मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015

अवसाद है जीवन खत्म करने की जड़

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस आज
 
शुक्र है कि समय रितिका ने विशेषज्ञ से सलाह
38 फीसदी बीमारी के बाद भी नहीं लेते है दवाई
अवसाद है जीवन खत्म करने की जड़
कुमार संजय । लखनऊ
 
35 साल की रितिका (परिवर्तित नाम) के लिए सबकुछ बोझ बन गया था।  अचानक अपने काम और आसपास के लोगों में कोई दिलचस्पी नहीं रह गई थी। वह अपने निजी जीवन पर भी ध्यान नहीं दे पा रही थीं। रितिका बताती हैं, "मैं सुबह उठना नहीं चाहती थी। मुझे दफ्तर जाने के लिए खुद को धकेलना होता था। मैं अक्सर देरी से दफ्तर पहुंचती थी। यदि मुझे थोडा भी अतिरिक्त काम दे दिया जाता था तो मैं उदास हो जाती थी। दोस्तों और परिवार के साथ बाहर जाने में भी मुझे दिलचस्पी नहीं रह गई थी।"  

एक मित्र ने उन्हें मनोचिकित्सक के पास जाने की सलाह दी। इसके बाद ही रितिका को एससास हुआ कि वह अवसाद के लक्षणों से गुजर रही हैं।  वह बताती हैं, "तब तक मुझे नहीं पता चल पाया था कि मैं अवसाद से ग्रस्त हूं। मुझे इस स्थिति की गंभीरता के बारे में तब तक पता नहीं था जब तक कि मेरी चिकित्सक से मुलाकात नहीं हुई। मुझे बताया गया कि अत्यधिक अवसाद के कारण लोग आत्महत्या तक कर सकते हैं। भगवान का धन्यवाद कि मैं समय रहते चिकित्सक के पास चली गई। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस(१० अक्टूर) के मौके पर र्वल्ड मेंटल हेल्थ फडरेशन ने कहा है कि लक्षणों पर परिवार वालों को गौर करने के बाद तुरंत डाक्टर के पास जाना चाहिए।  मानसिक रोगों से ग्रस्त ७२ फीसदी लोग डाक्टर के पास इलाज के लिए नहीं जाते हैं क्योंकि वह मानते ही नहीं हैं कि वह बीमार हैं। अवसाद से ग्रस्त ९० फीसदी लोग आत्महत्या कर लेते हैं। अभी भी लोग मानसिक रोग को पागलपन मानते हैं ऐसा बिल्कुल नहीं है।  अवसाद से ग्रस्त ७२ फीसदी लोग तब यह नहीं मनाते कि वह बीमारी के चपेट में हैं जब तक डाक्टर बीमारी की पुष्टि नहीं कर देते हैं। बीमरी की पुष्टि होने के बाद ३८ फीसदी लोग दवाएं नहीं लेते हैं।



दूसरी शारीरिक बीमारी की तरह है मानसिक 

मानसिक बीमारी भी शारीरिक बीमारियों की तरह ही है। यह उपचार योग्य है। शुरूआत में ही इलाज से बेहतर परिणाम सामने आते हैं और बीमारी को गम्भीर होने से रोका जा सकता है। 
यह कभी भी किसी एक कारण से नहीं होता है बल्कि कई कारणों से मिलकर होता है जैसे केमिकल, फिज़िकल, साइकोलाजिकल। लेकिन यहक बहुत ही खतरनाक होता है।

 

प्रति लाख लोगों में से आत्महत्या करने वालों की संख्या 10.9 
 विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लयूएचओ) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में प्रति लाख व्यक्तियों के पीछे आत्महत्या करने वालों की संख्या 10.9 है और जो लोग आत्महत्या कर लेते हैं उनमें से ज्यादातर की उम्र 44 साल से कम होती है। मनोरोग का बेहतर इलाज से ही इसे रोका जा सकता है। आत्महत्या की कल्पना करना और उसे व्यवहार में उतारना मानसिक आपातकाल की बहुत ही गंभीर स्थिति है। जो मरीज आत्महत्या करने के बहुत नजदीक हैं, उन्हें तुरंत मनोचिकित्सक की सेवाओं की जरूरत होती है और उस पर लगातार तब तक निगरानी रखनी चाहिए, जब तक वह सुरक्षित हालत में न पहुंच जाएं। एक बार आत्महत्या की कोशिश करने के बाद ‘साइकोथेरेपी’ दोबारा की जाने वाली कोशिशों को रोक सकती है। देखा गया है कि  तनाव, 

