बुधवार, 29 दिसंबर 2021

अब डायबिटीज मरीजों के शुगर पर हर 10 मिनट पर पल रहेगी नजर

 

अब डायबिटीज मरीजों के शुगर पर हर पल रहेगी नजर

 पीजीआई ने शुरू किया नया मॉनिटरिंग सिस्टम

कुमार संजय। लखनऊ

डायबिटीज के कुछ मरीज ऐसे होते है जिनमें शुगर स्तर में बहुत उतार चढ़ाव होता है। यह स्थिति मरीज के जीवन के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। शुगर के स्तर पर लगातार नजर रखना संभव नहीं था ऐसे में इलाज भी काफी जटिल था लेकिन इस परेशानी से निपटने के लिए संजय गांधी पीजीआई के एंडोक्राइनोलॉजिस्ट प्रो. सुशील गुप्ता ने कंटीन्यूअस ग्लूकोज मॉनिटरिंग सिस्टम शुरू किया है। इस सिस्टम से हर 15 से 20 मिनट में शुगर का स्तर डिजिटल के रूप में रिकॉर्ड होता रहता है। इस रिकॉर्ड के आधार इलाज की दिशा तय की जाती है। प्रो. सुशील गुप्ता के मुताबिक एक चिप जिसमें निडिल लगा होता है स्किन में चिपका दिया जाता है यह चिप एक डिवाइस से जुडा होता है जो शुगर लेवल को रिकॉर्ड करता है। शुगर के स्तर के पैटर्न के आधार इलाज की दिशा तय करते है।  पुराने शुगर के मरीज, इंसुलिन पर रहने वाले सहित कई दूसरे परेशानी के मरीजों में शुगर का लेवल हाई –लो होता है । हर महीने 10 से 15 मरीजों में इस सिस्टम से शुगर लेवल की मॉनिटरिंग की जरूरत पड़ रही है।


इंटेस्टियल फ्लूड में मापी जाती है शुगर


प्रो. सुशील के मुताबिक रक्त में शुगर का लेवल सामान्य तौर पर देखा जाता है लेकिन कंटीन्यूअस सिस्टम में त्वचा में स्थित इंटेस्टियल द्रव में उपस्थिति शुगर के चिप मॉनिटर करता है। चिप से कनेक्ट छोटी निडिल सेंसर के रूप में काम करता है। रक्त या इंटेस्टियल द्रव में शुगर का स्तर बराबर होता है।

बुधवार, 15 दिसंबर 2021

आशा को कैंसर के जल्दी पहचान में बनाए भागीदार जल्द पकड़ में आएगा-सर्जरी के दौरान पीटीएच हार्मोन की जांच से कैल्शियम की कमी का भविष्यवाणी संभव-सीडी 64 से लिवर सिरोसिस के मरीजों में लगेगा सूजन का पता

 


पीजीआई 38 वां स्थापना दिवस समारोह

 

आशा को कैंसर के जल्दी पहचान में बनाए भागीदार जल्द पकड़ में आएगा

आशा को ट्रेंड कर प्राइमरी स्क्रीनिंग में किया शामिल मिला अच्छा परिणाम- डा. रवि   

जागरण संवाददाता। लखनऊ

कैंसर के 80 फीसदी मामले कैंसर के तीसरे और चौथे स्टेज में आते है ऐसे में इलाज की सफलता प्रभावित होती है। कैंसर का इलाज में जल्दी पहचान और जागरूकता मुख्य है। इस काम में आशा की भूमिका काफी अहम साबित हो सकती है। कछार कैंसर अस्पताल एवं अनुसंधान संस्थान के निदेशक पद्मश्री डा. रवि कानन ने संजय गांधी पीजीआई के 38 वें  स्थापना दिवस के मौके पर मुख्य वक्ता के रूप में कहा कि हमने आशा की मदद को लेकर ग्रामीण इलाकों में कैंसर की जल्दी पहचान को लेकर परियोजना बनायी जिसमें काफी सफलता मिली। प्रो. कानन ने बताया कि 1360 पुरुष की मुंह, गले कैंसर के स्क्रीनिंग किया जिसमें 6.93 फीसदी में कैंसर की आशंका मिली इन्हें आगे पुष्टि के लिए पीएचसी पर भेजा गया। इसी तरह 3079 महिलाओं का आशा ने स्तन कैंसर, सर्विक्स कैंसर के लिए स्क्रीनिंग किया जिसमें 11.5 फीसदी में आशंका मिली। ह्यूमन पैपिलोमा वायरस जो सर्विक्स कैंसर का कारण साबित होता है इसके लिए 1160 महिलाओं की स्क्रीनिंग की गयी जिसमें 146 में पॉजिटिव मिला। प्रो. कानन ने कहा कि हमारा यह प्रोजेक्ट देश के दूसरे भाग में भी कैंसर के जल्दी पहचान और जागरूकता में उपयोगी साबित हो सकता है। 1.29 करोड़ की  स्क्रीनिंग की गयी तो कैंसर के आलावा 8 फीसदी लोगों में डायबिटीज और 12 फीसदी उच्च रक्तचाप का पता लगा। यह कह सकते है कि प्राइमरी स्क्रीनिंग मॉडल को लागू कर नान कम्युनिकेबल डिजीज और कैंसर का पता जल्दी लगाकर जल्दी इलाज शुरू किया जा सकता है। डा. कानन ने कहा कि जल्दी कैंसर की पुष्टि और इलाज भी पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। इस मौके पर संस्थान में कर्म रक्तदान  किया गया। फल वितरण , वृक्षारोपण सहित अन्य कार्यक्रम हुए। डीन प्रो. अनीश श्रीवास्तव, सीएमएस प्रो. गौरव अग्रवाल समेत संस्थान के कई अधिकारी और संकाय सदस्य शामिल हुए।   

