गुरुवार, 27 जून 2019

अब पीजीआइ कंबीनेशन थिरेपी से ठीक होगी पेशाब के साथ ईडी की परेशानी

अब पीजीआइ कंबीनेशन थिरेपी से एक साथ कम करेगा दो परेशानी


- ठीक होगी पेशाब के साथ ईडी की परेशानी
उम्र बढ़ने के साथ 50 से 60 फीसद लोगों में होती है पेशाब और ईडी की परेशानी
कुमार संजय। लखनऊ
उम्र बढने के साथ पेशाब के साथ इरेक्टाइल डिस फंक्शन(ईडी) की परेशानी  50 से 60 फीसदी लोगों मे होती है । पेशाब के रास्ते  में रूकावट के कारण पूरा पेशाब नहीं निकलता है। पूरा मूत्राशय खाली न होने होने पर बार –बार पेशाब जाना पड़ता है। कई बार मूत्राशय( ब्लैडर) में पेशाब बैक फ्लो मारता है जिससे किडनी की कार्य क्षमता प्रभावित होती है। इन दोनों परेशानी से एक साथ निपटने के लिए संजय गांधी पीजीआइ के यूरोलाजिस्ट नई कंबीनेशन थिरेपी देंगे। देखा गया है कि  प्रोस्टेट के कारण पेशाब में रूकावट के कारण होने वाली परेशानी के साथ ईडी की परेशआनी होने पर टाडाफिल के साथ  टामसुलोसिन के साथ कंबीनेशन में दिया जाए तो दोनों परेशानी में काफी कमी आती है। देखा गया है कि पेशाब की धार ठीक हुई साथ ही ब्लैडर में पेशाब कम बचा। साथ ही ईडी की परेशानी कम हुई। इंडियन जर्नल आफ यूरोलाजी के एक शोध पत्र का हवाला देते हुए  यूरोलाजिस्ट एंव किडनी ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ प्रो. संजय सुरेखा कहते है कि कंबीनेशन में टाडाफिल 10 मिली ग्राम और टामसुलोसिन 0.4 मिली ग्राम दिन में एक बार दिया गया । टामसुलोसिन पेशाब के रास्ते की मांसपेशियों में स्थित अल्फा रिसेप्टर को ब्लाक करता है जिससे वहां की मांस पेशियों में सिकुडन नहीं होती है। टाडाफिल रक्त संचार को बढाता है । यह दवा नपुंसकता के मामले में  दी जाती  है ।
संजय गांधी पीजीआई के यूरोलाजिस्ट और संस्थान के निदेशक प्रो.राकेश कपूर के मुताबिक बिनाइन प्रोस्टेट हाइपप्लीजिया के साथ ईडी की परेशानी के बीच सीधा संबंध देखा गया है। कई मामलों में आल्फा ब्लाकर देने से ईडी में फायदा नहीं होता है । इस शोध के बाद दोनों परेशानी कम करना संभव हो सकता है....प्रो.राकेश कपूर यूरोलाजिस्ट और किडनी ट्रांसपलांट विशेषज्ञ 

पीजीआइ कर्मचारी नेताओं ने की एसएसपी से मुलाकात

पीजीआइ ट्रामा सेंटर  रेप मामला

पीजीआइ कर्मचारी नेताओं ने की एसएसपी से मुलाकात
जांच तक न हो उत्पीड़न एसएसपी से मांग




पीजीआइ ट्रामा सेंटर में सामूहिक रेप के मामले को लेकर  नर्सिग स्टाफ एसोसिएशन और कर्मचारी महासंघ का प्रतिनिधि मंडल एसएसपी से मिलकर निष्पक्ष जांच की मांग किया। मांग किया कि जांच पूरी होने तक  किसी भी कर्मचारी का उत्पीड़न किया जाए यदि दोषी है तो उनके खिलाफ एक्शन लिया जाए।  एसोसिएशन की अध्यक्ष सीमा शुक्ला, कर्मचारी  महासंघ के अध्यक्ष जितेंद्र यादव, महामंत्री धर्मेेश कुमार, कर्मचारी महासंघ(एस) की अध्यक्ष सावित्री सिंह सहित अन्य का प्रतिनिध मंडल एसएसपी से गुरूवार को मुलाकात कर बताया कि ममाले पर संस्थान प्रशासन ने जांच समिति का गठन किया था जिसने रिपोर्ट भी दे दी है । रिपोर्ट में साबित हुआ कि कोई इस तरह की घटना ट्रामा सेंटर में नहीं हुई। । वरिष्ठ प्रशानकि अधिकारी भरत सिंह ने कहा कि हर स्तर पर जांच की गयी घटना नहीं हुई है । पुलिस जांच करे हम लोग पूरा सहयोग करेंगे।   

