सोमवार, 21 सितंबर 2015

बच्चों को मोटापे से बचाने में प्रोटीन युक्त आहार देने से उनमें मोटापे को रोका जा सकता है

कुमार संजय, लखनऊ1जवानी की दहलीज पर कदम रखने वाले आठ से दस फीसद शहरी मोटापे के शिकार है खास तौर पर वह बच्चे जो शारीरिक रूप से एक्टिव नहीं है। यह मोटापा उनमें जवानी में तमाम तरह की परेशानी खड़ी कर सकता है। संजय गांधी पीजीआइ की पोषण विशेषज्ञ निरूपमा सिंह कहती है स्वस्थ रहना अच्छी बात है, लेकिन मोटापा ठीक नहीं है। बच्चों को मोटापे से बचाने में प्रोटीन युक्त आहार देने से उनमें मोटापे को रोका जा सकता है। देखा गया है कि छोटे बच्चे या टीनेजर्स हमेशा डेरी उत्पाद जैसे दूध, दही, मीट या अंडा खाने से दूर भागते हैं।1नाश्ते में इस प्रोटीन निर्मित आहार को लेने से अधिक वजनदार टीनेजर्स अपना वजन कम कर सकते हैं। इंटरनेशनल जरनल ऑफ ओबेसिटी के एक शोध का हवाला देते हुए कहती है कि टीनेजर्स के साधारण प्रोटीन वाले नाश्ते और ज्यादा प्रोटीन वाले नाश्ते के फायदों की तुलना की जो नाश्ता नहीं करते हैं उनमें भी शोध हुआ। शोध रिपोर्ट के मुताबिक अध्ययन से यह जानने की कोशिश की गई कि जो लोग सुबह नाश्ता करने से चूकते हैं, उन्हें अगर नाश्ता करने को दिया जाए, तो क्या उनके वजन पर प्रभाव पड़ेगा या नहीं। इस अध्ययन से पता चला कि नाश्ते में 35 ग्राम प्रोटीन लेने से भूख लगना, खाना खाने की इच्छा और शरीर में उत्पन्न हो रहे फैट को रोका जा सकता है। साथ ही ग्लूकोज लेवल पर नियंत्रण रखा जा सकता है। 35 ग्राम प्रोटीन की मात्र लेने का मतलब, दूध, दही, अंडा और मीट को मिलाकर उच्च क्वालिटी की सामग्री को अपने आहार में शामिल करना है।
1अध्ययन करने के लिए शोधकर्ताओं ने वजनदार टीनेजर्स को दो ग्रुप में बांटा। एक जो टीनेजर्स अपना साधारण या •यादा प्रोटीन वाला नाश्ता हफ्ते में पांच बार खाने से चूकते हैं और दूसरा जो टीनेजर्स अपना नाश्ता हफ्ते में सात बार खाने से चूकते हैं। तीसरा ग्रुप जिसने अपना नाश्ता 12 हफ्तों तक नहीं खाया। साधारण प्रोटीन वाला नाश्ता, जिसमें दूध और अन्य शामिल हैं, उसमें 13 ग्राम प्रोटीन होता है। वहीं, ज्यादा प्रोटीन वाले नाश्ते में 35 ग्राम प्रोटीन होता है।1कुमार संजय, लखनऊ1जवानी की दहलीज पर कदम रखने वाले आठ से दस फीसद शहरी मोटापे के शिकार है खास तौर पर वह बच्चे जो शारीरिक रूप से एक्टिव नहीं है। यह मोटापा उनमें जवानी में तमाम तरह की परेशानी खड़ी कर सकता है। संजय गांधी पीजीआइ की पोषण विशेषज्ञ निरूपमा सिंह कहती है स्वस्थ रहना अच्छी बात है, लेकिन मोटापा ठीक नहीं है। बच्चों को मोटापे से बचाने में प्रोटीन युक्त आहार देने से उनमें मोटापे को रोका जा सकता है। देखा गया है कि छोटे बच्चे या टीनेजर्स हमेशा डेरी उत्पाद जैसे दूध, दही, मीट या अंडा खाने से दूर भागते हैं।1नाश्ते में इस प्रोटीन निर्मित आहार को लेने से अधिक वजनदार टीनेजर्स अपना वजन कम कर सकते हैं। इंटरनेशनल जरनल ऑफ ओबेसिटी के एक शोध का हवाला देते हुए कहती है कि टीनेजर्स के साधारण प्रोटीन वाले नाश्ते और ज्यादा प्रोटीन वाले नाश्ते के फायदों की तुलना की जो नाश्ता नहीं करते हैं उनमें भी शोध हुआ। शोध रिपोर्ट के मुताबिक अध्ययन से यह जानने की कोशिश की गई कि जो लोग सुबह नाश्ता करने से चूकते हैं, उन्हें अगर नाश्ता करने को दिया जाए, तो क्या उनके वजन पर प्रभाव पड़ेगा या नहीं। इस अध्ययन से पता चला कि नाश्ते में 35 ग्राम प्रोटीन लेने से भूख लगना, खाना खाने की इच्छा और शरीर में उत्पन्न हो रहे फैट को रोका जा सकता है। साथ ही ग्लूकोज लेवल पर नियंत्रण रखा जा सकता है। 35 ग्राम प्रोटीन की मात्र लेने का मतलब, दूध, दही, अंडा और मीट को मिलाकर उच्च क्वालिटी की सामग्री को अपने आहार में शामिल करना है।
1अध्ययन करने के लिए शोधकर्ताओं ने वजनदार टीनेजर्स को दो ग्रुप में बांटा। एक जो टीनेजर्स अपना साधारण या •यादा प्रोटीन वाला नाश्ता हफ्ते में पांच बार खाने से चूकते हैं और दूसरा जो टीनेजर्स अपना नाश्ता हफ्ते में सात बार खाने से चूकते हैं। तीसरा ग्रुप जिसने अपना नाश्ता 12 हफ्तों तक नहीं खाया। साधारण प्रोटीन वाला नाश्ता, जिसमें दूध और अन्य शामिल हैं, उसमें 13 ग्राम प्रोटीन होता है। वहीं, ज्यादा प्रोटीन वाले नाश्ते में 35 ग्राम प्रोटीन होता है।1

