थे। भारत के विपरीत चीन में 44 प्रतिशत संक्रमित मरीजों में जांच के दौरान बुखार पाया गया जबकि अस्पताल में उपचार के दौरान 88 प्रतिशत मरीजों को बुखार रहता था। दूसरे देशों में भी कोरोना पीड़ित मरीजों में बुखार एक प्रमुख लक्षण रहा है।

 

44.4 फीसदी बिना लक्षण

सिम्प्टोमैटिक मरीजों में श्वसन संबंधी समस्याएंगले में खराश और खांसी जैसे कोरोना के लक्षण देखे गए। इन मरीजों में 44 प्रतिशत मरीज एसिम्प्टोमैटिक थे जिनमें अस्पताल में भर्ती होने से उपचार होने तक कभी बुखार नहीं देखा गया। इस आधार पर शोधकर्ताओं का आकलन है कि उस वक्त भी कोरोना वायरस साइलेंट स्प्रेडर’ की तरह बिना लक्षण के लोगों को संक्रमित कर रहा था। 

 दूसरे लक्षणों पर भी दिया जाए ध्यान 
शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष दिया कि चूंकि बहुत कम पॉजिटिव मरीजों को बुखार था इस हिसाब से आगे भी मरीजों की जांच व उपचार के दौरान मरीजों के दूसरे शारीरिक लक्षणों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। 

 

भीड़ वाले स्थानों से संक्रमित हुए- 
शोधकर्ताओं ने पाया कि इन मरीजों को संक्रमण ऐसे राज्यों की यात्रा के दौरान हुआजो वायरस प्रभावित थे। कई मरीजों को भीड़भाड़ वाले इलाकोंएयरपोर्ट व अन्य सार्वजनिक स्थानों में किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आकर संक्रमण हुआ। इन मरीजों में एक हेल्थ वर्कर और एक प्रशासनिक अधिकारी भी शामिल था जो काम के दौरान संक्रमित हो गए।  

 

ळक्षण                प्रतिशत

बिना लक्षण -     44.4

लक्षण-    55.6

बुखार -    17.4

नांक बंद- 21.5

गले में खरास-21.5

कफ-34.7

बलगम( स्पुटम) -3.5

सांस लेने में परेशानी -5.6

थकान--1.4

मांसपेशियों में दर्द-  3.5

डायरिया- 2.8

मिचली या उल्टी- 2.1

गुरुवार, 13 अगस्त 2020

सर्जरी के बाद मरीजों को अब जरा सा भी दर्द नहीं सहना पड़ेगा

 


सर्जरी के बाद दर्द होगा गायब

कुमार संजय, लखनऊ
1सर्जरी के बाद मरीजों को अब जरा सा भी दर्द नहीं सहना पड़ेगा। एनस्थीसिया विशेषज्ञों ने तय किया है सर्जरी के बाद दर्द से निजात दिलाने के लिए मल्टी मॉडेल पेन रीलिफ तकनीक अपनाई जाए। इस तकनीक में कई तरह के पेन किलर का इस्तेमाल तय मात्र में किया जाता है। अब तक दर्द से निजात दिलाने के लिए किसी एक पेन किलर का ही इस्तेमाल किया जाता रहा है जिससे कुछ मरीजों को दर्द सहना पड़ता है। 1 संजय गांधी पीजीआइ के एनस्थीसिया विभाग के प्रोफेसर संजय धीराज, प्रो. देवेंद्र गुप्ता के मुताबिक इस नई तकनीक के इस्तेमाल पर सहमति बन गई है जिसका इस्तेमाल संस्थान में होने वाली सर्जरी के मरीजों पर किया जाएगा। रिसर्च सोसाइटी एनेस्थेसियोलॉजी क्लीनिकल फारमाकोलॉजी ने इस तकनीक के जरिए दर्द से निजात दिलाने पर सहमति जताई है। विभाग के पेन मैनजमेंट एक्सपर्ट प्रो.अनिल अग्रवाल के मुताबिक अभी मरीज के शरीर में एक ट्यूब के जरिए पेन किलर पहुंचाते हैं, साथ में एक प्रोब होता है जिससे दवा की मात्र मरीज के दर्द के अनुसार घटा-बढ़ा सकते है। इसी तकनीक के जरिए मल्टी मॉडल पेन रीलिफ भी इस्तेमाल की जाएगी। विशेषज्ञों ने कहा कि इस तकनीक का इस्तेमाल सोसाइटी पूरे प्रदेश के एनस्थीसिया विशेषज्ञों के लिए अपडेट करेगा।

