शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2013

लड़का या लड़की जंम के कई साल चलता है पता


लड़का या लड़की जंम के कई साल चलता है पता

दस हजार में से एक में लिंग का सही नही होता विकास


कुमार संजय
 २८ वर्षीय सुनीता ने शिशु को जन्म दिया तो बेटा समझकर परिवार वालों ने खूब खुशियां मनाई। बेटे की तरह उसका पालन-पोषण भी किया। १४ वर्ष की उम्र में पता चला कि उसका लिंग लड़कों की तरह नहीं है। दरअसल वह जन्म से ही लड़की थी लेकिन लिंग का सही विकास न होने के कारण परिवार वाले समझ नहीं पाए कि वह लड़की है। इसी तरह एक परिवार में चार शिशुओं का पालन-पोषण लड़कियों की तरह हुआ। जब लड़कियों की उम्र तेरह वर्ष की हुई तो उनका शारीरिक विकास लड़कियोंं की तरह नहीं हुआ दरअसल यह जन्म से ही लड़के थे। इस तरह की दुविधा केवल इन्ही शिशुओं में नहीं होती है। दस हजार में से एक बच्चा एैसा पैदा होता है जिनका लिंग  स्पष्ट नहीं होता है। लिंग की बनावट स्पष्ट न  होने के कारण परिवार के लोग लड़के को लड़की व लड़की को लड़का समझ कर पालन-पोषण करते रहते है। इस बीमारी को चिकित्सकीय भाषा में एम्बीगुअस जेनिटेलिआ कहते हैं। यह जानकारी एच.एन.हास्पिटल मुंम्बई की विख्यात बाल रोग शल्य चिकित्सका डा.ईला बी.मेसरी ने दी।
डा.मेसरी ने बताया कि जन्म लेने वाले शिशु का लिंग स्पष्ट न होने पर तुरंत चिकित्सक से सलाह लेना चाहिए। अपने आप अंदाजा लगा कर लिंग निर्धारण करना शिशु के समाजिक जीवन को तबाह कर सकता है। एक साल के अंदर शिशु का सही लिंग निर्धारित करने के लिए की जाने वाले इलाज की सफलता दर बढ़ जाती है। व्यस्क होने पर सही लिंग निर्धारित करने में परेशानी होती है। बच्चे का मानसिक परिवर्तन करना मुश्किल होता है। उन्होंने बताया कि शिशु के सही लिंग का पता न लगने की दशा में उसका जीन परीक्षण, एस्ट्रोजन ,टेस्ट्रोट्रान,एफएसएच व एलएसएच सहित कई हारमोन परीक्षण किया जाता है। इसके अलावा वेजाइनोस्कोप,जेनिटोस्कोप,लेप्रोस्कोप व इंडोस्कोप से शिशु के लिंग की बनावट अंदर से देखी जाती है। इन परीक्षणों के आधार पर तय किया जाता है कि वह लड़का है या लड़की। सर्जरी कर उसका सही लिंग बना दिया जाता है। ६५ प्रतिशत शिशु ऐसे पैदा होते है जिनका लिंग लड़कों की तरह दिखता लेकिन वह होते हैं लड़की। २५ से ३० प्रतिशत शिशु ऐसे पैदा होते है जिनका लिंग लड़की की तरह दिखता है लेकिन वह होते हैं लड़के।
संजय गांधी पीजीआई की अंत:स्रावी रोग विशेषज्ञ प्रो.विजय लक्ष्मी भाटिया ने बताया कि जागरूकता के आभाव में लोग ऐसे बच्चों का इलाज नहीं कराते हंै। कई लोग ऐसे बच्चो को किन्नर समझ कर उन्हें सौंप देते हैं। अभी तक यहां पर केवल सौ बच्चे इलाज के लिए पहुंचे। इन बच्चों के इलाज के लिए अंत:स्रावी रोग विभाग व यूरोलांजी विभाग मिल कर काम करते हैं। सर्जरी के बाद सही लिंग तय करने के बाद भी इन्हें हारमोन की दवाएं दी  जाती है। लड़कियों फीमेल हारमोन व लड़कों को मेल हारमोन की दवाएं दी जाती है।
 प्रो. अमित अग्रवाल ने बताया कि थायरायड ग्रंथि का कैंसर मेड्युलरी थायरायड कार्सीनोमा का इलाज केवल सर्जरी से ही संभव है। सर्जरी के दौरान पूरा थायरायड निकालना चाहिए साथ ही आगल-बगल स्थित गांठों को भी निकाल देना चाहिए। दूसरे कैंसर के मुकाबले यह काफी तेजी से फैलता है। शल्य चिकित्सकों को अल्ट्रासाउंड परीक्षण का तरीका सिखाया गया। एसजीपीजीआई के यूरोलाजिस्ट प्रो.राकेश कपूर ने बताया कि व्यस्क होने पर भी लिंग स्पष्ट न होने पर लिंग तय करने की जाने वाली सर्जरी के परिणाम भी बेहतर मिल रहे हैं। उन्होंने अब तक इसके लिए किए गए अपने  २० सर्जरी का अनुभïव बताया।

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