 

बाद कोविड में कई देशों से अच्छा काम  - आरके तिवारी  

 

 मुख्य सचिव एवं संस्थान के अध्यक्ष आरके तिवारी ने कहा कि  1.5  साल हम लोगों को कोविड के कारण बहुत ही जटिल रहा लेकिन कम संसाधन के बाद भी सामूहिक प्रयास से हम लोगों ने कोरोना पर विजय हासिल किया। कई देशों के मुकाबले बेहतर काम किया। ।  मुख्य सचिव डा. आरके तिवारी ने एवार्ड विजेताओं को सम्मानित किया। प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा आलोक कुमार ने संस्थान के प्रगति को सराहा।

 

इमरजेंसी मेडिसिन में होगी सुपरस्पेशियलिटी पढाई

निदेशक प्रो.आरके धीमन ने बताया कि इमरजेंसी मेडिसिन और आप्थेलमी में सुपरस्शिएलटी डीएम पाय़क्रम शुरू करने जा रहे है। इसका प्रस्ताव पास हो गया है। इसके आलावा रेडियो फार्मेसी में एमएससी शुरू होगा। इसके अलावा टेली आईसीयू के लिए काम चल रहा है। इस सिस्टम से प्रदेश से पुराने 6 मेडिकल कॉलेजों को जोडा जाएगा इससे वहां के लोगों को वहीं पर विशेष इलाज देना संभव होगा। यह देश का पहला मॉडल होगा।

 

 

हर कैंसर के नए मामले- 1157294

कैंसर के कारण हर साल मृत्यु- 784821 


सर्जरी के दौरान पीटीएच हार्मोन की जांच से कैल्शियम की कमी का भविष्यवाणी संभव- प्रो. अमित अग्रवाल

 

 एंडोक्राइन सर्जरी विभाग के प्रमुख प्रो. अमित अग्रवाल के शोध को बेस्ट पेपर एवार्ड मिला है। गले में स्थित पैरा थायरायड ग्रंथि के  सर्जरी के दौरान यदि पीटीएच हारमोन की जांच की जाए तो पहले से पता लग जाएगा कि किसमें सर्जरी के बाद भी कैल्य़िम की कमी होगी। इन्हें सर्जरी के बाद कैल्शियम पूरक दवाएं देकर इनमें कैल्शियम की कमी को रोका जा सकता है जिनमें कैल्शियम की कमी नही होने की आशंका है उन्हें अनावश्यक रूप से कैल्शियम पूरक नहीं देना पड़ेगा मरीज का पैसा बचेगा। होता है। पैरा थायरायड ग्रंथि में ट्मर होने पर इससे स्रावित होने वाले पीटीएच हरामोन की मात्रा अधिक होने पर होने हड्डी में जमा कैल्शियम निकल कर रक्त में जमा होने लगता है।

 

सीडी 64 से लिवर सिरोसिस के मरीजों में लगेगा सूजन का पता- प्रो. गौरव पाण्डेय

 