सर्जरी के दो घंटे पहले तक पी सकेंगे पानी

विशेषज्ञों ने बताया कि अभी तक सर्जरी के दिन मरीज को सुबह से ही खाने और यहां तक कि पानी पीने से भी मना किया जाता है। अब मरीज सर्जरी से दो घंटे पहले तक पानी पी सकता है

कोरोना मरीजों की सेवा में बराबर की भागीदारी--सेनटरी वर्कर भी संभाल रहे है मोर्चा






कोरोना मरीजों की सेवा में बराबर की भागीदारी

 

कोरोना संक्रमित मरीजों के सेवा और इलाज में अहम भूमिका नर्सेज निभाती है यह सही है । हम नर्सेज के निर्दशन में मरीजों की सेवा में बराबर की भागीदारी करती हूं। सिस्टर की हर कदम पर सहायता करती हूं क्योंकि सिस्टर के पास कई बार काफी काम हो जाता है। ऐसे में सिस्टर के साथ बराबर लगी रहती हूं जो कहती है उसका तुरंत पालन करना मेरा धर्म होता है। इसके साथ ही वार्ड की फ्लोर क्लीनिंग के आलावा गंभीर मरीजों की नित्य क्रिया में मदद करने के साथ कई बार मरीजों की स्पंजिंग( गीले कपडे से शरीर की सफाई) भी करना होता है। यह कहना आउट सोर्स सेनटरी वर्कर रमा सिंह का। वह अभी कुछ दिन पहले कोरोना वार्ड से ड्यूटी कर वापस आयी है। रमा जी कहती है कि मुक्षे कोरोना वार्ड में ड्यूटी से कभी डर नहीं लगा। सेनटरी इंसपेक्टर से खुद कहा कि ड्यूटी लगा दें । पहले दिन ड्यूटी पर जाने के बारे में जानकारी नहीं थी कि कैसे तैयारी खुद की करनी है। घर से खाना खा कर आ गयी तो पीपीई किट पहन कर जैसे ही वार्ड में गयी तो थोड़ी देर में चक्कर आ गया । वार्ड में खाली पडे बेड पर लेट गयी तो सिस्टर ने कहा कि ड्यूटी करने में परेशानी है तो तो वापस चली जाओ तो मैने कहा कि सब ठीक हो जाएगा थोडा वक्त दें। अगले दिन से जान गयी है बहुत कम खाना है, पानी उतना ही पीना है कि वाश रूम न जाना पडे तो अगले दिन से ड्यूटी सामान्य तरीके से करने लगी। हमारी दो बेटिया जिसमें एक बीएससी नर्सिग की है और नर्स की नौकरी कर रही है । एक बेटी इंटर पास की है और एक बेटा है सब परेशान हो गए क्योंकि यह सोच रहे थे कि कही मां को संक्रमण न हो जाए लेकिन नर्स बेटी ने सबका मनोबल बढाया। घर की पूरी जिम्मेदारी मेरे ऊपर है सास –ससुर और एक चचिया ससुर है कुल मिला कर आठ लोगों का परिवार है सबकी जिम्मेदारी बेटियों ने बखूबी निभाया।



 

रविवार, 9 अगस्त 2020

इन्सुलिन दे रहा है कोरोना मरीजो में दे रहा है धोखा



....इंसुलीन दे रहा है कोरोना संक्रमित में धोखा

इंसुलीन इंफ्यूजन साबित हो रही है संजीवनी

शुगर पर नियंत्रण नजर रख कर बचाया जा सकती है जिंदगी

 कुमार संजय़। लखनऊ

 

