"डेक एक्सपर्ट" से छिप नहीं पाएगा टीबी
पीजीआई ने डेक्ट्रोसेल स्टार्टअप के साथ मिल कर तैयार किया एआई पर आधारित एप्लीकेशन
रेडियोलाजिस्ट की कमी वाले दूर-दराज के मरीजों टीबी का पता लगाना होगा संभव
संजय गांधी पीजीआई के पल्मोनरी मेडिसिन और सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ इंडिया के मेडिटेक इंडिया के विशेषज्ञों ने मिल कर आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस आधारित एप्लीकेशन तैयार किया है। इससे 95 फीसदी तक टीबी के मरीजों को पहचान केवल चेस्ट एक्स-रे के जरिए संभव होगी। पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रो. आलोक नाथ के मुताबिक दूर –दराज इलाके जहां पर एक्सपर्ट रेडियोलाजिस्ट नहीं है वहां एक्स-रे के आधार पर लगभग 30 से 40 फीसदी टीबी की पहचान नहीं हो पाती है और मरीज छूट जाते है । इलाज न मिलने के कारण वह टीबी से दूसरे लोगों को संक्रमित करते हैं। भारत में हर साल लगभग 2.5 लाख मिसिंग केस हो सकते है। इस एप्लीकेशन में चेस्ट एक्स-रे का फोटो मोबाइल से खीच कर एप्लीकेशन में लोड करने पर टीबी की बीमारी की पुष्टि हो जाती है । प्रो. आलोक ने बताया कि तपेदिक (टीबी) वैश्विक स्तर पर संक्रामक रोगों में मृत्यु का प्रमुख कारण है। प्रभावी ढंग से टीबी के प्रबंधन के लिए टीबी रोग वाले व्यक्तियों की शीघ्र पहचान की आवश्यकता होती है। टीबी की पहचान के लिए चेस्ट एक्स-रे की रिपोर्टिंग के लिए कई जगह कुशल पेशेवरों की कमी होती है। इस चुनौती का समाधान करते हुए, हमने "डेक एक्सपर्ट" नाम का नया कंप्यूटर-एडेड डिटेक्शन सॉफ्टवेयर विकसित किया है जिसे विश्व स्तर पर स्वीकार किया गया है।
4363 मरीजों पर साबित हुई एप्लीकेशन की प्रमाणिकता
हमने इस एप्लीकेशन की प्रमाणिकता का अध्ययन किया। हमने 12 प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों और एक तृतीयक विशिष्ट देखभाल अस्पताल में 4363 व्यक्तियों का चेस्ट एक्स-रे के डाटा का विश्लेषण किया तो पाया कि डेक एक्सपर्ट की केवल चेस्ट -एक्स-रे के साथ 88 फीसदी तक टीबी की सही जानकारी देता है। एक्स-रे के साथ साफ्टवेयर में लक्षण भी बताया जाए तो 95 फीसदी तक सही जनाकारी देता है। डेक एक्सपर्ट टीबी मामलों की शीघ्र पहचान के लिए एक सटीक, कुशल एआई समाधान है। संसाधन की कमी वाले इलाकों में स्क्रीनिंग टूल के रूप में प्रभावी साबित हो सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2021 कहा था कि 90 फीसदी से अधिक परिशुद्धता वाले सॉफ्टवेयर का राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रमों में इस्तमाल करने की आवश्यकता है।
"डेक एक्पर्ट" जैसे सॉफ्टवेयरओं को राष्ट्रीय टीबी उन्मूमल कार्यक्रम में समावेशित करने से मिसिंग केस कम हो सकते हैं। टीबी मरीजों की संख्या कम करने के साथ टीबी उन्मूलन भी संभव होगा।
इन्होंने किया शोध
पल्मोनरी मेडिसिन के प्रो. आलोक नाथ, प्रो. जिया हाशिम , डा. प्रशांत अरेकरा ,रेडियोलॉजी विभाग के प्रो. जफर नेयाज़, माइक्रोबायोलॉजी से प्रो. ऋचा मिश्रा , सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ इंडिया (एसटीपीआई) के साथ मिल कर काम करने वाले स्टार्टअप डेक्ट्रोसेल हेल्थ केयर की सीईओ सॉफ्टवेयर इंजीनियर डा. सौम्या शुक्ला, तकनीकी निदेशक डा. अंकित शुक्ला डा. मनिका सिंह, आईआईटी कानपुर से डा. निखिल मिश्रा ने ए मल्टी सेंट्रिक स्टडी टू इवेलुएट द डायग्नोस्टिक परफॉर्मेंस ऑफ नोवल सीएडी सॉफ्टवेयर डेक एक्सपर्ट फार रेडियोलाजिकल डायग्नोसिस आफ ट्यूबरक्लोसिस इन नार्थ इंडियन पापुलेशन विशेष को लेकर हुए शोध को इंटरनेशनल मेडिकल जर्नल नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट ने स्वीकार किया है।
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