गैस्ट्रो एन्ट्रोलॉजी विभाग के प्रो. गौरव पाण्डेय को लीवर सिरोसिस के मरीजों में सूजन का कारण पता लगाने में सीडी 64 की भूमिका का पता लगाने के लिए  बेस्ट रिसर्च एवार्ड मिला है। इन मरीजों में सूजन का कारण पता लगाए बिना इलाज की दिशा तय करना कठिन होता है। ऐसे में सीडी 64 जांच से एक से दो घंटे में हम पता लगा लेते है कि इंफेक्शन के कारण सूजन( इंफ्लामेशन) है या दूसरे कारण है। इंफेक्शन है तो तुरंत सही एंटीबायोटिक शुरू कर मरीजों को राहत दे सकते है। मरीज में एंटीबायोटिक कितना सूट कर रहा है इसका पता इस जांच से लगता है। इसके साथ यदि सीटी 64 का स्तर कम नहीं हो रहा है तो इससे आभास हो जाता है कि मरीज की स्थित गंभीर होने वाली है पहले से ही हम लोग आगे की प्लानिंग करने में मदद मिलती है। 

 

कार्टीसोल हार्मोन और बच्चों में लीवर सिरोसिस के बीच है संबंध- प्रो. मोइनक सेन शर्मा 

 

लिवर सिरोसिस से ग्रस्त बच्चों में एड्रेनल ग्लैंड से स्रावित होने वाले कार्टीसोल हार्मोन की बीच संबंध खोजने के लिए बेस्ट रिसर्च एवार्ड पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंट्रॉलजी के प्रो.मोइनक सेन शर्मा के मिला है। इस परेशानी से ग्रस्त बच्चों में यदि कार्टीसोल हार्मोन का स्तर कम हो जाता है ऐसे बच्चों में इंफेक्शन की आशंका बढ़ जाती है। लिवर की बीमारी भी गंभीर होने की आशंका रहती है। कुछ बच्चों में इसके कमी के लक्षण आ प्रकट होते है लेकिन 50 फीसदी में लक्षण प्रकट नहीं होते ऐसे में सभी इन बच्चों में इसका स्तर देखना चाहिए।  कृत्रिम  कार्टीसोल हार्मोन देने के बाद देखा कि इससे इन बच्चों को थोड़ी राहत मिल सकती है। 

 

 

 

 

श्योर तकनीक देगा नवजात को सांस- प्रो. आकाश पंडिता

समय से पहले जन्म लेने वाले  नवजात शिशु में सांस लेने में परेशानी को कम करने के लिए श्योर(सर्फेक्टेंट विदाउट  इंडोट्रेकियल इंट्यूबेशन) तकनीक विकसित करने के लिए नियोनेटल मेडिसिन विभाग के प्रो. आकाश पंडिता को बेस्ट रिसर्च एवार्ड मिला है। सांस की परेशानी कम करने के लिए कम से कम मिनिमल इन्वेसिव( कम से कम चीरा) लगा कर तकनीक विकसित किया है। इस परेशानी को कम करने के लिए गले में छेद कर इंडो ट्रेकिटल ट्यूब डाला जाता है जिससे नवजात में दर्द से साथ अन्य परेशानी होती है। श्योर तकनीक में देखा है कि अधिक नवजात की जिंदगी बचती है साथ बडे होने पर भी फेफडे की परेशानी कम होती है। इस तकनीक में दर्द कम होता है। 150 बच्चों पर इस तकनीक से इलाज किया है।     

 

 

ब्रेन की बनावटी खराबी की बीमारी की गंभीरता जानने के लिए भारतीय पैमाना- प्रो. कुंतल कांति दास

 

ब्रेन की बनावटी खराबी की बीमारी चेयरी मैंन फार्मेशन में कौन सा इलाज सफल रहेगा जानने के लिए शोध करने वाले न्यूरो सर्जन प्रो. कुंतल कांति दास को बेस्ट रिसर्च एवार्ड मिला है।  बताया कि इसमें इलाज की तीन तकनीक है । पहले की तकनीक जिसमें उस हड्डी को निकाला जाता है जहां दिमाग( खोपड़ी में पिछले हिस्सा)  स्पाइन कार्ड पर प्रेशर डाल रहा होता है। इसके अलावा यह बीमारी की गंभीरता का पता लगाने और सर्जरी की सफलता दर पता  स्कोर सिस्टम तैयार किया।

 

प्लेटलेट्स की कमी का कारण खोजा- डा. वसुंधरा सिंह

डा. वसुंधरा सिंह ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन को रक्त कैंसर के मरीजों में प्लेटलेट्स कम होने के कारणों का पता लगाने के साथ विभाग की गतिविधियों में सहयोग के लिए बेस्ट जूनियर रेजिडेंट का एवार्ड मिला है। बताया कि  बढ़ी हुई स्पीन( प्लीहा) और  एंटी फंगल इंजेक्शन एम्फोटेरसिन के कारण प्लेलेटस कम हो जाते है जिसके कारण रक्तस्राव की आशंका रहती है। कारण पता कर इस परेशानी से बचाया जा सकता है।