शरीर में शुगर को नियंत्रित करने वाला हारमोन कोरोना मरीज़ों में धोखेबाज़ साबित हो रहा है। संक्रमण के होने के बाद इंसुलीन की कार्य क्षमता कम हो जा रही है जिसके कारण जिनमें पहले कभी डायबटीज़ की परेशानी नहीं रही है उनमें भी शुगर लेवल बढ़ जाता है। यह बढा शुगर लेवल कई तरह की परेशानी खडी कर देता है। विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना या किसी भी संक्रमण के मामले में शुगर लेवल पर विशेष नजर रखने की जरूरत है। शुगर लेवल को इंसुलीन इंफ्यूजन के जरिए कंट्रोल कर काफी हद तक कोरोना मरीज़ों में कंपलीकेशन को रोका जा सकता है। यह भी देखा गया है कि कई बार संक्रमण खत्म होने के साथ शुगर लेवल बिना किसी दवा के नियंत्रित हो जाता है।

इस अनुभव को इंडियन एसोसिएशन आफ एनेस्थेसिया के जरिए डाक्टरी बिरादरी में बताया जा रहा है।  इंसुलीन थेरेपी के जरिए मरीज़ों को काफी हद तक बचा सकते है। अनियत्रित शुगर कोशिकाओं में सूजन के साथ फेफड़े को क्षति ग्रस्त करता है। संजय गांधी पीजीआई के एनेस्थेसिया विभाग के प्रो. एसपी अंबेश को प्रोफेसर एवं आईसीयू एक्सपर्ट कहते है कि  देखा गया है कि जिन कोरोना संक्रमित मरीज़ों में शुगर नियंत्रित रहा उनमें परेशानी कम हुई और उनमें वेंटीलेटर की भी जरूरत कम हुई। हमने भी देखा कि जिन मरीज़ों में शुगर ठीक से इंसुलीन के जरिए  नियंत्रित किया वह लोग जल्दी रिकवर हुए। संक्रमण होने के बाद शरीर में बदलाव के कारण शुगर का स्तर बढ जाता है। मेटाबोलिक सिड्रोम को संचालित करने में इंसुलीन प्रतिरोध बडा कारण है। संक्रमण के कारण मेटाबोलिज्म ( उपापचय) क्रिया बिगड़ जाती है। इंसुलीन ही रक्त में शर्करा को नियंत्रित करता है। इंसुलीन प्रतिरोध होने के कारणशुगर का लेवल तेजी से बढने लगता है।  विशेष रूप सेअच्छी तरह से नियंत्रित रक्त शर्करा (70 से 180 मिली ग्राम प्रति डेसी लीटर) वाले जो मरीज  अस्पताल में भर्ती मरीज़ों में   कम चिकित्सा हस्तक्षेप( मेडिकल इंटरवेंशन) और आर्गन डैमेज भी कम रहा है।  मृत्यु दर भी कम रही। खराब नियंत्रित रक्त ग्लूकोज वाले व्यक्तियों (180 मिली ग्राम प्रतिडेसी लीटर) से अधिक रहा उनमें परेशानी अधिक देखने को मिली।

 

इंसुलीन इंफ्यूजन साबित हो सकता है कारगर

 

 एक अन्य अध्ययन में दिखाया गया है कि कोरोना के मरीज जो हाइपर ग्लाइसेमिया से ग्रस्त थे उनमें इंसुलीन को नियंत्रित करने के लिए   इंसुलिन इंफ्यूजन के साथ इलाज किए जाने वाले वाले रोगियों में मृत्यु का खतरा कम रहा जबकि  इंसुलिन इंफ्यूजन के बिना रोगियों की मृत्यु का खतरा अधिक देखने को मिला।

 

शुगर को बढाने वाले आहारा को तौबा

शुगर के स्तर को बढाने में आहार कार्बोहाइड्रेट, परिष्कृत कार्ब्सस्टार्च और सरल शर्करा को भी देने में सावधानी बरतनी पड़ती है।  कम वसाउच्च कार्बोहाइड्रेट आहार की वकालत करती हैंजो हाइपरग्लाइसेमिया को खत्म कर सकता है