गुरुवार, 20 जून 2019

हेल्थ आउटसोर्सिंग कर्मचारियों ने दी आंदोलन की चेतावनी वेतन विसंगति से नाराज हैं कर्मचारी

हेल्थ आउटसोर्सिंग कर्मचारियों ने दी आंदोलन की चेतावनी
वेतन विसंगति से नाराज हैं कर्मचारी
खाली पदों पर की समायोजन की मांग
जागरण संवाददाता। लखनऊ
आउटसोर्सिंग कर्मचारियों वेतन विसंगति को लेकर एक बार फिर से रोष है। इस बार गुस्साए कर्मचारी बड़े आंदोलन के मूड में हैं। संयुक्त स्वास्थ्य आउटसोर्सिंग संविदा कर्मचारी संघ एवं डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान संविदा कर्मचारी संघ आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की समस्याओं को कई वर्षों से शासन के सामने रखा है और कई बड़े आंदोलन भी किये गये लेकिन कोई स्थाई हल नहीं निकला है।
गौरतलब है कि आउटसोर्सिंग की स्थायी नीति और उचित वेतन की मांग पर शासन की सहमति के बाद भी युवा कर्मचारी के लिए कुछ नहीं किया। यह जानकारी संघ के अध्यक्ष रितेश मल्ल और मीडिया प्रभारी सच्चिता नन्द मिश्रा ने  
कहा कि
9 अगस्त 2018 को मुख्यमंत्री ने कमेटी गठित कर लोहिया, केजीएमयू और पीजीआई के कर्मचारियों की वेतन विसंगति दूर करने की बात कही। कमेटी गठन के बाद वेतन बढ़ोत्तरी का कोई आदेश नहीं आया। विभाग के प्रमुख सचिव ने मामले को दबा दिया और 8 माह बाद भी मामला विचाराधीन है। 

वेतन पहले से काफी कम कर दिया

आउटसोर्सिंग नीति बनाये जाने के लिए मुकुल सिंघल, प्रमुख सचिव कार्मिक की अध्यक्षता में कमेटी गठित हुई। नियमावली का ड्राफ्ट बनने में 6 माह से ज्यादा का समय लगा। नियमावली में संघ द्वारा सुझाव पत्र भी दिया गया कि कर्मचारियों का वेतन निर्धारण हो तथा वर्ष में विभिन्न अवकाश की व्यवस्था हो। इससे युवा कर्मचारियों का प्रशासन एवं सेवा प्रदाता फर्म द्वारा उत्पीडऩ न हो सके। अभी हाल ही में चिकित्सा शिक्षा विभाग में कर्मचारियों का वेतन पहले से काफी कम कर दिया गया। मांग किया कि खाली पदों पर सीधा समायोजन किया जाए

सेवा प्रदाता एजेंसी नौकरी के नाम पर कर रही धन वसूली

डॉ. राम मनोहर लोहिया, केजीएमयू, पीजीआई के कर्मचारी आज भी बेहद कम वेतन पर काम कर रहे हैं जबकि संस्थान और उच्च स्तरीय चिकित्सा संस्थान है। युवा कर्मचारी डिग्री, डिप्लोमा होने के बाद भी 10 हजार से 15000 रुपये की नौकरी करने को मजबूर हैं ।

सर्विस चार्ज न्यूनतम 5 प्रतिशत

यहां तक कि आउटसोर्सिंग नियमावली के ड्राफ्ट में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जिससे कर्मचारियों को लाभ हो। शासन द्वारा सेवा प्रदाता फर्म का सर्विस चार्ज न्यूनतम 5 प्रतिशत कर दिया गया जो कि पहले 1 से 2 प्रतिशत तक ही थी। शासन की उदासीनता के चलते कर्मचारी आक्रोशित हैं और उग्र होकर आंदोलन करने के मूड में हैं।