बेस्ट रिसर्च अवार्ड संकाय सदस्य

प्रो. उज्वला घोषाल- माइक्रोबायोलाजी

प्रो. गौरव पाण्डेय- गैस्ट्रोएंटरोलॉजी

प्रो. मोइनक सेन शर्मा- पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंटरोलॉजी

प्रो. आकाश पंडिता- नियोनेटल मेडिसिन

प्रो. अमित अग्रवाल- एंडोक्राइन सर्जरी

प्रो. अरुण कुमार श्रीवास्तव- न्यूरो सर्जरी

प्रो. कुंतल कांति दास- न्यूरो सर्जरी

प्रो वेद प्रकाश - न्यूरो सर्जरी

डा. एस तिवारी- मॉलिक्यूलर मेडिसिन

डा. खलीकुर्र रहमान- हिमोटोलॉजी

डा. प्रभाकर मिश्रा- बायोस्टेटिक्स

डा. रोहित सिन्हा- एंडोक्राइन



छात्र जिन्हें मिला एवार्ड

डा. अंकित गुप्ता -न्यूरोलॉजी

डा. भरत सिंह- ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन

डा. सौम्या श्रीवास्तव - मेडिकल जेनेटिक्स

रजनी शर्मा  - मॉलिक्यूलर मेडिसिन

डा. तृप्ति लोखंडे- ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन

सुष्मिता राय- गैस्ट्रो एन्ट्रोलॉजी

डा. आंचल दत्ता- न्यूरो सर्जरी

डा. वामसीधर - नेफ्रोलॉजी

डा. सी अर्जुनन- ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन

मेधा श्रीवास्तव- मॉलिक्यूलर मेडिसिन


बेस्ट डीएम, एमसीएच, नर्सेज, टेक्नीशियन एवार्ड

बेस्ट डीएम- डा. जे मेयपप्न- नेफ्रोलाजी

बेस्ट एमसीएच- डा. वंदन रायानी- न्यूरो सर्जरी

बेस्ट एमडी- डा. वसुंधरा सिंह- ट्रांसफ्यूनजन मेडिसिन

बेस्ट नर्स- रचना मिश्रा- न्यूरो सर्जरी

         ज्योति कुमारी- नियोनेटोलाजी

बेस्ट टेक्नीशियन - धीरज सिंह - एनेस्थेसिया

                सुनील तिवारी- ट्रांसफ्यूनजन मिडिसिन



मंगलवार, 14 दिसंबर 2021

रूमेटाइड अर्थराइटिस का टीबी से रिश्ता-सिलिकॉन से बना नर्व देगा शक्ति

 

पीजीआई रिसर्च शोकेस

शोध वैज्ञानिकों ने अपने शोध किया प्रस्तुत

    


रूमेटाइड अर्थराइटिस का टीबी से रिश्ता- प्रो.अमिता अग्रवाल

संजय गांधी पीजीआई के क्लीनिकल इण्यूनोलाजी विभाग की प्रमुख प्रो. अमिता अग्रवाल ने रिसर्च शो केस मे शोध का खुलासा करते हुए बताया कि रूमेटाइड अर्थराइटिस और टीबी बैक्टीरिया( माइकोबैक्टीरियम) के बीच रिश्ता है। देखा कि रूमेटाइड अर्थराइटिस से 30 फीसदी मरीजों में टीबी बैक्टीरिया का सामना( एक्सपोजर) हुआ है जबकि इन्हें टीबी नहीं हुई । यह भी देखा कि इनमें टी सेल के अधिक क्रियाशील होने पर रूमटायड अर्थराइटिस की बीमारी भी बढ़ जाती है। आगे देखेंगे कि जिनको टीबी हुई उनमें रूमेटाइड अर्थराइटिस होने की कितनी आशंका है। एक और शोध में बताया कि बच्चों में रूमेटाइड अर्थराइटिस की परेशानी है तो बडे होने पर 60 फीसदी लोगों में बीमारी गंभीर हो सकती है। इनके कूल्हे में अधिक परेशानी होती है। इनमें डिजीज मॉडिफाइड दवाओं की डोज बढानी पड़ सकती है।    

 

सिलिकॉन से बना नर्व देगा शक्ति- प्रो. अंकुर भटनागर – प्रो. अरुण श्रीवास्तव

 