20 फीसद मार्ग दुर्घटना का कारण खर्राटा



20 फीसद मार्ग दुर्घटना का कारण खर्राटा
सोते समय खर्राटा भरना आपको उच्च रक्तचाप, डायबटीज और श्वास रोग का शिकार बना सकता है। संजय गांधी पीजीआइ के पल्मोनरी मेडिसिन के प्रोफेसर जिया हुसैन ने पत्रकार वार्ता में बताया कि बीस फीसदी रोड एक्सीडेंट का कारण रात में खर्राटे के कारण नींद पूरी न होना है। बताया कि इसकी वजह से सोते समय व्यक्ति की सांस कुछ सेकेंड के लिए सैकड़ों बार रुक जाती हैं। पुन: जब सांस आती है, तो आवाज काफी जोरदार होती है। सांस रुकने की यह अवधि एक सेकेंड से एक मिनट तक हो सकती है। श्वसन क्रिया में आने वाले इस अंतर यानी सांस के इस तरह रुकने और फिर वापस आने को एप्निया कहा जाता है। इससे रात को सोते वक्त शरीर में ऑक्सीजन की कमी और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्र बढ़ जाती है। किसी व्यक्ति की सांस नींद में एक घंटे में 15 बार से अधिक रुकती है, तो इसे गंभीर ओएसए की श्रेणी में गिना जाता है। संस्थान में 82 लोगों में स्लीप स्टडी किया तो देखा कि 50 लोगों में गंभीर स्लीप एप्निया की परेशानी थी। 1गर्दन की गोलाई अधिक तो ओएसए1मोटापे के कारण गर्दन मोटी होने से सांस मार्ग छोटा हो जाता है। पुरुषों के लिए गर्दन की माप 17 इंच और महिलाओं के लिए 16 इंच से अधिक नहीं होनी चाहिए। इससे अधिक होने पर ओएसए का खतरा बढ़ जाता है। ओएसए होने की संभावना उन लोगों में दोगुनी हो जाती है, जिन्हें रात में अक्सर नाक बंद होने की समस्या रहती है। 1क्या है स्लीप स्टडी1ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एप्निया (ओएसए) की जांच स्लीप स्टडी या पॉलीसोम्नोग्राफी द्वारा की जाती है। सोते समय रोगी के सर, छाती, दोनों हाथ व पैर समेत शरीर के विभिन्न हिस्सों में सेंसर लगा दिये जाते हैं, जो नींद की स्थिति में रोगी की सांस, पल्स ऑक्सीमेट्री (ऑक्सीजन), खर्राटों की आवाज व उसकी तीव्रता, हृदय की धड़कन (ईकेजी), मस्तिष्क की तरंगों (ईईजी), शरीर की करवट की स्थिति, सीने और आंखों की स्थिति से जुड़ी गतिविधियों का पता लगाते हैं। संस्थान में यह जांच 800 रुपये में होती है।1बेहतर उपचार है सीपीएपी1ओएसए का सबसे बेहतर उपचार है-कंटिन्यूअस पॉजिटिव एयरवे प्रेशर (सीपीएपी) यानी सतत एयर प्रेशर थेरैपी. यह एक छोटा पोर्टेबल मैकेनिकल डिवाइस है। शरीर में पर्याप्त मात्र में ऑक्सिजन की आपूर्ति हो पाती है। संस्थान यह मशीन ट्रायल के लिए भी उपलब्ध कराता है। किस्त पर कंपनी से दिलवाने की कोशिश करता है।6खर्राटे के कारण हो सकती है ब्लड प्रेशर और डायबटीज की परेशानी