रविवार, 2 जून 2019

ऐसे बुजूर्ग जिनमें र्सजरी संभव नहीं उन्हें भी लंबी जिंदगी देगा सीटीओ



ऐसे बुजूर्ग जिनमें  र्सजरी संभव नहीं उन्हें भी लंबी जिंदगी देगा सीटीओ
सीटीओ तकनीक से कम हो सकती है सर्जन पर लोड
जागरण संवाददाता। लखनऊ
सीटीओ तकनीक स्थापित होने के बाद दिल की सर्जरी करने वाले विशेषज्ञों पर लोड काफी हद तक कम हो सकता है। कई सरकारी संस्थानों में सर्जरी के लिए लोड के कारण लंबी वेटिंग हैै। यह वेटिंग कम हो सकती है खात तौर पर उन मरीजों में जिनकी  उम्र 60 साल से अधिक है। एनेस्थेसिया देने की स्थित न होने सहित कई कारण इनमें  सर्जरी नहीं कर पाते हैं। उनके लिए यह सबसे ज्यादा कारगर है। संजय  गांधी पीजीआई के हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. सुदीप कुमार कहते है कि  पूरे देश दो  हजार से ज्यादा मरीजों का इस तकनीक के जरिए इलाज किया जा चुका है। इसमें सफलता दर 99 फीसदी है। इसमें खास तरह के तार का प्रयोग किया जाता है। वह एंजियोप्लास्टी वाले तार से काफी अलग हैं। इसे गाया वायर भी बोलते हैं। इसमें रिस्क दर भी काफी कम है। संस्थान में सीटीओ आयोजित वर्कशाप और अधिवेशन में प्रो. रूपाली खन्ना, प्रो, नवीन गर्ग, प्रो. अंकित साहू सहित अन्य विशेषज्ञों ने अपनी बात रखी। बताया कि  मरीज में सर्जरी कर तकनीक दिखायी गयी जिससे देश में इस तकनीक का विस्तार हो सके।  
दो तरीके से होती है एंजियोप्लास्टी
प्रो.सुदीप के मुताबिक यह एक तरह खास तरीके की तकनीक है। इसे दो तरीके से किया जाता है। पहला यह है कि एंजियोप्लास्टी की तरह सीधे ही वायर को नसों के लिए ब्लाकेज वाले स्थान पर ले जायाजाता है। दूसरा यह है कि यदि सीधे तौर पर तार नसों में प्रवेश नहीं कर पाते हैंतोवे दूसरी नस से होते हुए ब्लाकेज वाले स्थान पर पहुंच जाते हैं। फिरे जहां ब्लाकेजहोता है, उसे खोल देते हैं। इससे मरीज में सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ती है। खर्चकरीब- करीब ओपेन सर्जरी से करीब10 फीसदी ज्यादा आता है। जबकि सर्जरी में मरीज कोतमाम तरह की दुश्वारियां झेलनी पड़ती है। उसमें संक्रमण का भी खतरा रहता है। दवाएंज्यादा लेनी पड़ती है। इसमें इन सभी झंझट से मुक्ति मिल जाती है।

एस्पिरिन के इस्तेमाल पर उठा सवाल-65 के बाद बिना सलाह लेना खतरनाक

एस्पिरिन के इस्तेमाल पर उठा 
सवाल

65 के बाद बचाव के लिए एस्पिरिन देने से नहीं होता फायदा
दिल और दिमाग की बीमारी से बचाने के लिए एस्पिरिन देने पर होती रक्त स्राव की आशंका
कुमार संजय। लखनऊ  
एस्पिरिन के इस्तेमाल पर बडा सवाल खडा हो गया है। डायबटीज और अधिक उम्र के सामान्य लोगों को  दिल की बीमारी के साथ ब्रेन स्ट्रोक से बचाव के लिए एस्परिन दिया जाता है लेकिन विशेषज्ञों ने देखा है  कि इसके सेवन से रक्त स्राव की आशंका अधिक रहती है । इसके सेवन से कोई खास फायदा भी नहीं होता है। संस्थान के कार्डियोलाजिस्ट प्रो. सुदीप कुमार के मुताबिक विशेषज्ञों ने 65 से अधिक आयु वर्ग के  19114 के मरीजों पर शोध को ऱखा गया। इनमें 11 फीसदी डायबटीज से ग्रस्त थे। इनमें आधे  को सौ मिली ग्राम एस्पिरिन दिया गया आधे को नहीं दिया गया तो देखा गया कि कई कारणों से  मृत्यु दर एस्पिरिन वाले मरीजों में 5.9 फीसदी था जबकि बिना एस्पिरिन वाले वर्ग में मृत्यु दर 5.2 फीसदी था। एस्पिरिन वाले वर्ग में कैंसर 3.1 फीसदी जबकि बिना एस्पिरिन वाले वर्ग में 2.3 फीसदी देखा गया।प्रो.सुदीप कहा कि यदि दिल की बीमारी है या थ्रम्बोसिस की परेशानी है तो एस्पिरिन का फायदा है । बिना डाक्टर के सलाह यह दवा नहीं लेनी चाहिए।    
रक्तस्राव(हिमोरेज)- 8.6 प्रति एक हजार एस्पिरिन वर्ग में बिना एस्पिरिन वर्ग में 6.2
इंट्राक्रेनियल रक्तस्राव- एस्पिरिन वर्ग में 2.5 प्रति एक हजार  सामान्य वर्ग में 1.7
खाने की नली में रक्तस्राव-  एस्पिरिन वर्ग में 2.1 प्रति एक  हजार सामान्य में 1.1
दिल की बीमारी- 10.7 एस्पिरिन वर्ग में सामान्य वर्ग में 11.3