नर्व से दिमाग के सूचना जाती है कि किस अंग का क्या करना है। कई बार चोट या दूसरे कारणों से नर्व क्षति ग्रस्त हो जाती है जिससे अंग सही तरीके से काम नहीं कर पाते है। नर्व को कई मामलों में रिपेयर करते है लेकिन कई बार नर्व रिपेयर योग्य नहीं रहती है ऐसे में कृत्रिम नर्व लगाना पड़ता है जिसे विदेश से मंगाया जाता है जिसकी कीमत 30 हजार के आस-पास होती है।  संजय गांधी पीजीआई के प्लास्टिक सर्जन प्रो. अंकुर भटनागर और न्यूरो सर्जन प्रो. अरुण कुमार श्रीवास्तव सिलिकॉन से नर्व बना कर इसका चूहे में परीक्षण किया है। देखा कि सिलिकॉन से बनी नर्व चूहे में विकसित हो रही है। इस परीक्षण के परिणाम में रिसर्च शो केस में रखा गया। इसके बाद इस नर्व का परीक्षण में भी किया जाएगा। यह नर्व की कीमत 5 सौ से भी कम पडेगी।           

 

 

न्यूट्रोफिल लिम्फोसाइट अनुपात बताएगा कोरोना कितना करेगा गंभीर- डा. आशुतोष

संस्थान ट्रामा सेंटर के लैब मेडिसिन के डा. आशुतोष  सिंह ने कोरोना से प्रभावित 240 मरीजों पर शोध करके बताया कि सामान्य हेमेटोलॉजिकल जांच के लिए कोरोना संक्रमित कितना गंभीर होगा इसका काफी हद तक अंदाजा लगा कर पहले से इलाज की तैयारी की जा सकती है। न्यूट्रोफिल लिम्फोसाइट अनुपात यदि 5.2 से अधिक हो रहा है   और न्यूट्रोफिल मोनोसाइट अनुपात 12.1 से अधिक हो रहा है  तो बीमारी की गंभीरता बढ़ने की पूरी आशंका है। हमने कोरोना संक्रमित इन मरीजों का पहले दिन, भर्ती होने के चार –पाच दिन बाद और डिस्चार्ज होने के पहले तीन बार रक्त का नमूना लेकर ब्लड पिक्चर जो सामान्य जांच कराया जिसके आधार पर इस तथ्य का पता लगा।

 

एटेक्सिया का परीक्षण कम पैसे में होगा संभव- डा.संदीप

 

तंत्रिका तंत्र की बीमारी एटेक्सिया का पता लगाने के लिए संजय गांधी पीजीआई के मेडिकल जेनेटिक्स विभाग के डा. संदीप कुमार सिंह ने टीपी –पीसीआऱ तकनीक स्थापित किया है। 18 मरीजों में इस तकनीक से परीक्षण का रिपोर्ट शो केस में रखा। इस तकनीक के जरिए बीमारी के कारण सभी जीन में म्यूटेशन का पता लगाते है। अभी तक यह परीक्षण बाहर से कराया जाता रहा है जिसमें 25 से 30 हजार का खर्च आता है अब इस तकनीक से संस्थान में ही जांच संभव हो सकेगा जिसमें 10 से 12 हजार का खर्च जाएगा।  बीमारी के लिए 10 जीन में से किसी में भी म्यूटेशन हो सकता है। टिपलेट रिपीट पीसीआर तकनीक इसमें उपयोगी है। एटेक्सिया तंत्रिका तंत्र की  बीमारी है।  हाव-भाव, अस्पष्ट उच्चारण, बार-बार ठोकर लगना, गिरना और खुद पर संयम नहीं रख पाना इत्यादि हो सकता है।  इस तरह के लक्षण सेरिबेलम के क्षतिग्रस्त होने के कारण होते हैं, यह मस्तिष्क का वह हिस्सा होता है, जो व्यक्ति की एक्टिविटीज के लिए उत्तरदायी होता है। 



बढा शोध का बजट


संस्थान के निदेशक प्रो. आरके धीमन ने बताया कि इस साल इंट्रा

 म्यूरल रिसर्च के शोध का बजट दो करोड़ की बढ़ोतरी की गयी है।

 इससे संस्थान के संकाय सदस्य को शोध का और मौका मिलेगा।

 पहले तीन करोड़ का बजट था जिसे पांच करोड़ किया गया है।  


पीजीआइ में बनेगा मेडिकल उपकरण 

चिकित्सा से जुडे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और तकनीक के विकास के लिए संजय गांधी पीजीआइ और केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं इंफॉर्मेटिक्स विभाग के बीच करार हुआ है। इसके तहत बनने वाले मेडिकल सेंटर फार एक्सीलेंस का काम शुरू हो जाएगा। इस योजना से देशी तकनीक पर आधारित मेडिकल उपकरण कम कीमत पर देश के लिए उपलब्ध कराने के लिए शोध संभव होगा। चिकित्सा क्षेत्र में इलेक्ट्रॉनिक उपकरण वेंटीलेयर, मानीटर, सर्जरी के लिए तमाम उपकरण की जरूरत होती है।तमाम उपकरणों से लिए विदेश पर निर्भर रहना पड़ता है। 