मच्छर ढा रहे इंसेफ्लाइटिस का कहर

मच्छर ढा रहे इंसेफ्लाइटिस का कहर
बरसात के मौसम में दिमागी बुखार यानी इंसेफ्लाइटिस का कहर शुरू हो जाता है। इसमें जापानी इंसेफ्लाइटिस और एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम नामक दो बीमारियां होती हैं। दोनों को ही सामान्य भाषा में इंसेफ्लाइटिस कहा जाता है। इंसेफ्लाइटिस के सबसे अधिक शिकार तीन से 15 साल के बच्चे होते हैं। संजय गांधी पीजीआइ के तंत्रिका तंत्र विशेषज्ञ प्रो.संजीव झा कहते है कि यह बीमारी जुलाई से दिसंबर के बीच फैलती है। सितंबर-अक्टूबर में बीमारी का कहर सबसे ज्यादा होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि जितने लोग इंसेफ्लाइटिस से ग्रसित होते हैं, उनमें से केवल 10 प्रतिशत में ही दिमागी बुखार के लक्षण जैसे झटके आना, बेहोशी और कोमा की स्थिति आती है। इनमें 50 से 60 प्रतिशत मरीजों की मौत हो जाती है। बचे हुए मरीजों में से लगभग आधे लकवाग्रस्त हो जाते हैं। उनकी आंख और कान ठीक से काम नहीं करते हैं। जिंदगी भर दौरे आते रहते हैं। मानसिक अपंगता होती है।
पंद्रह साल तक के बच्चों में अधिक है खतरा
टीके से रखे अपने बच्चों को सुरक्षित
घर को साफ सुथरा रखें। इसके अलावा मच्छरों से बचाव के लिए कीटनाशक का प्रयोग करें। रात में सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग करें। इंसेफ्लाइटिस देने वाले मच्छर शाम को ही काटते हैं, इसलिए शाम को बाहर निकलते समय शरीर को ढककर रहें। बच्चों को इंसेफ्लाइटिस का टीका जरूर लगवाएं, इसे जेई वैक्सीन के टीके लगवाने होते हैं। यह शून्य से 15 साल तक के बच्चों को लगाया जाता है।

डेंगू में प्लेटलेट्स काउंट 10,000 से कम तो है प्लेटलेट्स की जरूरत

जय गांधी पीजीआई के क्लीनिकल इम्यूनोलाजी विभाग के प्रो.विकास अग्रवाल, हिमैटोलाजी विभाग की प्रमुख प्रो.सोनिया नित्यानंद, सामान्य अस्पताल की की डॉ. प्रेरणा कपूर और माइक्रोबायलोजी विभाग की डॉ. रिचा मिश्र आदि ने पत्रकारवार्ता में कहा कि
जागरण संवाददाता, लखनऊ : डेंगू के उन मरीजों में अधिक खतरा है, जिन्हे दोबारा डेंगू हुआ है। इन लोगों में डेंगू शॉक सिंड्रोम का अधिक खतरा रहता है। डेंगू के एक फीसद मरीज ही गंभीर होते हैं। इन मरीजों को भर्ती की जरूरत होती है। जिस मरीज का प्लेटलेट्स काउंट 10,000 से कम है, उसे प्लेटलेट्स ट्रांसफ्यूजन की जरूरत नहीं होती।1यह धारणा गलत है कि डेंगू में मौत प्लेटलेट्स के कारण होती है। अनुचित प्लेटलेट्स ट्रांसफ्यूजन से नुकसान हो सकता है। डेंगू में मौत का कारण असल में कैपिलरी लीकेज है। लीकेज की हालत में इंट्रावैस्कुलर कंपार्टमेंट में खून की कमी हो जाती है और कई सारे अंग काम करना बंद कर देते हैं। इस तरह की लीकेज होने तुरंत सलाह लेने की जरूर है। संजय गंधी पीजीआई के शरीर प्रतिरक्षा विशेषज्ञ प्रो.विकास अग्रवाल कहते है कि नब्ज में 20 की बढ़ोतरी, रक्तचाप में 20 की कमी, उच्च और निम्न बीपी में 20 से कम का अंतर हो और बाजू पर 20 से ज्यादा चकत्ते हों तो ये गंभीर खतरे के लक्षण होते हैं। इसलिए तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। डेंगू से पीड़ित लोगों को मेडिकल सलाह लेनी चाहिए, आराम करना चाहिए और तरल आहार लेते रहना चाहिए। संस्थान विभागों की रोस्टर वाइज ड्यूटी लगी है जो इमरजेंसी में मरीज के अटेंड करते है। दस बेड सुरक्षित रखा गया है।