पूरूषों के मुकाबले अधिक है मानसिक रोग से परेशान
 फडरेशन के मुताबिक महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक इस बीमारी की चपेट में हैं। १० से २५ फीसदी महिलाएं अवसाद की चपेट में है जबकि पुरुष ५ से १२ फीसदी इस बीमारी के चपेट में हैं। हर चार मिनट में विश्व में एक व्यक्ति आत्महत्या कर रहा है। शारीरिक परेशानी से ११ फीसदी लोग आत्महत्या करते हैं जबकि ९० फीसदी लोग अवसाद के कारण आत्महत्या करते हैं।  मनोविकार पागलपन नहीं बल्कि अक बीमारी है जिसका इलाज दवाओं के जरिए संभव है। नई दवाएं आ गई है जो दिमाग के न्यूरान पर क्रियाशील होकर रसायनिक असंतुलन को दूर करती है। दिमाग में सिरोटिन एवं नार-एपीनेफ्रिन रसायन  का स्तर कम होने बीमारी की आशंका बढ़ जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि इलाज में दवा के अलावा काउंसलिंग की अहम भूमिका है। 

बाक्स---
इन परेशानियों को मत करें नजरअंदाज,बचा रहे जीवन
--लगातार दु:खी,तनाव ग्रस्त,खालीपन महसूस करना,निराशा
--अपराधबोध से ग्रसित होना स्वयं का नाकबिल सनझना
--सेक्स सहित दूसरे क्रियाकलापों के प्रति उदासीनता
--मौत या आत्महत्या का विचार आना,लगातार चिड़चिड़ापन
---स्फूर्ति की कमी थकान महसूस होना
--नींद ना आना या अधिक नींद आना
--भूख कम लगना या अधिक लगना
--एकाग्रता याददाश्त में कमी,निर्णय लेने में कठनाई,
--अकारण सिर दर्द,पाचन की गड़बड़ी एवं शरीर में दर्द


बाक्स-
दो हजार से अधिक लोगों पर सर्वे के बाद इंडियन जरनल आफ साइकेट्रिक में छपी शोध रिर्पोट के मुताबिक---
 मानसिक रोगोंं का प्रतिशत            
अवसाद-१५.९६
सिक्रिजोफ्रिनिया-०.४२
पैनिक डिसआर्डर-७.५६
फोबिया-५.८८
आवसेसिव कंपल्सिव डिसआर्डक-५.८८
एडजसटमेंट डिसआर्डर-२.५२
अनिद्र-१३.०२
हमेशा बीमार महसूस करना-१.२६
डिस्थीमिया-६.७२
तंबाकू लती-२८.५७
भांग लती-२.९४


बाक्स-
कौन है मानसिक रोगों की चपेट मे(प्रतिशत)
३० से कम उम्र के-- ५०.७
 ३१ से४० उम्र तक --५२.८
 ४० से अधिक उम्र तक-१८
हाई स्कूल तक शिक्षित-६१.६
कालेज या डिप्लोमा तक शिक्षित-४८.६
डिग्री तक शिक्षित -४०.६
रु.३५०० से कम आय -७५.०
 रु. ३५०१ से ६००० तक आय-४७.४
 रु. ६००१ से ८५०० तक आय-३७.४
रु. ८५०१ से अधिक आय -३७.०
विवाहति-४९.० फीसदी
अविवाहित-६०.० फीसदी
संयुक्त परिवार में रहने वाले-५५.३ फीसदी
न्यूक्लीयर फेमली--४७.४ फीसदी
अकेले रहने वाले-

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