रक्तदान का आयोजन


स्थापना दिवस के मौके पर 10 बजे से एक बजे तक स्वैछिक रक्तदान का आयोजन संस्थान के ब्लड डोनेशन कांपलेक्स में किया गया है। विभाग ने जीवन की रक्षा के लिए रक्तदान का अपील किया है।   


गुरुवार, 9 दिसंबर 2021

पेट स्कैन गाइडेड बायोप्सी तकनीक से सटीक चलेगा प्रोस्टेट कैंसर का पता

 पीजीआई में पेट स्कैन गाइडेड प्रोस्टेट बायोप्सी तकनीक स्थापित






उत्तर भारत का तीसरा अस्पताल बना

नई तकनीक में दर्द और समय कम  


प्रोस्टेट कैंसर अब छिप नहीं पाएगा। कैंसर पकड़ने की दर में बढ़ोतरी के लिए संजय गांधी पीजीआई ने पेट स्कैन गाइडेड बायोप्सी स्थापित किया है। इस तकनीक से सीधे ट्यूमर से बायोप्सी लेना संभव होगा अभी तक अल्ट्रासाउंड गाइडेड बायोप्सी में ट्यूमर के सही स्थित का पता न लगने के लिए प्रोस्टेट के कई जगह से बायोप्सी लेनी पड़ती थी जिससे कई बार कैंसर का पता नहीं लग पता था। इस तकनीक को स्थापित करने वाले यूरोलॉजिस्ट एवं किडनी ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ प्रो. संजय सुरेखा और न्यूक्लियर मेडिसिन के डा. आफताब नजर के मुताबिक पेट गाइडेड बायोप्सी में पहले प्रोस्टेट में कैंसर की सही स्थिति का पता लगाते है फिर रोबोट से शरीर के ऊपरी सतह से  कितने अंदर कहां पर स्थित है पूरी पोजिशनिंग करने के बाद ट्यूमर से बायोप्सी रोबोट के जरिए लेने है। इससे कैंसर को पकडना काफी आसान हो गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रोस्टेट कैंसर के पुराने तकनीक में एक से दो फीसदी में कैंसर का पता नहीं लग पाता था जिसके लिए कई बार दोबारा बायोप्सी करनी पड़ती थी।  इस नयी विधि से अब तक करीब 15 केस में सफल बायोप्‍सी की जा चुकी है। यह प्रदेश का पहला ऐसा संस्थान है जहां रोबोट से बायोप्‍सी की सुविधा अब उपलब्ध हो गई है।  चंडीगढ़ पीजीआई और एम्स दिल्ली में ही उपलब्ध थी। विशेषज्ञों का कहना है कि इस तकनीक  से बायोप्‍सी करने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह लगभग दर्द रहित है।  इसमें मात्र एक इंजेक्शन की तरह नाममात्र की चुभन महसूस होती है। पुरानी पद्धति से की जाने वाली बायोप्‍सी की अपेक्षा समय भी आधे से कम लगता है।

 

 

दर्द से भरा होता था बायोप्सी

 

अभी तक यह बायोप्सी प्रक्रिया मरीज के गुदाद्वार में सुई डालकर की जाती हैयह प्रक्रिया मरीज के लिए कष्टकारी और असुविधाजनक होती है क्योंकि इस पुरानी विधि से प्रोस्टेट ग्रंथि के अलग-अलग हिस्सों से 8 से 10 जगह से  लेने पड़ते हैं।  

रविवार, 5 दिसंबर 2021

कोरोना का दो टीका लगा है तो ओमीक्रान को लेकर न हो भयभीत

 

कोरोना का दो टीका लगा है तो ओमीक्रान को लेकर न हो भयभीत


बस बचाव के लिए बरते एहतियात

टी सेल कोशिकाएं काफी हद तक कर सकती है नए वायरस से मुकाबला

 

नए वायरस को लेकर अधिक चिंता बन रहा मानसिक परेशानी  


अगर दो टीका आप को लग चुका है तो नए कोरोना वायरस को लेकर बहुत भयभीत न हो हां केवल मानकों का पालन करें। संजय गांधी पीजीआई के क्लीनिक इम्यूनोलॉजिस्ट का कहना है कि नए उत्परिवर्ती वायरस को लेकर काफी भय देखा जा रहा है। यह भय मानसिक स्थिति प्रभावित कर सकता है। सार्स सीओवी-2 के ओमीक्रान का पता लगने के बाद के बाद आज प्रमुख प्रश्नों में से एक है कि क्या वैक्सीन नए पाए गए कोरोना वायरस संस्करण के खिलाफ काम करेगा।   यह एक जटिल  सवाल है क्योकि कुछ को टीके की दो-खुराक लग चुका है कुछ लोगों को आंशिक रूप से  है।

 

वायरस के स्पाइक प्रोटीन को लक्ष्य करता है टीका

 

 टीके वायरस के स्पाइक प्रोटीन क्षेत्र को लक्षित करते हैं। यह कोरोनावायरस का वह हिस्सा है जिसका उपयोग वह मानव कोशिका में प्रवेश करने के लिए करता है।

टीके वायरस के स्पाइक प्रोटीन की पहचान करने के लिए मानव की प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रशिक्षित करके काम करते हैं  जब वायरस शरीर में प्रवेश करने की कोशिश करता है तो उस पर हमला करता है।

 

नए वायरस के स्पाइक प्रोटीन में 30 से अधिक बदलाव

 

प्रो. विकास अग्रवाल कहते है कि ओमिक्रॉन वेरिएंट में जो देखा गया है  कि इसके स्पाइक प्रोटीन में 30 से अधिक म्यूटेशन है।  इनमें से दस उत्परिवर्तन को रिसेप्टर-बाइंडिंग डोमेन या स्पाइक प्रोटीन के आरबीडी में देखा गया है। आरबीडी स्पाइक प्रोटीन का वह हिस्सा है जो मानव कोशिका से जुड़ता है। एक अत्यधिक उत्परिवर्तित आरबीडी शरीर की प्रतिरक्षा चकमा दे सकता है हालांकि स्पाइक प्रोटीन कोरोना वायरस का एकमात्र हिस्सा नहीं है जिसे प्रतिरक्षा प्रणाली पहचानती है और लक्षित कर सकती है। एंटीबॉडी और टी कोशिकाएं विशिष्ट कोशिकाएं जो पिछले संक्रमण या टीकाकरण के जवाब में शरीर में विकसित होती हैं और रोगजनकों को याद रखने में सक्षम हैं।  एक उत्परिवर्तित वायरस खिलाफ सुरक्षा प्रदान कर सकती हैं। यह ओमीक्रान संस्करण के लिए भी सही है।

 

दक्षिण अफ्रीका से हमें जो जानकारी  मिल रही हैं वह यह कह रही हैं कि यह गंभीर नहीं लगता हैऔर जो लोग अस्पताल जा रहे हैं उनमें  टीकाकरण नहीं हुआ है।

 

 

तो टीके कितनी सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं



प्रो. दुर्गा प्रसाद प्रसन्ना कहते है कि  डेल्टा संस्करण से अभी तक संक्रमित टीकाकरण के मामले मेंकोविड -19 रोगियों के मरने की संभावना नौ गुना कम थी। यह भी कहा गया था कि पूरी तरह से टीका लगाए गए लोगों में बिना टीकाकरण वाले लोगों की तुलना में संक्रमण को पकड़ने की संभावना तीन गुना कम होती है। डा. पंक्ति मेहता कहती है कि पूरी तरह से टीकाकरण वाले लोगों के मामले मेंजो डेल्टा संस्करण से संक्रमित थेसुरक्षा बेहतर प्रतीत होती है। यदि आपको डबल-डोज किया गया है और फिर डेल्टा से संक्रमित हो चुके है और ठीक हो गए हैतो आपको एक बहुत व्यापकबहुत प्रभावी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया मिली हैजो शायद किसी भी प्रकार के कोरोना वायरस को कवर करती है। कारण बहुत सरल है। ऐसे व्यक्तियों को चीन के वुहान में कोविड -19 मूल वायरस के खिलाफ टीका लगाया गया था और उन्होंने उत्परिवर्ती डेल्टा संस्करण के कारण प्राकृतिक प्रतिरक्षा भी विकसित की थी। इसका मतलब है कि आपको एक एंटीबॉडी प्रतिक्रिया मिली है जो क्लासिक और आधुनिक दोनों उपभेदों और एक बहुत व्यापक टी सेल प्रतिक्रिया को कवर करती हैन केवल स्पाइक प्रोटीन के खिलाफ।

 

बिना टीका वालों के लिए अधिक चिंता

 

विशेषज्ञों का कहना है कि असली चिंता उन लोगों के लिए बनी हुई है जिनका टीकाकरण नहीं हुआ है। उनके पास ओमिक्रॉन प्रकार के खिलाफ प्राकृतिक या टीकाकृत प्रतिरक्षा नहीं हैजिसे अधिक संक्रामक कहा जाता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि यदि ओमीक्रोन वेरिएंट तेजी से फैलता है जैसा कि अनुमान लगाया जा रहा हैतो यह वायरस अधिक से अधिक बिना टीकाकरण वाले लोगों को संक्रमित कर सकता हैजिससे संभावित उच्च अस्पताल में भर्ती हो सकता है।

 

मंगलवार, 30 नवंबर 2021

पीजीआई - मेस्थेनिया ग्रेविस ग्रस्त वेंटीलेटर पर निकाला एंडीबाडी परेशानी दूर

 

पीजीआई बेड साइट पर शुरू किया सेल सेपरेशन

 मेस्थेनिया ग्रेविस ग्रस्त वेंटीलेटर पर  निकाला एंडीबाडी परेशानी दूर

प्लाज्मा फेरेसिस और प्लेटलेट्स सेपरेशन तकनीक कई बीमारी के इलाज में कारगर

 



मेस्थेनिया ग्रेविस बीमारी से ग्रस्त मरीज संजय गांधी पीजीआई के आईसीयू में भर्ती हुआ । मांसपेशियां इतनी कमजोर हो गयी थी सांस तक लेने में परेशानी थी। विशेषज्ञों ने वेंटिलेटर पर रखा । आईसीयू के विशेषज्ञों ने ब्लड ट्रांसफ्यूजन विभाग के विशेषज्ञों से संपर्क किया तो तय किया गया प्लाज्मा फेरेसिस कर यदि बीमारी पैदा करने वाले दुश्मन( एंटीबॉडी) को शरीर से निकाल दिया जाय तो जिंदगी बच सकती है। वेंटीलेटर पर रखने के साथ दो बार प्लाज्मा फेरेसिस किया गया और मरीज वेंटीलेटर से बाहर आ गए। ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रो. आरके चौधरी और प्रो. राहुल कथारिया के मुताबिक 55 वर्षीय राम शरण इस बीमारी से ग्रस्त हो कर भर्ती हुए। इनमें इस तकनीक से इलाज कर जिंदगी बचायी गयी। हम लोगों ने बेड साइड प्लाज्मा फेरेसिस और प्लेटलेट्स सेपरेशन( केवल प्लेटलेट्स को रक्त से अलग करना)  शुरू किया है। इससे मरीजों का काफी फायदा मिल रहा है। हम लोगों के पास प्लाज्मा एक्सचेंज करने की एक मशीन और प्लेटलेट्स सप्रेटर की तीन मशीनें है। सभी क्रियाशील है।  इस तकनीक से हम लोग मेस्थेनिया ग्रेविस के आलावा, थ्रम्बोसाइटोपीनिया, एक्यूट लिवर फेल्योर सहित अन्य में इलाज करते हैं। थ्रोम्बोसाइटोपेनिया के मरीजों में प्लेटलेट्स की संख्या बढ़ जाती है जिससे रक्त का थक्का बनने लगता है। हम प्लेटलेट्स सेप्रेरटर के जरिए अतिरिक्त प्लेटलेट्स को निकाल देते है। इसी तरह एक्यूट लिवर फेल्योर के मरीजों में शरीर मे बहुत अधिक टाक्सिन बन जाता है जिससे प्लाज्मा एक्सचेंज तकनीक से निकाल देते है मरीज की परेशानी कम हो जाती है। प्रो. राहुल ने बताया कि इस तकनीक की जरूरत बढ़ती जा रही है।

क्या है मेस्थेनिया ग्रेविस

 प्रो. राहुल ने मेस्थेनिया ग्रेविस एसीटलीन क्लीन रिसेप्टर और मसल स्पेस्फेसिक काइनेज के खिलाफ एंटीबाडी बन जाती है जिससे मांसपेशियां कमजोर हो जाती है। सासं लेने के लिए काम करने वाली मांसपेशियां तक काम नहीं करती है। इस बीमारी का इलाज संभव है। बस जीवन बच जाए इसके लिए यह तकनीक जीवनदायी साबित होती है।